Last Updated on May 19, 2020 by admin
कसौंदी (कासमर्द) क्या है ? : What is Kasundi (Kasmard) in Hindi
जिस तरह चक्र (दद्रु/दाद) का मर्दन (विनाश) करने के कारण चक्रमर्द नाम पड़ा उसी प्रकार कास (खाँसी) का मर्दन करने के कारण इस वनौषधि का “कासमर्द” नाम पड़ा है। प्रियनिघन्टु में कहा गया है-“कासमर्दस्तु विज्ञेयो ध्रुवं कासस्य मर्दनात्“।
आचार्य सुश्रुत ने इसे सुरसादि गण में लिया है। यह गण भी कफहत् कासघ्न कहा गया है। इसका वानस्पतिक कुल शिम्बीकुल ( लेग्युमिनोसी) एवं पूतिकरंज उपकुल (सीजलपिनिआयसी) है।
कसौंदी (कासमर्द) का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? : Where is Kasundi (Kasmard) Found or Grown?
कसौंदी का पौधा प्रायः सर्वत्र उष्णता प्रधान स्थानों पर पाया जाता है। पश्चिमी बंगाल, दक्षिण भारत (कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाडू, केरल और पाण्डीचेरी तथा श्रीलंका में यह विशेषतः पाया जाता है।
कसौंदी (कासमर्द) का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Kasundi (Kasmard) in Different Languages
Kasundi (Kasmard) in –
- संस्कृत (Sanskrit) – कासमर्द, कासारि
- हिन्दी (Hindi) – कसौंदी
- गुजराती (Gujarati) – कासोंदरी
- मराठी (Marathi) – कासविदा
- बंगाली (Bangali) – केसेन्दा
- तामिल (Tamil) – पेयावेरी
- तेलगु (Telugu) – कासिन्द
- मलयालम (Malayalam) – पोन्नाविरम्
- अंग्रेजी (English) – निग्रोकॉफी (negro coffee)
- लैटिन (Latin) – कैसिया ओक्सिडेन्ट लिस (Cassia occidentalis linn)
कसौंदी (कासमर्द) का पौधा कैसा होता है ? :
- कसौंदी का पौधा – वर्षाऋतु प्रारम्भ होते ही घरों के समीप इतस्तत: कूड़ा-करवट में इसका पौधा उगकर 4-5 फुट तक बढ़ जाता है। यह बहुशाखायुक्त होता है।
- कसौंदी के पत्ते – कसौंदी के पत्र संयुक्त आमने सामने प्रत्येक सींक में प्राय: पांच होते हैं जो 2 से 4 इंच लम्बे तथा 2 से 3 इंच चौड़े, गोल, नुकीले होते हैं। इन पत्तों का ऊपरी भाग चिकना तथा नीचे का भाग कुछ खुरदरा होता है।
- कसौंदी का फूल -पुष्प पीले रंग के एक इंच व्यास के चक्रमर्द के पुष्प जैसे होते हैं ये पुष्प वर्षान्त या शीत के प्रारम्भिक काल में लगते हैं।
- कसौंदी की फलियाँ – शिम्बी (फलियाँ) 4 से 5 इंच लम्बी, चपटी एवं चिकनी होती है। प्रत्येक फली में 10 से 30 बीज निकलते हैं। इनके बीच-बीच में पर्दे होते हैं। ये फलियाँ हेमन्त ऋतु में लगती हैं। इसके बाद यह पौधा सूखने लगता है। इसे सूंघने पर दुर्गन्ध आती है।
कसौंदी (कासमर्द) का उपयोगी भाग : Beneficial Part of Kasundi (Kasmard) in Hindi
पत्र, बीज तथा मूल।
सेवन की मात्रा :
- पत्र स्वरस – 10 से 20 मि.लि. ।
- बीजचूर्ण – 3 से 4 ग्राम।
