Last Updated on May 30, 2021 by admin
रोग के कारण :
मूत्र विकार का सबसे बड़ा कारण बैक्टीरिया, कवक है। इनके कारण मूत्र पथ के अन्य अंगों जैसे किडनी, यूरेटर और प्रोस्टेट ग्रंथि और योनि में भी इसका संक्रमण का असर देखने को मिलता है।
मूत्र विकार के लक्षण :
- मूत्र रोग के कई लक्षण हैं जैसे तीव्र गंध वाला पेशाब होना।
- पेशाब का रंग बदल जाना।
- मूत्र त्यागने में जलन और दर्द का अनुभव होना।
- कमज़ोरी महसूस होना।
- पेट में पीड़ा और शरीर में बुखार की हरारत बने रहना है।
- इसके अलावा हर समय मूत्र त्यागने की इच्छा बनी रहती है।
- मूत्र पथ में जलन बनी रहती है।
- मूत्राषय में सूजन आ जाती है।
यह रोग पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में ज़्यादा पाया जाता है। गर्भवती स्त्रियां और सेक्स-सक्रिय औरतों में मूत्राषय प्रदाह रोग अधिक पाया जाता है।
मूत्र रोग के आयुर्वेदिक उपचार :
पहला प्रयोगः केले की जड़ के 20 से 50 मि.ली. रस को 30 से 50 मि.ली. “गौझरण” के साथ 100 मि.ली.पानी मिलाकर सेवन करने से तथा जड़ पीसकर उसका पेडू पर लेप करने से पेशाब खुलकर आता है।
दूसरा प्रयोगः आधा से 2 ग्राम शुद्ध शिलाजीत , कपूर और 1 से 5 ग्राम मिश्री मिलाकर लेने से अथवा पाव तोला (3 ग्राम) कलमी शोरा उतनी ही मिश्री के साथ लेने से लाभ होता है।
तीसरा प्रयोगः एक भाग चावल को चौदह भाग पानी में पकाकर उन चावलों का मांड पीने से मूत्ररोग में लाभ होता है। कमर तक गर्म पानी में बैठने से भी मूत्र की रूकावट दूर होती है।
चौथा प्रयोगः उबाले हुए दूध में मिश्री तथा थोड़ा घी डालकर पीने से जलन के साथ आती पेशाब की रूकावट दूर होती है। यह प्रयोग बुखार में न करें।
पाँचवाँ प्रयोगः 50-60 ग्राम करेले के पत्तों के रस चुटकी भर हींग मिलाकर देने से पेशाब बहुतायत से होता है और पेशाब की रूकावट की तकलीफ दूर होती है अथवा 100 ग्राम बकरी का कच्चा दूध 1 लीटर पानी और शक्कर मिलाकर पियें।
छठा प्रयोगः मूत्ररोग सम्बन्धी रोगों में शहद व “त्रिफला” लेने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग बुखार में न करें।
मूत्र रोग के अन्य घरेलू उपचार :
1. खीरा ककड़ी – मूत्र रोग में खीरा ककड़ी का रस बहुत फ़ायदेमंद है। अगर रोगी को 200 मिली ककड़ी के रस में एक बडा चम्मच नींबू का रस और एक चम्मच शहद मिलाकर हर तीन घंटे के अंतर पर दिया जाए तो रोगी को बहुत आराम मिलता है।
2. तरल पदार्थ – पानी और अन्य तरल पदार्थों का प्रचुर मात्रा में सेवन 15 – 15 मिनट के अंतर पर कराने से रोगी को बहुत आराम मिलता है।
3. मूली के पत्तों का रस – मूत्र विकार में रोगी को मूली के पत्तों का 100 मिली रस दिन में 3 बार सेवन कराएं। यह एक रामबाण औषधि की तरह काम करता है।
4. नींबू – नींबू स्वाद में थोड़ा खट्टा तथा थोड़ा क्षारीय होने के साथ साथ एक गुणकारी औषधि है। नींबू का रस मूत्राषय में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट कर देता है तथा मूत्र में रक्त आने की स्थिति में भी लाभ पहुँचाता है।
5. पालक – पालक का रस 125 मिली, इसमें नारियल का पानी मिलाकर रोगी को पिलाने से पेशाब की जलन में तुरंत फ़ायदा प्राप्त होगा।
6. गाजर – मूत्र की जलन में राहत प्राप्त करने के लिए दिन में दो बार आधा गिलास गाजर के रस में आधा गिलास पानी मिलाकर पीने से फ़ायदा प्राप्त होता है।
7. मट्ठा – आधा गिलास मट्ठा में आधा गिलास जौ का मांड मिलाएं और इसमें नींबू का रस 5 मिलि मिलाकर पी जाएं। इससे मूत्र-पथ के रोग नष्ट हो जाते है।
8. भिंडी – फ्रेश भिंडी को बारीक़ काटकर दो गुने जल में उबाल लें। बाद इसे छानकर यह काढ़ा दिन में दो बार पीने से मूत्राषय प्रदाह की वजह से होने वाले पेट दर्द में राहत मिलती है।
9. सौंफ – सौंफ के पानी को उबाल कर ठंडा कर लें और दिन में 3 बार इसे थोड़ा थोड़ा पीने से मूत्र रोग में राहत मिलती है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)