Last Updated on February 11, 2023 by admin
बुखार क्या है ? :
आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञों के मतानुसार ज्वर कोई रोग नहीं होता, लेकिन दूसरे रोग-विकारों के कारण ज्वर किसी लक्षण के रूप में स्त्री-पुरुष, बच्चे व प्रौढों को पीड़ित करता है। जनसाधारण में ज्वर का अर्थ ‘शरीर अधिक ताप से पीड़ित होता है। सामान्य रूप से मनुष्य के शरीर का ताप 94.4 डिग्री F रहता है। लेकिन जब कोई मनुष्य ज्वर से पीड़ित होता है तो शरीर का ताप 94.4° F से बढ़ जाता है। उस समय मनुष्य को ज्वर से पीड़ित रोगी कहा जाता है।
आयुर्वेद चिकित्सा ग्रंथों में ज्वर को सब रोगों का ‘राजा’ कहा गया है, क्योंकि मनुष्य के जन्म व मृत्यु में किसी-न-किसी रूप में ज्वर का समावेश रहता है। मृत्यु के आगमन के समय शरीर में ज्वर का कुछ अंश अवश्य सम्मिलित रहता है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार शरीर के समस्त रोगों में ज्वर लक्षण के रूप में दिखाई देता है।
बुखार (ज्वर) के विभिन्न प्रकार : types of fever in hindi
विभिन्न रोगों के कारण ज्वर का नामकरण किया जाता है। जब कोई व्यक्ति मच्छरों के काटने और उनके विषक्रमण से पीड़ित होता है तो उसके शरीर का तापमान बढ़ जाता है। ऐसे व्यक्ति को बहुत सर्दी लगती है और फिर उसके शरीर में ज्वर की उत्पत्ति होती है। ऐसी स्थिति में ज्वर पीड़ित व्यक्ति को ‘विषम ज्वर का रोगी’ अर्थात् मलेरिया ज्वर से पीड़ित कहा जाता है। ज्वर को विषम ज्वर के नाम से संबोधित किया जाता है।
विषम ज्वर की तरह दूसरे रोगों के कारण ज्वर को विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता है। आंत्रिक ज्वर (टायफाइड), वातश्लैष्मिक ज्वर (इंफ्लुएंजा), सूतिका ज्वर, ग्रंथिक ज्वर (प्लेग), मस्तिष्क शोथ ज्वर (मनिनजाइटिस), काला ज्वर, डेंगू ज्वर, आरक्त ज्वर, मसूरिका ज्वर आदि विभिन्न रोगों के कारण उत्पन्न ज्वरों को उनके नाम के साथ संबोधित किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि प्रत्येक रोग के साथ ज्वर की उत्पत्ति होती है।
आइये जाने bukhar kyu aata h
बुखार क्यों आता है ? इसकी उत्पत्ति कैसे होती है : why fever comes
ज्वर की उत्पत्ति के संबंध में प्राचीन ग्रंथ पुराणों में अनेक कथाओं का वर्णन मिला है। इन कथाओं का विश्लेषण करने पर ज्वर की उत्पत्ति का रहस्य समझ आता है। पुराणों के अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। उस समय यज्ञ के आयोजन में विशिष्ट व्यक्तियों और महर्षियों को आमंत्रित किया जाता था। यज्ञ में आमंत्रण का अर्थ उस व्यक्ति को विशेष सम्मान दिया जाना कहा जाता था। दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को अपमानित करने के कारण यज्ञ का निमंत्रण नहीं दिया। जब शिव को दक्ष प्रजापति के यज्ञ का पता चला तो वे क्रोधित होकर वहां पहुंचे। यज्ञ में पहुंचने पर भगवान शिव को पता चला कि उनकी पत्नी सती ने यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपने प्राणों का अंत कर दिया है तो भगवान शिव क्रोध से आगबबूला हो गए। उस समय क्रोधित भगवान शिव के मुंह से जो श्वास निकले. उनसे ज्वर की उत्पत्ति हुई।
