Last Updated on January 23, 2022 by admin
प्रायः पुनर्नवा (विषखपरा) को सभी लोग जानते हैं । यह क्षुप जाति की बेल वर्षा ऋतु में ही फैलती है। आयुर्वेद मतानुसार पुष्प के वर्ण भेद से यह तीन प्रकार की होती है-1. श्वेत, 2. लाल और, 3. नीली पुनर्नवा । इनमें श्वेत और रक्त पुनर्नवा बहुतायत से देखने में आती है । औषधि रूप में श्वेत पुनर्नवा विशेष गुणकारी सिद्ध हो चुकी है ।
इसकी उत्पत्ति कंकरीली और मिट्टी मिली हुई ताकतवर जमीन में होती है । खोदने पर मिट्टी की ताकत के हिसाब से (शकरबन्द के समान) मोटी या पतली (1-2 फुट तक लम्बी) जड़ पाई जाती है। जिस जगह से इसकी जड़ काट दी जाती है, वहाँ एक प्रकार का पीलापन लिए हुए चेप निकलता है। (यह चॅप वस्त्रों में धब्बा डाल देता है) इस कन्द का स्वाद मीठा न होकर कड़वा रहता है । मुख में डालने पर थूक पैदा कर देता है तथा इसको मुख से निकाल देने पर 15-20 मिनट तक ज़ीभ कड़ी और रूखी हो जाती है।
पुनर्नवा के पत्तों का रस गरम होता है। इसकी लुगदी में ताम्र होता है। इसका अर्क समस्त प्रकार के नेत्रों के रोगों को नष्ट करने वाला हो जाता है। यदि इसका अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो वमन हो जाता है इसकी पत्ता की भाजी (शाक) बनाकर खाने से शोथ (सूजन) में बहुत फायदा होता है।
(नोट-श्वेत पुनर्नवा की ही भाजी बनाकर खाना उत्तम है क्योंकि लाल पुनर्नवा की भाजी अत्यधिक तीक्ष्ण होती है, अत: खाई नहीं जाती है)।
- पुनर्नवा की जड़ सौम्य, रेचक, मूत्रल और आंतों के कृमिजन्य रोगों को दूर करने की क्षमता से युक्त है ।
- पुनर्नवा गरम, कड़वी, चरपरी, कसैली, अग्नि प्रदीपक, दस्तावर, रूखी, हृदय को हितकारी, मधुर, खारी तथा कफ, विष, खाँसी, हृदय रोग, शूल, रुधिर विकार, पान्ड रोग, सूजन, वात, उदर रोग, बबासीर, घाव और उर:क्षत नाशक गुण-धर्मों से भरपूर है।
- इस औषधि का प्रभाव शरीर के स्नायु समूह पर विशेष रूप से पड़ता है।
- यह शरीर की शोथ में रामबाण की भांति लाभप्रद है।
- इससे कब्ज की उत्पत्ति होती है।
- ज्चर के समय बकवाद करना, सिर चकराना, इन्टरमिटेन्ट, यूरैल्जिया, सिरदर्द स्नायुशूल, नाक से रक्तस्त्राव, धुंधली दृष्टि, कान में भन-भन की आवाज, चेहेरा फीका, प्लीहा व यकृत की वृद्धि तथा उसमें वेदना, गर्दन, पीठ, रीढ़ में स्पर्श, सहिष्णुता, दुर्बलता, सामान्य मेहनत से दिल घबराना, कामला, पादरी, गायक व भाषण अथवा प्रवचन करने वालों को गले (कण्ठ) का रोग सौर श्रोट (Sore Throat) वायु रोग, कफ रोग को नष्ट करता है ।
- साधारण मात्रा में पुनर्नवा मूल की जड़ का चूर्ण या काढ़ा बनाकर सेवन करने से यह छाती के कफ को ढीला करके बाहर निकालता है।
- यदि शरीर में वात के कारण कम्प या खिंचाव होता हो तो उसका भी शमन हो जाता है ।
- श्वास ग्रस्त रोगी को भी इसका सेवन अत्यन्त ही लाभप्रद है।
1. नेत्र में यदि फूली या टीका पड़ गया हो तो श्वेत पुनर्नवा की जड़ गोघृत में घिसकर अन्दर लगाने से लाभ होता है । ( और पढ़े –पुनर्नवा के 65 आयुर्वेदिक नुस्खे )
2. नेत्रों से यदि केवल जल बहता हो तो इसकी जड़ को शहद के साथ घिसकर नेत्रों में लगाना लाभप्रद है ।
3. नेत्रों में यदि खुजलाहट हो तो इसकी जड़ को दूध में घिसकर लगावें।
4. नेत्रों में यदि पर्दा या पटल हो आया हो तो -पुनर्नवा की जड़ को केवल जल में घिसकर लगाना अत्यन्त हितकर है।
