Last Updated on September 13, 2020 by admin
आज अनेक प्रकार के कोल्ड ड्रिंक बाजार में उपलब्ध है जैसे-कोका कोला, पेप्सी, मरीन्डा, लिमका आदि। सभी आयु के लोगों में इनका उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। हमारे यहां अनेक अमृत पेय उपलब्ध हैं जिनके सेवन से शरीर स्वस्थ रहता है, बुद्धि का विकास होता है। ऐसे उपयोगी पेय का सेवन करने से तन-मन तो स्वस्थ रहेगा साथ ही साथ शक्ति व बुद्धि भी बढ़ेगी। अमृत पेयों की जानकारी इस प्रकार है।
आपके स्वास्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ, हेल्थ ड्रिंकस (Health Drinks in Hindi)
1. छाछ (Buttermilk) –
प्राचीनकाल से छाछ हमारे भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। गांवों में आज भी लोग गाय-भैंस पालते हैं। उनके दूध के दही से मक्खन निकालते हैं। शेष बची छाछ को पेय पदार्थ के रूप में उपयोग करते हैं। आजकल शहरों में तो छाछ दुकानों पर बिकने भी लगी है। इसकी उपयोगिता को देखकर अब इसका प्रचलन पुनः बढ़ता जा रहा है। छाछ का सेवन करने से शरीर के हानिकारक तत्व मूत्र के रूप में बाहर निकल जाते हैं और स्वास्थ्य अच्छा रहता है। छाछ पीने वाले व्यक्ति पर बीमारियाँ आक्रमण करने से घबराती है, तन स्वस्थ रहता है व मन प्रसन्न रहता है।
चेहरे पर कान्ति रहती है। छाछ में सेंधा नमक और अजवायन मिलाकर पीना उपयोगी है। काला नमक व कालीमिर्च का प्रयोग भी किया जा सकता है। गरिष्ठ भोजन करने के बाद छाछ का प्रयोग विशेष रूप से करना चाहिए, इससे अपच एवं अजीर्ण से बचाव होता है। शरीर में विजातीय तत्व एकत्रित नहीं हो पाते। दस्त होने पर छाछ का सेवन शहद के साथ करने से लाभ होता है। एक कप छाछ में एक चम्मच शहद पर्याप्त है। यह मिश्रण दिन में तीन-चार बार लेने से दस्त ठीक हो जाती है। दस्त लम्बे समय से लग रहें हो तो छाछ में सेंधा नमक, भुना हुआ जीरा व भुनी हुई हींग मिलाकर उसका सेवन करना चाहिए । छाछ में सिका हुआ जीरा और सेंधा नमक मिलाकर पीने से बवासीर ठीक हो जाती है।
छोटे बच्चे के दांत निकलते समय बहुत परेशानी होती हैं, उस समय उन्हें दूध कम पिलाएं और छाछ अधिक । इससे उनके दांत बिना किसी कष्ट के निकल जाएंगे। पेट में क्षय रोग हो जाने पर छाछ रोजाना पीने से लाभ होता है। पेट दर्द में भी छाछ में पिसा हुआ हरा धनिया मिलाकर पीने से लाभ होता है। छाछ के सेवन से यूरिक अम्ल नष्ट हो जाते हैं।
आधे सिर दर्द में, प्रातः छाछ में सेंधा नमक मिलाकर चावलों के साथ पीना चाहिए। मोटापे से परेशान लोगों को छाछ पीनी चाहिए। छाछ पीने से मोटापा कम होता है। पेट में कीड़े हो तो सुबह-सुबह कुछ दिनों तक छाछ पीने से वे नष्ट हो जाते हैं।
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2. जूस (Juice) –
शरीर को स्वस्थ रखने, बुद्धि को विकसित करने, दीर्घायु प्राप्ति एवं सुखमय जीवन के लिए जूस का उपयोग करें। जूस से शरीर के लिए पोषक तत्व काफी मात्रा में मिल जाते हैं। जूस स्वस्थ व्यक्ति के लिए टॉनिक व अस्वस्थ व्यक्ति के लिए दवा का कार्य करता है। इससे पाचन क्रिया को बहुत कम शक्ति खर्च करनी पड़ती है व समय भी कम लगता है। ऐसे रोगी जिनकी पाचन शक्ति, फल तथा अन्य किसी वस्तु को नहीं पचा सकती, व्रत-उपवास भी नहीं कर सकता ऐसे लोगों के लिए जूस का प्रयोग अमृत का काम करता है। ज्वर, जुकाम, हार्ट, ब्लड प्रेशर, टी.बी., एड्स, कैंसर के रोगियों को जूस देना अमृत के समान है। जिन व्यक्तियों के दांत अच्छे नहीं है या कृत्रिम हैं या नष्ट हो गये हैं, वे फल सब्जियों का जूस ले सकते हैं।
