Last Updated on November 15, 2019 by admin
★ भारतवर्ष में योग का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। मनुष्य को आध्यात्मिक उन्नति का पूर्ण अधिकारी बनाने के लिये योग का साधन परम आवश्यक है क्योंकि उससे मन स्थिर व उन्नत तथा शरीर स्वस्थ होकर आध्यात्म मार्ग पर चलने के योग्य होता है। यही कारण है कि प्राचीनकाल से लेकर योग की क्रियाएँ आज तक यहाँ पर किसी न किसी रूप में वर्तमान है।
★ पतंजलि महाराज के योग सूत्रों में लिखा है कि योग क्रियाओं के फलस्वरूप ऐसी-ऐसी अद्भुत व अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं कि साधारण मनुष्य उन पर सहसा विश्वास ही नहीं कर सकता। योगियों के सम्बन्ध में बड़ी आश्चर्यजनक बातें सुनने में आती है। आजकल भी ऐसे योगी लोग हैं जो असम्भव बातों को सम्भव करके दिखला सकते हैं। वास्तव में योगी अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त करके सब कुछ कर सकते हैं।
★ सिद्धियों की बात जाने दीजिए योग के प्रथम व आरम्भिक साधन यम, नियम आदि के साधन द्वारा ही मनुष्य बहुत कुछ कर सकते हैं। जैसे ‘अहिंसा प्रतिष्ठिायाँ तत्सन्निधौ सर्व वैर त्यागः’।
अर्थात् अपने अन्त:करण में अहिंसा धारण करने से उससे सब प्रकार के जीवधारी बैरभाव (हिंसा भाव) को त्याग देते हैं। इसी प्रकार ‘अस्तेय प्रतिष्ठिायाँ तत्सन्निधौ सर्वरत्नोपस्थितः’ अर्थात् अस्तेय को स्थापित करने से साधक के समीप सभी प्रकार के वैभव उपस्थित होते हैं।
★ सिद्धियों के द्वारा वह बड़े-बड़े काम कर सकता है। बगैर तार और रेडिओ के दूर-दूर के समाचार जानना एक साधारण सी बात है। योगी लाहिड़ी जिनकी समाधि बनारस में है उनके सम्बन्ध में वहाँ के प्रतिष्ठित लोग जानते हैं कि उन्होंने ध्यान द्वारा एक अंग्रेज़ अफ़सर की स्त्री का समाचार उसके पति को ज्यों का त्यों थोड़ी देर ही ध्यान लगाकर बतला दिया था।
★ बनारस के तैलंग स्वामी जिन्होंने कि २८० वर्ष की आयु में शरीर छोड़ा उनके अनेक अद्भुत चमत्कारों को भी बनारस के लोग भली भाँति जानते हैं। | जिन बीमारियों में अच्छे-अच्छे डाक्टर व उनकी दवाएँ व इन्जेक्शन फेल हो जाते हैं उनको योगी केवल झाड़ फुकादि द्वारा बात की बात में अच्छा कर देते हैं।
★ पूना के योगेश्वर ज्ञानदेव जी के केवल छू देने से ही एक भैस वेदों की ऋचायें आदि कहने लगी थी और दीवाल चलने लगी थी। उन्होंने चौदह वर्ष की अवस्था में जो गीता की व्याख्या ज्ञानेश्वरी में की है उसी से उनकी अलौकिक शक्ति का पता लगता है। बाईस वर्ष की अवस्था में तो उन्होने समाधि ही ले ली थी।
★ आज भी भारतवर्ष के पहाड़ों व जंगलों में ऐसे-ऐसे योगी मौजूद हैं जिनमें इस प्रकार की चमत्कार पूर्ण शक्तियाँ हैं। योगी काकभुषुण्ड चिरंजीवी कहे जाते हैं।
★ पुरुष ही क्या बल्कि यहाँ की महिलाएं भी कितनी योगिनी होती थीं इसकी एक कथा का महाभारत में वर्णन है कि एक ऋषि पत्नी को जब यह ज्ञान हुआ कि वह शीघ्र ही विधवा हो जायगी तब उस सती ने जो धारणा की उससे सूर्यदेव का उदय होना ही रुक गया। सूर्योदय का समय निकले चौदह घन्टे बीत गये परन्तु सूर्य भगवान् के दर्शन नहीं हुए। तब महर्षि वशिष्ठ जी ने आकर उनसे कहा कि सूर्योदय होना क्यों रोकती हो? हम तुम्हारे मृत पति को संजीवन मंत्र से पुनः जीवित कर देंगे। अतएव सूर्यदेव को उदय होने दो, तब उस सती ने मनः संयम को छोड़ा।
★ अपने पूज्य पति भगवान् शंकर जी का अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा अपमान किए जाने पर सती जी ने अपने शरीर से योगाग्नि प्रज्वलित कर अपना शरीर त्याग दिया था।
