वजन घटायें सिर्फ 5 दिनों में | Vajan Ghatane ke Tips (Upay)

Last Updated on June 15, 2020 by admin

वजन बढ़ानेवाले कारक और उनसे निपटना :

मुख्य विषय पर आने से पहले, सबसे पहले आइए जानते हैं कि अधिक वजन है क्या। पहाड़ों के अपने गाँव की तुलना में मैंने भारी वजन के और बेडौल बदन के लोग शहरों में ही पाए हैं। गाँवों में बड़ी तोंद और मोटी कमर के लोग नहीं दिखते। शहर के लोगों में दिलचस्प बात यह होती है कि वे अपने मोटापे के लिए हमेशा कुछ-न-कुछ बहाना सुना देते हैं। अगर अपने मिलनेवाले दो लोगों की तुलना करूं तो सहज कारण ये होंगे

✦भोजन की तुलना में शारीरिक गतिविधियों की कमी,
✦अनुशासनहीन जीवन-शैली और जंकफूड।

वजन की अधिकता को आपके बदन के आकार और आपके चलने-फिरने की सुविधा की नजर से देखा जाना चाहिए। यहाँ तक कि कुछ किलो ज्यादा वजन होने से भी आपका शारीरिक आकार बेडौल हो जाता है। और आप भारी, सुस्त और हाँफता महसूस करने लगते हैं। इस प्रकार मोटापा मापने के लिए आपको वजन मापने की बजाय अपने शारीरिक आकार और अपनी फुर्ती को देखना चाहिए। थोड़ा सा भी वजन अधिक होने से फुर्ती में कमी आती है, इसलिए व्यक्ति दोषपूर्ण चक्र में फँस जाता है और अधिक वजन के कारण पैदा होनेवाली सुस्ती के कारण वजन और अधिक बढ़ता चला जाता है। इस चक्र से बाहर निकलने के लिए सक्रिय रहने की मजबूत संकल्प शक्ति की जरूरत होती है।

वजन बढ़ने या मोटापे के मुख्य कारण : vajan badne (motapa) ke karan

वजन बढ़ानेवाले मुख्य कारकों के बारे में जानना बेहद महत्त्वपूर्ण है। अगर आप युवा हैं और आपका वजन थोड़ा ज्यादा है, तो आप इन कारकों से बचकर, आसानी से अपनी वजन की समस्या दूर कर सकते हैं। मैंने मोटापा बढ़ानेवाले कारकों की एक सूची संकलित की है और उनसे बचने के उपाय सुझाए हैं।
1. उर्वरकों से उगाया गया खाद्यान्न।
2. स्प्रे किए हुए, प्रसंस्करित और संरक्षित खाद्य पदार्थ।
3. अपने को एक स्थान पर सीमित रखना।
4. रात में भोजन के तुरंत बाद सो जाना या रात के भोजन और सोने के बीच में स्नैक्स खाना।
5. बहुत ज्यादा सोना।
6. आयुर्वेदिक सिद्धांतों के हिसाब से असुंतलित माना जानावाला खान-पान।
7. पोषण में कारक-एस की कमी।
8. देश और काल के अनुसार पोषण न होना।
9. रस और मल का अनियमित संतुलन।
10. बैठने का गलत तरीका और देर तक बैठा रहना।
11. तमस (लालच, सुस्ती, थकान) वाली मानसिक स्थिति |
12. जीवन के पित्त चरण का अंत और अधेड़ावस्था का आरंभ।

वजन बढ़ने या मोटापे से बचने के उपाय : motapa kam karne ka tarika (upay)

अब आइए, इन कारकों की एक-एक करके विस्तार से पड़ताल करते हैं और उनसे लड़ने के उपाय खोजते है |

1. उर्वरकों से उगाया गया खाद्यान्न :

रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग खाद्य उत्पादों का मूल साम्य बदल देता है। जब हम उन्हें खाते हैं, तो खाद्य उत्पाद में अत्यधिक नाइट्रेट ग्रहण कर जाते हैं, जो कि शरीर में वात और पित्त में असंतुलन पैदा कर देता है। पित्त पाचक अग्नि या शरीर की अग्नि के लिए जिम्मेदार होता है और इस प्रकार, इससे शरीर के ऊर्जा तंत्र में गड़बड़ी आ जाती है। वात ऊर्जा के वितरण के लिए जिम्मेदार होता है और पित्त असंतुलन के साथ-साथ शरीर के ऊष्म-गतिकीय तंत्र को खराब कर देता है। इसके लक्षण बहुत ज्यादा प्यास, असंतुलित भूख, अत्यधिक भोजन करना और सूजन। शरीर में पानी जमा होता रहता है और जो धीरे-धीरे वजन बढ़ा देता है।

हल : –जहाँ तक संभव हो, जैविक रूप से उगाया गया भोजन लें।   ( और पढ़ेतेजी से वजन कम करने के 15 उपाय )Vajan Ghatane Ke Upay

2-स्प्रे किए हुए, प्रसंस्करित और संरक्षित खाद्य उत्पाद :

इन खाद्यों के भी ऊपर बताए परिणाम होते हैं। कीटनाशक और अन्य रसायन शरीर की पाचक अग्नि को बाधा पहुँचाते हैं और तरल पदार्थों की ग्रहणता बढ़ा देते हैं। ये शरीर को थुलथुला कर देते हैं। प्रसंस्करित और संरक्षित खाद्य पदार्थों में खराब होने से बचानेवाले प्रिजर्वेटिव और रंगों आदि के रूप में रसायनों की कुछ मात्रा होती है, जो कि प्राकृतिक खाद्य में नहीं होती और जैविक प्रणाली की प्रकृति के विपरीत होती है। ये सामान्य तौर पर वात और पित्त का असंतुलन पैदा कर देते हैं और रक्त को अशुद्ध कर देते हैं। इससे बाद में शरीर के जल तंत्र (वात और कफ) पर असर पड़ता है। अगर इन खाद्यों को अधिकता में लिया जाए, तो ये अंतत: शरीर की तीनों ऊर्जाओं में गड़बड़ी पैदा कर देते हैं और शरीर को भारी तथा थुलथुला करने के साथ-साथ अनेक बीमारियाँ पैदा कर देते हैं।
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की मदद से उगाए गए संरक्षित और प्रसंस्करित खाद्यों में आकाश की प्राण ऊर्जा या जीव तत्त्व का अभाव होता है और इस प्रकार वे शरीर की ऊर्जा को समृद्ध नहीं करते और हमें वह आंतरिक संतुष्टि नहीं देते, जो कि भोजन के बाद मिलनी चाहिए। इस बारे में मैंने कोई वैज्ञानिक शोध तो नहीं किया है, लेकिन मेरा सामान्य अनुभव यही है कि इस तरह का भोजन भूख नहीं मिटाता और न ही मानसिक संतुष्टि देता है, जो कि जैविक रूप से उगाए ताजा खाद्य से मिलता है। इसलिए व्यक्ति सामान्य से ज्यादा खाने की प्रवृत्ति रखता है। (सातवें बिंदु में एस-कारक की भूमिका भी देखिए)। इस प्रकार, इस तरह की प्रकृति विरोधी और प्राण शक्ति से हीन खाद्य सामग्री खाने से रसायनों के दुष्प्रभावों के अलावा, एक अतिरिक्त दुष्प्रभाव वजन बढ़ने का भी है।

हल : जहाँ तक संभव हो, जैविक रूप से उगाया गया खाद्य ही खाइए। अगर सब्जियों पर कीटनाशकों का छिड़काव हुआ हो तो उन्हें कई बार धोइए और पानी में डुबोए रखिए। अंत में, उन्हें गरम पानी से धोइए, ताकि यथासंभव उनका विष दूर हो जाए। ताजा खाद्य पदार्थ खाइए और घंटों पहले तैयार किया गया खाना कभी मत खाइए। रेडीमेड खाद्य उत्पाद कभी मत खरीदिए, क्योंकि उनमें आमतौर पर प्रिजरवेटिव मिले होते है |  ( और पढ़ेमोटापा कम करने के सफल 58 उपाय )

3. अपने को एक ही स्थान पर सीमित रखना :

आयुर्वेद में तीन तरह की ऊर्जाएँ शरीर के शारीरिक और मानसिक कार्यों के लिए उत्तरदायी मानी गई हैं, जो कि पाँच तत्त्वों से मिलकर बनती हैं। वात, आकाश और वायु से, पित्त अग्नि से और कफ पानी और पृथ्वी से बनता है। सामान्य तौर पर वात के आकाश तत्त्व की आयुर्वेद की आधुनिक किताबों में अनदेखी कर दी जाती है। आज के संदर्भ में यह महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि केवल व्यायाम के जरिए कैलोरी खर्च करने से ही आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से वजन को संतुलित नहीं किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, आपको घर और कार्यालय जैसे छोटे स्थानों तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। बहुत सारे लोग हैं, खासकर महिलाएँ, जो कहती हैं कि वे घर में बच्चों और अन्य घरेलू कामकाज के साथ पर्याप्त शारीरिक व्यायाम कर लेती हैं। आयुर्वेदिक नजरिए से, शरीर केवल यांत्रिक प्रणाली नहीं है और आकाश तत्त्व भी शरीर के उत्साह के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है।

हल :एक दिन में कम-से-कम एक बार सैर के लिए जाना तय कीजिए। अगर आपकी दैनिक गतिविधियाँ केवल घर और कार्यालय के अंदर तक ही सीमित हैं, तब तो आपको जरूर यह करना चाहिए।   ( और पढ़ेमोटापा कम करने के 7 सबसे असरकारक उपाय )

4. रात में भोजन के बाद तुरंत सोना अथवा रात के भोजन और सोने के बीच में स्नैक्य खाना :

रात का भोजन जल्दी कर लेना स्वास्थ्यकर होता है। हालाँकि अगर वे देर से सोने जाते हैं, तो उन्हें भूख लग आती है और रात के भोजन तथा सोने से पहले वे कुछ हलका-फुल्का आहार कर लेते हैं। यह आदत न केवल मोटापा बढ़ाने वाली है, बल्कि सामान्य स्वास्थ्य के लिए भी हितकारी नहीं है। आपका शरीर आपके खाए भोजन को पचाने के लिए कड़ा परिश्रम करता है। सोने से पहले, पाचन की सक्रिय प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए और शरीर को सोने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। आपके शरीर के ऊर्जा स्रोत धीरे-धीरे ढलने लगते हैं। सोने से ठीक पहले भोजन करने से आप अपने पाचन तंत्र को ज्यादा काम करने के लिए बाध्य करते हैं, जबकि वह आंशिक आराम की स्थिति में आ ही चुका होता है। इससे पेट की अनेक बीमारियाँ होने लगती हैं, साथ ही वजन बढ़ने लगता है।

हल : रात के भोजन का समय घड़ी के हिसाब से नहीं, बल्कि अपने सोने की आदत के हिसाब से तय कीजिए। आपको सोने से कम-से-कम दो घंटे पहले रात का भोजन कर लेना चाहिए। रात के भोजन के बाद टहलने जाने को बहुत अनिवार्य बताया गया है।

5. बहुत ज्यादा सोना :

शिशु और बच्चों को बहुत ज्यादा नींद की जरूरत होती है, जबकि वयस्कों को अधिकतम आठ घंटे की नींद चाहिए। उदाहरण के लिए, किसी स्वस्थ वयस्क के लिए मैं बीमारी या अत्यधिक कार्य या यात्रा की विशेष परिस्थितियों के अलावा, सात घंटे से ज्यादा सोने की सिफारिश नहीं करूंगा। कफ ऊर्जा के प्रभुत्ववाले लोगों को ज्यादा सोने की जरूरत पड़ती है। इस तरह से उनका संतुलन खत्म होने लगता है और अगर अवसर दिया जाए, तो वे अपना फुरसत का समय आराम करने और सोने में बिताना चाहते हैं। जरूरत से ज्यादा सोना न केवल वजन बढ़ाता है, बल्कि आपको सुस्त और धीमा भी बनाता है। सोना वजन बढ़ाने का एक मुख्य कारक है।

हल : सोने का समय बेहद अनुशासित रखिए। अगर आपको ज्यादा सोने की असहनीय तलब लगे या आप भोजन के बाद आलस महसूस करें या अलार्म न लगाने पर आप देर तक सोते रह जाते हैं, तो आपको अपनी स्वास्थ्य की स्थिति की जाँच करने की जरूरत है। खाने के बाद नींद आना इस बात का संकेत है कि आपका पाचन तंत्र पूरी तरह दुरुस्त नहीं है। सुबह देर तक सोना और जागने पर ताजगी महसूस न करना आपकी कफ ऊर्जा में असंतुलन का संकेत है। आपको दोनों ही मामलों में अपनी पाचक अग्नि को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। अपने भोजन में अदरक, लहसुन, अजवाइन, जीरा, काली मिर्च और पीपल को शामिल कीजिए। नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम कीजिए। अंत में अपनी नींद को उचित घंटों तक सीमित करने का प्रयास कीजिए। ये उपाय कफ को संतुलन करनेवाले हैं और इनकी सहायता से आप कफ के बुरे चक्र से निकल सकते हैं तथा अत्यधिक नींद से बच सकते हैं।

6. आयुर्वेदिक सिद्धांतों के हिसाब से असुंतलित माना जानावाला खान-पान :

कफ और वात बढ़ानेवाला आहार लेकर और अग्नि तत्त्व (पित्त) वाले रसों की कमीवाले पोषण से मोटापा बढ़ता है। दूसरे शब्दों में कहें तो शरीर की तीन मुख्य ऊर्जाओं का संतुलन असंतुलित आहार से बिगड़ जाता है। कफ पानी और पृथ्वी की ऊर्जा है, जो कि दोनों भारी तत्त्व हैं; वात वायु और आकाश की ऊर्जा है, जो शरीर में हर कहीं है और आकार में अहम भूमिका निभाती है, जबकि पित्त शरीर की ऊष्म-गतिकी को नियंत्रित करके इन दोनों ऊर्जाओं के बीच संतुलनकारक की भूमिका निभाता है।

हल : आयुर्वेदीय पोषण सिद्धांतों को समझ भोजन न केवल वजन घटाने के लिए, बल्कि अपने शरीर की ऊष्म-गतिकी को संतुलित करने के लिए भी कीजिए।  ( और पढ़ेविरुद्ध आहार : अनेक रोगों का मूल कारण)

7. पोषण में एस-कारक की कमी :

यहाँ पर ‘एस’ का तात्पर्य सेटिस्फैक्शन (संतुष्टि) से है। भोजन हमारी भूख मिटाता है, हमें पोषण देता है। और इसके अतिरिक्त, यह हमें अतिसूक्ष्म ऊर्जा भी देता है। मैं इसे भोजन का जीव तत्त्व या प्राण कहता हूँ। भोजन में कम या अधिक अतिसूक्ष्म ऊर्जा या प्राण तत्त्व होता है, जो कि इस पर निर्भर करता है कि खाद्य कहाँ और कैसे उगाया गया, उगते पौधे का अन्य जीवित तत्त्वों से संवाद कैसा है और बारिश, धूप, हवा और अन्य पर्यावरणीय कारक कैसे हैं। इसके अलावा, मसालों के तौर पर विभिन्न बीजों के इस्तेमाल से भी भोजन में अतिसूक्ष्म ऊर्जा बढ़ती है। बीजों के अंदर उगने की क्षमता होती है और उनके अंदर अतिसूक्ष्म ऊर्जा या प्राण ऊर्जा की प्रचुरता होती है। भोजन हमें पोषण देता है और भूख शांत करता है, जबकि उसकी प्राण ऊर्जा हमें अतिसूक्ष्म ऊर्जा देती है और एक तरह की संतुष्टि देती है। अगर हमारे भोजन से प्राण ऊर्जा गायब है तो हमें संतुष्टि नहीं मिलती या हम ऊर्जा से समृद्ध नहीं हो पाते और ज्यादा मात्रा में खाते चले जाते हैं। समय के साथ-साथ यह मोटापा बढ़ाने का कारण बनता है।

हल : अच्छी गुणवत्ता का भोजन खरीदना, जड़ी-बूटियों से उसे समृद्ध करना और एस-कारक बढ़ाने के लिए बड़े प्रेम से उसे तैयार करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। आपको भाँति-भाँति के खाद्य उत्पाद लेने चाहिए और यहाँ तक कि आप ज्यादा मसाले नहीं इस्तेमाल करते, तो भी भोजन में एस-कारक बढ़ाने के लिए सलाद या अन्य व्यंजनों में लौकी, सूरजमुखी आदि के बीज डालिए।