- मूलक्वाथ – 40 से 80 मि.लि.।
कसौंदी (कासमर्द) का रासायनिक विश्लेषण : Kasundi (Kasmard) Chemical Constituents
- कसौंदी (कासमर्द) की पत्तियों में सनाय जैसा विरेचक तत्व केथार्टिन, कुछ रंजक तत्व तथा लवण पाये जाते हैं।
- कसौंदी के बीजों में टैनिन एसिड, वसाम्ल, लबाबीतत्व (म्युसिलेंज) ,स्थिर तैल, एमोडिन, टाक्सालबुमिन तथा क्राइसारोबिन आदि पाये जाते हैं।
कसौंदी (कासमर्द) के औषधीय गुण : Kasundi (Kasmard) ke Gun in Hindi
- रस – तिक्त, मधुर ।
- गुण – रूक्ष, लघु, तीक्ष्ण।
- वीर्य – उष्ण।
- विपाक – कटु।
- दोषकर्म – कफवातशामक तथा पित्तसारक।
- कसौंदी कफघ्न होने से प्राणवह स्रोतस में बढ़े हुये कफ को दूर कर खाँसी (कास) को मिटाता है साथ ही वातशामक होने से श्वासहर भी है अत: कास, कूकरकास, श्वास हिक्का आदि में इसके पत्र स्वरस में मधु मिलाकर देने का विधान है।
- आचार्य चरक ने कसौंदी (कासमर्द) पत्रस्वरस, भृगराजस्वरस और काली तुलसी स्वरस को मधु के साथ प्रयुक्त करने को श्रेष्ठ कफकासघ्न कहा है।
- इसके साथ ही में कासमर्दादिघृत का भी वर्णन किया है जो सर्वकासहर होने के साथ ही शोष, ज्वर, प्लीहोदरनाशक भी है।
- कसौंदी (कासमर्द) तिक्त होने से अग्निदीपन करता है।
- कसौंदी रूक्ष,लघु, उष्ण और कटुपाकी होने से कफावरण को हटाता है और वात का अनुलोमन करता है जिससे स्राव प्रवाहित होने लगते हैं।
- कसौंदी अग्निमांद्य, उदर रोग, पित्तविकार ( पित्तसारक होने से) तथा विबन्ध (कब्ज) में उपयोगी है।
- कसौंदी मूत्रल होने से मूत्रकृच्छ्र एवं शोथ (सूजन) में लाभ पहुँचाता है।
- कसौंदी कफनाशक और दीपन होने से इक्षमेह में भी लाभदायक है।
- यह तिक्त होने से आक्षेपक, अपतंत्रक, अपस्मार आदि में लाभप्रद है। इन रोगों में इसके मूल का क्वाथ दिया जाता है।
- कसौंदी वातवहा नाड़ियों पर इसकी शामक क्रिया होती है।
- यह रसगत होकर चर्मविकारों को दूर करता है।
- कुष्ठरोग में कसौंदी के बीजों का प्रयोग होता है।
- श्लीपद (हाथी पाँव) में कसौंदी के मूल का कल्क (चटनी) घृत मिलाकर देते हैं।
- बाह्य प्रयोग द्वारा कुष्ठविसर्प-व्रण नाशक है। इनमें इसके पत्तों और बीजों का लेप किया जाता है।
- विषघ्न होने से इसके मूल का प्रयोग वृश्चिकविष (बिच्छू के जहर) में करते हैं । “यः कासमर्दमूलं वदने प्रक्षिप्य कर्णे फुत्कारम्।मनुजो दधाति शीघ्रं जयति विषं वृश्चिकानां सः।।”
- कसौंदी (कासमर्द) के द्वारा पारद, अभ्रक, प्रवाल, सीसक आदि की भस्में तैयार की जाती हैं। विशेष जानकारी के लिये रसशास्त्र देखना चाहिये।
- यूनानी मतानुसार कसौंदी (कासमर्द) उष्ण एवं रूक्ष होता है।
- कसौंदी के पत्तों का शाक बनाकर खाया जाता है। यह शाक विशेषतः कफवातशामक, कण्ठ शोधन तथा कासहर है। इसके अतिरिक्त पत्तों के ये सामान्य प्रयोग भी उपयोगी हैं।