क्रोधित अवस्था में मनुष्य का शरीर उष्णता से ग्रस्त होता है। उसके शरीर का ताप बढ़ जाता है। उसकी श्वास भी उष्ण होती है। ज्वर पीड़ित व्यक्ति की ऐसी ही अवस्था होती है। ज्वर में नेत्र लाल हो जाते हैं और चेहरा तमतमाया दिखाई देता है।
वात, पित्त, कफ दोष शरीर को संतुलन में रखते हैं, लेकिन जब किसी कारण से वात, पित्त, कफ दोषों में कोई विकृति उत्पन्न हो जाए तो शरीर में रोग-विकारों की उत्पत्ति होती है। प्रकृति विरुद्ध, अनियमित, अधिक उष्ण व अधिक शीतल खाद्य पदार्थों का सेवन करने से वात, पित्त, कफ दोषों की विकृति होने पर विभिन्न रोगों की उत्पत्ति के साथ ज्वर होता है। विभिन्न कारणों से प्रकुपित वात, पित्त, कफ दोष आमाशय में पहुंचकर रस के साथ सम्मिलित होकर, शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचकर, कोष्ठाग्नि को निष्कासित करके ज्वर की उत्पत्ति करते हैं। ज्वर की उत्पत्ति वात, पित्त, कफ दोषों के प्रकुपित होने पर विभिन्न रोगों के साथ होती है।
महर्षि सुश्रुत ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ सुश्रुत संहिता में वर्णन किया है-भ्रम, क्षत और अभिघात से प्रकुपित वायु शरीर के सभी अंगों में पहुंचकर ज्वर की उत्पत्ति करती है। वात, पित्त, कफ दोषों के प्रकुपित होने के कारण आठ प्रकार के ज्वरों की उत्पत्ति होती है। महर्षि सुश्रुत ने प्रथम दो वातादिक दोषों से उत्पन्न तीन प्रकार के ज्वरों का वर्णन किया है। वात पित्तज, वात श्लेष्मज, पित्त श्लेष्मज्। दूसरे दोषों के अनुसार उत्पन्न अर्थात् वात, पित्त, कफ दोषों के समावेश से सन्निपात ज्वर की उत्पत्ति होती है। किसी दुर्घटना या आघात के कारण उत्पन्न ज्वर को आगंतुक ज्वर की संज्ञा दी जाती है।
महर्षि चरक ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ चरक संहिता में अभिघात से उत्पन्न ज्वर के संबंध में लिखा है ‘तत्राभिघातजो वायु प्रायो रक्तं प्रदूषयन। स व्यथा शोथ वैव करोति सरुजं ज्वर।।’ अर्थात् अभिघात के कारण उत्पन्न वायु रक्त को दूषित करती हुई पीड़ा, शोथ और विवर्णता के साथ ज्वर की उत्पत्ति करती है।
आइये जाने bukhar ke lakshan in hindi
बुखार (ज्वर) के विभिन्न लक्षण : fever symptoms in hindi
- विभिन्न रोगों के कारण उत्पन्न ज्वर में उस रोग के लक्षणों का अधिक प्रभाव दिखाई देता है। सभी ज्वरों में वात, पित्त, कफ दोषों की विकृति के लक्षण अधिक दिखाई देते हैं। नाड़ी की गति से अनुभवी चिकित्सक वात, पित्त, कफ दोषों में विकृति के लक्षणों का निदान करके, रोग की उत्पत्ति के संबंध में निर्णय करते हैं।
- वात, पित्त, कफ दोषों के प्रकुपित होने पर उत्पन्न ज्वर के लक्षण में परिवर्तन होता रहता है। कभी ज्वर में वात के लक्षण अधिक अनुभव होते हैं तो उसे वात ज्वर की संज्ञा देते हैं। पित्त के लक्षणों का अधिक समावेश होने पर पित्त ज्वर और श्लेष्म अर्थात् कफ का आधिपत्य होने पर श्लेष्म ज्वर (कफ ज्वर) के नाम से संबोधित किया जाता है। सन्निपात ज्वर में दो या तीनों दोषों का समावेश होता है, इसलिए तीनों दोषों के लक्षण दिखाई देते हैं।
वात बुखार (ज्वर) के लक्षण –
