Last Updated on June 30, 2020 by admin
त्वचा रोग क्या है व इसके कारण : skin problems in hindi
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के मतानुसार त्वचा रोग का प्रमुख कारण है शरीर में विजातीय द्रव्यों का नियमित रूप से संचित होना और इस कारण का सबसे बड़ा सहयोगी कारकत्व है त्वचा के प्रति हमारी लापरवाही।
हमारे शरीर में पाया जाने वाला सबसे विशाल अंग त्वचा ही है, जो निरंतर शरीर से विजातीय द्रव्यों को, पसीने के माध्यम से, शरीर से बाहर निकालता रहता है। आज के दूषित वातावरण, सौन्दर्य प्रसाधन के उत्पाद जैसे टेलकम पाउडर, डिओडरेन्ट आदि का प्रयोग तथा दैनिक जीवन में शारीरिक श्रम का अभाव जिससे शरीर से आवश्यक मात्रा में पसीना नहीं निकल पाता आदि कारणों के साथ-साथ त्वचा की नियमित रूप से साफ़ सफ़ाई न होना त्वचा की कार्यक्षमता को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा हैं।
त्वचा से सामान्य अवस्था से लगभग 650ml पसीना दिन भर में निकलना चाहिए लेकिन आजकल के रोजगार और जीवनशैली के चलते लोगों का पसीना निकलता ही नहीं है। उस पर आहार में की जाने वाली अत्यधिक लापरवाही की वजह से रक्त अम्लीय हो जाता है और त्वचा रोग को उत्पन्न करता है। सामान्यतः हम त्वचा रोग के बाहरी कारणों के निदान और उसकी चिकित्सा में लगे रहते है जबकि त्वचा रोग के मूल में आहार में त्रुटी तथा त्वचा की कार्यक्षमता में आयी कमी कारण होते है और इनको दूर करे बिना त्वचा रोग से स्थायी मुक्ति मिलना सम्भव नहीं होता।
हमारे शरीर में जो भी रोग होते हैं वे इस बात का सूचक होते हैं कि शरीर में विजातीय द्रव्य इतनी अधिक मात्रा में एकत्र हो गये हैं कि उन्हें शरीर के उत्सर्जन अंग शरीर से निष्कासित करने में असमर्थ हो गये हैं। अब सामान्यतः होता यह है कि जैसे ही शरीर में रोग के लक्षण प्रगट होते हैं उसे तुरन्त दवाइयों के माध्मय से दबाया जाता है जबकि प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में शोधन क्रियाओं के माध्यम से शरीर के आन्तरिक एवं बाह्य अंगों को कार्यक्षम बनाकर रोग के मूल कारणों को दूर किया जाता है जिससे शरीर के उत्सर्जन अंगों की कार्यक्षमता बढ़ती है और शरीर रोग मुक्त होने के साथ-साथ स्वस्थ भी बनता है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति रोग के मूल कारणों को दूर करने पर केन्द्रित रहती है इसलिए इसे हम मित्र चिकित्सा पद्धति भी कह सकते हैं।
त्वचा रोग के मामलों में प्रायः यह देखा जाता है कि केवल दवाइयों का प्रयोग पर्याप्त नहीं होता। कारण यह है कि त्वचा रोग से मुक्ति पाने के लिए दवाइयों का आन्तरिक और बाह्य (क्रीम, लोशन आदि) प्रयोग तो निरंतर किया जाता है पर आहार में परिवर्तन नहीं किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप रोग बार-बार प्रकट होता है और बार-बार दवाइयों, क्रीम व लोशन के प्रयोग द्वारा रोग को अस्थायी रूप से दूर किया जाता है। ऐसी चिकित्सा में रोगी का धन तो व्यर्थ खर्च होता
ही है साथ ही अत्यधिक औषधीय सेवन से उसके शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता है। इतने सब उपाय करने के बाद भी त्वचा रोग दूर होने के बजाय और अधिक बढ़ता जाता है और जीवन कष्टप्रद हो जाता है। कई बार रोग की वजह से रोगी पर्याप्त नींद का आनन्द भी नहीं ले पाता है और जीवन एक कष्टप्रद अनुभव हो जाता है। इतनी चर्चा के बाद आइए अब इस विषय में प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति क्या कहती है इस पर चर्चा शुरू करते हैं।
चर्म रोग में क्या खाएं और क्या नहीं खाना चाहिए : diet for skin problem
