Last Updated on July 22, 2019 by admin
ताप्यादि लौह क्या है ? : tapyadi loha kya hai
tapyadi loha in hindi
अनियमित दिनचर्या और अनुचित आहार-विहार करने से शरीर की पाचन क्रिया-प्रणाली ठीक से काम नहीं कर पाती जिससे खाया-पिया ठीक से हजम नहीं हो पाता और इसके फलस्वरूप शरीर में निर्बलता, रक्त की कमी, दुबलापन, यकृत व प्लीहा में विकार, पाण्डु, कामला, मासिक धर्म की गड़बड़ी आदि कई व्याधियां शरीर को पीड़ित कर देती हैं। ऐसी स्थिति में ‘ताप्यादि लौह’ का सेवन स्त्री-पुरुषों के लिए बहुत गुणकारी सिद्ध होता है। इस योग के बारे में उपयोगी जानकारी प्रस्तुत की जा रही है।
ताप्यादि लौह की सामाग्री : ingredients of tapyadi loha
हरड़, बहेड़ा, आंवला, सोंठ, पीपल, काली मिर्च, चित्रक मूल और वायविडंग-प्रत्येक 25-25 ग्राम। नागर मोथा 15 ग्राम, पीपलामूल, देवदारु, दारुहल्दी, दालचीनी और चव्य- प्रत्येक 10-10 ग्राम । शुद्ध शिलाजीत, स्वर्ण माक्षिक भस्म, रौप्य भस्म और लौह भस्म प्रत्येक 10-10 ग्राम। मण्डूर भस्म 200 ग्राम और पिसी हुई मिश्री 320 ग्राम।
ताप्यादि लौह बनाने की विधि : tapyadi loha Bnane ki Vidhi
सब द्रव्यों को अलगअलग कूट पीस कर छान लें और जो बुरादा बचे उसे फिर से कूट पीस कर छान कर मिला लें और फिर सब पदार्थों को मिला कर तीन बार छान कर एकजान करके बर्नी में भर लें।
नोट-घर पर किसी औषधि को बनाने की योग्यता, क्षमता, कुशलता और विधि-विधान की जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को नहीं हो सकती, फिर भी कुछ पाठक घटक द्रव्य और निर्माण विधि को भी बताने का आग्रह करते हैं। उनके संतोष के लिए हम योग के घटक द्रव्य और उसकी निर्माण विधि का विवरण भी प्रस्तुत कर दिया करते हैं।
मात्रा और अनुपान : tapyadi loha dosage & how to take in hindi
चार-चार रत्ती (आधा-आधा ग्राम) सुबह शाम मूली के रस या ताज़े गो मूत्र के साथ सेवन करें।
ताप्यादि लौह के फायदे गुण और उपयोग : tapyadi loha ke fayde, gun aur upyog
tapyadi loha benefits & Uses in Hindi
यह योग विशेष रूप से जिन रोगों के लिए उपयोगी व लाभप्रद सिद्ध हुआ है उन रोगों के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है-
1- ताप्यादि लौह के सेवन से कई व्याधियां दूर होती हैं जैसे ज्वर के बाद उत्पन्न हुई कमज़ोरी और रक्त की कमी, स्त्रियों के मासिक ऋतु स्राव में गड़बड़ी, पाण्डु, कामला, यकृत एवं प्लीहा के विकार आदि।
2-मलेरिया बुखार उतरने के बाद आई कमज़ोरी और खून की कमी (एनीमिया) दूर करने की यह बहुत ही अच्छी औषधि है। ( और पढ़े – खून की कमी दूर करने के 10 रामबाण घरेलु नुस्खे)
3-यह योग हिमोग्लोबिन को सामान्य स्तर तक उठाने वाला और शरीर की इन्द्रियों को बलवान बनाने वाला है।
4-पाण्डु रोग : कई कारणों और रोगों से शरीर में रक्त की कमी हो जाती है, इसे पाण्डु रोग (एनीमिया) कहते हैं। अधिक दिनों तक बुखार बना रहे तो शरीर की सप्तधातुओं की शक्ति क्षीण होने और वात पित्त कफ दोष की स्थिति बिगड़ जाने से शरीर अस्वस्थ और कमज़ोर हो जाता है। रक्त की कमी से चेहरे और शरीर की त्वचा पीली पड़ने लगती है जठराग्नि मन्द हो जाती है जिससे अपच और क़ब्ज़ रहने लगता है। शरीर में सुस्ती और शिथिलता आ जाती है। रक्ताणुओं की कमी हो जाने से शरीर में सूजन आ जाती है, कमज़ोरी बहुत बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में ताप्यादि लौह का सेवन बहुत लाभ करता है।