जब वात दोष के प्रकुपित होने से ज्वर की उत्पत्ति होती है तो उस रोगी में वात अर्थात् वायु विकार के लक्षण अधिक दिखाई देते हैं। वात प्रकुपित होने के कारण शरीर में रोंगटे खड़े होते हैं। शरीर में कंपन होता है और मुंह से मीठा-मीठा स्वाद अनुभव होता है। रोगी को बार-बार जम्हाइयां आती हैं और शरीर में ताप का अनुभव होता है। मस्तिष्क में सुइयों के चुभने के समान पीड़ा होती है। ऐसी स्थिति में रोगी को कुछ खाने की इच्छा नहीं होती। यदि कोई व्यक्ति कुछ आहार ग्रहण करता है तो ज्वर का प्रकोप बढ़ जाता है।
प्रकृति विरुद्ध खाद्य पदार्थों का सेवन करने पर त्वचा में शुष्कता, कोष्ठबद्धता (मले का अवरोध), अनिद्रा, पाश्र्व शूल, मूच्र्छा व श्वास के लक्षण भी स्पष्ट हो सकते हैं। वात ज्वर में शरीर के विभिन्न अंगों में पीड़ा की उत्पत्ति होने लगती है।
पित्त बुखार (ज्वर) के लक्षण –
जब कोई व्यक्ति अधिक पित्त की उत्पत्ति करने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करता है तो पित्त के प्रकुपित होने से पित्त ज्वर की उत्पत्ति होती है। पित्त ज्वर में रोगी को बहुत प्यास लगती है। बार-बार जल पीने के बाद भी रोगी का मुंह, कण्ठ शुष्क रहता है। शरीर में अधिक उष्णता अनुभव होती है। रोगी उष्णता के कारण बेचैन हो जाता है। हृदय में तीव्र जलन होती है।
पित्त बुखार (ज्वर) के कारण –
रोगी के मुंह में कड़वाहट होती है। ज्वर तीव्र होने पर रोगी प्रलाप करने लगता है। शरीर के विभिन्न अंगों में दाह की उत्पत्ति होती है। मल-मूत्र और नेत्रों के रंग में पीलापन दिखाई देता है। रोगी को तीव्र ज्वर में वमन (उल्टी) भी हो सकती है। वमन में पित्त का समावेश होता है। अनिद्रा और ज्वर की अधिकता से कभी-कभी मूच्र्छा के भी लक्षण दिखाई देते हैं।
कफ बुखार (ज्वर) के लक्षण –
अधिक शीतल, मधुर, स्निग्ध खाद्य पदार्थों के सेवन से जब शरीर में कफ की अधिक उत्पत्ति होने पर कफ विकृत होने के कारण कफ ज्वर की उत्पत्ति होती है। कफ ज्वर में ज्वर के साथ शरीर की त्वचा भी अधिक श्वेत दिखाई देती है। हर समय रोगी को आलस्य आता है। सर्दी लगने से अधिक प्रतिश्याय (जुकाम) होता है और नाक से श्लेष्मा (तरल द्रव्य) का स्राव होता है। रोगी को बार-बार खांसी उठती है और मुंह से कफ आ जाता है। कण्ठ में खुजली-सी होने लगती है। रोगी उष्ण खाद्य पदार्थों का सेवन पसंद करता है। थोड़े-से शीतल वातावरण में जाने पर रोगी को सर्दी का अनुभव होने लगता है।
सन्निपात बुखार (ज्वर) के लक्षण –
वात, पित्त और कफ दोषों की विकृति से सन्निपात ज्वर की उत्पत्ति होती है। कुछ रोगियों में वात, पित्त और कफ दोषों के लक्षण भी दिखाई देते हैं। सन्निपात ज्वर में रोगी को बार-बार वमन, शरीर में कंपन, अधिक आलस्य के लक्षण दिखाई देते हैं। कण्ठ में खुरदरापन, शिर की अस्थियों में पीड़ा और कई बार भ्रम की उत्पत्ति होती है। सन्निपात ज्वर में रोगी को अधिक पसीने आते हैं।