पेट या आंतों में व्रण या सूजन हो तो वह फल, सब्जियां खा नहीं सकते पर जूस पी सकते हैं यह बहुत ही आरामदायक व गुणकारी होता है। नन्हें-मुन्नों के लिए जूस बहुत ही अच्छा है क्योंकि बच्चे अन्न, फल, सब्जी नहीं खा सकते लेकिन जूस पी सकते हैं । यह शीघ्र हजम हो जाता है, इससे बच्चों के स्वास्थ्य में दिन-प्रतिदिन प्रगति होती है। बढ़ने वाले बच्चों के लिए भी जूस अच्छा होता है क्योंकि ग्रंथियों के विकास में सहायक होता है। वृद्धों को शक्ति प्रदान करने में, कब्ज तथा पथरी निवारण में जूस बहुत ही उपयोगी है।
गर्भवती महिलाओं के लिए भी जूस अत्यंत हितकर है। गर्भस्थ बच्चा भी जूस के उपयोग से सुंदर बनने लगता है। महिला को सहज में पूर्ण पोषक तत्व मिल जाते हैं। जूस में इंसुलिन की तरह का तत्व होता है। ककड़ी, खीरा तथा प्याज के जूस में वह हार्मोन होता है, जो इंसुलिन उत्पन्न करने के लिए क्लोम के कोष (Pancreas) में आवश्यक है। लहसुन, प्याज, टमाटर के जूस में कीटाणुनाशक तत्व होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फल, सब्जियों के जूस का प्रतिदिन उपयोग करने से बच्चे, वृद्ध और रोगी तथा निरोगी सभी को निश्चित रूप से लाभ होता है। शरीर की अनगिनत कोशिकाओं के लिए आवश्यक निर्माण सामग्रियां जूस के द्वारा पहुंचाई जाती हैं।
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3. सूप (Soup) –
फल, सब्जी के जूस की जगह सब्जी का सूप भी उपयोगी है। जूस की अपेक्षा सब्जी का सूप कम लाभदायक होता है क्योंकि सूप उबालकर बनाया जाता है। उबालने से पोषक तत्व कम हो जाते हैं। फिर भी जहां फल, सब्जी न मिलें, क्रय-शक्ति का अभाव हो या नमकीन पेय की इच्छा हो तो सूप से भी काम चलाया जा सकता है।
4. तुलसी की चाय (Tulsi Tea) –
छोटी इलायची, दाल चीनी, तेजपान, मुलहठी, लालचन्दन, इन पांच चीजों को बराबर लेकर मोटा-मोटा कूट लें और रख लें। जब चाय बनानी हो तो पहले चाय के लिए पानी उबालें, खौलते पानी में इस कुटे हुए चूर्ण में से एक छोटा चम्मच प्रति प्याले के हिसाब से डाल दें तथा कुचला हुआ अदरक और 10 तुलसी की पत्ती डालें, चीनी तथा दूध आवश्यकतानुसार डाल दें और दो मिनट उबलने दें। तुलसी की चाय तैयार है, छानकर पीएं। यह चाय बहुत स्वादिष्ट होती है और पाचन-अंगों तथा हृदय और फेफड़ों को भी स्वस्थ रखती है।
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5. गाय का दूध (Cow’s Milk) –
गाय का दूध पीने से बुद्धि तीक्ष्ण होती है । यह दूध सात्विक होता है तथा इसके सेवन से स्वभाव सौम्य व शांत होता है। गाय का दूध बिमारियों का नाश करता है । इसके सेवन से थकावट, रक्त पित्त, जीर्ण ज्वर जैसी व्याधियां नष्ट होतीं है । गर्मी के मौसम में दूध से बनी लस्सी पीने से नेत्रों की जलन तथा सिर दर्द में आराम मिलता है।
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6. धारोष्ण दुग्ध पान –
गाय के स्तन से सीधे दुग्ध पान किया जावे तो उसके समान दूसरा कोई अमृत पेय नहीं है । बालकों व रोगी को धारोष्ण दुग्ध पान कराने से कमजोरी दूर होती है एवं शक्ति, पुष्टि, बल, वीर्य में वृद्धि होती है। प्राचीन समय में इसलिए प्रत्येक परिवार में गाय का पालन होता था जिससे गाय का शुद्ध धारोष्ण दुग्ध पान किया जा सकता था।
7. दही की लाजवाब लस्सी (Lassi) –