यदि त्वचा रोग से हमेशा के लिए मुक्ति प्राप्त करनी है तो आहार में संयम रखने के साथ-साथ उचित परिवर्तन भी किया जाना ज़रूरी होता है –
- प्रायः यह देखा गया है कि त्वचा रोगी आहार में बेसन के व अन्य चटपटे मसालेदार और बेमेल खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं। यदि आहार में पर्याप्त मात्रा में क्षारीय पदार्थों (मौसमी फल, सब्ज़ियां व अंकुरित अनाज) का सेवन किया जाए तो निश्चित ही कुछ समय में रक्त का स्वभाव क्षारीय हो जाता है और त्वचा स्वस्थ होने लगती है जिससे त्वचा रोग से मुक्ति पाने में मदद मिलती है।
- त्वचा को कार्यक्षम बनाते हुए आहार में पर्याप्त क्षारीय खाद्य पदार्थों का सेवन करते हुए यदि नमक व शक्कर का त्याग किया जाये तो त्वचा बहुत ही शीघ्र स्वस्थ हो जाती है।
मिट्टी स्नान क्या है व इसकी उपयोगिता : mud bath therapy in hindi
‘मिट्टी स्नान’ प्रकृति से जोड़ने वाला व आनन्द देने वाला प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का एक अनुपम प्रयोग हैं। इससे शीतलता प्राप्त होती है तथा बचपन के लौट आने का अहसास होता है। इस प्रयोग को करने से त्वचा की प्राकृतिक रूप से सफ़ाई होती है व मिट्टी स्नान करते समय हमारा मन बाल सुलभ हो जाता है क्योंकि जब हम मिट्टी स्नान का प्रयोग करते हैं तो हमारे मन में अत्यधिक आनन्द का संचार हो जाता है। कारण यह है कि इसके माध्यम से हम सीधे तौर पर हमारी प्राकृतिक माँ ‘धरती’ से जुड़ जाते हैं। आज के दौर में धरती माँ से हमारा सम्पर्क न के बराबर रह गया है क्योंकि हम तो पक्के फर्श पर भी जूते चप्पल पहने रहते हैं। शायद ही कभी खुली धरती से हमारे पैर के पंजे मिट्टी का स्पर्श पाते होंगे।
मिट्टी की विशेषता व इसके चिकित्सकीय गुण :
जिन पांच तत्वों से हमारे शरीर का निर्माण हुआ है उनमें मिट्टी एक प्रमुख तत्व है । मिट्टी हमें जन्म ही नहीं देती बल्कि जीवनभर हमारा पालन पोषण भी करती हैं तथा शरीर का अन्त होने पर उसे वापिस अपने में समा लेती है। इसीलिए हमारे सन्त कहते हैं कि “माटी का ख़िलोना एक दिन माटी में मिल जायेगा”। मिट्टी के मुख्य गुण –
- मिट्टी में ताप सन्तुलन का गुण
- धुलनशीलता का गुण
- चुम्बकीय गुण
- विषशोषक गुण
- दर्दनाशक गुण
- रोगनाशक गुण
- दुर्गन्धनाशक गुण
- रक्त संचारक गुण
- बंधक व निर्मलता का गुण
- निर्जीव को सजीव में बदलने का गुण आदि अनेक गुण पाये जाते हैं।
इतने गुणों से युक्त मिट्टी को माँ कहा जा सकता है, चिकित्सक कहा जा सकता है और हमारी पालनहार भी कहा जा सकता है।
मिट्टी स्नान का प्रयोग त्वचा को गन्दगी से मुक्त करने के साथ-साथ त्वचा को दिव्यता भी प्रदान करता है, साथ ही त्वचा को पर्याप्त कार्यक्षम भी बनाता है। हम जब साबुन या अन्य कृत्रिम साधनों से त्वचा की सफ़ाई करते हैं तो वे त्वचा की प्राकृतिक तैलीय सतह को नुकसान पहुंचाते हैं वहीं मिट्टी से स्नान त्वचा को प्राकृतिक अवस्था में रखते हुए आनन्ददायी अनुभव प्रदान करता है।
प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी के अनेक प्रयोग हैं किन्तु मिट्टी स्नान उनमें से एक श्रेष्ठ प्रयोग है। आइए अब हम इस प्रयोग पर विस्तार से चर्चा करते हुए यह जानें कि मिट्टी स्नान कैसे शरीर को चिकित्सकीय लाभ प्रदान करता है। चिकित्सकीय लाभ देने वाला यह प्रयोग इतना सरल, सस्ता और व्यावहारिक है कि इसे घर पर रहकर भी आसानी से किया जा सकता है। आमतौर पर व्यक्ति मिट्टी स्नान के प्रयोग से जीवन भर अछूता ही रहता है।