सन्निपात ज्वर में रोगी के सिर में दर्द, कोष्ठबद्धता, रक्त पित्त, हृदय में शूल के लक्षण भी प्रकट होते हैं। सन्निपात ज्वर में रोगी की व्याकुलता इतनी बढ़ जाती है कि वह प्रलाप करने लगता है। आयुर्वेद चिकित्सा ग्रंथों में आगंतुक ज्वर के अंतर्गत अभिघात, अभिषंग, अभिशाप और अभिचार आदि चार भेदों का वर्णन किया गया है। किसी दुर्घटना में आघात लगने, सीढ़ियों से फिसलकर गिरने से चोट लगने से अभिघात ज्वर की उत्पत्ति होती है। काम, क्रोध, भय , शोक और तीक्ष्ण औषधियों की गंध से अभिषंग ज्वर की उत्पत्ति होती है। गुरु, ब्राह्मण, महर्षि व प्रौढ़ व्यक्तियों के शाप से उत्पन्न अभिशाप ज्वर की उत्पत्ति होती है। किसी शत्रु व तांत्रिक के क्रोधित होने पर तंत्र-मंत्र से अभिचार ज्वर की उत्पत्ति होती है।
महर्षि चरक ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ चरक संहिता में सप्त विधि ज्वर के अंतर्गत रसधातुगत, अस्थि धातुगत, मांस धातुगत, रक्त धातुगत, मज्जा धातुगत, शुक्र धातुगत ज्वरों का वर्णन किया है। रस धातुगत ज्वर में शरीर का भारीपन, जी मिचलाने, वमन, निर्बलता, विषमाग्नि, अजीर्ण, नेत्रों से स्राव के लक्षण दिखाई देते हैं। रक्त धातुगत ज्वर में रोगी के थूक व कफ में रक्त, अधिक प्यास, अरुचि, पाचन क्रिया में क्षीणता, बार-बार वमन की विकृति, चेहरे पर मुंहासे, शरीर में दाह, जलन के लक्षण उत्पन्न होते हैं।
रक्त धातुगत ज्वर की चिकित्सा में विलंब होने पर मांस धातुगत होकर ज्वर की उत्पत्ति होती है। ऐसे में मूत्र की अधिकता होती है। संधि प्रदेशों में पीड़ा होती है। रोगी को अधिक प्यास लगती है। मेद धातुगत ज्वर होने पर रोगी को अधिक पसीने आते हैं, बार-बार वमन होती है, अधिक प्यास लगती है, रोगी को अपने शरीर की गंध भी सहन नहीं होती। ग्लानि और अरुचि के लक्षण प्रकट होते हैं। जब कोई व्यक्ति अस्थि धातुगत ज्वर से पीड़ित होता है तो उसकी अस्थियों में तीव्र शूल की उत्पत्ति होती है। कण्ठ में पीड़ा होती है और अतिसार की विकृति होती है। वमन विकृति से भी रोगी पीड़ित होता है। ज्वर की अधिकता होने पर रोगी बेचैनी से हाथ-पांव पटकने लगता है।
मज्जा धातुगत ज्वर की उत्पत्ति अस्थि धातुगत ज्वर में चिकित्सा में विलंब व भोजन में बदपरहेजी होने पर होती है। चिंता व शोक की स्थिति में बढ़ता हुआ ज्वर मज्जा धातु में पहुंचकर धातुगत ज्वर की उत्पत्ति करता है। ऐसे में रोगी के हृदय में तीव्रशूल होता है। श्वास में तीव्र अवरोध होता है। खांसी का प्रकोप होता है। शुक्र धातुगत ज्वर की उत्पत्ति विभिन्न दोषों के शुक्र में स्थिर होने पर होती है। ऐसे में आत्मा विशेष रूप से शुक्र का साथ करके शुक्र को नष्ट कर देती है। चिकित्सक इस ज्वर को असाध्य मानते हैं क्योंकि शुक्र धातुगत ज्वर प्राणघातक होता है। अनुभवी चिकित्सक इस ज्वर का निवारण करने में सफल होते हैं।
आइये जाने विभिन्न दोषों से उत्पन्न ज्वरों की चिकित्सा ,बुखार भगाने के उपाय ,bukhar bhagane ke tarike
बुखार में उपवास :
महर्षि चरक के कथनानुसार ज्वर रोग के निवारण के लिए किसी औषधि का सेवन कराने से पहले रोगी को लंघन अर्थात् उपवास कराना चाहिए। अन्न से बने खाद्य पदार्थों को बंद कर देना चाहिए। यदि कोई प्रौढ़ावस्था के कारण अधिक निर्बल हो तो उसे लंघन नहीं कराना चाहिए। । महर्षि चरक के अनुसार लंघन कराने पर जठराग्नि प्रदीप्त (प्रबल) हो जाने से ज्वर नष्ट होने लगता है। शरीर हल्का हो जाता है। भोजन में रुचि उत्पन्न होती है। ज्वर के चलते रोगी को ऋतुओं के अनुसार जल का सेवन कराना चाहिए। शीत ऋतु में हल्का उष्ण जल ही सेवन कराएं। ग्रीष्म ऋतु में जल को उबालकर शीतल करके सेवन कराना चाहिए। खस, लाल चंदन, मोंथा, सुगंध वाला और सोंठ आदि द्रव्यों से भी जल को सिद्ध करके रोगी को सेवन कराया जा सकता है।