5-रक्ताल्पता : रक्ताल्पता (एनीमिया) से पीड़ित रोगी के रक्त में हिमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए यह योग बहुत अच्छा काम करता है।
6-प्रमेह : वृद्धावस्था या शारीरिक निर्बलता का प्रभाव शरीर के सभी अंगों पर पड़ता है और कमज़ोर अंगों में, उन अंगों से सम्बन्ध रखने वाले विकार पैदा होने लगते हैं जो रोग को जन्म देते हैं। इसी तरह मूत्राशय में विकार और निर्बलता आने से बार-बार पेशाब आने लगता है। रक्त में भी दूषण आने लगता है। इन कारणों से प्रमेह हो जाता है ।इस व्याधि को दूर करने में ताप्यादि लौह सफल सिद्ध होता है क्योंकि इस योग के घटक द्रव्यों में शिलाजीत भी है जो मूत्राशय एवं मूत्र संस्थान को बल देने वाला और शक्ति वर्द्धक घटक द्रव्य है।
7-आंतों की निर्बलता : यह योग दीपक और पाचक भी है इसलिए यह योग आंतों की कमज़ोरी दूर करने में अच्छा काम करता है. आंतों की कमज़ोरी के कारण क़ब्ज़ होता है और प्रायः क़ब्ज़ दूर करने के उचित उपाय न करके जुलाब लेकर क़ब्ज़ को दूर करने का उपाय किया जाता है। जुलाब में जो दस्तावर द्रव्य होते हैं वे आंतों पर प्रहार करते हैं जिससे बार-बार जुलाब लेने से आंतें और कमज़ोर होती हैं और मन्दाग्नि, भूख न लगना, अरुचि आदि शिकायतें पैदा होती हैं। आम संचित होता है जिससे चिकना मल निकलने लगता है। इन सभी शिकायतों को दूर करने के लिए ताप्यादि लौह का लाभ न होने तक निरन्तर सेवन करना चाहिए।
8-कामला : रक्त की कमी हो, यकृत और पाचन संस्थान स्वस्थ और सबल न हों और पित्त बढ़ाने वाले पदार्थों का सेवन करने से पित्त कुपित हो जाए तो मांस व रक्त दूषित होते हैं तथा कामला रोग हो जाता है जिसे | बोलचाल की भाषा में पीलिया कहते हैं। क्योंकि इस रोग के असर से पूरा शरीर, आंखें, पेशाब और मल सब पीले हो जाते हैं, नाखूनों का गुलाबीपन ग़ायब हो जाता हैऔर वे पीले हो जाते हैं इसीलिए इसे पीलिया कहते हैं। भूख मर जाती है, अन्न से अरुचि हो जाती है और पाचन शक्ति बहुत कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में ताप्यादि लौह का सेवन करना बहुत लाभ करता है। क्योंकि इसमें प्रयुक्त लौह सौम्य और सुपाच्य होता है इसलिए ताप्यादि लौह पित्त का शमन करता है, जठराग्नि प्रबल कर मन्दाग्नि दूर करता है और रक्ताणुओं की वृद्धि कर हिमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाता है। ( और पढ़े – पीलिया के 36 घरेलु उपचार)
9-शोथ : रक्ताणुओं की कमी होने से व शरीर में जल संचित होने से शरीर पर शोथ (सूजन) होने की शिकायत हो जाती है। ताप्यादि लौह यह शिकायत भी दूर कर देता है।
यह योग इसी नाम से बना बनाया बाज़ार में आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
ताप्यादि लौह के नुकसान : tapyadi loha ke nuksan
1-ताप्यादि लौह केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
2-अधिक खुराक के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
3-डॉक्टर की सलाह के ताप्यादि लौह की सटीक खुराक समय की सीमित अवधि के लिए लें।