कसौंदी (कासमर्द) के फायदे और उपयोग : Benefits of Kasundi (Kasmard) in Hindi
कान के दर्द (कर्णशूल) में कसौंदी का उपयोग फायदेमंद
कसौंदी के पत्रस्वरस को दूध में मिलाकर कान में डालें।
ततैया काटने के उपचार कसौंदी के इस्तेमाल से फायदा
मकड़ी के फिर जाने पर और बर्र (ततैया) के दंश पर कसौंदी के पत्तों को पीसकर लगाना चाहिये।
नेत्ररोग मिटाए कसौंदी का उपयोग
नेत्राभिष्यन्द आदि नेत्ररोगों में कसौंदी के पत्तों को दूध में पीस गरम कर पुल्टिस बनाकर आंखों पर बांधने से वेदना और लाली दूर होती है।
रतौंधी (नाईट ब्लाइंडनेस) के उपचार में कसौंदी करता है मदद
कसौंदी पत्र रस को आंजने तथा इसके पत्तों के और बीजों के चूर्ण को गेहूँ के आटे में मिलाकर रोटी बना उसे तिल तैल से चुपड़कर खाना चाहिये।
कृमि रोग में लाभकारी है कसौंदी का प्रयोग
कसौंदी के पत्तों को नमक और प्याज के साथ पीसकर बाँधने से नारु (कृमि) शीघ्र बाहर आ जाता है।
पीलिया (कामला) में फायदेमंद कसौंदी का औषधीय गुण
कसौंदी के 3 से 4 पत्र तथा दो-तीन काली मिर्च को पानी के साथ पीस छानकर प्रात: सायं पिलावें।
दाद-खुजली में कसौंदी का उपयोग फायदेमंद
कसौंदी पत्र स्वरस में नींबू का रस मिलाकर लगावें।
आमवात मिटाए कसौंदी का उपयोग
कसौंदी के पत्तों को सुखाकर चूर्ण बनाकर उसमें सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर उन्हें चाय की तरह दूध व पानी में उबालकर उसमें मधु मिलाकर पिलावें। साथ में पत्तों को पानी में उबालकर उससे स्नान भी करावें । पत्तों को गरम कर शैया पर बिछा उस पर रोगी को सुलाने से भी आराम मिलता है।
हिचकी (हिक्का) में कसौंदी का उपयोग लाभदायक
कसौंदी (कासमर्द) पत्र 25 ग्राम लेकर उन्हें दो लिटर पानी में पकावें जब एक लिटर पानी शेष रहे तब उसे छानकर उसमें 50 ग्राम मूंग की दाल डालकर सूप तैयार करें। इस सूप को बार-बार पीने से हिचकी का शमन होता है। यह श्वास और कूकर कास में भी हितकारक है।
यकृत (लिवर) विकार में कसौंदी के प्रयोग से लाभ
लिवर के विकारों में कसौंदी के पत्तों का क्वाथ लाभदायक है अथवा पत्तों के साथ कालीमिर्च की ठंडाई (शार्कर) बनाकर दे सकते हैं।
पेट के रोग मिटाए कसौंदी का उपयोग
कसौंदी के पुष्पों का गुलकन्द मलावरोध, उदररोगों में उपयोगी है-ताजे फूलों को साफ कर उसमें फूलों की तिगुनी शक्कर मिलाकर कांच की बरनी में भर उसे 40 दिनों तक सुरक्षित रखें। इसके बाद 6-6 ग्राम नित्य सेवन करें।
कसौंदी (कासमर्द) बीज के औषधीय गुण :
- कसौंदी (कासमर्द) के बीज विरेचक होते हैं किन्तु इन्हें भूनकर उपयोग में लाने से ये संग्राही हो जाते हैं। इन भूने हुये बीजों के चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से अतिसार प्रवाहिका में लाभ होता है।