गर्मियों में लस्सी जैसा उत्तम पेय दूसरा नहीं हैं। दही की अपेक्षा यह अधिक पाचक होती है। दही भारी होने के कारण कुछ रोगों में हानिप्रद भी होता है,पर लस्सी नहीं। लस्सी में कैल्शियम, फास्फोरस आदि महत्वपूर्ण खनिज होते हैं। वे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। लस्सी रोचक, पाचक, यकृत (जिगर) को शक्ति देने वाली, कब्ज नाशक संग्रहणी व पीलिया को दूर करने वाली होती है । अतः लस्सी को भूलोक का अमृत कहना गलत नहीं है।
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8. नींबू का रस (Lemon juice) –
शरीर में जो अम्ल (खटाई) का विष उत्पन्न होता है, नींबू उसका नाश करता है। नींबू पोटेशियम अम्ल विष को नष्ट करने का कार्य करता है। प्रचुर मात्रा में स्थित विटामिन ‘सी’ शरीर की रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है और स्कर्वी के रोगों में उपयोगी है। नींबू हृदय को स्वस्थ रखता है। हृदय के रोगों में नींबू, अंगूर से भी अधिक लाभ कारक है। नींबू अति अम्लक है, अन्य फलों की तुलना में इसमें क्षारीयता का प्रमाण अधिक है । दोषी आहार-विहार के कारण शरीर में यूरिक एसिड बनता है। उसका नाश करने के लिए प्रातः खाली पेट गर्म पानी में नींबू का रस लेना चाहिए। अदरक का रस भी उपयोगी है।
पेशाब द्वारा नींबू एसिड को निकालता है। साथ-साथ कब्ज, पेशाब में जलन, खून में खराबी, मंदाग्नि, रक्त विकार और त्वचा के रोगों के लिए तो यह अक्सीर इलाज है। नींबू के रस से दांत और मसूढ़ों की अच्छी सफाई होती है। पायरिया और मुख की दुर्गन्ध को वह दूर कर देता है। यकृत की शक्ति के लिए नींबू अक्सीर है। नींबू का साईट्रिक एसिड भी यूरिक एसिड कानाश करता है। अजीर्ण, छाती की जलन, संग्रहणी, कॉलरा, कफ, सर्दी, श्वास आदि में औषधि का काम करता है।
टाइफाईड के जीवाणुओं का नींबू के रस से तुरंत नाश होता है। खाली पेट में नींबू का रस, कृमि जो अनुपयोगी विषैला एसिड पैदा करता है, उसका नाश करता है। नींबू के सेवन से पित्त शांत होता है । मुंह से पड़ती लार बंद हो जाती है। थोड़े ही दिनों तक नींबू के सेवन से नींबू के रक्त शोधक गुण का पता चल जाता है। रक्त शुद्धि होते ही शरीर में खूब ताजगी महसूस होती है। लहू से विषैले तत्वों का नाश होते ही शरीर की मांसपेशियों को नया बल मिलता है, समस्त शरीर की सफाई करता है, आंखों का तेज बढ़ाता है।
गर्मी मेंनींबू के रस में शक्कर मिलाकर शिकंजी तैयार की जाती है। इससे थकावट दूर होती है। यदि नमकीन शिकंजी बनाना चाहे तो पिसी हुई काली मिर्च, नमक व कुछ मात्रा में शक्कर का उपयोग करना चाहिए। गर्मी में नींबू का रस शहद मिलाकर लेने से सर्दी, कफ, इन्फ्लुएन्जा आदि में पूरी राहत मिलती है। नींबू शहद का पानी लम्बे समय तक लेने से उपवास द्वारा चिकित्सा हो सकती है। कफ, खांसी, दमा, शरीर में दर्द के स्थायी रोगियों को नींबू नहीं लेना चाहिए। रक्त के निम्न दबाव, सिरदर्द आदि में नींबू हानिकारक है।
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9. नारियल पानी (Coconut Water) –
तटीय शहरों में तो यह विशेष रूप से उपलब्ध होता है। आजकल प्रायः सभी जगह कच्चे नारियल मिल जाते हैं। कच्चे नारियल का पानी पीने में बहुत ही मधुर लगता है। इसमें ग्लूकोज की बहुतायत होती है। इसमें सभी पोषक तत्व होते हैं जो हमारे शरीर को शक्ति एवं स्फूर्ति प्रदान करते हैं।
नारियल से तुरंत पानी निकालकर ही सेवन करना चाहिए। पानी निकालकर नहीं रखना चाहिए। पानी पीने के बाद इसमें कच्ची गिरी होती है, उसे भी खा सकते है या उसकी चटनी भी बना सकते हैं। बंद बोतलों में उपलब्ध अनेक प्रकार के ठंडे पेय की बजाय नारियल पानी का सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है। पेट की बीमारी, पीलिया, गुर्दे की बीमारी तथा गर्भवती महिलाओं के लिए उसका सेवन बहुत ही उत्तम है।