रोगी को हल्का सुपाच्य आहार, साबूदाना, दाल-चावल की खिचड़ी, दलिया आदि सेवन कराया जा सकता है। मौसम के अनुसार ज्वर की प्रकृति को देखते हुए कुछ फलों का सेवन कराना अधिक लाभप्रद रहता है। फलों से रोगी की शारीरिक शक्ति विकसित होती है। फल सरलता से पच जाता है।
वात ज्वर (बुखार) का इलाज : vat jwar ka ilaj in hindi
- पुनर्नवा, गुर्च, मुनक्का और अनंतमूल, सभी चीजें बराबर मात्रा में लेकर जल के साथ क्वाथ बनाकर, छानकर, 6 ग्राम गुड़ के साथ क्वाथ सेवन करने से वात ज्वर नष्ट होता है।
- मुनक्का, खरैटी, शालपर्णी, सारिवा और गिलोय का क्वाथ बनाकर छानकर रोगी को पिलाने से वात ज्वर नष्ट होता है।
- सोनापाठा (बृहत् पंचमूल), आंवला, धनिया, गुर्च, बेलगिरी की छाल,पाढ़ल, अरनी, खंभार आदि को बराबर मात्रा में लेकर, जल में देर तक उबालकर क्वाथ बनाकर, छानकर रोगी को पिलाने से वात ज्वर नष्ट होता है।
- 4सौंफ, संभालू के बीज, अनंत मूल, मुनक्का और छोटी पीपर को जल में उबालकर, क्वाथ बनाकर रोगी को पिलाने से वात ज्वर का निवारण होता है।
- मृत्युंजय रस 125 मि.ग्रा. मात्रा में मधु के साथ सेवन कराने से वात ज्वर नष्ट होता है। दिन में दो बार सेवन कराना चाहिए।
- लक्ष्मी विलास रस 4 रत्ती मात्रा में लेकर, खरल में पीसकर मधु के साथ, दिन में दो ऐसी मात्राएं सेवन करने से वात ज्वर में बहुत लाभ होता है। अदरक के रस और मधु के साथ भी इस रस (गोली) का सेवन कर सकते हैं।
- हिंगुलेश्वर 125 मि.ग्रा. और गोदंती भस्म 125 मि.ग्रा. मात्रा में खरल में पीसकर, दिन में तीन बार, चार-चार घण्टे के अंतराल से रोगी को उष्ण जल के साथ सेवन कराने से वात ज्वर नष्ट होता है।
- गोरोचन, काली मिर्च, रास्ना, कूठ और पीपल, सभी चीजें बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीस कर चूर्ण बनाकर रखें। 3-3 ग्राम चूर्ण, दिन में दो बार उष्ण जल के साथ सेवन कराने से वात ज्वर का उन्मूलन होता है।
- वात ज्वरादि रस, मधुसुदर्शन चूर्ण, द्राक्षादि चूर्ण, धान्याकाद्यरिष्ट भी वात ज्वर को नष्ट करने में बहुत सहायता करते हैं।( और पढ़े – अजीर्ण बुखार के 10 सबसे असरकारक घरेलु उपचार)
पित्त ज्वर (बुखार) का इलाज : pitt jwar ka ilaj in hindi
पित्त ज्वर की उत्पत्ति पित्तवर्द्धक खाद्य पदार्थों के सेवन से अधिक होती है। पित्त ज्वर की विकृति में रोगी को पित्तवर्द्धक खाद्य पदार्थों का सेवन बंद कराकर पित्त ज्वरनाशक औषधियों का सेवन कराना चाहिए।
- अनंतमूल, गिलोय, कमल, लोध और नीलकमल को जल में उबालकर क्वाथ बनाएं। इस क्वाथ को छानकर, खांड मिलाकर पिलाने से पित्त ज्वर नष्ट हो जाता है।
- लाल चंदन, पित्त पापड़ा, खस, मोथा, गंध वाला, सोंठ का क्वाथ बनाकर सेवन करने से पित्त ज्वर नष्ट होता है। वमन व प्यास से भी मुक्ति मिलती है।
