मिरगी (मिर्गी) में क्या खाएं क्या न खाएं

Last Updated on July 14, 2021 by admin

जब राह चलते-चलते या बैठे-बैठे कोई व्यक्ति गिर पड़े, अचेत हो जाए और उसका शरीर ऐंठ जाए, मुंह से झाग आने लगे, होंठ भिंच जाएं, आंखें उलटी-सी दिखें, तो समझें कि उसे मिर्गी का दौरा पड़ा है। इस दौरान रोगी की जीभ दांतों के बीच आकर कट सकती है। अतः दांतों के बीच चम्मच आदि रख दें जिससे जीभ न कटे। दोरे के समय रोगी का अपने आप पेशाब भी निकल सकता है। वैसे मोटे तौर पर समझा जाए कि मिर्गी मस्तिष्क में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाने का ही परिणाम होता है। दौरा अचानक और बहुत जल्द पूरा असर दिखा देने के कारण मरीज संभल भी नहीं पाता।

मिरगी (मिर्गी) रोग के प्रमुख कारण :

मिर्गी उत्पन्न होने के प्रमुख कारणों में –

  • अत्यधिक मानसिक व शारीरिक कार्य करना,
  • हस्तमैथुन की अधिकता,
  • सिर पर चोट लगना,
  • बहुत ज्यादा शराब पीना,
  • तेज बुखार होने के बाद,
  • मैनिनजाइटिस,
  • ब्रेन ट्यूमर,
  • मस्तिष्क ज्वर,
  • लकवा,
  • दिमागी तरंगों की स्वाभाविक लय में गड़बड़ी होना,
  • अधिक चिंता,
  • रक्त में ग्लूकोज की कमी या अधिकता,
  • आनुवांशिक रोग,
  • स्त्रियों में मासिक धर्म संबंधी खराबी,
  • दिमागी ऊतकों को आक्सीजन न मिलना आदि होते हैं।

मिर्गी रोग के प्रमुख लक्षण :

रोग के लक्षणों में –

  • अचानक मूर्छित होना,
  • मुंह से झाग निकलना,
  • पैर और चेहरे पर कंपन,
  • शरीर का अकड़ना,
  • दांतों का भिंच जाना,
  • पेशाब निकलना,
  • एकदम चुपचाप अथवा एकाएक चिल्ला कर बेहोश होना,
  • हाथ-पैरों का इधर-उधर पटकना,
  • पसीना छूट जाना,
  • गर्दन का टेढ़ा हो जाना,
  • दौरे के बीच स्मृति का लोप होना,
  • हृदयगति अत्यंत बढ़ना आदि देखने को मिलते हैं।

मिर्गी की समस्या में क्या खाएं :

✓ गेहूं के आटे की चोकर सहित बनी चपाती, भुनी हुई अरहर, मूंग की दाल आहार में लें।
✓ आहार सीमित मात्रा में सोने के दो घंटे पहले खाएं।
✓ फलों में आम, अंजीर, अनार, संतरा, सेब, नाशपाती, आडू, अनन्नास का सेवन करें।
✓ अंकुरित मोठ, मूंग, दूध, दूध से बने पदार्थ के साथ नाश्ते में खाएं।
✓ मेवे में बादाम, काजू, अखरोट सेवन करें।
✓ भोजन के साथ गाजर का मुरब्बा, पुदीने की चटनी खाएं।
✓ लहसुन तेल में सेंक कर सुबह-शाम खाएं और कच्ची कली तोड़कर सूंघे।

मिर्गी रोग में क्या न खाएं :

✘ आवश्यकता से अधिक भारी, गरिष्ठ, तले, मिर्च-मसालेदार चटपटा भोजन न खाएं।
✘ वात कारक भोज्य पदार्थ जैसे-उड़द, राजमा, कचालू, गोभी, मसूर की दाल,चावल, बैगन, मछली, मूली, मटर का सेवन न करें।
✘ उत्तेजक पदार्थों में कड़क चाय, कॉफी, तंबाकू, गुटखे, शराब, मांसाहारी भोजन,पिपरमेंट आदि का परहेज करें।
✘ अधिक शीतल और अधिक उष्ण पदार्थों का सेवन न करें।

( और पढ़े – मिर्गी के अचूक घरेलू इलाज )

रोग निवारण में सहायक उपाय :

क्या करें –

✓ नियमित रूप से सुबह-शाम खुली हवा में घूमने जाएं।
✓ दौरा पड़ने के बाद चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे मारें।
✓ पूर्ण विश्राम कराने के लिए रोगी को करवट से लिटाएं।
✓ तंग कपड़ों के बटन खोल दें।
✓ तकिया लगाकर सिर ऊंचा कर दें।
✓ कमर का पटा, टाई, जूते सभी ढीले कर दें।
✓ दांतों के बीच संभव हो, तो चम्मच आदि कोई साफ चीज फंसा दें, जिससे जीभ न कटे।
✓ हाथ-पैरों को रगड़ कर या अन्य उपाय से गर्म रखें।
✓ शुद्ध हवा रोगी को मिले, ऐसा इंतजाम करें।

क्या न करें –

✘ दौरे के वक्त रोगी की गतिविधियों या अंग संचालन को न रोकें।
✘ रोगी व्यक्ति को किसी भी प्रकार का वाहन, साइकिल आदि न चलाने दें।
✘ रोगी को पेट के बल न लिटाएं। इससे नाक, मुंह तकिए से दब सकते हैं और श्वास घुट सकती है।
✘ ज्यादा मानसिक और शारीरिक कार्य न करें।
✘ मल-मूत्र आदि वेगों को न रोकें।
✘ सभी प्रकार की उत्तेजनाओं तथा मानसिक तनाव से बचें।
✘ पूरी रात का जागरण कभी न करें।
✘ दौरों के दिनों में मैथुन न करें।
✘ आग, पानी, अधिक ऊंचाई, गहराई, लड़ाई-झगड़े के माहौल में न जाएं।

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