Last Updated on December 7, 2021 by admin
क्या है डायबिटिक फुट अल्सर ? (Diabetic Foot Ulcer in Hindi)
अनेक बीमारियों की जननी मधुमेह की एक घातक परिणति (साइड इफेक्ट) है – डायबिटिक फुट अल्सर। डायबिटीज रोगी के पैरों में अगर कोई घाव ,जख्म या छाला पड़ गया है तो इस समस्या को हल्के में बिल्कुल भी न ले क्योंकि रोगी के पैर का यह छाला या जख्म डायबिटिक फुट अल्सर भी हो सकता है।
डायबिटिक फुट अल्सर के कारण (Diabetic Foot Ulcer Causes in Hindi)
डायबिटिक फुट अल्सर क्यों होता है ?
कई बार गलत नाप के तथा हाई हील वाले जूते-जूतियां भी डायबिटिक फुट अल्सर के कारण बन सकते हैं । मधुमेह के मरीजों के पैरों में गैंग्रीन एवं अल्सर होने की आशंका सामान्य लोगों की तुलना में 50 गुना ज्यादा होती है मधुमेह रोगियों के घाव की उचित देखभाल एवं इसे संक्रमण से बचाए रखना सबसे जरूरी होता है। इसके इलाज के दरमियान रोजाना घाव की ड्रेसिंग की जानी चाहिए, सड़ गए ऊतकों को समय-समय पर काट कर निकालते रहना चाहिए, रक्त शक्कर के स्तर पर नियंत्रण रखना चाहिए, मवाद या पस को इकट्ठे नहीं होने देना चाहिए और एंटीबायोटिक तथा अन्य दवाइयों की मदद से पैरों को संक्रमणों से बचाना चाहिए।
इसके अलावा रोग ग्रस्त पैर की जांच डॉप्लर अथवा सामान्य एंजियोग्राफी या डिजिटल सबट्रैक्शन एंजियोग्राफी से की जानी चाहिए। धमनी से बहुत ज्यादा रुकावट एवं रुग्ण पाए जाने पर धमनी पुनर्निर्माण या धमनी बाईपास जैसे ऑपरेशन की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन ये ऑपरेशन अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से सुसज्जित अस्पताल में ही कराने चाहिए।
डायबिटिक फुट अल्सर के जोखिम और जटिलताएं (Diabetic Foot Ulcer Risks & Complications in Hindi)
डायबिटिक फुट अल्सर में कई बार जख्म इतना गंभीर हो जाता है कि सारे उपायों के बाद भी कोई लाभ नहीं होता है और तब मरीज की जान तथा शरीर के महत्त्वपूर्ण अंगों को बचाने के लिए पैर के गैंगरीन तथा संक्रमण युक्त हिस्से को काटना पड़ता है। इसे डिजिटल एंप्यूटेशन अथवा ट्रांस मेटाटारसल एम्प्यूटेशन कहा जाता है। कुछ खास परिस्थितियों में स्किन ग्राफ्टिंग एवं मायो क्यूटेनियस फ्लैप से भी घाव भरने में मदद मिलती है।
पेरीफेरल पॉली न्यूरोपैथी के लक्षण पैरों और टाँगों में प्रकट होते ही सचेत हो जाना चाहिए। पेरीफेरल पोलीन्यूरोपैथी में पैरों में झनझनाहट, संवेदनशीलता में गिरावट और चमड़ी छूते ही बुरी तरह दर्द (हाइपर स्थितियां) और रात में पैरों में रुक-रुककर जोड़ों का दर्द होता है । ऐसे लक्षण उभरने पर पैरों को हर हाल में किसी भी चोट से बचाना चाहिए।
डायबिटिक फुट अल्सर के लक्षण (Diabetic Foot Ulcer Symptoms in Hindi)
डायबिटिक फुट अल्सर के क्या लक्षण होते हैं ?
डायबिटिक फुट अल्सर के लक्षणों में –
- पैरों की त्वचा का रंग बदलना,
- पैरों की त्वचा में रूखापन व सनसनाहट का होना,
- पैरों की त्वचा में संवेदनशीलता की कमी,
- पैरों में घाव होना,
- चलने पर पैरों में दर्द होना,
- पैरों में सूजन होना,
- पैरों की त्वचा से पानी बहना,
डायबिटिक फुट अल्सर गंभीर समस्या है अगर रोगी में ऊपर बताए किसी भी तरह के लक्षण है तो इसे हल्के में न ले और तुरंत डॉक्टर से संपर्क कर इसका इलाज करा ले।
डायबिटिक फुट अल्सर से बचाव के उपाय (Prevention of Diabetic Foot Ulcer in Hindi)
डायबिटिक फुट अल्सर की रोकथाम कैसे करें ?
- डायबिटिक फुट को हमेशा साफ-सुथरा एवं सूखा रखें।
- मधुमेह के मरीजों को कतई नंगे पैर नहीं चलना चाहिए। घर के अंदर भी उन्हें नंगे पैर नहीं चलना चाहिए।
- हमेशा सही नाप के जूते एवं मोजे पहनें।
- मधुमेह के कारण पैरों की संवेदनशीलता समाप्त हो जाने के कारण गलत या सख्त जूतों से होने वाले घाव का पता नहीं चलता है।
- मधुमेहग्रस्त महिलाओं को फैशनेबल एवं डिजाइनदार जूतियों के बजाय सही नाप वाली एवं आरामदायक जूतियाँ पहननी चाहिए।
- प्रतिदिन डायबिटिक फुट का निरीक्षण करना चाहिए। अगर चमड़ी कहीं से सख्त दिखाई दे या उसमें खरोंच (एबेसन) अथवा फफोले (ब्लीस्टर) दिखाई दें तो तत्काल सुयोग्य कॉर्डियो वैस्कुलर सर्जन को दिखाना चाहिए।
- मधुमेह के मरीजों को धूम्रपान कतई नहीं कराना चाहिए।
- जर्दायुक्त पान मसाले या अन्य मादक द्रव्यों से परहेज करना चाहिए।
- डायबिटिक फुट में जख्म होने पर किसी सामान्य चिकित्सक या सर्जन को दिखाने के बजाय कार्डियो वैस्कुलर सर्जन से इसका इलाज कराना चाहिए।
- मरीज को सामान्य एवं छोटे अस्पताल में इलाज कराने के बजाय अत्याधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित अस्पताल में इलाज कराना चाहिए।