Last Updated on July 24, 2019 by admin
गोमुखासन ( Gomukhasana )
परिचय :-
★ इस आसन की पूर्ण स्थिति में आने के बाद व्यक्ति की स्थिति गाय के मुख के समान हो जाती है। इसलिए इसे गोमुखासन( Gomukhasana ) कहते हैं।
★ यह आसन आध्यात्मिक रूप से अधिक महत्व रखता है तथा इस आसन का प्रयोग स्वाध्याय एवं भजन, स्मरण आदि में किया जाता है।
★ स्वास्थ्य के लिए भी यह आसन अधिक लाभकारी है। आइये जाने gomukhasana ke labh in hindi
गोमुखासन ( Gomukhasana )से रोगों में लाभ :-
★ यह आसन फेफड़े से सम्बन्धी बीमारी के लिए लाभकारी है और फेफड़े में वायु के प्रवाह के द्वारा उन छिद्रों की सफाई होती है।
★ यह आसन छाती को चौड़ा व मजबूत बनाता है तथा कंधो, घुटनों, जांघ, कुहनियों, कमर व टखनों को मजबूत करता है तथा हाथ व पैरों को पुष्ट करता है।
★ इससे शरीर में ताजगी, स्फूर्ति व शक्ति का विकास होता है।
★ यह आसन दमा (सांस के रोग) तथा क्षय (टी.बी.) के रोगियों को जरुर करना चाहिए।
★ यह पीठ दर्द, वात रोग, कन्धें के कड़ेंपन, अपच, हार्नियां तथा आंतों की बीमारियों को दूर करता है।
★ यह अंडकोष से सम्बन्धित रोगों को दूर करता है।
★ इससे प्रमेह, मूत्रकृच्छ, गठिया, मधुमेह, धातु विकार, स्वप्नदोष, शुक्र तारल्य आदि रोग खत्म होते हैं।
★ यह गुर्दे के विशाक्त (विष वाला) द्रव्यों को बाहर निकालकर रुके हुए पेशाब को बाहर करता है।
★ जिसके घुटनों में दर्द रहता है या गुदा सम्बन्धित रोग है उन्हें भी गोमुखासन करना चाहिए।
★ यह आसन उन महिलाओं को अवश्य करना चाहिए, जिनके स्तन किसी कारण से दबे, छोटे तथा अविकसित रह गए हो।
★ यह आसन स्त्रियों की सौंदर्यता को बढ़ाता है और यह प्रदर रोग में भी लाभकारी है।
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गोमुखासन( Gomukhasana )के अभ्यास की विधि :-
★ चटाई पर बैठकर अपने बाएं पैर को घुटनों से मोड़कर दाएं पैर के नीचे से निकालते हुए एड़ी को पीछे की तरफ नितम्ब के पास सटाकर रखें।
★ अब दाएं पैर को भी बाएं पैर के ऊपर रखकर एड़ी को पीछे नितम्ब के पास सटाकर रखें।
★ इसके बाद बाएं हाथ को कोहनी से मोड़कर कमर की बगल से पीठ के पीछे ले जाएं तथा दाहिने हाथ को कोहनी से मोड़कर कंधे के ऊपर सिर के पास से पीछे की ओर ले जाएं।
★ दोनों हाथों की उंगलियों को हुक की तरह आपस में फंसा लें।
★ सिर व रीढ़ (मेरूदंड) को बिल्कुल सीध में रखें और सीने को भी तानकर रखें।
★ पूर्ण रूप से आसन बनने के बाद 2 मिनट तक इस स्थिति में रहें और फिर हाथ व पैरों की स्थिति बदल कर दूसरे तरफ भी इस आसन को इसी तरह करें।
★ इसके बाद 2 मिनट तक आराम करें और पुन: आसन को करें।
★ यह आसन दोनों तरफ से 4-4 बार करना चाहिए।
महत्त्वपूर्ण बातें :-
★ इस आसन में रीढ़ की हड्डी चेतना तरंगों की गति पर तथा श्वास प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहिए।