Last Updated on July 22, 2019 by admin
समाधि क्या है ? : What Is Samadhi
समाधि शब्द का अर्थ है सम+अधि यानी | जब चित्त पूरी तरह से आत्मा में समाहित हो जाता
है- तब यह अवस्था समाधि कहलाती है। इसमें केवल ध्येय का ही भान रहता है। जब ध्याता व ध्यान का स्वरूप शून्य हो जाता है तब वह अवस्था समाधि कहलाती है। साधारण शब्दों में कहें तो | धारणा से ध्यान व ध्यान से समाधि की स्थिति में स्थित हुआ जाता है।
धारणा ,ध्यान और समाधि में अंतर : difference between dharana dhyana and samadhi
ध्यान व समाधि में अन्तर यह है कि ध्यान की अवस्था में ध्याता (ध्यान करने वाला), ध्येय (जिसका ध्यान किया जा रहा है) तथा ध्यान तीनों बने रहते हैं लेकिन जब ध्याता तथा ध्यान सर्वथा शून्य होकर केवल ध्येय ही भासता रहता है तब ऐसी अवस्था समाधि कहलाती है। जिस तरह अत्यन्त तप्त हुआ लोहे का गोला अग्नि स्वरूप ही दिखलायी देता है, अग्नि से भिन्न नहीं दिखता, वैसी ही अवस्था समाधि में होती है। ध्यान में ध्याता, ध्यान व ध्येय- तीनों बने रहते हैं, समाधि में केवल ध्येय ही बना रहता है।
धारणा – जब आप अपने मन को 12 सेकेण्ड्स तक आत्माकार वृत्ति में स्थिर कर सकें तो यह अवस्था धारणा कहलाती है।
ध्यान – मन को 12×12 अर्थात् 144 सेकेण्ड्स तक आत्माकार वृत्ति में स्थिर कर सकें तो यह अवस्था ध्यान कहलाती है। ( और पढ़े –ध्यान के फायदे )
समाधि – जब मन को 12x12x12 सेकण्ड्स अर्थात् 28 मिनिट 8 सेकण्ड् तक आत्माकार वृत्ति में स्थिर कर सकें तब यह अवस्था समाधि कहलाती है।
समाधि में सहायक साधन :
समाधि में सहायक है- ईश्वर प्राणिधान। इसका अर्थ ईश्वरीय शक्ति को प्रत्यक्ष तथा निश्चित रूप से मन में धारण करना । ईश्वर प्राणिधान का साधन है – पूर्ण समर्पण का मार्ग । बिना ईश्वर प्राणिधान के समाधि में पहुंचना सम्भव नहीं है। ईश्वर प्राणिधान का फल ही समाधि है। ईश्वर प्राणिधात का सरल अर्थ है- सभी कार्यो को परमात्मा में समर्पण करना अथवा कर्मफल का त्याग- प्रथम पाद में महर्षि पतंजलि ने ईश्वर प्राणिधान का अर्थ भक्ति विशेष बतलाया है जहां भक्ति-विशेष होगी वही कर्मों का सर्मपर्ण तो अपने आप ही हो जाएगा।
समाधि के प्रकार : types of samadhi in hindi
समाधि के भेद- समाधि दो प्रकार की होती है- (1) सम्प्रज्ञात समाधि (2) असम्प्रज्ञात समाधि।
(1) सम्प्रज्ञात समाधि (सबीज समाधि, सविकल्प समाधि) : samprajnata samadhi in hindi
जब ध्याता तथा ध्यान दोनों लुप्त हो जाते हैं तथा चित्त वृत्ति आत्माकार बनी रहती है- ऐसी अवस्था का नाम सम्प्रज्ञात समाधि है। इसमें राजस और तामस वृत्तियों का निरोध हो जाने से केवल सात्विक वृत्ति का प्रकाश होता रहता है तथा ध्येय विषय का पूर्ण साक्षात्कार उदित होता है।
सम्प्रज्ञात का अर्थ है- सम यानी सम्यक | (संशायादि रहित त्वेन ) प्र. यानी प्रर्कषेण, ज्ञात मायने साक्षाकृत- सम्प्रज्ञात समाधि।
“ता एव सबीजः समाधि”
– योग सूत्र 1/46
पतंजलि कहते हैं- सम्प्रज्ञात समाधि वह समाधि है जो विर्तक, विचार, आनन्द और अस्मिता के भाव से युक्त होती है। इसे सबीज समाधि भी कहते है।
इस आधार पर सम्प्रज्ञात समाधि के भी चार भेद होते हैं|
