Last Updated on July 22, 2019 by admin
वीर्य और रजः कैसे बनता है ? : virya kaise taiyar hota hai
जिस प्रकार दूध में मक्खन, तिल या सरसों में तेल, मीठे में मिठास, खटाई में खटास और फूल में सुगन्ध रहती है उसी प्रकार पुरुष के शरीर में वीर्य और स्त्री के शरीर में रजः रहता है। प्राचीन ग्रन्थों में यह लिखा गया है कि भोजन की मात्रा यदि 40 किलो हो तो उससे एक किलो रक्त बनेगा और एक किलो रक्त से केवल दो तोला वीर्य बनता है। यदि कोई स्वस्थ आदमी प्रतिदिन 1 सेर भोजन करे तो इस हिसाब से 40 दिन में वह 40 किलो भोजन करेगा। जिससे बनेगा मात्र दो तोला वीर्य । अर्थात् 40 दिन की कमाई 2 तोला वीर्य होती है। इस प्रकार यदि शरीर से एक तोला वीर्य निकलता है तो इसका मतलब यह हुआ कि शरीर से 40 तोला खून निकल गया, । शास्त्रों में लिखा है कि एक बार के वीर्यपात से मनुष्य की आयु 30 दिन अर्थात् एक महीना कम हो जाती है। इस जानकारी के उपरान्त अब यह विचारणीय प्रश्न है कि-क्षणिक विषय सुख के लिए अनावश्यक रूप से वीर्य स्खलन करना कितनी बड़ी बुद्धिमानी अथवा मूर्खता है ? फैसला प्रबुद्ध लोगों के हाथ में है।
वीर्य और रजः की दो गतियाँ होती हैं-
(1) ऊर्ध्वगति । (2) अधोगति
वीर्य और रजः उत्पन्न होकर शरीर में रक्त के माध्यम से ऊर्ध्व हो जाए तो उसे ऊर्ध्वगति कहते हैं।
रजः या वीर्य का पात (स्खलन) हो जाना, उसकी अधोगति कहलाता है।
विशेष-जब वीर्य और रजः शरीर में बन जाता है और नष्ट नहीं किया जाता है। तब वह शरीरस्थ रक्त में मिलकर ‘ओज’ में परिणित हो जाता है और समस्त शरीर में फैल जाता है जिसके फलस्वरूप पुरुष में मर्दानगी के सारे लक्षण और स्त्रियों में युवा स्त्रियों के सारे लक्षण प्रकट होकर उनमें तेज, शौर्य, कान्ति, मेधा एवं बल की उत्पत्ति होती है।
वीर्यपात से बचने के सरल उपाय : virya raksha ke upay
1- अनावश्यक वीर्यपात से बचने हेतु आठों प्रकार के मैथुन से बचना चाहिए। ( और पढ़े – वीर्य को गाढ़ा व पुष्ट करने के आयुर्वेदिक उपाय )
2- भोजन में उत्तेजक पदार्थों जैसे-लालमिर्च, गरम मसाले, अचार, खटाई, माँस मछली, चाय, कॉफी आदि को न रखकर सादा सात्विक एवं प्राकृतिक भोजन लेना चाहिए। ( और पढ़े –वीर्य वर्धक चमत्कारी 18 उपाय )
3- किसी भी प्रकार की नशीली चीजें या पेय जैसे-शराब, भाँग, अफीम, सुलफा, चरस, स्मैक आदि कभी नहीं लेने चाहिए । यहाँ तक कि चाय, कॉफी तक का प्रयोग हानिकारक है।
4- सूर्योदय से कम-से-कम 2 घण्टे पूर्व शैय्या का त्याग कर देना चाहिए और घूमना टहलना चाहिए । इस समय (सूर्योदय होने तक) प्रतिदिन प्रत्येक मौसम में ‘दक्षिणायन हवा’ चलती है जो असीम स्वास्थ्यवर्द्धक होती है, इसका लाभ उठाना चाहिए। सूर्योदय के बाद यह हवा फिर नहीं चलती । ( और पढ़े – धातु दुर्बलता दूर कर वीर्य बढ़ाने के 32 घरेलू उपाय )
5- बासी भोजन से परहेज करना चाहिए। यदि किसी कारणवश ऐसा भोजन करना ही पड़े तो उसे पुनः गरम कर लेना चाहिए।
