Last Updated on September 8, 2019 by admin
आँखों से आँसू क्यों निकलते हैं ? :
पलकों से दुलकती मोती-सी बूंदों के रूप में आँसू न जाने कितनी अनकही कह जाते हैं। गहरा दरद
और गहरी खुशी आँसू बनकर छलकते हैं। आँसू अपार दुःख, अगाध पश्चात्ताप और अकथनीय प्रेम के सच्चे संदेशवाहक हैं। इनकी भावनात्मक सामर्थ्य प्रबल होती है। जिसकी अभिव्यक्ति वाणी कहने-करने में असमर्थ होती है, आँसू की दो बूंदें उसे करने में सफल हो जाती हैं। इसके इस प्रभाव के कारण इसे अस्त्र-शस्त्र के रूप में भी प्रयोग किया जाता रहा है। साहित्यकार अपने श्रृंगार और विरह वर्णन में इसका उपयोग करते हैं। वैज्ञानिक इसकी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक दृष्टि की ओर देखते हैं।
आँसू है जीवन का अविच्छिन्न अंग :
छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद ने तो आँसू पर महाकाव्य ही रच डाला। उन्होंने आँसुओं के न जाने कितने रूपों को अपनी काव्यात्मक भावधारा में सँजोयासँवारा है। आँसुओं के समंदर में डूबते-उतराते गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए कहते हैं कि मेरा हृदय आँसुओं से भरी कल की रात बीतने पर आज कुछ इस तरह मुस्कराता है जैसे-कोई भीगा पेड़ बारिश के थमने पर सूरज के उजाले में जगमगा उठा हो। रोने से आँसुओं का गहरा तादात्म्य है। रोएँ और आँसू न निकलें, ऐसा संभव नहीं है। हाँ, रोने से गिरते इन आँसुओं का प्रभाव अलग-अलग हो सकता है। इस संदर्भ में शेक्सपीयर का कहना है कि आँसुओं में दरद को बहा देने की अपार सामर्थ्य होती है।
आँसू हरेक के जीवन का अविच्छिन्न अंग है। आज की दुनिया बदल गई है, इनसान की गति-प्रगति की कहानी भी दिलचस्प है। समय के साथ विज्ञान ने कितने ही तिलिस्म तोड़े हैं। अनुभूति के नजरिए बदले हैं, परंतु मनुष्य की आँखों से झरने वाले तरल आँसुओं का जादू अब भी बरकरार है; क्योंकि इसका सीधा संबंध व्यक्ति की भावना के गहरे तल से है और मनुष्य कभी-न कभी इस अतल तल को स्पर्श कर भावुक होता है।
आँखों के लिये आँसू की अहमियत :
आँसुओं का रिश्ता एक ओर जहाँ मन और भाव से है तो दूसरी ओर इसका तार आँखों से जुड़ा है। आँसू के बिना तो आँखों का वजूद ही नहीं है, आँसू आँखों को देखने जैसे क्रियाकलापों में सहयोग करते हैं। आँसू के कार्य व्यापार को वैज्ञानिकों ने बड़ी ही कुशलता के साथ देखा परखा है।
आँखों के लिए आँसू की बड़ी अहमियत है। आँसुओं की वजह से ही पलकों और आँखों के बीच की
आवश्यक नमी बनी रहती है, जिससे आँखें चलायमान होती हैं। आँसू आँखों को स्वच्छ-साफ बनाए रखते हैं तथा धूलि आदि कणों से उनकी सुरक्षा करते हैं। आँसुओं में विद्यमान लिसोजाइम नामक एन्जाइम और कुछ लवणों के कारण इसमें बैक्टीरिया आदि का संक्रमण नहीं हो पाता है। इसमें कमी आते ही संक्रमण होने लगता है तथा आँखों में बीमारियाँ पनपने लगती हैं। आँसू आँख के कार्निया वाले भाग में ऑक्सीजन और पोषक तत्त्व पहुँचाने का भी काम करते हैं; क्योंकि वहाँ रक्त प्रवाह नहीं होता हैं।
आँसू कहाँ पैदा होते हैं ? :
इतनी विशेषता लिए आँसू पैदा कहाँ होते हैं, यह भी कुदरत का एक अनोखा करिश्मा है। आँसुओं का निर्माण पलकों के पीछे छिपी एक ग्रंथि में होता है। इस ग्रंथि को ‘लैक्रिमल ग्लैण्ड’ (अश्रुग्रंथि) कहते हैं। इसी ग्रंथि से आँसू निकलकर आँखों में नमी पहुँचाते हैं और ये आँखों के भीतरी कोनों पर (नाक के पास) एकत्र हो जाते हैं। ये जहाँ एकत्रित होते हैं, वहाँ एक झील बन जाती है, इसे ‘लेक्रिमल लेक’ कहते हैं। आँसू यहीं से धीरे-धीरे नाक के रास्ते निकल जाते हैं। इस क्रिया- व्यापार में आँसू आँखों से छलकते नहीं है। इनमें छलकन तभी होती है, जब आँसुओं की झील लबालब भर जाती है। इस झील से आँसुओं के निकलने के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक कारण होते हैं। जैसे ही इस पर दबाव पड़ता है, आँसुओं की धारा आँखों के रास्ते उमड़ने लगती है।