8. देश और काल के अनुसार पोषण न होना :

काल और देश आयुर्वेदीय खाद्य संस्कृति में दो बहुत महत्त्वपूर्ण कारक हैं। काल हमारी उम्र, दिन के समय और वर्ष के समय के अनुसार होता है। देश भौगोलिक स्थिति और पर्यावरण के अनुसार होता है। आयुर्वेदीय जीवन-शैली के लिए हमें देश और काल के अनुरूप जीना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर आप पृथ्वी के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में रहते हैं तो आपका भोजन अलग होगा, जबकि ठंडे देशों में आपको पोषण बदलना होगा। गरम जलवायु में, आपको अधिक नमक की जरूरत होगी और अगर आप ठंडे इलाकों में जाने पर भी ज्यादा नमक और मसालेदार भोजन करेंगे तो आपके अंदर पानी जमा होने लगेगा और आपका वजन बढ़ जाएगा। ठंडे देशों में आपको गरम देशों की तुलना में कुछ अधिक वसायुक्त भोजन और प्रोटीन की जरूरत होती है। अगर आप गरम देशों में भी यही आहार लेते हैं, तो गरमी के कारण आपका वजन बढ़ जाएगा, क्योंकि शरीर की ऊष्म-गतिक प्रणाली अलग तरह से काम करती है।
आपको दिन और वर्ष के समय और अपनी उम्र के हिसाब से अपने पोषण में बदलाव करने की जरूरत होती है। अगर आप युवावस्था में वही गुणवत्ता और मात्रा का आहार लेते हैं, जो आप बचपन में लेते थे, तो
आपका वजन बढ़ जाएगा। इसी तरह से, जब आप युवावस्था से अधेड़ावस्था में कदम रखते हैं, जिसमें वात प्रबल होता है और उसके अनुसार अपना आहार नहीं बदलते हैं, तो आपका वजन कुछ किलो ज्यादा बढ़ जाएगा, जिससे आपको छुटकारा मिलना मुश्किल होता है।

हल : प्रयास कीजिए कि आपका आहार देश और काल के अनुरूप हो। अगर आपको बार-बार एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना पड़ता है, तो आप संबंधित क्षेत्र के लोगों से मिलता-जुलता भोजन और आहार शैली अपनाइए। मौसम के हिसाब से भी अपना आहार बदलिए, दिन के हिसाब से अपना पोषण तय कीजिए और अपनी उम्र के हिसाब से खाइए। मैंने नीचे एक तालिका दी है, जिसमें उम्र के हिसाब से आहार और सावधानियों के बारे में बताया है। विभिन्न भोजनों की आयुर्वेदीय प्रकृति को दरशाने के लिए तालिकाएँ परिशिष्ट में दी गई हैं। जीवन के तीन विभिन्न चरणों में विभिन्न ऊर्जाओं की प्रबलता और भोजन तथा सावधानियों के सुझाव।

जीवन का चरण :-बाल्यावस्था ।
प्रबल ऊर्जा :-कफ ।
सुझाया गया भोजन :-मीठे और वसायुक्त भोजन को अदरक, लहसुन, जीरा, अजवाइन, केसर, काली मिर्च, तुलसी आदि से संतुलित करें। सब्जी सूप लेना चाहिए।
सावधानियाँ :-सामान्य चीनी के बजाय खांड का इस्तेमाल कीजिए। ज्यादा मीठे और वसायुक्त भोजन से परहेज कीजिए।

जीवन का चरण :-युवावस्था
प्रबल ऊर्जा :-पित्त
सुझाया गया भोजन :-ऊपर बताए मसाले हलकी मात्रा में लेने चाहिए। तरल पदार्थ ज्यादा लीजिए, सलाद और फल ज्यादा लीजिए।
सावधानियाँ :-गरमियों में शतपुष्प के बीज, लहसुन और केसर से परहेज कीजिए। नागदौन की चाय से। त्वचा की फूंसियों का उपचार कीजिए। भोजन में कड़वे स्वाद के भोजन अधिक-से-अधिक शामिल कीजिए।