6- कब्जकारक भोजन नहीं करना चाहिए। कब्ज अनेक रोगों की जननी है। ( और पढ़े – वीर्य की कमी को दूर करेंगे यह रामबाण प्रयोग )
7- ढूंस-ठूसकर अधिक भोजन अथवा स्वादिष्ट भोजन के लालच में भोजन पर भोजन नहीं करना चाहिए।
8- नित्य कोई आसन अथवा व्यायाम करने की आदत अवश्य डालनी चाहिए। ( और पढ़े –स्वप्नदोष से छुटकारा देंगे यह 11 जबरदस्त उपाय )
9- सप्ताह में 1 दिन जल पर रहकर उपवास अवश्य करना चाहिए।
10- सुबह-शाम मुक्त और विशुद्ध वायु में अपनी शक्ति के अनुसार भ्रमण अवश्य करना चाहिए। ( और पढ़े – स्वप्नदोष के घरेलू इलाज )
11- हस्तमैथुन आदि कुटेबों (गलत आदतों) से सदैव बचे रहना चाहिए।
12- अत्यधिक स्त्री प्रसंग (मैथुन) से बचे रहना चाहिए।
13- विचारों को शुद्ध रखते हुए प्राकृतिक जीवन यापन करना चाहिए।
14- सद्ग्रन्थों के पठन-पाठन में मन लगाना चाहिए।
15- मन को सदैव ही उत्तम कार्यों में लगाए रखना चाहिए।
16- रात्रि को सोते समय मूत्रत्याग करके तथा पैरों को ठण्डे पानी से खूब धो- पोंछकर एवं कुल्ला आदि करके अपने इष्ट (भगवान) का स्मरण करते हुए सो जाना चाहिए।
17- रात्रि में सोने से पहले गरम-गरम दूध पीने से विषय सम्बन्धी बुरे स्वप्न आते हैं। और स्वप्नदोष हो ज़ाता है। ऐसी आदत हो तो उसे छोड़ देना चाहिए और उसकी जगह आधा या एक गिलास भर गुनगुने जल में आधा या एक कागजी नीबू का रस निचोड़कर पीना चाहिए।
18- रात्रि को सोते समय तंग अण्डरवियर, कच्छा या लंगोट का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से स्वप्नदोष होता है तथा लिंग की कमजोरी आदि विकार उत्पन्न होकर नपुंसकता आती है।
19- वीर्यपात से बचने के लिए अंग्रेज़ी औषधियों के सेवन से बचना चाहिए। उनसे लाभ के बदले हानि अधिक होती है। आमला चूर्ण लिया जा सकता है वह अधिक लाभदायक है |
20- वीर्यपात से बचने के लिए पौष्टिक योगों (टॉनिक) का सेवन करना भी खतरे से खाली नहीं होता, अतः इनसे भी बचें।
21- वीर्यपात ने यदि स्वप्नदोष का रूप धारण कर लिया हो तो ऐसी दशा में किसी अनुभवी आयुर्वेदिक व प्राकृतिक चिकित्साचार्य से उपचार करवाकर मुक्ति पाई जानी चाहिए।
22- संयमरूपी दिव्य अस्त्र का प्रयोग करें। ब्रह्मचर्य और संयम का परस्पर अटूट सम्बन्ध है । संयम, मानव जीवन का सर्वोच्च आदर्श है। खान-पान, रहन-सहन, विचार, व्यवहार आदि जीवन के समस्त कार्य कलापों में इस मर्यादा का पालन कर मनुष्य-शरीर और मन दोनों से स्वस्थ और सुखी बना रहा जा सकता है ।
उच्छंखल इन्द्रियों का निग्रह करना ही जीवन कला है। संयमित जीवन का पुनीत मार्ग प्रकट रूप से भले ही नीरस एवं अग्राह्य प्रतीत हो, किन्तु परिणामतः वह कितना अधिक कल्याणकारी है, यह कथन का विषय नहीं अपितु व्यवहार में लाकर अनुभव करने का विषय है । वस्तुतः संयम मनुष्य का स्वाभाविक धर्म है, जिससे च्युत होकर मनुष्य अपने मनुष्यत्व को खोकर, मनुष्य नहीं रह जाता है।
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