- पित्त पापड़ा 20 ग्राम को 320 ग्राम जल में देर तक उबालें। जब 80 ग्राम जल शेष रह जाए तो उसे छानकर पीने से पित्त ज्वर नष्ट होता है।
- पित्त पापड़े के साथ लाल चंदन, गंध वाला और सोंठ मिलाकर क्वाथ बनाकर सेवन करने से अधिक लाभ होता है।
- अनारदाना, लोध, कैथ, विदारीकंद और बिजौरा नीबू को पीसकर मस्तिष्क पर लेप करने से पित्त ज्वर और प्यास की विकृति नष्ट होती है।
- जयावटी : सोंठ, मीठा विष, काली मिर्च, पिप्पली, मोथा, हल्दी, नीम के पत्ते, वायविडंग, सभी 10-10 ग्राम भाग लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। उसमें जयंती मूल का 80 ग्राम चूर्ण मिलाकर गोमूत्र के साथ खरल में घोट कर, शुष्क होने पर दो-दो रत्ती की गोलियां बना लें । गोलियों को छाया में सुखाकर रखें। सुबह-शाम एक-एक गोली जल के साथ सेवन करने से पित्त ज्वर नष्ट होता है। नोट : जयावटी के नाम से गोली बाजार में भी मिलती हैं।
- ज्वर केसरी रस की 1-1 गोली मिश्री के साथ सेवन करने से पित्त ज्वर नष्ट होता है।
- पित्त ज्वर में अधिक जलन व उष्णता से बेचैनी होने पर धनिए का चूर्ण 20 ग्राम मात्रा में लेकर, 120 ग्राम जल में डालकर रख दें। सुबह उठकर उसको छानकर उसमें 6 ग्राम शक्कर मिलाकर सेवन करने से बहुत लाभ होता है।
- प्रवाल पिष्टी 250 मि.ग्रा. मात्रा में मधु के साथ सुबह-शाम पित्त ज्वर के रोगी को सेवन कराने से बहुत लाभ होता है। | 1 चंद्रकला रस 125 मि.ग्रा. मात्रा में परोल पत्र के रस और मधु के साथ दिन में दो बार प्रातः 10 बजे, सायं 6 बजे सेवन करने से पित्त ज्वर नष्ट हो जाता है।( और पढ़े – टाइफाइड बुखार को दूर करने के 11 सबसे असरकारक घरेलु उपचार)
कफ ज्वर (बुखार) का इलाज : kaf jwar ka ilaj in hindi
- त्रिभुवन कीर्ति रस 125 मि.ग्रा. मात्रा में तुलसी व बेल के पत्तों के फाण्ट के साथ सेवन कराने से कफ ज्वर नष्ट होता है।
- तालीसादि चूर्ण 1-1 ग्राम मात्रा में दिन में दो बार मधु के साथ चाटकर सेवन करने से कफ ज्वर शीघ्रता से नष्ट होता है।
- इंद्रयव, कुटकी, त्रिफला, फालसा और नागरमोथा को बराबर-बराबर मात्रा में लेकर जल में उबालकर क्वाथ बनाकर, छानकर रोगी को दो बार पिलाने से पित्त ज्वर नष्ट होता है।
- छोटी पीपल, बड़ी पीपल, बड़ी कण्टकारी, देवदारु, कपूर, पोहकर मूल, नीम की छाल, चिरायता का क्वाथ बनाकर, छानकर सेवन करने से कफ ज्वर नष्ट होता है।
- कस्तूरी भैरव रस 125 मि.ग्रा. मात्रा में, पान के रस के साथ दिन में दो बार सेवन करने से कफ ज्वर नष्ट होता है। वात ज्वर का भी निवारण होता है।
- करंज के बीजों को जल के साथ पीसकर मस्तिष्क पर लेप करने से, कफ ज्वर का निवारण होता है। हाथ-पांव पर भी लेप करने से अधिक लाभ होता है।
- नीम की छाल, कचूर, सोंठ, शतावरी, गिलोय, बड़ी कटेरी, किरातिक्त, पिप्पली का क्वाथ बनाकर पीने से कफ ज्वर नष्ट होता है।
- कफ केतु रस की 1-1 गोली मधु और अदरक के रस के साथ सेवन करने से कफ ज्वर नष्ट होता है। ( और पढ़े – बच्चों का बुखार दूर करेंगे यह 22 सबसे कामयाब घरेलु उपचार)
सन्निपात ज्वर (बुखार) का इलाज : sannipat jwar ka ilaj in hindi
