Last Updated on July 22, 2019 by admin
रोग परिचय :
नष्टार्तव(माहवारी का रुकना) रोग में मासिकधर्म बिल्कुल ही बन्द हो जाता है अथवा नियत समय से बहुत देर बाद अल्प मात्रा में दर्द और कष्ट से आता है।
यदि रजोधर्म आरम्भ से ही बन्द हो तो आरम्भिक कष्टार्तव’ (प्राइमरी ऐमेनोरिया) और यदि मासिक धर्म पहले नियमित रूप से आता रहा हो और बाद में किसी विकार के कारण बन्द हो गया हो तो ‘गौण आर्तव’ (सेकेन्डी ऐमेनोरिया कहलाता है।
इस रोग के 3 प्रकार हुआ करते हैं :-
(अ) आरम्भ से ही स्राव बन्द होना,
(ब) 1 या 2 बार प्रदर आकर बन्द हो जाना,
(स) मासिकधर्म का उत्पन्न तो होना किन्तु रास्ता बन्द होने के कारण उसका जारी न हो सकना ।
बंद माहवारी (पीरियड / मासिकधर्म) के कारण : mahwari band hone ke karan
1- इस रोग का प्रथम कारण जन्म से गर्भाशय या डिम्बाशय का न होना अथवा. बहुत छोटा होना होता है । डिम्बाशय का सम्बन्ध पिच्यूट्री ग्लैन्ड से होता है, इसलिए यदि इस ग्लैन्ड में कोई विकार हो तो भी डिम्बाशय का पूरा पालन पोषण नहीं हो सकता है ।
2- दूसरा कारण रक्त अल्पता अथवा रक्त का अत्यधिक गाढ़ा हो जाना |
3- कोई पुराने रोग जैसे–मधुमेह, क्षय, कैन्सर, वृक्कों सम्बन्धी रोग, दिल, यकृत अथवा आमाशय सम्बन्धी कई रोग, नर्वस सम्बन्धी कई रोग, मासिक के समय अथवा मासिक के पूर्व सर्दी लग जाना, ठण्डे पानी से नहाना- धोना, गर्मी की अधिकता, पागलपन, गर्भ धारण होने का भय, पिच्यूट्री या थायराइड इत्यादि ग्लैन्डों की खराबियाँ हैं ।
4- योनि या गर्भाशय के मुख का बन्द और बहुत | मोटा तथा बिना छेद वाला होना इस रोग का कारण हुआ करता है।
मासिकधर्म (माहवारी ,पीरियड) बंद होने के लक्षण : mahwari band hone ke lakshan
इस रोग से ग्रसित स्त्री के लक्षण–
योनि या गर्भाशय का द्वार बन्द होने या ‘हाईमन’ (कुमारी पर्दा) मोटा होने के कारण यह रोग हो तो प्रत्येक मास निश्चित दिनों में योनि और गर्भाशय में रक्त जमा होकर भांति-भांति के कष्ट और विकारों की उत्पत्ति हुआ करती है। और कभी-कभी पेडू में उभार भी पैदा हो जाया करता है ।
यदि गर्भाशय, योनि, फैलोपियन ट्यूब और डिम्ब ग्रन्थियों की खराबियाँ जन्मजात हों तो यह रोग आरम्भ से ही होता है ।
1- रक्त घट जाने या पतला हो जाने पर शरीर का रंग फीका, मुख पीला, होंठ, आँखों के पपोटे और नाखून सफेद हो जाते हैं ।
2- शारीरिक कमजोरी और सुस्ती छायी रहती है, साँस फूलने लगता है। यह लक्षण रक्त की कमी और शारीरिक निर्बलता के हैं । यदि रोगिणी में चर्बी की अधिकता हो वह मोटी हो तो उसके अंग टूटते हैं, पेडू, कमर, जाँघ और कूल्हों में दर्द तथा भारीपन होता है ।
3-यदि रक्त गाढ़ा होना इस रोग का कारण हो तो–कफ और वात के लक्षण पाए जाते हैं।
4-यदि पिच्युटी ग्लैन्ड के विकारों के कारण यह रोग हो तो जननेन्द्रियों में कमजोरी हो जाती है और समय से पूर्व ही बुढ़ापे के लक्षण प्रकट हो जाते हैं। और शारीरिक तापमान भी कम हो जाता है । शारीरिक और मानसिक निर्बलता बढ़ जाती है।
5- यदि गर्भाशय में शुष्कता, सर्दी या गर्मी के कारण यह रोग हो तो स्त्री में सूखापन, सर्दी या गर्मी के लक्षण पाए जाते हैं।
