Last Updated on April 4, 2020 by admin
रक्त रोहिड़ा क्या है ? : What is Rakt Rohida (Tecomella Undulata) in Hindi
रक्त रोहिडा वटादि वर्ग और सोनकादि कुल वाइग्नोनिऐसी कुल का एक मध्यम कद का वृक्ष है। इसकी ऊंचाई 10-25 फीट तक पायी जाती है।
रक्त रोहिड़ा का पेड़ कहाँ पाया जाता है ? :
भारत में रक्त रोहिड़ा के वृक्ष, पंजाब, बंगाल, गुजरात, काठियावाड़, राजस्थान में पाये जाते हैं। जबकि विलोचिस्तान, पश्चिमी पाकिस्तान आदि विदेश में भी इसके वृक्ष मिलते हैं। सुन्दर फूलों के कारण इन वृक्षों को विशेष रूप से लगाया जाता है। बंगाल के फरीदपुर जिले में इन वृक्षों की संख्या बहुत अधिक पायी जाती है।
रक्त रोहिड़ा का पेड़ कैसा होता है ?
- रक्त रोहिड़ा के पत्ते (पत्र) – लम्बे किन्तु अनार के पत्ते की तरह दिखाई देते हैं। पत्तों पर रोयें जैसे देखने को मिलते हैं। इसकी फलियां 6-8 इंच तक लम्बी तथा मुडी हुयी होती हैं।
- रक्त रोहिड़ा की जड़ (मूल) – मूल आकार में मोटी तथा जमीन में अन्दर तक घुसी रहती है। तथा इसकी शाखायें दूर-दूर तक जमीन में फैली रहती हैं।
- रक्त रोहिड़ा की शाखायें – शाखाओं का रंग राख के रंग जैसा होता है। इनकी अन्दर की छाल हरापन लिये हुये पीले रंग की होती है।
- रक्त रोहिड़ा का फूल (पुष्प) – इसके सुन्दर केशरिया रंग के गुच्छों में होते हैं। पुष्प धारण करने वाली सलिये सूतली जैसी पतली तथा चमकदार होती है।
- पुष्प वाह्य कोष – यह फीके केशरिया रंग का 5 पत्रों का बना होता है।
रक्त रोहिड़ा के प्रकार :
रक्त रोहिड़ा के कुल चार भेद मिलते हैं –
- टैकोमेला अण्डूलेटा,
- एफेनेमिक्सिस पोलिया स्ट्रेचिया ,
- रैमेनस विध टी,
- पौली गोमम ग्लेवरम
ओषधीय उपयोग की दृष्टि से “टेकोमेला अण्डूलेटा” ही अधिक उपयोग में आता है। इसलिए इसका उल्लेख यहां किया जा रहा है।
रक्त रोहिड़ा का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Rakt Rohida in Different Languages
Rakt Rohida (Tecomella Undulata) in–
- संस्कृत (Sanskrit) – रोहितक, दाडिम पुष्पकः, दाडिमच्छदः,
- हिन्दी (Hindi) – रक्तरोहिडा, रोहिडा,
- मराठी (Marathi) – रक्तरोहिडा।
- गुजराती (Gujarati) – रोहिडी,
- बंगाली (Bangali) – हरिण हाडा
- लैटिन (Latin) – टेकोमैला अन्डूलेटा (Tecomella Undulata)
रक्त रोहिड़ा का रासायनिक विश्लेषण : Rakt Rohida (Tecomella Undulata) Chemical Constituents
इसमें दो तरह का पीला गोंद, श्वेतसार, रंजक वस्तु ,टेनिन या लवण पाये जाते हैं।
रक्त रोहिड़ा के औषधीय गुण : Rakt Rohida ke Gun in Hindi
रस – कषाय, कटु
वीर्य – शीत,
विपाक – कटु
गुण – सारक, रक्तशोधक, स्निग्ध
दोष शमन – कफ पित्त,
रक्त रोहिड़ा का उपयोगी भाग :
रक्त रोहिड़ा की छाल
रक्त रोहिड़ा का उपयोग : Uses of Tecomella Undulata (Rakt Rohida) in Hindi
- भाव प्रकाश के अनुसार रक्त रोहिड़ा की छाल – रसायन, कषाय एवं बल्य है।
- रक्त रोहिड़ा की छाल यकृत- प्लीहा वृद्धि, स्थौल्य (मोटापा) एवं दुर्बलता में उपयोगी है।
- कयदेव निघन्टु में रक्त रोहिड़ा की छाल को विशेष रूप से कास (खाँसी) नाशक बताया है।
- आधुनिक विद्वान्नों के मतानुसार रक्त रोहिड़ा की छाल ग्राही, बल्य तथा यकृत प्लीहा के रोगों में उपयोगी है।
- डा. आर.एन खोरी इसकी काण्डत्वक (छाल) को उपदंश में उपयोगी बताते हैं।
- जबकि डा. चौपड़ा के अनुसार रक्त रोहिड़ा की छाल जमे हुये रक्त को बिखेरने के लिये उपयोगी बतायी गयी है। इसलिये गुम चोट के लग जाने पर इसकी छाल को दूध में औटाकर देने से लाभ होता है।
- इसकी छाल का उपयोग यकृत तथा प्लीहा के विकारों में भी उपयोगी पाया गया है।
- प्रसूति के बाद इसकी छाल या पत्र का क्वाथ प्रसूता को देने से उसकी अशक्ति दूर होती है।
- इसकी छाल को बारीक कर चाय की तरह उपयोग करने से शरीर में उत्साह की वृद्धि होती है।
रक्त रोहिड़ा के फायदे : Rakt Rohida ke Fayde in Hindi