सन्निपात ज्वर में वात, पित्त, कफ दोषों की विकृति के मिले-जुले लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसी स्थिति में रोगी को अधिक पीड़ा होती है और पीड़ा की अधिकता के कारण रोगी प्रलाप करने लगता है। रोगी के नेत्रों में पीडा, रक्त पित्त, सिर में दर्द और अस्थियों में भी शूल हो सकता है।
- कस्तूरी भैरव रस और मुक्ता शुक्ति भस्म, दोनों 125-125 मि.ग्रा. मात्रा में लेकर, ऐसी दो मात्रा बनाकर, सुबह-शाम अदरक के रस के साथ सेवन कराने से सन्निपात ज्वर का निवारण होता है।
- चिंतामणि रस की एक गोली प्रात:काल और एक गोली सायंकाल, हल्के उष्ण जल के साथ सेवन कराने से सन्निपात ज्वर नष्ट होता है। सन्निपात ज्वर के साथ अरुचि, दाह, जलन व वमन विकृति भी नष्ट होती है।
- अष्टांगवलेहिका 2 ग्राम मात्रा में सुबह और 2 ग्राम मात्रा में शाम को सेवन कराने और ऊपर से दूध पिलाने से सन्निपात ज्वर में बहुत लाभ होता है।
- छोटी पीपल, नागरमोथा, नीम की छाल, जवासा, गुर्च, चिरायता, अडूसे के फूल, परवल की पत्ती, कुटकी, काली मिर्च, सोंठ, त्रिफला, इन औषधियों से क्वाथ बनाकर सेवन कराने से सन्निपात ज्वर नष्ट होता है।
- दशमूल का क्वाथ सन्निपात ज्वर का निवारण करता है।
- सन्निपात सूर्योरस, हिंगुल, गंधक, ताम्र भस्म, काली मिर्च, धतूरे के बीज, पिप्पली, मीठा विष को कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। इस चूर्ण को खरल में डालकर, भांग के पत्तों के साथ इसको घोटकर शुष्क होने पर दो-दो रत्ती की गोलियां बना लें। अर्क मूल के क्वाथ के साथ गोलियां सेवन कराने से सन्निपात ज्वर नष्ट होता है।
- प्रतापतपनो रस की 1 रत्ती की गोली सुबह-शाम अदरक के रस के साथ सेवन कराने से सन्निपात ज्वर नष्ट होता है। ( और पढ़े –बस एक बार खाना है वर्ष भर नही होगा मलेरिया का बुखार )
वात-पित्त ज्वर ( बुखार) का इलाज : vat-pitt jwar ka ilaj
- चिरायता, गुर्च, आंवला, मुनक्का और गुर्च, इन सबको जल में उबाल कर, क्वाथ बनाकर, 10 ग्राम गुड़ मिलाकर सेवन करने से वात-पित्त नष्ट होता है।
- सोंठ, गुर्च, चिरायता, लघु पंचक मूल, नागरमोथा को जल में देर तक उबाल कर क्वाथ बनाकर, छानकर अमलतास का गूदा, अडूसा, सेमल की मूसली, त्रिफला, रास्ना, सभी चीजों को जल में उबालकर, क्वाथ बनाकर पीने से वात-पित्त ज्वर का निवारण होता है। ( और पढ़े – बुखार का सरल घरेलु उपाय )
पित्त-कफ ज्वर ( बुखार) का इलाज : pitt-kaf jwar ka ilaj
- 1- नीम की छाल, पद्माख, लालचंदन, धनिया और गुर्च को जल में उबालकर क्वाथ बनाएं। इस क्वाथ को छानकर सुबह-शाम पीने से पित्त-कफ ज्वर नष्ट होता है |
- ज्वर भैरव रस (कामधेनु रस) 2 रत्ती मात्रा में अदरक के रस में खाण्ड मिलाकर सेवन कराने से पित्त-कफ ज्वर नष्ट होता है।
- कुटकी को कूट-पीस कर बारीक चूर्ण बनाकर किसी कपड़े द्वारा छान कर रखें। अब कुटकी के चूर्ण को बराबर मात्रा में कूट-पीस कर मिश्री मिला लें। 7-8 ग्राम चूर्ण जल के साथ सेवन करने से पित्त-कफ ज्वर का उन्मूलन होता है।
- अडूसे के फूल और ताजी, कोमल पत्तियों को अच्छी तरह धोकर, उनको पीसकर रस निकालें। 20 ग्राम रस में मधु और मिश्री मिलाकर पीने से पित्त-कफ ज्वर का निवारण होता है।