जीवन का चरण:-अधेड़ और वृद्ध
प्रबल ऊर्जा :-वात
सुझाया गया भोजन :-मेथी, जीरा, अजवाइन, केसर और अदरक जैसे वात संतुलित करने वाले पदार्थ लीजिए। खाने की मात्रा कम कीजिए और रात में कम तथा हलके, किंतु गरम भोजन की आदत कड़ाई से डालिए। नमक कम लिया कीजिए।
सावधानियाँ :-जीवन के इस चरण का अवस्था इस्तेमाल भोजन कम लेने और पार्टियों तक में ज्यादा खाने की आदत से पूरी तरह से छुटकारा पाने के लिए कीजिए। रात के भोजन में बहुत कम नमक लीजिए। इलायची डालकर उबाल कर गरम पानी को दिन में पीजिए।

9. रस और मल का अनियमित संतुलन :

हम जो कुछ भी खाते हैं, वह शरीर में रस (भोजन का तत्त्व, जिसे शरीर सोख लेता है) और मल (वे तत्त्व, जिन्हें शरीर नहीं सोखता और जो विष्ठा के रूप में बाहर फेंक दिए जाते हैं) के रूप में विभक्त हो जाता है। कुछ मामलों में, रस और मल के बीच संतुलन बिगड़ जाता है। मल अनुचित अनुपात में बाहर निकला जाता है। अगर आप खाए गए भोजन की तुलना में मल कम उत्सर्जित करते हैं, तो आपका वजन बढ़ जाएगा। दूसरी ओर, अगर मल का उत्सर्जन अधिक है और रस के अनुपात में नहीं है, तो आपका वजन कम हो जाएगा। अगर असंतुलन की यह समस्या बरकरार रहती है तो व्यक्ति का वजन कम हो जाता है।

हल : रस और मल में संतुलन बनाने के लिए, दो सप्ताह तक पानी के साथ त्रिफला का उपचार लें| सही मल उत्सर्जन और कब्ज से पूरी तरह से मुक्ति सुनिश्चित करें। सुबह उठते ही एक गिलास गरम पानी पिएँ और कुछ योग या सैर करें। इससे मल उत्सर्जन दुरुस्त होता है। दिन में दो बार शौच जाने की आदत डालें।

10. बैठने का गलत तरीका और देर तक बैठना :

देर तक एक ही जगह और उलटे-सीधे ढंग से बैठे रहने से भी आपके शरीर के कुछ खास हिस्सों का वजन बढ़ सकता है। देर तक डेस्क पर काम करने के लिए बैठना और कंप्यूटर पर काम करते रहने से भी पेट के इर्द-गिर्द चर्बी इकट्ठी होती है। कुछ महिलाओं की जाँघों और नितंबों का वजन बढ़ने लगता है।
गलत आसन में बैठने से वात दोष होता है, जो कि वजन बढ़ने का एक कारण हो सकता है।

हल : जब देर तक बैठना हो तो हमेशा थोड़ी-थोड़ी देर में ब्रेक लेते रहें। बीच में शरीर को तानने और फैलानेवाले व्यायाम करते रहें। भोजन के बाद थोड़ा-बहुत जरूर टहलें। टहलने और चलने-फिरने की कमी सप्ताहांत तथा छुट्टियों में पूरा करें।

11. तमस (लालच, सुस्ती और थकान) वाली मानसिक स्थिति :

