हरड़ के चमत्कारी लाभ और सेवन विधि | Health Benefits of Harad in Hindi

Last Updated on May 14, 2022 by admin

हरड़ क्या है ? : What is Harad in Hindi

हरड़ ( हरीतकी/हर्र) महौषधि की उत्पत्ति अमृत से बतलाई जाती है । लवण को छोड़कर इसमें पांचों रस होते हैं । यह त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) हरने वाली है । सात प्रकार की हरड़ों का उल्लेख आयुर्वेद शास्त्र में मिलता है जिसमें विजया हर्र सर्वश्रेष्ठ बतलाई गई है। किन्तु वर्तमान में बाजार में दो प्रकार की (छोटी व बड़ी हर) जातियां मिलती हैं। त्रिफला में बड़ी हर्र का प्रयोग होता है तथा बच्चों की बीमारियों में व दोष शोधन में छोटी हरड़ का प्रयोग किया जाता है।

हरड़ के औषधीय गुण : Harad ke Gun in Hindi

  • हरीतकी मधुर, अम्ल, कटु, तिक्त, कषाय (रस युक्त) प्रधान रस कषाय गुण में रूक्ष, उष्ण, वीर्य में उष्ण, विपाक में मधुर प्रभाव में त्रिदोष हर और रसायन गुणयुक्त है।
  • हरीतकी में 45 प्रतिशत टैनिक एसिड, इसके अतिरिक्त गैलिक एसिड, कुछ भूरे रंग के पदार्थ और म्यूसीलेज आदि रहते हैं ।
  • हरड़ को ‘सर्वरोग प्रश्मनी’ कहा जाता है । विबन्ध संग या अवरोध का भेदन करके प्रत्येक रोग की सम्प्रति को तोड़ देने की क्षमता हरड़ में विद्यमान है।
  • हरड़ दोषों का अनुलोमन करके दीपन पाचन करती है। अत: संसमन और संशोधन दोनों उपचारों की पूर्ति हरड़ सेवन से हो जाती है ।
  •  त्रिदोष शामक प्रभाव इसकी गुणधर्म की विशेषताओं में और भी चार चाँद लगा देता है ।
  • हरड़ रोगनाशक स्वास्थ्यबर्धक और उत्तम रसायन के गुणों से भरपूर है। प्रत्येक प्रकार के रोग में मात्रा व अनुपान और प्रयोग विधि रोगी तथा रोग के अनुरूप निर्धारण करके हरीतकी के गुणों से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

हरड़ के फायदे और उपयोग : Harad Benefits & Uses in Hindi

1. पीलिया – छोटी हरड़ 1 पाव गोमूत्र में 24 घंटे भिगोकर रखें, तत्पश्चात् गोमूत्र बदल दें । (यह क्रिया नित्य 7 दिन तक करें) फिर आठवें दिन धो सुखाकर तवे पर थोड़े शुद्ध घी में भूनकर सैंधा नमक मिलाकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखलें। इसके प्रयोग से पान्डु, कामला, यकृत, प्लीहा सम्बन्धी उदर रोग शर्तिया नष्ट हो जाते हैं। सर्वश्रेष्ठ प्रयोग है । आधा से 1 तोला गुनगुने पानी से दिन में 2-3 बार लें, 2-3 सप्ताहों में रोग निर्मूल हो जाता है ।  ( और पढ़े – हरड़ खाने के 7 बड़े फायदे व सेवन विधि )

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2. दस्त – छोटी हरड़ एक पाव, तक्र (मट्ठा) आधा किलो में 7 दिन तक भिगोयें (प्रतिदिन नया तक्र) बदलकर डालें । फिर आठवें दिन धो-सुखाकर इसमें भुना जीरा 100 ग्राम, हींग 12 ग्राम , काला नमक 12 ग्राम , अजवायन 60 ग्राम ,सौंठ 12 ग्राम  मिलाकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखलें । प्रवाहिका, अतिसार, संग्रहणी में 2-2 चम्मच मट्ठा से प्रतिदिन 2-3 बार दो माह तक (रोग समूल नष्ट होने तक) सेवन करने से रोग निर्मूल हो जाता है।

3. कफ – बच्चों को कफ से होने वाले दोष-श्वास, कास, प्रतिश्याय, वमन आदि में छोटी हरड़, सौंठ, लौंग, पीपल थोड़ी-थोड़ी घिसकर दिन में दो बार शहद से चटाना उपयोगी है।  ( और पढ़े – खाँसी के घरेलू इलाज )

4. बच्चों का बुखार – बच्चों के ज्वरातिसार में सौंठ, जावित्री और हरड़ की घुट्टी (बच्चों को पाचन के लिए पिलाई जाने वाली दवा) पिलावें ।

5. नेत्र रोग – छोटी हरड़ का क्वाथ 60 ग्राम , लाल फिटकरी चूर्ण 1 ग्राम, निर्मली, बीज का चूर्ण 60 ग्राम का गुलाबजल में घोल बनाकर नेत्रों में प्रयोग करने से अभिष्यद, खुजली, कीचड़ आना, लालिमा, सूजन दर्द, दृष्टिमांद्य इत्यादि सभी रोगों में लाभ होता है।