5. मोतियाबिन्दु में इसकी पुरानी जड़ को भांगरे के रस में घिसकर लगावें।
6. आंखों की फूली-पुनर्नवा की जड़ या छाल को नीबू के रस में घिसकर लगाने से आंखों की फूली नष्ट हो जाती है ।
7. श्वास रोग में इसकी जड़ का चूर्ण पानी के साथ सेवन करना लाभप्रद है। ( और पढ़े –अस्थमा दमा के 170 आयुर्वेदिक घरेलु उपचार )
8. सूजन- पुनर्नवा शोथ(सूजन) का प्रबल शत्रु है । इस हेतु श्वेत पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण (अधकचरा या यवकुट किया हुआ, दो से तीन तोला को 250 ग्राम जल में खूब पकाकर जब क्वाथ 5 तोला शेष बचे तभी उसमें चिरायता और सौंठ का महीन चूर्ण 2-2 माशा तथा कलमी शोरा 6 से 8 रत्ती तक मिलाकर पीवें । शोथ में पेशाब बहुत कम होता है, पुनर्नवा इस हेतु भी अधिक गुणकारी है ।
नोट-बाहर की सूजन पर इसकी जड़ घिसकर या कुचलकर लगाना उपयोगी है। इसको लगाने या बॉधने से पहले इसे थोड़ा गरम कर लेना आवश्यक है। जलोदर की अवस्था में पेट फुलकर सर्वांग में जब शोथ चढ़ जाती है तब उपर्युक्त क्वाथ अत्यन्त ही लाभप्रद है । शोध का जोर एकदम घट जाता है । आंव-दस्त साफ होता है, किन्तु यह ध्यान रहे कि उदर रोगी जब इस बवाथ का सेवन करे तो केवल दूध पर ही निर्भर रहे कोई अन्य भोज्य पदार्थ न खाये ।
9. पान्डु-यदि जलोदर के साथ पान्डु, स्थूलता, कफ और सर्वांग-शोथ हो तो पुनर्नवा 1 तौला, कटुनीय, पटोल, सौंठ, कुटकी, दारू हल्दी, गुरच और बाल हर ये सातों द्रव्य आधा-आधा तोला लेकर सबको एकत्र कर तथा यवकुटकर 32 तोला पानी डालकर अष्टमांश क्वाथ तैयार कर रोगी को पिलाना अत्यन्त लाभकारी है ।
10. मासिकधर्म की रुकावट में भी पुनर्नवा का काढ़ा सेवन करना हितकारी है।
11. कमलवाय रोग-पुनर्नवा की जड़ का सेवन करना कमलवाय रोग में भी हितकारी है ।
12. स्त्रियों के स्तनों की गिल्टियों का रोग (ट्यूमर) जो कठोर और वेदनायुवत होती है । स्तनों में यदि प्रदाह कम न होकर पक जावें और उसमें वृहत लालवर्ण जखम अथवा घेघा में इसका लेप करना लाभप्रद है।
13. उपदंश के चट्टों पर इसकी जड़ को नीम के पत्तों के रस से घिसकर लगाना अतीव उपयोगी है। ( और पढ़े – उपदंश रोग के 23 घरेलू उपचार )
14. शोथ होने पर इसका पंचांग उबालकर इससे धोना तथा वाष्प देना और खाने में देना अति उत्कृष्ट है।
15. दर्द -यदि किसी जगह पर चोट लगने से शोथ होकर दर्द होने लगे तो ठण्डे पानी में पुनर्नवा घिसकर मोटा लेप करना हितकर है।
16. कर्णशल होने पर इसके पत्तों का रस गरम करके डालना ही लाभप्रद है।
17. वायु विकार-इसके पत्तों का शाक बनाकर खाने से दस्त साफ आता है और वायु विकार नष्ट होते हैं।
18. शीतपित्त में इसकी डाली जलाकर धूम देना हितकारी है।
19. आँत के रोग– इसकी डलियाँ जलाकर क्षार बनालें, आँत के रोगों में लाभकारी है ।
20. वातार्श में इसकी जड़ को काली मिर्च के साथ पीसकर सेवन करने से लाभ होता है ।
21. बद (गिल्टी) के रोगी को पुनर्नवा की गोली बनाकर धूम्रपान कराना तथा लेप लगाने से बद तुरन्त ठीक हो जाती है ।
22. भगन्दर-हल्दी को हुक्का के पानी में पीसलें । फिर उसमें पुनर्नवा की जड़ को खूब महीन पीसकर दिन में कई बार लेप करने से तथा नित्य प्रात:काल में इसकी जड़ तीन माशा पानी में पीसकर पिलाने से कठिन भगन्दर भी नष्ट हो जाता है । ( और पढ़े –भगन्दर के 44 आयुर्वेदिक घरेलु उपचार )
23. फीलपांव वाले रोगी को इसका नित्य लेप करने से और इसे तेल में डालकर (जलाकर) मालिश करने से लाभ हो जाता है ।