आँसू में क्या पाया जाता है ? :
वैज्ञानिक अश्रुजल का विश्लेषण करने के पश्चात बताते हैं कि इसमें जलमात्रा सर्वाधिक होती है। इसके अलावा इसमें म्यूसिन, लिपिड्स, लिसोजाइम, इम्यूनोग्लोब्युलिन, ग्लूकोज, यूरिया, सोडियम, पोटैशियम आदि पाए जाते हैं। वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि उपर्युक्त तत्त्व सामान्य रूप से आँसुओं में पाए जाते हैं, परंतु जब व्यक्ति दरद से पीड़ित होता है तो इस दशा में निकलने वाले आँसुओं में कुछ तत्त्वों की कमी और कुछ की बढ़ोत्तरी हो जाती है। ऐसी ही स्थिति खुशी और आनंद की अवस्था में निकले आँसुओं में होती है। अतः कहा जा सकता है कि खुशी और गम की अवस्थाओं में निकलने वाले आँसूरूपी खारे पानी में भिन्नता होती है। आनंद के अतिरेक से निकले आँसू, पीड़ा के आँसुओं से भिन्न होते हैं।
आँसुओं पर भावनात्मक प्रभाव :
आँसुओं के निकलने में इस क्षेत्र में बिछे स्नायु जाल का भी बड़ा योगदान होता है। जब व्यक्ति आवेश में होता है तो ‘पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम’ की गतिविधियाँ तेज हो जाती हैं। इससे ‘लैक्रिमल’ स्नायुओं के माध्यम से अश्रुग्रंथियाँ उत्तेजित हो जाती हैं और आँसुओं की बाढ़ आने लगती है। मुख्यत: आँसुओं का संबंध भावनाओं से माना जाता है। वैज्ञानिक अभी यह ज्ञात नहीं कर सके हैं कि हृदय में बसने वाली भावना कैसे आँखों की झील में हलचल मचाती है। वैज्ञानिक इस सचाई को तो स्वीकारते हैं कि भावनात्मक प्रभाव से अधिकतर स्थितियों में आँसुओं की बाढ़ आती है, परंतु अपने आप को इसके बीच के संबंध और क्रिया को समझने में अक्षम और असमर्थ पाते हैं। हालाँकि इस क्षेत्र में गहन शोधअनुसंधान चल रहे हैं।
आँसुओं से जुड़े दिलचस्प मनोवैज्ञानिक सवाल :
आँसुओं से जुड़े कई दिलचस्प मनोवैज्ञानिक सवाल भी उठ खड़े होते हैं। आखिर मनुष्य रोता क्यों है? बच्चे क्यों एकाएक रोने लगते हैं? और महिलाओं का रोने से सीधा संबंध क्यों जोड़ा जाता है? इन सबके पीछे कौन सा मनोवैज्ञानिक कारक कार्य करता है। मनोवैज्ञानिक मान्यता है कि जब मनुष्य को पीड़ा पहुँचती है और वह इसे झेल पाने में असहाय होता है तथा इसे किसी के साथ बाँट भी नहीं सकता है तो घनीभूत उबलती-उफनती पीड़ा के रूप में आँसू निकलते हैं। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि आँसुओं की धारा में पीड़ा बह जाती है, इसलिए रोने के पश्चात मन हलका होता है। मन अभिव्यक्त होना चाहता है। जब इसकी अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है तो मन परेशान हो उठता है और अपने आप ही रोने लगता है।
मनोवैज्ञानिक आँसुओं को पीड़ा से जोड़ते हैं और कहते हैं कि कभी-कभी व्यक्ति पीड़ा के अतिरेक से गुजरता है। ऐसी स्थिति में आँसू अवरुद्ध हो जाते हैं । व्यक्ति को किसी तरह रोने के लिए विवश किया जाता है, ताकि पीड़ा आँसुओं में बह जाए। भावों को ठेस लगने पर भी आँसू फूट पड़ते हैं। इसके ठीक विपरीत अतिरेक, हर्ष और आनंद में भी आँसू छलक पड़ते हैं। भाव यदि समूचे ढंग से अभिव्यक्त न हों, चाहे वे पीड़ा के हों या खुशी के, तो आँसू बनकर बहने लगते हैं।
बच्चों के आँसुओं की कहानी बड़ी निराली :