★ भक्त योगिनी मीराबाई को राणा ने जहर पिलाकर व सर्पों से कटवाकर (दंश) उनके मारने के अनेक प्रयत्न किए परन्तु वह उनका बाल भी बाँका न कर सका था।
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★ ईश्वरीय कृपा, सद्गुरू के आशीर्वाद व पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण जिन साधकों को योग साधन में सफलता प्राप्त हो जाती है। उनको अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं जिनको लोग चमत्कार कहते हैं, जिनको अपने धार्मिक ग्रन्थ तथा ऋषियों, मुनियों व महान् पुरुषों के जीवन चरित्र पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है वह इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि योगाभ्यास के द्वारा हमारे पूर्वजों को ऐसी-ऐसी शक्तियाँ प्राप्त थी जिनकी आजकल लोग कल्पना भी नहीं कर सकते।
★ आजकल लोग रेडियो, बे तार के तार, हवाई जहाज, एक्सरे आदि को देखकर इसे आविष्कारों का जमाना अथवा उन्नति का युग कहते हैं, परन्तु या तो उनको इस बात का पता नहीं या वह इस बात को भूल जाते हैं कि हमारे पूर्वजों ने जो-जो अद्भुत, विलक्षण, आश्चर्यजनक तथा अलौकिक आविष्कार किए थे उनके मुकाबले में आजकल के आविष्कार केवल छाया मात्र है, जिनको विदेशी लोगों ने भारतवासियों की उदारता, पराधीनता व समय परिर्वतन के कारण अनभिज्ञता या उदासीनता अथवा छल कपट आदि द्वारा किसी न किसी प्रकार प्राप्त करके उन्हीं को दूसरे रूप में हमारे सामने उपस्थित कर दिया है।
★ हमारे पूर्वजों का ध्यान अपनी शक्तियों का विकास, सांसारिक वस्तुओं अर्थात् नये-नये कल कारखाने तथा अन्य आविष्कारों द्वारा लाखों करोड़ों व्यक्तियों के स्वतन्त्र धन्धे छीनकर व उनको उनमें काम करने के लिए बाध्य करके इनेगिने आदमियों को फायदा पहुंचाने की अपेक्षा आत्मोन्नति व ईश्वर प्राप्ति में ही रहता था।
★ पुरानी बातों को जाने दीजिये जगद्गुरू शंकराचार्य को ही ले लीजिये। जिस समय उनके साथ शास्त्रार्थ करने में श्री मंडन मिश्र हार गये उस समय उनकी धर्मपत्नी के यह कहने पर कि वह मिश्न जी की अर्धांगिनी हैं अतएव जब तक उनको भी शास्त्रार्थ में न हरा दिया जायेगा उस वक्त तक मिश्र जी को हारा हुआ नहीं माना जा सकता। इस बात को मान लेने पर जब मिश्र जी की धर्मपत्नी स्वामी जी से कोकशास्त्र पर विवाद करने लगीं तब बाल ब्रह्मचारी होने के कारण इस विषय का कुछ भी ज्ञान न होने से राजा सुधन्वा की रानी से जो कि इस विषय में बड़ी प्रवीण थी यह ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन्होने राजा सुधन्वा के मृतक शरीर में परकाय प्रवेश क्रिया द्वारा प्रवेश किया था और रानी से ज्ञान प्राप्त करने के बाद वह मिश्र जी के घर में आकाश मार्ग से गये थे। इसके अलावा उन्होंने एक मर्तबा नर्मदा जी के जल का बहना रोक दिया था।
★ भगवान् बुद्धदेव को अलौकिक यौगिक ऋद्धि सिद्धियाँ प्राप्त थीं। उनके शिष्य श्री पिंडोल भारद्वाज व मौदगल्यायन आदि के यौगिक चमत्कारों के सम्बन्ध में बौद्धिक ग्रन्थों में अनेकों उदाहरण मिलते हैं। धम्मपद के १८० (१४-२) श्लोक में पिंडोल भारद्वाज के आकाशगमन व पहाड़ फटने पर उसमें से प्रकट होने आदि के कई वृतांत दिये हैं। धम्मपद में (श्लोक १७५-१३/९) में लिखा है कि तीस भिक्षु जो कि विदेश से नेतवन में भगवान बुद्ध के दर्शन करने के लिये आकाश मार्ग से आए थे और