Last Updated on August 14, 2019 by admin
क्षमाशील हो तो सन्त दादू जैसा – प्रेरक प्रसंग :
सन्त दादू शहर से दूर एक जंगल में ठहरे हुए थे । उस क्षेत्र के लोगों को पता चला तो सभी सत्संग करने हेत जंगल में ही आने लगे। शहर कोतवाल को उनके शुभागमन का सन्देशा मिला तो उनके मन में भी सन्त के दर्शन की इच्छा उत्पन्न हुई । वह उनकी ख्याति कितने ही व्यक्तियों के मुँह सुन चुके थे । अत: घोड़े पर सवार चल पड़े जंगल की ओर ।
वहाँ कोई सुन्दर-सी कुटिया तो बनी न थी और न संकेत के लिए किसी प्रकार के बोर्ड लगे थे । काफी दूर आने पर एक दुबला पतला व्यक्ति रास्ते की झाड़ियाँ साफ करता दिखाई दिया । वह बड़ी मुस्तैदी से झाड़ियों को काटने में लगा था । जैसे ढेर इकट्ठा हो जाता किनारे के किसी गड्ढे में फेंक देता । शरीर पर वस्त्र के नाम पर केवल एक लंगोटी थी । कोतवाल ने सोचा शायद सन्त का पता इस व्यक्ति से चल जाये उन्होंने उसके पास आकर घोड़े को रोक लिया और पूछा- ऐ भिखारी ! तूने संत दादू की कुटिया देखी है ।
दादू ने कोतवाल की ओर देखा और चुपचाप अपने कार्य में लगे रहे । अब कोतवाल घोड़े से नीचे उतर चुका था । उसे लगा कि सामने वाला व्यक्ति बहरा है अतः चिल्लाकर पूछा- मूर्ख !
क्या तू दादू को बता सकता है ? इतना सुनकर भी दादू ने उसकी ओर नहीं देखा । वे झाड़ियाँ काटने के काम में लगे रहे।
कोतवाल को गुस्सा आ चुका था । घोड़े को हाँकने वाला चाबुक उसके हाथ में था । उसी से कोतवाल ने पिटाई शुरू कर दी । दादू के शरीर में नीले निशान पड़ चुके थे । फिर भी उसने कुछ न कहा । कोतवाल गाली देता हुआ गुस्से में चिल्लाया- ‘बेवकूफ’ । एक भी शब्द नहीं बोल सकता । गूंगे और बहरे होने के साथ क्या पागल है । इतना कहकर कोतवाल ने चाबुक का डण्डा उसके सिर पर दे मारा । उसका सिर लहूलुहान हो गया । रक्त की धारा प्रवाहित होने लगी । दादू को ऐसी दयनीय स्थिति में वहीं पड़ा छोड़ कर वह आगे बढ़ गया ।
थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर उसे एक किसान जाता हुआ दिखाई दिया । उसे रोककर कर कोतवाल ने दादू का पता पूछा ! उसने कहा-‘मैं अभी सन्त से ही मिल कर आया हूँ । ऐसा लगता है कि आप उन्हें पीछे ही छोड़ आये हैं । दुबले पतले शरीर वाला, लंगोटी धारी, मार्ग की काटेदार झाड़ियों को साफ करने वाला और कोई व्यक्ति नहीं सन्त दादू हैं।’
कोतवाल ने चौंकते हुए पूछा- “वह दुबला-पतला व्यक्ति दादू है । वह तो मजदूर की तरह झाड़ियाँ काट रहा था ।”
वही तो महात्मा दादू हैं । आप उन्हें पीछे छोड़ आये । कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता । उन्होंने देखा बरसात में झाड़ियों से सारा मार्ग अवरुद्ध हो गया है और यात्रियों को बड़ी कठिनाई होती है । अत: बचे हुए समय में इस कार्य को ही करना ठीक समझ कर लग गये इसमें ।’
कोतवाल घोड़े को पीछे की ओर मोड़कर उस स्थान पर आये जहाँ एक व्यक्ति को गूंगा-बहरा और पागल समझकर पीटा था । अब उस व्यक्ति के सिर में पट्टी बंधी हुई थी। पास में जाकर घोड़े से नीचे उतर पड़े । और हाथ जोड़ते हुए बड़े विनम्र शब्दों में बोले- ‘आप, क्या आपको सन्त दादू कहते हैं ?’