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10. गेहूँ के ज्वारे का रस (Wheatgrass Juice) –
विश्वविद्यालय सॉइल एक्सपर्ट (भूमि विशेषज्ञ) डॉ. जीव. एच. थॉमस ने 50 वर्ष के अपने दीर्घकालीन अनुसंधान के आधार पर सिद्ध किया कि गेहूँ के ज्वारे का रस पीकर मनुष्य पूरी जिंदगी बिता सकता है। गेहूँ के ज्वारे का रस संपूर्ण आहार है । औषधि विज्ञान के पश्चिमी पितामाह हिपोक्रेटस के कथनानुसार “आपका आहार ही आपकी औषधि है। “इसके अनुसार गेहूँ के ज्वारे के रस में उत्तम कोटि के पोषक तत्व तो है ही, बल्कि विशुद्ध-निर्मल प्राकृतिक क्लोरीफिल युक्त एवं स्वास्थ्यप्रद आहार भी है। अमेरिका के बोस्टन नगर के अधिकांश चिकित्सकों ने अपने रोगियों को गेहूँ के ज्वारे के रस पर रखा और उसके चमत्कारिक परिणाम आये ।
आप चर्म रोग, मधुमेह, अस्थमा,सर्दी, एलर्जी तथा सन्धिवात से पीड़ित है तो ज्वारे का रस पीना शुरू कर दें। गेहूँ के ज्वार के रस से रक्तशुद्धि होती है। इससे कई रोग स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं। जीवनयापन के लिए जैसे पैसा आवश्यक है, वैसे ही शरीर के प्रत्येक अवयव को स्वस्थ रखने के लिए शुद्ध रक्त आवश्यक है। गेहूं के ज्वारे के लिए कोई खास प्रबंध करने की आवश्यकता नहीं है। मिट्टी के एक गमले में बिना खाद की मिट्टी भर दें तथा इसमें गेहूं के बीज डाल दें। सात इंच लम्बे ज्वारे होने पर काटकर रस निकाल लें और चाय के एक कप जितना रस सवेरे खाली पेट पी लें। फिर दो घंटे तक कुछ भी न लें। भोजन भी बिल्कुल सादा, बिना तला-भुना, बिना मिर्च का लें, सलाद ले सकते हैं। इससे आपकी सारी शिकायतें दूर हो जायेंगी।
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11. बेल का शर्बत (Wood Apple Drink) –
बेल का छिलका कठोर होता है। इसका गुदा नारंगी रंग का अत्यंत स्वादिष्ट एवं सुगंधित होता है। इस फल में पैक्टिन, शर्करा, टैनिन, उड़नशील तेल, तिक्त सत्त्व, निर्यास तथा भस्म होते हैं। भस्म में सोडियम, पोटेशियम, लवण, कैल्शियम, लोह, फास्फेट, कार्बोनेट, सिलिका आदि होते हैं । यह त्रिदोष शमन करने वाला, वमन को रोकने वाला अग्नि दीपक, कटु, तिक्त, शोथ हर, अर्श नाशक, दौर्बल्य नाशक, अपान वायु की दुर्गन्ध दूर करता है।
बेल की जड़, छाल, पत्ते, बीज, गोंद सभी का उपयोग औषधि में होता है। कच्चे फल आग में भूनकर, पक्के फल का गूदा निकालकर शर्बत, मिठाई, मुरब्बा आदि बनाया जाता है। गर्मियों में पकेबेल का शर्बत नियमित पीने से कायाकल्प होता है। यह आंतों को धोकर बल-वीर्य की वृद्धि करता है। चित्त निरोध तथा एकाग्रता प्राप्ति के लिए सन्यासी अनादि काल से बेल का प्रयोग करते हैं।
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12. ठंडाई (Thandai) –
गर्मी में इसका सेवन सर्वोत्तम पेय है। दिल व दिमाग को भरपूर ताजगी प्रदान करने के लिए प्रतिदिन प्रातःकाल या सायं एक गिलास ठंडाई का सेवन करना अत्यंत हितकारी है। ठंडाई यदि घर ही में तैयार की जावे तो बहुत लाभदायक होती है। इसमें बादाम की गिरी, सौंफ, खसखस के दाने, गुलाब के फूल की पत्तियां, कालीमिर्च, ककड़ी, खरबूजा व तरबूज के बीज की गिरी आदि उपयुक्त मात्रा में मिलाकर पीस लें। फिर इसमें शक्कर मिलाकर दूध एवं पानी के साथ कपड़े से छाना जाता है। ठंडाई प्रत्येक उम्र के व्यक्ति के लिए हर मौसम में उपयुक्त स्वास्थ्यवर्धक पेय है।
13. रस एवं शर्बत (Juice and Sarbath) –
बादाम, केवड़ा आदि के शर्बत भी तैयार मिलते हैं। इनका सेवन भी गर्मियों में किया जाता है।