- इन सिके हुये बीजों का चूर्ण बनाकर इसे कॉफी के समान पेय रूप में सेवन किया जाता है। यह पेय सर्वाङ्ग के लिये बल्य और दीपन है।
- यह पेय ज्वर में पसीना लाने तथा कफ को दूर करने में हितकर है।
- इसके उपयोग से मानसिक उत्तेजना बढ़ती है।
- शिशुओं के दांत आते समय यह पेय थोड़ा-थोड़ा पिलाते रहना श्रेयस्कर है। किन्तु इस पेय की गन्ध प्रत्येक व्यक्ति को रुचिकर नहीं होती अत: “जंगलनी जड़ी-बूटी’ के लेखक ने इसे रुचिकर बनाने हेतु यह मिश्रण तैयार कर उपयोग में लाने को कहा है-
- इसके बीज एक किलोग्राम लेकर उन्हें हल्की आंच पर घी में सेक लेवें फिर उन्हें पीसकर उसमें छोटी छोटी इलायची के बीज 12 ग्राम, कबाब चीनी और तज 6-6 ग्राम, जायफल, जावित्री, सोंफ एवं खस-खस 3-3 ग्राम और केशर 1. 5 (डेढ) ग्राम सबका चूर्ण कर मिला देवें। इसे काफी की भाँति तैयार कर पीने से थकावट, सुस्ती दूर होती है। इससे मन में प्रसन्नता, कार्य करने की उमंग एवं जठराग्नि प्रदीप्त होती है। इससे वीर्य स्थान शुद्ध होकर कामोद्दीपन की शक्ति भी बढ़ती है। अफ्रीका के सेनेगल प्रान्त में आदिवासी लोग इसके बीजों का पेय काफी के रूप में बहुतायत से करते हैं तब ही इसे “नेग्रो कॉफी प्लान्ट” (Negro coffe plant) भी कहा जाता है।
कसौंदी (कासमर्द) बीज के फायदे और उपयोग :
बालाक्षेप (बालग्रह) में लाभकारी है कसौंदी बीज
300 से 400 मि.ग्रा. बीजों को 10 से 15 मि.लि. दूध में पीस-छानकर पिलावें अथवा शिशु की माता को 4 ग्राम बीज चूर्ण सेवन करा दें।
कब्ज में लाभकारी है कसौंदी के बीज का प्रयोग
बीजों का क्वाथ बनाकर पिलाने से विबन्ध दूर होता है। बीज चूर्ण को भी गुनगुने जल से सेवन किया जा सकता हैं
खाँसी मिटाए कसौंदी बीज का उपयोग
कसौंदी (कासमर्द) बीजों का चूर्ण 150 ग्राम, पिप्पली 3 ग्राम चूर्ण और कालानमक चूर्ण 3 ग्राम सबको मिलाकर पानी के साथ खरलकर चने के समान गोलियाँ बनाकर 2-2 गोली मुख में रखकर सुबह-शाम चूसें।
बहुमूत्र में लाभकारी है कसौंदी के बीज का सेवन
कसौंदी (कासमर्द) बीजों का चूर्ण शहद के साथ देना चाहिये।
कसौंदी (कासमर्द) की जड़ के औषधीय गुण :
कसौंदी (कासमर्द) की जड़ विषमज्वर प्रतिषेधक, मृत्रल, आक्षेपहर, कुष्ठघ्न, बल्य, वातशूलनिवारक है।
कसौंदी (कासमर्द) की जड़ के फायदे और उपयोग :
बिच्छू काटने (वृश्चिकदंश) पर कसौंदी की जड़ का उपयोग लाभदायक
कसौंदी (Kasundi) के मूल को चबाकर रोगी के कान में बार-बार फूक मारने से बिच्छू का विष कम होता है।
हाथीपाँव (श्लीपद) रोग में कसौंदी की जड़ से फायदा
कसौंदी मूल चूर्ण को दुगने घी में मिलाकर सेवन कराते रहने से वातिक श्लीपद नष्ट होता है।
दाद (दद्रु) में कसौंदी की जड़ के इस्तेमाल से फायदा