- नीम की छाल, त्रिफला, मुलहठी, परवल की पत्ती, खिरैटी का क्वाथ बनाकर, छानकर सुबह-शाम पीने से पित्त-कफ ज्वर नष्ट होता है।
- नागरमोथा, सोंठ, चिरायता और गुर्च का क्वाथ बनाकर रोगी को पिलाने से पित्त कफ ज्वर नष्ट होता है।
वात-कफ ज्वर ( बुखार) :
- लक्ष्मी विलास रस की गोली खरल में पीसकर अदरक के रस और मधु के साथ सेवन करने से वात कफ ज्वर का निवारण होता है। एक गोली सुबह और एक गोली शाम को सेवन करानी चाहिए।
- रसपर्पटी 3 रत्ती मात्रा में एक बार सुबह और एक बार शाम को जल के साथ सेवन कराने से वात-कफ ज्वर नष्ट होता है।
- कस्तूरी भैरव रस 125 मि.ग्रा. मात्रा में पान के पत्तों के रस के साथ सुबह-शाम सेवन कराने से वात-कफ ज्वर शीघ्र नष्ट होता है।
- छोटी पीपल को जल में देर तक उबालकर क्वाथ बनाएं। इस क्वाथ को दिन में दो बार रोगी को पिलाने से वात-कफ ज्वर नष्ट होता है।
- ताम्रपर्पटी 6 रत्ती मात्रा में जल के साथ सेवन कराने से तीन दिन में वात-कफ ज्वर का उन्मूलन होता है।
- दशमूल का क्वाथ बनाकर, छानकर, उसमें पीपल का 3 ग्राम चूर्ण मिलाकर सेवन करने से वात-कफ ज्वर का निवारण होता है।
- मृत्यंजय रस 125 मि.ग्रा. मात्रा में, दिन में दो बार रोगी को मधु के साथ सेवन कराने से वात-कफ ज्वर नष्ट होता है।
- चिरायता, सोंठ और नागरमोथा बराबर मात्रा में लेकर क्वाथ बनाकर रोगी को दो बार पिलाने से वात-कफ ज्वर में बहुत लाभ होता है।
बुखार में क्या खाना चाहिए और क्या नही खाना चाहिए / परहेज :
ज्वर चिकित्सा में आहार का बहुत महत्त्व होता है क्योंकि प्रकृति विरुद्ध, अधिक शीतल, अधिक उष्ण, मिर्च-मसालों व अम्ल रसों से निर्मित खाद्य पदार्थों, दूषित और खुले रखे भोजन के सेवन से विभिन्न ज्वरों की उत्पत्ति होती है। वात, कफ ज्वरों में शीत खाद्य पदार्थ बहुत हानि पहुंचाते हैं। ज्वर की प्रकृति को देखकर रोगी के भोजन में परिवर्तन कराना चाहिए।
- वात, कफ ज्वर में शीतल खाद्य-पदार्थों का सेवन नहीं कराएं।
- पित्त ज्वर में पित्त की उत्पत्ति करने वाले खाद्य-पदार्थों से परहेज कराना आवश्यक होता है।
- किसी भी ज्वर में रोगी को उपवास कराना चाहिए। उपवास करने से ज्वर का प्रकोप कम होता है। उपवास के दिनों में रोगी को फल खिलाने चाहिए।
- उपवास के बाद रोगी को एक वर्ष के पुराने चावल, किशमिश, ताजे अंगूर, परवल, चौलाई, बथुआ, मूंग की दाल, साबूदाने का पानी देना चाहिए।
- वात, कफ ज्वर हो तो रोगी को संतरे व अनार का सेवन नहीं कराएं। शीतल जल भी पीने को न दें।
- वात कफ ज्वर में हल्के उष्ण जल का सेवन कराएं। रोगी को एक साथ अधिक मात्रा में जल का सेवन नहीं कराएं। यदि रोगी को जल पीने से वमन होती हो तो पीपल की छाल जलाकर, जल में बुझाकर जल को छानकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पिलाएं।
- वात, कफ ज्वर से पीड़ित रोगी को शीतल वातावरण में नहीं जाने दें। ग्रीष्म ऋतु में भी एयर कंडीशन व कूलर की वायु से दूर रखें।
- पित्त ज्वर से पीड़ित रोगी को धूप में घूमने-फिरने से रोकें।
- रोगी को अधिक परिश्रम का काम नहीं करने दें।
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(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)