(A)वितर्कानुगत-पांचों स्थूल भूत तथा स्थूल इन्द्रियां इसके विषय हैं अर्थात् किसी स्थूल विषय या स्थूल इन्द्रिय पर चित्त को स्थिर कर उसके दिव्या-दिव्य स्वरूप का साक्षात्कार किया जाता है। इसमें संशय व विपर्यय नहीं रहते हैं। इसके भी दो भेद होते हैं- (1) सवितर्क यानी शब्द, अर्थ व ज्ञान की भावना सहित और (2) निर्वितर्क यानी शब्द, अर्थ तथा ज्ञान की भावना से रहित ।
(B)विचारानुगत-इसमें सूक्ष्म भूतों का, सूक्ष्म इन्द्रियों का तथा तन्मात्राओं का साक्षात्कार किया जाता है। इसके भी दो भेद होते हैं
(1)सविचार यानी दिशा, काल व धर्म की भावना से युक्त ।
(2) निर्विचार यानी दिशा, काल तथा धर्म की भावना से रहित।
(C) आनन्दानुगत- इसमें ‘अहमस्मि’ इस अहंकार वृत्ति द्वारा आनन्द का अनुभव होता
(D) अस्मितानुगत-‘अस्मिता’ अहंकार से भी सूक्ष्म होती है। अहंकार (मैं) छूट कर केवल अस्मि (हूं) शेष रह जाता है।
ये चारों सम्प्रज्ञान समाधि कहलाती हैं। यह समाधि और अपर वैराग्य से प्राप्ति होती हैं।
(2) असम्प्रज्ञात समाधि (निर्बीज या निर्विकल्प समाधि) : asamprajnata samadhi in hindi
सम्प्रज्ञान समाधि के बाद विवेक ख्याति का उदय होता है। प्रकृति व पुरुष को पृथक-पृथक समझ लेना ही विवेक ख्याति
विवेक ख्याति के बाद परवैराग्य का उदय होता है। उसके उदय होने पर विवेक ख्याति का निरोध हो जाता है तभी असम्प्रज्ञात समाधि सिद्ध होती है।
असम्प्रज्ञान समाधि में चित्त में कोई वृत्ति नहीं रहती है- ‘योगश्चित्तवृत्ति निरोधः’ (समाधि पादः-1/2) में इसी अवस्था का वर्णन किया है। इसे ही ‘व्यास भाष्य’ में योग समाधि कहा गया है। एकाग्रवृत्ति वाला ही इस समाधि की ओर गति कर सकता है।
असंप्रज्ञान समाधि के आगे ‘कैवल्य’ की स्थिति प्राप्त होती है। इस समय पुरुष अपने शुद्ध रूप में स्थित हो जाता है। जैसा कि महर्षि पतंजलि ने प्रथम पाद के सूत्र संख्या 3 में कहा है
‘तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम् (योग सूत्र 1/3)
अर्थात् तब (असम्प्रज्ञात समाधि में) जीवात्मा की अपने तथा परमात्मा के स्वरूप में अवस्थिति होती है यानी वह अपने तथा ईश्वर के स्वरूप को ठीक-ठीक जानता है तथा इस अवस्था में समस्त दुःखों की निवृत्ति एवं नित्यानन्द की प्राप्ति होती है। समस्त संसार नष्ट हो जाते है व इसे ही निर्बिज समाधि कहते हैं।
समाधि कैसे प्राप्त करें इसका क्रम : how to do samadhi in hindi
इस प्रकार सम्पूर्ण रूप से निर्बिज समाधि का क्रम इस प्रकार है:
1. योगङ्गो के अनुष्ठान से अपर वैराग्य की प्राप्ति।
2. अपर वैराग्य से सम्प्रज्ञात समाधि की प्राप्ति।
3. सम्प्रज्ञात समाधि से अध्यात्म प्रसाद तथा ऋतुम्भरा प्रज्ञा की प्राप्ति।
4. सम्प्रज्ञात समाधि में सबसे ऊंची अवस्था विवेकख्याति की प्राप्ति।
5. विवेक ख्याति में भी विरक्त होने पर धर्ममेघ समाधि की प्राप्ति।
6. धर्ममेध समाधि की पराकाष्ठा ही परवैराग्य है।
7. पर वैराग्य से ऋतुम्भरा प्रज्ञाजन्य संस्कारों का नाश।
8. समस्त संस्कारों के नाश से निर्बीज समाधि की प्राप्ति ।
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