24. शक्ति-पुनर्नवा के फूलों को सुखाकर बनाकर सुरक्षित रखलें । इसे 1 माशा की मात्रा में 3 माशा मिश्री मिलाकर खाकर ऊपर से दुग्धपान करने से प्रमेह रोग नष्ट हो जाता है तथा अपार शक्ति की प्राप्ति होती है।(रात को बिस्तर पर अथवा सुबह उठते समय कमर के दर्द होता हो) तो-रात को सोते समय पुनर्नवाचूर्ण गरम जल से सेवन करने से लाभ होता है।
25. पुनर्नवा हृदय रोग के लिए महौषधि मानी गई है । मुख्यत: हृतपण्ड की पुरानी बीमारी में यह अत्यन्त ही उपयोगी है । हृत्पण्ड के वल्व की पीड़ा चिकित्सकों द्वारा स्टेथिस्कोप (आल) लगाकर सुनने पर धुकधुकी के साथ हुस-हुस शब्द सुनाई पड़ता है । हृत्पण्ड की धड़कन इतने अधिक जोर से होता है कि छाती की कम्पन आँख से देखी जा सकती है और शब्द भी कई इंच की दूरी से सुना जा सकता है । रोगी को बांये पाश्र्व से लेटना दुष्कर हो जाता है और लेटता है तो वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार की पीड़ा में पुनर्नवा की तीन माशा जड़ 125 ग्राम पानी में पीसकर, छानकर थोड़ा सा गरम करके पिलाना अत्यन्त लाभकारी है।
26. शरीर के अन्दरूनी (फेफड़े या अन्य किसी यन्त्र में) कफ या वायु की खराब से जब छाती में दर्द होना शुरू होता है तो उस समय पुनर्नवा को पानी में पीसकर पिलाने से और घिस-घिस कर गरम लेप चढ़ाने से लाभ होता है ।
27. सर्पविष (दंश) में पुनर्नवा 1-1 तोला पानी में पीसकर कई बार पिलाने से जहर नष्ट हो जाता है। (नोट-जब जहर का नाश हो जाये तो तब तुरन्त ही थोड़ा घी पिला देना चाहिए ।)
28. चेचक-श्वेत पुनर्नवा की जड़ और काली मिर्च दोनों को चार माशे लेकर शीतल जल के साथ पीसकर मसूरिका के दिनों में पान करने से खसरा या चेचक होने का भय नहीं रहता है।
29. सर्दी-जुकाम-पुनर्नवा के पत्तों का रस 10 तोला मिश्री 250 ग्राम मिलाकर (शर्बत बनाकर) पकाते ववत आधा तोला छोटी पीपल पीसकर मिलाकर उतारकर तीन माशा से 1 तोला तक की मात्रा में पिलाने से छोटे बच्चों की खांसी, श्वास, फेफड़ों की सूजन, सर्दी, जुकाम, लार बहना, हरे-पीले दस्त होने में तुरन्त लाभप्रद है।
(नोट-फेफड़े में सूजन, जब दाहिने फेफड़े से प्रारम्भ होकर बांये फेफड़े में प्रसारित होती है और फेफड़े के अन्दर जमा हुआ कफ तरल होना शुरू हो जाता है जिसके कारण खांसने से दर्द और छाती तरल से भरी हुई लगती है भयानक श्वास कष्ट होता है और बार-बार खांसी के साथ मुंह भर-भरकर कफ निकलता है और आराम मालूम नहीं होता है। प्रत्येक श्वास-प्रश्वास के साथ नाक के नथुनी बार (उठा-बैठा) फूलना, पिचकना करते हैं तब ऐसी स्थिति में उपर्युक्त शर्वत के सेवन करने से बहुत जल्दी आराम होता है । )
30. पुनर्नवा की जड़ 40 तोला, सौंठ, खश, तगर, देवदारू, लौंग, प्रियंगु, कचूर, नागरमोथा (प्रत्येक 10-10 तोला) अगर 12 तोला, केसर दो तोला, तालीस पत्र 5 तोला लेकर सभी द्रव्यों का कल्क बनाकर तिल के तेल में सिद्ध कर लेने से अत्यन्त गुणकारी तैल निर्मित हो जाता है जो शोथ को फौरन (तुरन्त) दूर करता है । वात-पित्त की बीमारियों को नष्ट करता है । इसके योग से अनेक प्रकार की औषधियां तैयार की जाती हैं जैसे—पुनर्नवा घृत तथा पुनर्नवासवे इत्यादि।
गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन डाक्टर की सलाह लेकर ही करना चाहिये ।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)