दाद और किटिभकुष्ठ पर कसौंदी की जड़ को छाछ (कांजी) में पीसकर लेप करने से लाभ होता है।
वीर्य पुष्टि में लाभकारी है कसौंदी की जड़ का प्रयोग
कसौंदी की जड़ की छाल का चूर्ण बनाकर 3 से 4 ग्राम चूर्ण शहद के साथ मिलाकर सेवन करने के बाद दूध पीने से वीर्य पुष्ट होता है, गाढ़ा होता है एवं वीर्य की वृद्धि होती है।
काली कसौंदी के औषधीय गुण :
कासमर्द (kasundi) का एक भेद जो काली कसौंदी (Cassia sophera linn) के नाम से जाना जाता है। इसके क्षुप समस्त भारत में स्वयंजात पाये जाते हैं। इसकी शाखायें कृष्णाभ बैंगनी आभायुक्त होती हैं। मूल की छाल काली होतो है, जिससे जड़ जली हुई सी मालूम होती है। इससे कस्तुरी जैसी गंध आती है। इसके क्षुप बहुवर्षायु तथा बड़े होते हैं। इसके बीज मटर जैसे होते हैं। यह काली कसौंदी अब दुर्लभ होती जाती है। इसके कुछ प्रयोग निम्नाङ्कित है।
काली कसौंदी के फायदे और उपयोग :
सर्पविष के उपचार में फायदेमंद काली कसौंदी का प्रयोग
काली कसौंदी के मूल की छाल 15 ग्राम और काली मिर्च 3 ग्राम लेकर दोनों को जल में पीसकर छानकर पिलाने से विष प्रभाव कम होता है।
जलोदर रोग में काली कसौंदी का उपयोग फायदेमंद
काली कसौंदी के मूल का क्वाथ जलोदर में हितकर है।
कंठमाला मिटाए काली कसौंदी का उपयोग
काली कसौंदी के पत्तों के साथ काली मिर्च पीस कर लेप करना चाहिये।
सुजाक रोग में काली कसौंदी से फायदा
पूयमेह (सुजाक) की प्रथम अवस्था तथा फिरंग रोग में काली कसौंदी के पत्ते 10 ग्राम को काली मिर्च 3 ग्राम के साथ पानी में पीस छानकर दिन में दो बार पिलाने से लाभ होता है। किन्तु लवणवर्जित आहार करें। इसके ताजी पत्तियों को गर्म पानी में कुछ देर रखकर फिर इस पानी को ठण्डा कर इसकी उत्तरबस्ति पूयमेह में लाभदायक है। फिरंग, उपदंश के व्रणों को इस फाण्ट से धोना श्रेयस्कर है।
त्वचा रोग ठीक करे काली कसौंदी का प्रयोग
काली कसौंदी के बीजों के साथ मूली बीज और गन्धक को एकत्र कर पानी के साथ पीसकर लेप करना चाहिये। यह लेप सिध्म कुष्ठ, विचर्चिका (गीलादाद) और व्यङ्ग (झाई) आदि के चकत्तों पर भी किया जाना चाहिये। इससे ये रोग नष्ट होते हैं।
कृमिरोग में काली कसौंदी के सेवन से लाभ
काली कसौंदी के पत्तों का क्वाथ पिलाने से उदरस्थ सूत्र कृमि नष्ट होते हैं। फिर कोई विरेचन देकर कोष्ठ शुद्धि कर देते हैं।
कसौंदी (कासमर्द) के दुष्प्रभाव : Kasundi (Kasmard) ke Nuksan in Hindi
- कसौंदी (कासमर्द) लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- पित्तप्रकृति के व्यक्तियों के लिये कसौंदी (kasundi) का अधिक सेवन हानिकर है।
दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए मधु, गुलाब अर्क आदि का सेवन हितकर है।
(उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)