बच्चों के आँसुओं की कहानी बड़ी निराली है। बच्चों में सामाजिक स्वीकृति पाने की तीव्र लालसा होती है और इसके कारण वे अक्सर रो पड़ते हैं। बच्चों में क्रिया की प्रतिक्रिया बहुत तीव्र होती है, वे नकल करने में बड़े कुशल होते हैं, परंतु उनमें सहनशीलता-नियमन करने की क्षमता अति न्यून होती है। बच्चे अपने भावों को सहजता से अभिव्यक्त कर देते हैं। इसमें उन्हें अपने मानसिक अवरोधों का सामना नहीं करना पड़ता है। अतः वे सहजता से रो पड़ते हैं। बच्चों को सामाजिक और मानसिक मर्यादाओं व नियमों का ज्ञान नहीं होता है। अत: उन्हें जैसा भी अच्छा-बुरा लगता है, उसकी तुरंत प्रतिक्रिया कर देते हैं और यह प्रतिक्रिया प्रबलतम रूप में रोना बनकर व्यक्त होती है।
महिलाओं के आँसुओं से जुड़ी खास बातें:
आँसुओं के मामले में महिलाओं को कुशल कलाकार माना जाता है। कुछ मनीषियों की मान्यता है कि जैसे महिलाएँ पानी जैसे तरल पदार्थों में सृजित हुई हैं; क्योंकि बात-बात पर उन्हें रोते, आँसू बहाते देखा जाता है।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं। जब इनकी संवेदनशीलता पर आघात पहुँचता है तो आँखें गीली हो जाती हैं। इस संदर्भ में एक रोचक सर्वेक्षण किया गया है कि आखिर महिलाओं के रोने के पीछे उद्देश्य एवं कारण क्या है ? सर्वेक्षण में पाया गया कि ८५ प्रतिशत महिलाएं अपनी बात को येन-केन-प्रकारेण मनवाने के लिए आँसुओं का सहारा लेती हैं। मनोवैज्ञानिकों ने इसे ‘इमोशनल ब्लैकमेलिंग’ का नाम दिया है। ऐसी घटना कुछ भावुक पुरुषों में भी देखी गई है। मात्र ३ प्रतिशत महिलाओं ने ही माना कि वे बेवजह नहीं रोती हैं।
सर्वेक्षण का एक पक्ष तो और भी चौंकाने वाला है। कामकाजी, शिक्षित और उच्च वर्ग की महिलाएँ भी अपनेअपने ढंग से आँसुओं का इस्तेमाल करती हैं। हाँ इस क्षेत्र में ऐसी महिलाएँ भी पाई गईं, जिनका जीवन परिवार और समाज द्वारा सताए जाने से आँसुओं में डूबा हुआ था। ऐसी महिलाओं की संख्या ४१.५ प्रतिशत है, आज के आधुनिक और शिक्षित समाज के लिए यह एक कठिन चुनौती है। इतनी प्रगति और उन्नति के बावजूद भी यदि महिलाओं को भावनात्मक ठेस पहुँचाकर आँसुओं की सौगात दी जाती है तो बात चिंतनीय है। खैर, बात आँसुओं की है कि कैसे दरद के आँसू थमें और प्रेम, प्यार के बहें। कैसे इस खारे जल में जीवन की मिठास घुले।
आँसू कब कमजोरी बनता है और कब ताकतवर :
आँसू कब कमजोरी बनता है और कब ताकतवर,यह विचारणीय बिंदु है। प्रसिद्ध लेखक वाशिंगटन इविंग’ का मानना है कि बेवजह, सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए एवं अपनी ही बातों को मनवाने के लिए आँसुओं का सहारा लेना घोर कमजोरी एवं कायरता है। व्यक्ति कहीं न-कहीं संवेदनशील होता है; भावुक होता है। इसे आँसुओं के सहारे भुनाना अत्यंत कमजोरी की निशानी है। परंतु औरों की पीड़ा से पीड़ित होकर आँसुओं का छलकना उदारता और करुणा का प्रतीक है। सामर्थ्यवान होकर भी परपीड़ा से पीड़ित न होना क्रूरता और निर्दयता की निशानी है। दूसरों के आनंद में, सफलता में, अपार खुशी में बहने वाले आँसुओं को श्रेष्ठ माना जाता है। इन आँसुओं में एक अनकही ताकत व सामर्थ्य छिपी होती है, जो क्रियान्वित होकर बड़े-बड़े श्रेष्ठ कार्यों को अंजाम देती है।
आँसुओं की कीमत अनमोल है। इन्हें यों ही नहीं बहाना चाहिए। यों ही बहाने वाले बड़े ही अप्रामाणिक माने जाते हैं और उनके आँसुओं पर कोई विश्वास नहीं करता है। जिंदगी में अपार दरद के समय अपने अत्यंत करीब के व्यक्ति के पास या अपने इष्ट के पास आँसू बहा लेने से भी मन हलका हो जाता है। ध्यान रहे, आँसुओं के रूप में उमड़ती भावनाओं का दुरुपयोग न हो। इन्हें सच्ची भावनाओं का संदेशवाहक बनाना चाहिए।
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