दादू ने सहज भाव से उत्तर दिया- ‘हाँ ! इस शरीर को लोग दादू के नाम से ही जानते हैं।’
अब कोतवाल उनके चरणों में पड़ा आँसू बहा रहा था । अपनी करनी पर बार-बार पछता रहा था । उसने बड़ी दीनता भरी आवाज में कहा- महाराज ! मुझे क्षमा कीजिये । मैं तो आपको गुरु बनाने की इच्छा से आया था ।
दादू ने बड़े स्नेह से उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया । सन्त दादू ने क्रोध को जीतकर धर्म की राह पर चलने वाले व्यक्तियों को प्रेरणा देने की शक्ति प्राप्त की थी। इसी तरह की अन्य घटना है-
चमत्कारी ताबीज :
‘महाराज आप कोई ऐसा वशीकरण मन्त्र या कवच दीजिये जिससे मेरा पति वश में हो जाय’– सन्त दादू दयाल के पास एक सम्भ्रान्त मुस्लिम परिवार की महिला आई ‘दादू ने कहा- बेटी मैं कोई तन्त्र-मन्त्र नहीं जानता । ईश्वर का विश्वास ही मेरी सबसे बड़ी शक्ति है ।’
स्त्री ने दादू के पैर पकड़ लिए और कहने लगी नहीं स्वामी जी ! ऐसा नहीं हो सकता कि आप कोई तन्त्र मन्त्र नहीं जानते हों । आप मुझे इस कठिनाई से नहीं उवारेंगे तो मैं मर जाऊँगी ।’
दादू ने उसकी कठिनाई का युक्तिपूर्ण निराकरण ढूँढ़ने के लिए स्वयं परिस्थिति का अध्ययन करना चाहा । स्त्री से दूसरे दिन उसके पति को बुलाकर साथ लाने के लिए कहा दूसरे दिन दोनों साथ आये । दादू ने स्थिति का अन्दाज लेने के लिए आदमी से कुछ प्रश्न पूछे । पता लगा कि- ‘स्त्री पति के कुल से गरीब घर की है । विवाह पूर्व उसकी सेवाभावना पर रीझ कर उस आदमी के पिता ने लड़की को अपनी पुत्रवधू बना लिया था । स्त्री एकदम सम्पन्न और सुखी वातावरण में आ गयी । जीवन स्तर जैसे ही थोड़ा ऊँचा उठता है, सामान्य लोगों में अहंकार, घमण्ड की भावना धीरे-धीरे घर कर लेती है और परिणाम यह होता है कि एक-एक कर सभी सद्गुण विदा हो जाते हैं तथा व्यक्ति घृणा और तिरस्कार का पात्र बन जाता है ।’
इसी प्रकार की परिस्थितियाँ उक्त परिवार में घटी थीं फलस्वरूप पहले की तुलना में प्यार व मान कम हो जाने के कारण युवती का मन उद्विग्न हो उठा था ।
सन्त दादू ने परिस्थिति का भली-भाँति अध्ययन कर स्त्री को अलग ले जाकर एक लिखा हुआ कागज का पुर्जा दिया और कहा कि- इसका ताबीज बनाकर अपने गले में पहनना तथा इस यन्त्र को सिद्ध करने के लिए अपने पति की खूब सेवा करना ।
मुस्लिम दम्पत्ति चले गये । यन्त्र की साधना के लिए स्त्री अपने पति की खूब सेवा करने लगी और अन्तत: वह प्रसन्न हो गया । वह भी अपनी पत्नी को पूर्ववत् प्रेम करने लगा । स्त्री अपनी सेवा निष्ठा के कारण पहले से भी ज्यादा घर के लोगों की प्रेम भाजन हो गयी । दादू दयाल का यंत्र अपना चमत्कारी प्रभाव दिखा गया।
एक दिन ही बात में स्त्री ने उस यन्त्र और साधना की चर्चा अपने पति से कर दी पुरुष ने कौतूहलवश यन्त्र खोलकर देखना चाहा तो स्त्री ने मना कर दिया और कहा कि उस सन्त को यथेष्ट दक्षिणा दिए बगैर ताबीज गले से नहीं उतारूँगी ।
दक्षिणा की व्यवस्था की गयी । अपने नौकरों और रिश्तेदारों के साथ सब लोग दादू दयाल के पास पहुंचे । सन्त तो एक क्षण यह जुलूस देखकर स्तम्भित रह गये और स्त्री ने उनका ताबीज सिद्ध हो जाने की बात बताई तो सारी बात समझ गये ।
यहाँ सन्त ने सोचा कि लोग इस प्रकार ताबीजों और यन्त्रों के चक्कर में फँस जायेंगे तो जो बात अपना प्रभाव करती है उस सेवा साधना की उपेक्षा होने लगेगी इसलिए सब बातें स्पष्ट कह देना ही उचित समझा।
दादू ने कहा- पर उस यन्त्र में कोई खास बात नहीं लिखी । मैंने तो तुमसे जो कहा था वही शब्द उस पुर्जे में भी लिखे हैं । इतना कहकर सन्त ने ताबीज में से कागज का पुर्जा खोलकर पढ़ा-सेवा साधना से भगवान् भी वश में हो जाता है।
वस्तुतः किसी तन्त्र व मन्त्र के पीछे मनुष्य की अपनी संकल्प शक्ति काम करती है । यहाँ भी उस स्त्री के मन की शक्ति ही काम कर रही थी । वह समझ रही थी कि ताबीज की सामर्थ्य से यह सब हुआ है । इस महिला की सेवा साधना का ही सुपरिणाम था कि उसका पति तथा उसके परिवार के सदस्य उससे प्रसन्न रहने लगे थे । सही अर्थों में यह सेवा साधना ही व्यक्ति की लोकप्रियता का आधार होता है।
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