6. खून की खराबी – रक्त विकार में शीत पित्त, कन्डू इत्यादि में गोमूत्र में भिगोई हुई हरड़ आधा तोला, नीम की कोपलें 12 ग्राम, एलुवा तीन रत्ती को दिन में दो बार पानी से सेवन करना अत्यधिक लाभप्रद है। नमक, तैल, खटाई, गुड़ का परहेज रखें।  ( और पढ़े –खून की खराबी दूर करने के 12 घरेलु आयुर्वेदिक उपाय )

7. प्रमेह रोग (एक रोग जिसमें मूत्र के साथ या उसके मार्ग से शरीर की शुक्र आदि धातुएँ निकलती रहती हैं ) – गोमूत्र में भिगोयी हुई हरड़ 12 ग्राम , आमलकी रसायन 1 ग्राम, शुद्ध शिलाजीत दो रत्ती (1 रत्ती =   0.1215 ग्राम) , हरिद्रा 1 ग्राम, मधु के साथ दिन में तीन बार देने से समस्त प्रकार के प्रमेह रोग तीन माह के निरन्तर सेवन से अवश्य ठीक हो जाते हैं ।

8. कुष्ठ रोग – गोमूत्र हरड़ के 1 वर्ष पर्यन्त के कल्प प्रयोग से भयानक से भयानक गलितं कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है । ( और पढ़े –कुष्ठ(कोढ)रोग मिटाने के कामयाब 84 घरेलु उपाय )

9. बवासीर – हर्र का मुरब्बा, पाक और अवलेह के रूप में बनाकर नियमित सेवन से विबन्ध और अजीर्ण का मूलत: निर्हरण होकर अर्श रोग (बवासीर )दूर हो जाता है । छोटी हरड़ और निबौली 12-12 ग्राम , गुड़ 24 ग्राम , प्रात:काल तक्र(छाछ) के साथ 21 दिन तक देने से अर्श में पूर्ण लाभ हो जाता है। अभयारिष्ट का सेवन भी लाभप्रद है।

10. जलोदर- पुनर्नवाष्टक क्वाथ के अनुपान से गोमूत्र में भिगोई हुई हरड़ का सेवन करने से 1 या 2 मात्रा में देने से व कल्परूप में प्रयोग कराने से असाध्य जलोदर रोग भी नष्ट हो जाता है।

11. हृदय रोग – मृग श्रृंग भस्म दो माशा, गोघृत एक तोला, सितोपलादि चूर्ण दो माशा, मुवतापिष्टि दो रत्ती, हरड़ क्वाथ में 1 चम्मच मधु डालकर उसके अनुपान से दिन में दो बार देने से हृदय रोग, शोथ, हृदयनिपात, हृद् विघटन इत्यादि सभी अवस्थाओं में लाभ होता है। ( और पढ़े – हृदय की कमजोरी के असरकारक घरेलू उपचार )

12. सिरदर्द – छोटी हर्र, बड़ी हर्र, काबुली हर्र का छिलका 12- 12 ग्राम , धनियां और आंवला 12- 12 ग्राम लेकर सभी को घी में तलकर 180 ग्राम शहद मिलाकर रखलें। 6 से 12 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन देने से सिरदर्द नष्ट हो जाता है। परीक्षित योग है।

13. प्रदर रोग- गोमूत्र में भिगोई हुई हरड़ आधा तोला, दुग्धपाषाण दो माशा, नारियल जटा की राख दो माशा लें । इसे दिन में तीन बार दावदि क्वाथ के साथ सेवन करने से तीन सप्ताह में स्त्रियों का प्रदर रोग ठीक हो जाता है। ( और पढ़े – श्वेत प्रदर के रोग को जड़ से मिटा देंगे यह 33 घरेलू उपाय )

14. अम्लपित्त – हरड़ 6 ग्राम , बिल्व (गूदा) 12 ग्राम , आँवला 24 ग्राम , अर्जुन 24 ग्राम  इनके क्वाथ से अविपित्तकर चूर्ण सुबह-शाम देने से अम्लपित्त नष्ट हो जाता है।

15. शिरोरोग (माथे की पीड़ा) – गोमूत्र भृष्ट (पकाया हुआ) हरड़ को दिन में तीन बार 1-1 हरीतकी को चबाने तथा पथ्यादि क्वाथ सुबह-शाम पीने से समस्त प्रकार के शिरोरोग दूर हो जाते हैं।

16. ज्वर (बुखार) – छोटी हर 4 नग, निम्बादि चूर्ण दो माशा, पिप्पली 1 नग, गुड़ दो तोला सुबह-शाम दो मात्रा देने से सभी प्रकार के ज्वर नष्ट हो जाते हैं। ( और पढ़े – बुखार का सरल घरेलु उपाय)