वार्तालाप करके उसी तरह शून्यपथ से चले गए थे। बुद्ध जी के आनन्द नामक शिष्य जो कि बाहर इस प्रतीक्षा में थे कि जब वे लोग बुद्ध जी से बातचीत करके बाहर आवें तब वह बुद्ध जी के पास जावें परन्तु अधिक समय बीत जाने पर भी जब वे लोग बाहर न निकले तब आनन्द जी को अन्दर जाकर उनको वहाँ न देख बुद्धदेव जी से पूछने पर मालूम हुआ कि वे लोग शून्य पथ से चले गए। बुद्धदेवजी ने बतलाया कि जो लोग चतुर्विध ऋद्धि’ का विकास करते हैं वे हंस की तरह शुन्य मार्ग से जा सकते हैं।
★ नाथ सम्प्रदाय के योगियों की अनेक आश्चर्यजनक कक्षाएँ है, जो कि हिन्दी भाषा में लिखी हुई है। गुरु गोरखनाथ, मीननाथ लुईपाद, कान्हपाद आदि की भी कथाएँ बंगला साहित्य में मिलती हैं। इनमें से श्री हरप्रसाद शास्त्री कृत ‘बौद्ध गान औ दौहा’ नामक पुस्तक बंगीय साहित्य परिषद् द्वारा प्रकाशित की गई है।
★ यद्यपि योगियों को ऐसे चमत्कारों को सर्व साधारण को बतलाने के लिए उनके गुरूओं आदि की आज्ञा नहीं होती, साथ ही उनको दिखलाने से उनकी शक्ति का अपव्यय होता तथा लोगों से संसर्ग आदि बढ़ता है अतएव विशेष अवसरों के सिवाय वह अपनी शक्ति और सिद्धियों का उपयोग नहीं करते।
★ पहले की बातें जाने दीजिए आजकल भी हिमालय आदि पर्वतों पर ऐसे त्रिकालज्ञ महात्मा व योगी मौजूद है जो भूत, भविष्य और वर्तमान की बातें अक्षरशः बतला देते है। वे लोग योग बल से बर्फ की चट्टानों पर पड़े रहते हैं, नदियों व झरनों के बर्फ सदृश्य पानी से बराबर स्नान करते है। बिना अन्न जल ग्रहण किए ब्रह्मरंध्र से स्राव होने वाले अमृत बिन्दु से सदैव तृप्त रहते हैं। उनका सुन्दर व सुडौल शरीर देखकर लोग आश्चर्य चकित रह जाते हैं।
★ खेचरी मुद्रा द्वारा योगी हवा में उड़ सकता है। योग की गुटका द्वारा योगी पलक मारते ही कहीं भी पहुँच सकता है। हम अपने दूरस्थ सम्बन्धियों का समाचार जानने के लिए तार व पत्र भेजते हैं परन्तु योगियों को यह सिद्धि प्राप्त होती है कि वे ध्यान द्वारा बात की बात में संसार के किसी भी स्थान का हाल बतला सकते है और भयानक से भयानक रोग जहाँ बड़े-बड़े डाक्टरों की दवाएँ, इन्जेक्शन व दिमाग काम नहीं देते, योगी लोग दृष्टि, स्पर्श व मंत्र से दूर कर देते है। रोगी ही क्या वे मरे आदमी को ज़िन्दा कर सकते हैं। आज भी भारतवर्ष में ऐसे कितने ही योगी मौजूद हैं जिनको इस तरह की सिद्धियाँ प्राप्त है |
★ ऋद्धियों सिद्धियों के सम्बन्ध में शंकराचार्य जी और सुरेश्वर जी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वास्तव में सर्वात्मा या पूर्णाहत्ता ही महा विभूति हैं’ बौद्धाचार्यों का कहना है कि स्रोतआपन्न, सकृदागामी और अन्तर्गामी अवस्था के बाद जब अर्हद् भाव का आविर्भाव होता है तब अर्थ, धर्म, निरुक्ति और प्रतिभान वृद्धि, दिव्य श्रोत्र, पर चित्त ज्ञान, अपने वे दूसरों के परजन्म की स्मृति और दिव्य दृष्टि का उदय होता है |
★ ‘यौगावतारोपदेश’ नामक ग्रन्थ के श्लोक ७ में लिखा है कि ‘संज्ञा वेदित निरोध’ अवस्था प्राप्त होने पर योगी में उपर्युक्त अभिज्ञाओं का आविर्भाव होता है। इनका ज्ञान होने के कारण ही बुद्ध जी को ‘षड़भिज्ञ’ भी कहते थे। पातंजलि दर्शन में भी इस सम्बन्ध में अनेकों बातें दी गई हैं।
Himalayan yogi akshara ji ne master shri akarshana ( you tube) ko jo gupt durlabh vidya sikhai wo phir kaise publicly batate hai , sare gupt hindu vidya jo aaj tk hindu hrishi muniyo babao ne bhi nhi bataya ?