6-मोटापा और कफ की अधिकता के कारण इस रोग में हाजमा खराब रहता है नींद भी अधिक आती है तथा अधिक गर्मी के कारण रोग होने पर प्यास अधिक लगती है मूत्र जलन के साथ पीले या लाल रंग का आता है तथा गर्भाशय में गर्मी प्रतीत होती है ।
7-मितली वमन, शरीर में गर्मी, हाथ-पैरों में जलन, सिर चकराना, स्तनों में दर्द और कमर दर्द इत्यादि कष्ट उत्पन्न हो जाते हैं।
8- इस रोग के कारण विभिन्न प्रकार के गर्भाशय के रोग जैसे—गर्भाशय की पीडा, गर्भाशय की शोथ, गर्भाशय में पानी पड़ जाना, हिस्टीरिया आदि तथा अजीर्ण, यकृत दोष, वृक्क शोथ, उन्माद, जलोदर, पक्षाघात, सिर चकराना, सिरदर्द, लकवा, पेट फूलना, दमा और विभिन्न प्रकार के ज्वर तथा रक्त दोष उत्पन्न हो जाते हैं ।
आइये जाने पीरियड्स बंद हो जाने या नहीं आने पर क्या करना चाहिए , बन्द मासिकधर्म (नष्टार्तव) के घरेलु इलाज ,mahwari aane ka upay
माहवारी (पीरियड / मासिकधर्म ) लाने के घरेलू उपाय / नुस्खे : band mahwari ka ilaj in hindi
1- यदि स्त्री में रक्त कम हो गया हो तो–रक्त बढ़ाने वाले योगों का प्रयोग करें । लोहा और कुचला से निर्मित योग सेवन करायें।
लोहाभस्म 1 रत्ती सुबह-शाम तथा लोहासव, द्राक्षारिष्ट और कुमार्यासव का निरन्तर सेवन अत्यन्त ही लाभदायक है। घी, दूध, मक्खन, का सेवन रक्त उत्पन्न करने हेतु अत्यन्त उपयोगी है। ( और पढ़े – बाँझपन के 16 रामबाण घरेलू उपाय )
2- रजोधर्म के दिनों में वर्षा से भीग जाने या सर्दी लग जाने से मासिक धर्म बन्द हो जाने पर रजः प्रवर्तनी वटी’ और हिंग्वाष्टक चूर्ण का सेवन करें । रजः प्रवर्तनी वटी मासिक धर्म बन्द हो जाने, कम आने, रुक जाने, दर्द और कष्ट से आने में अत्यन्त ही उपयोगी है । इसके प्रयोग से गर्भाशय में उत्तेजना, गर्मी और शक्ति आकर मासिक धर्म नियमित रूप से आने लगता है। इसके अतिरिक्त ये गोलियाँ अजीर्ण, पुरानी कब्ज, आमाशय और अन्तड़ियों के दूसरे रोगों में भी लाभप्रद हैं। बाजार में अनेक कम्पनियों द्वारा निर्मित उपलब्ध हैं अथवा स्वयं निर्माण करें । योग निम्न है
रजः प्रवर्तनी वटी- सुहागा खील किया हुआ, हींग, हीरा कसीस, मुसब्बर प्रत्येक औषधि सममात्रा में लें । पीसकर क्वार कन्दल (घीग्वार) के रस में खरल करके 1-1 रत्ती (120 मिलीग्राम) की गोलियाँ बनालें । 1 से 2 गोलियाँ तक गरम पानी या आश्रम की आयुर्वेदिक चाय से खायें ।
हिंग्वाष्टक चूर्ण-इसके सेवन करने से मासिक धर्म बन्द हो जाना, कम होना एवं दर्द से होना इत्यादि में अत्यन्त लाभ होता है । मासिक धर्म आने से 4-5 दिन पूर्व गरम पानी या आश्रम की आयुर्वेदिक चाय के साथ दिन में 2 बार खायें । इसका सेवन बच्चा होने के बाद प्रसूता के दर्दो को भी दूर करने तथा रुका हुआ गन्दा स्राव निकालने एवं गर्भाशय को संकुचित कर प्राकृतिक दशा में लाने के अतिरिक्त अजीर्ण, खट्टे डकार, पेट फूलना, पेट में वायु (गैस) और अजीर्ण के दस्तों में भी लाभप्रद है। ( और पढ़े – मासिक धर्म में होने वाले दर्द को दूर करते है यह 12 घरेलू उपचार)