सोचने की प्रक्रिया रूपांतरण के तीन मूलभूत प्रकारों से गुजरती है—रजस, तमस और सत्व। रजस सक्रिय सिद्धांत है, तमस निष्क्रिय सिद्धांत है, जिसमें मन के वे रूपांतरण भी शामिल होते हैं, जो मन के विकास में बाधा डालते हैं। सत्व आंतरिक शांति और स्थिरता है। सत्व, रजस और तमस के बीच संतुलन का कारक है, जो आधुनिक दैनिक जीवन में सामान्य तौर पर प्रबल होता है। क्रोध, लालच, अत्यधिक मोह, आलस, ग्लानि जैसी भावनाएँ तमस की श्रेणी में आती हैं, क्योंकि ये व्यक्ति के मानसिक विकास में बाधा पहुँचाती हैं। लोभ या लालच अपने लिए अधिक-से-अधिक पाने की लालसा है। अधिक वजन के वर्तमान संदर्भ में इसके दो पहलू हैं। बहुत ज्यादा मात्रा में भोजन करना अधिक वजन और बीमारियों का कारण बनता है। कई लोग बढिया भोजन पाकर इतना ज्यादा खा लेते हैं, जो उनका पाचन तंत्र नहीं सँभाल पाता। जब उन्हें बढिया स्वादिष्ट भोजन मिलता है तो अपनी जीभ के लिए जरूरत से ज्यादा खा लेते हैं। लोभ का दूसरा पहलू यह है कि जो लोग धन कमाने में ज्यादा व्यस्त रहते हैं और इस व्यस्तता में उन्हें खाना पकाने और ताजा, संतुलित तथा ओजस बढ़ानेवाला भोजन करने के लिए भी समय नहीं मिलता, ऐसे में वे अस्वास्थ्यकर भोजन ग्रहण करते हैं, जो उनके ओजस को कम कर देता है और उनका वजन बढ़ा देता है।

हल : मन पर नियंत्रण रखिए और कभी भी ज्यादा मत खाइए। अगर आपको भोजन बहुत पसंद आ रहा है तो धीमी गति से खाइए और उसका आनंद लीजिए, लेकिन ध्यान रखिए कि आप ज्यादा न खा जाएँ। मन पर नियंत्रण हासिल करने के लिए एकाग्रता बढ़ानेवाले कुछ ध्यान अभ्यास कीजिए।

12. जीवन के पित्त चरण का अंत और अधेड़ावस्था का आरंभ :

आयुर्वेद के अनुसार, बाल्यावस्था में कफ प्रबल होता है, जबकि युवावस्था में पित्त। वृद्धावस्था में वात की प्रबलता होती है। (ऊपर दी गई तालिका देखें)। युवावस्था समाप्ति पर, 45-50 वर्ष की आयु के बीच हम धीरे-धीरे अधेड़ावस्था में प्रवेश करते हैं और हमारे अंदर वात ऊर्जा की प्रबलता होने लगती है। इसका मतलब है कि शरीर की ऊष्म गतिकी प्रणाली उम्र के साथ बदलती है। कम पित्त ऊर्जा कम पाचक अग्नि की सूचक होती है। इसलिए आपको उम्र के अनुसार अपनी आहार की आदतें बदलने की जरूरत होती है। युवावस्था में आमतौर पर ऊष्मीय ऊर्जा में बदलनेवाला पोषण इस उम्र में शरीर में संचित होने लगता है। इसके अतिरिक्त युवावस्था की तुलना में कम ऊर्जा के कारण, अधिकतर लोगों के चलने-फिरने और शारीरिक गतिविधियों में कमी आने लगती है। इस प्रकार, इस सबका नतीजा वजन बढ़ने के रूप में ही दिखता है।

हल : आपको उम्र के अनुसार अपनी भोजन संबंधी आदतें बदलने की जरूरत होती है। आपको नियमित रूप से कुछ शारीरिक व्यायाम भी करते रहना चाहिए। दावतों में बहुत कम ही खाया करें और ज्यादा तो कभी न खाएँ। अपने भोजन में विविधता बढ़ाएँ और मिश्रित सब्जियों, मिश्रित सलाद, विभिन्न तरह के मसालों को शामिल करें, जिनके बारे में अगले अध्याय में व्यंजनों में बताया गया है। जब हम युवा होते हैं, तो हमारा शरीर अनियमितताओं और अधिकता को आसानी से सहन कर लेता है और प्रकृति में वापस लौट आता है, हालाँकि युवावस्था के अंत में, शरीर का ओज कम होने लगता है और हमें अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है। संक्षेप में, विभिन्न घटकोंवाला भोजन नियमित रूप से ग्रहण करें, लेकिन ज्यादा कभी न खाएँ। व्यायाम और रसायन ग्रहण करने से शक्ति बनाए रखने में मदद मिलेगी और आपका वजन ज्यादा होने से रोकने में सहायता मिलेगी।

मोटापे की दवा : motapa dur karne ki ayurvedic dawa

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