Last Updated on April 13, 2021 by admin
इस ऋतू में वात का शमन करनेवाले तथा शरीर में जलीय अंश का संतुलन रखनेवाले मधुर, तरल, सुपाच्य, हलके, ताजे, स्निग्ध, रसयुक्त, शीतगुणयुक्त पौष्टिक पदार्थों का सेवन करना चाहिए ।
आहार : पुराने साठी के चावल, दूध, मक्खन तथा गाय के गहि के सेवन से शरीर में शीतलता, स्फूर्ति और शक्ति आती है । सब्जियों में लौकी, कुम्हड़ा (पेठा), परवल, हरी ककड़ी, हरा धनिया, पुदीना और फलों में तरबूज, खरबूजा, नारियल, आम, मौसमी, सेब, अनार, अंगूर का सेवन लाभदायी है ।
नमकीन, रूखे, बासी, तेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ, अमचूर, अचार, इमली आदि तीखे, खट्टे, कसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ न खायें ।
कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पना, नींबू-मिश्री का शरबत, हरे नारियल का पानी, फलों का ताजा रस, ठंडाई, जीरे की शिकंजी, दूध और चावल की खीर, गुलकंद तथा गुलाब, पलाश, मोगरा आदि शीतल व सुगंधित द्रव्यों का शरबत जलीय अंश के संतुलन में सहायक है ।
धुप की गर्मी व लू से बचने के लिए सर पर कपडा रखना चाहिए एवं थोड़ा-थोड़ा पानी पीते रहना चाहिए । उष्ण वातावरण से ठंडे वातावरण में आने के बाद तुरंत पानी न पियें, १०-१५ मिनट के बाद ही पियें । फ्रिज का नही, मटके या सुराही का पानी पियें ।
विहार : इस ऋतू में ‘प्रातः पानी-प्रयोग’ अवश्य करना चाहिए । वायु-सेवन, योगासन, हल्का व्यायाम एवं तेल मालिश लाभदायक हैं ।
रात को देर तक जागना और सुबह देर तक सोये हना त्याग दें । अधिक व्यायाम, अधिक परिश्रम, धुप में टहलना, अधिक उपवास, भूख-प्यास ष्ण तथा स्त्री-सहवास ये सभी इस ऋतू में वर्जित है ।