3-पुराने गुड़ को किसी बरतन में डालकर आग पर रखें, जब पिघलने लगे तो सूखा बेरोजा पीसकर मिलालें फिर इसकी लम्बी-लम्बी बत्तियाँ बना कर सूखा लें। प्रतिदिन 1 बत्ती का रात्रि में सोते समय मासिक धर्म आने से 3-4 दिन पूर्व योनि के एकदम भीतर गर्भाशय के मुख में रखने से बन्द या रुका हुआ मासिक धर्म आने लगता है। दर्द और कष्ट भी कम हो जाते हैं ।
4- इन्द्रायण की जड़, कालादाना एलुआ, बन्दाल के फल और कुटकी सभी सममात्रा में लेकर बारीक पीसें व कपड़े से छान लें । तदुपरान्त बांस की पतली सीकें (जो नीचे कुछ नुकीली और ऊपर मोटी हों) को 16 अंगुल मजबूत डोरे (धागे) से लपेटकर उपयुक्त कपड़छन चूर्ण क्वार कन्दल के रस में भिगो दें और बांस की तीलियों पर लगा करके हवा में धूप में नहीं )सुखा लें । आवश्यकता के समय इन बत्तियों को गर्भाशय के अन्दर थोड़ा-सा प्रवेश करके डोरा का छोर बाहर निकला रखें । डोरे को 6 घंटे के बाद सावधानी से खींच कर तीली (बत्ती) बाहर निकल लें। इसके प्रयोग से (मात्र 2 बार के प्रयोग से) बहुत अधिक दिनों से कैसा भी रुका हुआ मासिकधर्म हो, जारी हो जाता है और रुग्णा के समस्त कष्ट मिट जाते हैं। ( और पढ़े – माहवारी में अधिक रक्त स्राव के 15 घरेलु उपचार )
5- काले तिल की जड़, कपास की जड़, सहजन की छाल, ब्रह्म दन्डी की जड़, मुलहठी, सौंठ, गोल मिर्च, पिप्पली सभी सममात्रा में लें। पीसकर कपड़छन चूर्ण सुरक्षित रखें। इसे 2-3 ग्राम की मात्रा में पुराने गुड़ के साथ दिन में 23 बार गरम जल से खायें। इसके प्रयोग से बन्द मासिक धर्म खुलकर आ जाता है।
6- रजकृच्छ में बांस के पत्तों का काढ़ा बनाकर पिलाने से मासिक धर्म खुलकर आ जाता है तथा पेडू का दर्द और दूसरे कष्ट नष्ट हो जाते हैं। ( और पढ़े –मासिक धर्म की अनियमितता को दूर करते है यह 19 घरेलू उपचार )
7- पेडू पर गरम ईंट, रेत या गरम जैल की बोतल से सेंक करें रजः आने नगता है। शीघ्र लाभ हेतु–एन्ड के पत्तों का पानी में क्वाथ बनाकर (इसी क्वाथ से) पेड़ पर सेंक करें तथा बाद में एरन्ड के गरम-गरम पत्ते पेडू पर बाँधे ।
8- रीठा के छिलके को बारीक पीसकर बत्तियाँ बनाकर 1 बत्ती रात को सोते समय गर्भाशय के मुख में रखने से मासिक धर्म खुलकर आने लगता है।
9- कपास की जड़ों का क्वाथ 5 तोला की मात्रा में 1-2 घंटे पर पिलाने से बन्द मासिकधर्म जारी हो जाता है ।
10- अशोक की छाल का क्वाथ 5 तोला की मात्रा में 3-4 बार पिलाने से बन्द मासिकधर्म आने लगता है।
11- मंगरैल (कलौंजी) का विधिवत काढ़ा बनाकर उसमें पुराना गुड़ मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से मासिकधर्म जारी हो जाता है तथा योनि की पीड़ा आदि दूर हो जाती है।
12- अशोकारिष्ट के नियमित सेवन से बन्द या रुका अथवा अल्प मात्रा में दर्द और कष्ट के साथ आने वाले मासिक धर्म के कष्ट नष्ट हो जाते हैं। श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर और गर्भाशय सम्बन्धी सभी रोगों को दूर कर गर्भाशय को शक्तिशाली बनाता है। बांझपन नष्ट होता है । इसके अतिरिक्त गर्भाशय या नाक या मुँह अथवा गुदा या छाती से रक्त आने को भी आराम हो जाती है ।
(वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)
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