यकृत (Liver) रोग में फायदेमंद रक्त रोहिड़ा का चूर्ण
रक्त रोहिड़ा की छाल, हरड़ का चूर्ण को बराबर लेकर गौमूत्र की 7 भावना देकर सुखा लें। यह सुखाया हुआ चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से यकृत तथा प्लीहा (तिल्ली /Spleen) रोगों में लाभ करता है।
( और पढ़े – लिवर की कमजोरी दूर करने के उपाय )
प्रमेह में रक्त रोहिड़ा के इस्तेमाल से लाभ
कफपित्तज प्रमेह में रक्त रोहिड़ा के फल का चूर्ण, बहेड़ा की छाल का चूर्ण मधु के साथ मिलाकर देने से लाभ होता है।
प्रदर रोग मिटाए रक्त रोहिड़ा का उपयोग
रक्त रोहिड़ा के मूल की छाल के चूर्ण को प्रयोग कराने से प्रदर विशेषकर श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
कुष्ठरोग में रक्त रोहिड़ा के इस्तेमाल से फायदा
रक्त रोहिड़ा की छाल का क्वाथ पीने या शरीर में कुष्ठ स्थान पर लगाने से कुष्ठ में विशेष लाभ होता है।
रक्त रोहिड़ा से निर्मित विशिष्ट योग :
1) रोहितकावलेह (भारत भैषज्यरत्नाकर) – निर्माण विधि और फायदे
6 किलो रक्त रोहिड़ा की छाल तथा 100 हरड़ को 8 गुने भैंस के मूत्र में पकावें । जब चौथाई शेष रहे तो उस क्वाथ जल में 100 हरडे, पीपर, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, सोंठ तथा दन्तीमूल का चूर्ण मिलाकर पुनः पकाकर गाढ़ा करें। गाढ़ा होने पर उसमें चीनी की चाशनी बनाकर अवलेह बनाना चाहिये ।
लाभ – इस अवलेह का सेवन करने से यकृत एवं प्लीहा विकारों में लाभ होता है।
2) रोहितक लौहम (भैषज्यरत्नावली) – निर्माण विधि और फायदे
रक्त रोहिड़ा की छाल, त्रिकटु, त्रिफला, त्रिमद (बायविडंग, मोथा, तथा चित्रक) प्रत्येक समभाग लेकर सभी के बराबर लौह भस्म मिलाकर अच्छी तरह घोटकर रोहितक लौह तैयार होता है। 1-2 रत्ती (1 रत्ती = 0.1215 ग्राम) सुबह-शाम मधु के साथ प्रयोग कराने से शोथ, प्लीहा रोग तथा वृद्धि रोग में लाभ होता है।
3) रोहितकारिष्ट – निर्माण विधि और फायदे
(1 तोला = 12 ग्राम)
रक्त रोहिड़ा की छाल 400 तोले को जौकुट कर 4096 तोले जल में मिला चतुर्थाश क्वाथ करें। फिर छानकर शीतल होने पर 800 तोले गुड़, धाय के फूल 64 तोले, पीपल, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, सोंठ, दालचीनी, इलायची, तेजपात, हरड़, बहेड़ा, आंवला इन 11 औषधियों का जौकुट चूर्ण 4-4 तोले मिलाकर बरनी में भरें। मुखमुद्राकर 1 मास रखें ,परिपक्व होने पर छान लेवें।
मात्रा – डेढ़ से ढाई तोले समान जल के साथ दिन में दो बार दें।
लाभ और उपयोग – रोहितारिष्ट प्लीहावृद्धि, गुल्म, उदररोग, अष्ठीला, गृहणी, अर्श ,कामला, कुष्ठ, शोथ और अरुचि आदि को नष्ट करता है।
यह यकृत और प्लीहावृद्धि में अत्यन्त उपयुक्त औषधि है। यह अरिष्ट जीर्ण अग्निमांद्य को दूर कर पाचक पित्तों के स्राव की वृद्धि कराता है। पाचक पित्त स्रावक सूक्ष्म कोषों को रक्त की मात्रा पूर्ण रूप से मिलती है। इस हेतु से पाचक पित्तस्राव योग्य होता है। विषमज्वर जीर्ण होने पर प्लीहावृद्धि हो जाती है। उस पर यह रोहितारिष्ट उत्तम कार्य करता है।
मध्यम कोष्ठ (उदरगुहा) में रही हुई रस ग्रन्थियों के आकार की वृद्धि होने पर उदर में गांठ होने का भास होता है। यह वृद्धि क्षय रोग में होने पर सुवर्ण कल्प का सेवन कराना चाहिये। परन्तु क्षय और उपदंश के अतिरिक्त कारणों से होने पर रोहितारिष्ट देना चाहिये।
गुल्म (पित्तज या वातज) में रोहितारिष्ट हितकर है। अष्ठीला में इसके सेवन से रोगशमन में सहायता मिलती है एवं वातार्श में और पित्तार्श में भी यह उपयोगी है। (रसतन्त्रसार)
रक्त रोहिड़ा के दुष्प्रभाव : Rakt Rohida ke Nuksan in Hindi
रक्त रोहिड़ा के कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं हैं फिर भी इसे आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले ।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)