17. शिशु रोग – बालघुट्टी-छोटी हर 10 ग्राम, अतीस 5 ग्राम, छोटी पीपल 5 ग्राम, जावित्री तीन ग्राम, सौंठ तीन ग्राम, जायफल तीन ग्राम, नागरमोथा दस ग्राम, शुद्ध टंकण 5 ग्राम, काकड़ा सिंगी 10 ग्राम, मिश्री 100 ग्राम का कपड़छन चूर्ण बनाकर मधु मिलाकर सुरक्षित रखलें । छोटे बच्चों (शिशुओं) को 3-3 रत्ती दिन में 3 बार चटाने से सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।

हरड़ (हरीतकी) का रसायन कल्प :

रसायन के लाभ हेतु कल्प के रूप में हरीतकी का 60 दिन का प्रयोग किया जाता है ।
1 हरीतकी रात्रि को पानी में भिगोकर प्रात:काल 5 मुनक्कों के साथ पीसकर पिलाये जाने का विधान है। प्रतिदिन 1 हर्र और 1 मुनक्का प्रयोग में बढ़ाते जायें।

20 वें दिन 20 हर्र लेकर फिर अगले 20 दिनों तक 20 हर्र सेवन करें। इसके उपरान्त फिर 1 हर्र और 1 मुनक्का प्रतिदिन कम करके प्रयोग बन्द कर दें ।

इस प्रयोग काल में भोजन में दूध का विशेष रूप से सेवन करें साथ में पुराने शालि चावल व दूध (एक समय) लें । चावल में घी और बूरा मिलाना चाहिए । इस प्रकार हरीतकी का कल्प के रूप में प्रयोग करने से आयु कान्ति, मेधा, बल, सौन्दर्य और स्वास्थ की वृद्धि होकर शरीर दृढ़ होता है और आयु स्थिर होती है।

डेढ़ या 2 हरड़ 5 नग मुनक्का छोटे बच्चों को रोज घिसकर पिलाने से (बड़ी आयु की लोगों को 2 या 3 हरड़ तथा 15-20 मुनक्का) प्रतिदिन सेवन करने से स्वास्थ अच्छा रहता है और शक्ति बढ़ती है ।

ऋतु के अनुसार हरड़ प्रयोग : Ritu ke Anusar Harad ka Prayog

छहों ऋतुओं-में भिन्न-भिन्न अनुपानों के साथ नियमित रूप से वर्ष भर पर्यन्त सेवन की गई हरड़ का भी रसायन प्रयोग के भी भांति लाभ प्राप्त होता है –

  • वर्षा ऋतु में सैंधा नमक के साथ,
  • शरद ऋतु में शर्करा से,
  • हेमन्त ऋतु में सौंठ से,
  • शिशिर ऋतु में पीपल से,
  • बसन्त ऋतु में मधु से,
  • ग्रीष्म ऋतु मेंगुड़ के साथ,

हरड़ का सेवन करना चाहिए । इस प्रकार 1 वर्ष तक हरीतकी सेवन से सभी प्रकार के रोग नष्ट होकर स्वास्थ्य स्थिर रहता है। आयु बढ़ती है तथा रसायन गुणों की प्राप्ति होती है।

लवण के साथ सेवन की गई हर्र कफ का नाश करती है । शर्करा के साथ सेवन करने से पित्त का तथा घृत के साथ सेवन वायु का नाश होता है। गुड़ के साथ हर्र का सेवन करने से सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है ।

हरीतकी स्वयं ही मल तथा दोषों का शेधन, शोषण व शमन करने वाली है अतः अन्य किसी प्रकार के शोधन की आवश्यकता नहीं रहती है।

हरड़ के दुष्प्रभाव : Harad ke Nuksan in Hindi

  1. हरड़ में इतने सारे गुणों के अतिरिक्त प्रयोग में थोड़ी सावधानी की आवश्यकता भी है। अजीर्ण रोगी, रूक्ष भोजन करने वाले अत्यधिक मैथुन प्रेमी, अधिक मद्यपान करने वाले अथवा विष के सेवन से क्षीण व कृश व्यक्ति भूख, प्यास व गर्मी से पीड़ित व्यक्तियों को हरीतकी सेवन निषिद्ध है।
  2. हरड़ कषाय उष्ण होने से दुर्बल क्षीण व गरम प्रकृति के लोगों को सावधानीपूर्वक व्यवहार में लेनी चाहिए।
  3. यह भेद का क्षय करती है, रूक्षता बढ़ाती है अत: इसके सेवन करने वाले को स्निग्ध तथा पौष्टिक आहार, घी, दूध इत्यादि का सेवन नियमित रूप से करते रहना चाहिए ।

मित्रों हरीतकी (हरड़ या हर्र) के लाभ (harad ke labh) व हरड़ के औषधीय गुण का यह लेख आप को कैसा लगा हमें कमेन्ट के जरिये जरुर बताये और अगर आपके पास भी harad ke fayde aur nuksan की कोई नयी जानकारी है तो आप उसे हमारे साथ भी शेयर करे ।

(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)

2 thoughts on “हरड़ के चमत्कारी लाभ और सेवन विधि | Health Benefits of Harad in Hindi”

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