इस प्रयोग का लाभ केवल धनाढ्य व मंहगे प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र में जाने वाले सक्षम लोग ही उठा पाते हैं। जबकि इस प्रयोग की सरल विधि और चमत्कारिक लाभों को देखते हुए हम सभी अपने घर पर ही इसका भरपूर आनन्द उठा सकते है और त्वचा को श्रेष्ठ स्वास्थ्य प्रदान कर सकते हैं। जैसा कि हम पूर्व में चर्चा कर चुके हैं कि शरीर में विजातीय द्रव्यों के जमाव अर्थात् शरीर से पसीने के पूर्ण क्षमता से नहीं निकलने की वजह से ही त्वचा रोगी होती है। इसके साथ ही हमारे द्वारा जीवनचर्या में की गई लापरवाही की वजह से त्वचा अपनी क्षमता असमय ही खो देती है। आइए अब इस प्रयोग की विधि पर बात करते हैं।
मिट्टी स्नान की तैयारी : how to make mud bath in hindi
मिट्टी स्नान के लिए 4-5 फीट गहरे गड्ढे से मिट्टी ली जाती है । ध्यान रखने वाली बात यह है कि मिट्टी पत्थर, कंकड़ व अन्य प्रदूषण से मुक्त होनी चाहिए। यदि तालाब क्षेत्र की शुद्ध अवस्था में मिट्टी प्राप्त हो जाए तो उससे श्रेष्ठ मिट्टी हो नहीं सकती। यदि मिट्टी की सहज उपलब्धता न हो तो मुलतानी मिट्टी का प्रयोग करके भी मिट्टी स्नान का आनन्द लिया जा सकता है। मिट्टी को 10-12 घण्टे पानी में गला दें। इसके बाद इस मिट्टी से पतला घोल बना लें। इस घोल का खुले शरीर पर प्रयोग करना होता है।
यदि किसी कारणवश काली मिट्टी या अन्य मिट्टी शुद्ध अवस्था में उपलब्ध न हो तो ऐसी स्थिति में मुलतानी मिट्टी के छोटे छोटे टुकड़े कर उसे रात भर पानी में गला दें व सुबह इसका पतला पेस्ट बना लें। यदि इसे औषधि युक्त बनाना हो तो इसमें कुछ मात्रा में गुलाब जल, कपूर व पीपरमेंट भी मिला सकते हैं। उक्त पेस्ट शरीर को दिव्य आनन्द देने वाला पेस्ट बन जाता है।
मिट्टी स्नान की विधि : how to take a mud bath in hindi
- मिट्टी के घोल को पूरे शरीर पर लगायें और शरीर पर इसे लगाते हुए हल्की सी मालिश भी करते जाएं ताकि त्वचा पर मिट्टी अच्छी तरह से जज्ब होती जाए ।
- इस प्रकार गिली मिट्टी की 4-5 सतह शरीर पर बनायें। हर बार मिट्टी की सतह बनाते हुए हल्की मालिश करते जाएं, केवल मिट्टी लगाने से पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है।
- जैसे जैसे मिट्टी सूखती हैं वैसे वैसे उसे पानी से गीला करते रहना चाहिए ताकि मिट्टी व त्वचा गीली बनी रहे।
- इस प्रकार इस प्रयोग को 1-2 घण्टे तक किया जा सकता है। प्रयोग समाप्ति पर शरीर को पानी से गीला कर लें ताकि मिट्टी की पकड़ ढीली हो सके।
- इसके बाद ठण्डे पानी से शरीर को धीरेधीरे मलते हुए स्नान लें।
- ध्यान रखें कि यदि त्वचा पर अत्यधिक बाल हों तो धीरे-धीरे मसलें ताकि शरीर के बाल टूटने की स्थिति न निर्मित हो।
मुल्तानी मिट्टी / मिट्टी स्नान से लाभ : multani mitti / mitti se nahane ke fayde
- इससे शरीर की अनावश्यक गर्मी दूर होती है। त्वचा के रोमछिद्र गन्दगी से मुक्त होते हैं व त्वचा की कार्यक्षमता में अपार वृद्धि होती है।( और पढ़े –मुलतानी मिट्टी के फायदे )
- यदि मिट्टी को उपचारित कर लिया जाए तो मिट्टी औषधि का रूप ले लेती है।
- त्वचा रोग होने पर मिट्टी को पानी के साथ आग पर पका कर उपचारित कर लेते हैं तो ऐसी मिट्टी प्रदूषण से व कीटाणु से मुक्त हो जाती है। इसके साथ ही यदि नीम की पत्ती के पानी में मिट्टी को उबाल कर प्रयोग में लाया जाए तो चर्मरोग में आशातीत लाभ होता है।
मिट्टी स्नान में सावधानी :
- अत्यधिक शीत प्रकृति के व्यक्तियों को इसका प्रयोग अत्यन्त सावधानी से व किसी कुशल प्राकृतिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।
- मिट्टी स्नान के प्रयोग को थोड़े गर्म वातावरण में ही करना चाहिए। यदि वातावरण में अत्यधिक ठंडक हो तो आग का अलाव जगा कर वातावरण को गर्मी प्रदान की जा सकती है।
- इसके अलाव यदि त्वचा पर घाव हो या त्वचा रोग के रिसाव की अवस्था हो तो मिट्टी स्नान का प्रयोग घाव व ग्रसित अंग को सुरक्षा प्रदान करते हुए करना चाहिए।