Last Updated on May 19, 2023 by admin
ताड़ का पेड़ कैसा होता है ? :
ताड़ का वृक्ष सीधा, लम्बा और मिस्ल नारियल के वृक्ष के समान होता है। ताड़ के वृक्ष में डालियां नहीं होती है। ताड़ के तने से ही पत्ते निकलते हैं। ताड़ नर तथा नारी दो प्रकार के होते हैं। नर वृक्ष पर फूल लगते हैं, नारी वृक्ष पर नारियल की तरह गोल फल लगते हैं। इसके तने को शुरू में ही काटकर जो रस निकाला जाता है, वही ताड़ी के नाम से प्रसिद्ध है।
विभिन्न भाषाओं में ताड़ वृक्ष का नाम :
संस्कृत | ताल, तृणराज |
हिंदी | ताड़ |
बंगाली | ताल |
मराठी | ताड़ |
गुजराती | ताड़ |
फारसी | ताल |
अरबी | तार |
अंग्रेजी | पल्मीरा पाम |
ताड़ के गुण :
- रंग : ताड़ का वृक्ष बाहर से लाल व अंदर से सफेद रंग का होता है।
- स्वाद : इसका स्वाद मीठा व बदबूदार होता है।
- प्रकृति : ताड़ कच्चा व पक्का ठंडा और रूखा होता है।
- ताड़ रक्त विकार (खून के दोष) को खत्म करता है।
- यह शरीर को मोटा व ताकतवर बनाता है।
- इससे एक प्रकार की शराब बनाई जाती है जिसे ताड़ी के नाम से जाना जाता है।
- ताड़ी शरीर को बलवान बनाती है तथा नशा लाती है व कफ को नष्ट करती है।
- इसका सिरका पाचक होता है तथा यह प्लीहा के विकारों को नष्ट करता है।
- इसका पका हुआ फल पित्त, रक्त तथा कफ को बढ़ाने वाला, मूत्रवर्द्धक (पेशाब को बढ़ाने वाला), तन्द्रा (नींद को लाने वाला) तथा वीर्य की मात्रा को बढ़ाने वाला होता है।
- इसकी ताजी ताड़ी हल्की, चिकनी तथा मीठी होती है।
- यह नशा लाने वाली, कफ को बढ़ाने वाली व दस्त लाने वाली होती है।
- यूनानी चिकित्सा मतानुसार ताड़ शीतल (ठंडा), थकान को दूर करने वाला तथा पेशाब को साफ करने वाला होता है।
विभिन्न रोगों में ताड़ के फायदे और उपयोग :
1. मानसिक उन्माद (पागलपन): लगभग 14 से 25 मिलीलीटर ताड़ के पत्तों का रस दिन में 2 बार सेवन करने से मानसिक उन्माद, बेहोशी और प्रलाप आदि रोगों में लाभ मिलता है।
2. उदर रोग (पेट के रोग): ताड़ के 1 ग्राम फल की जटा भस्म को गुड़ के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से पेट के रोग ठीक हो जाते हैं।
3. जलोदर (पेट में पानी भर जाना): ताड़ के फूलों के गुच्छे से प्राप्त रस को निकालकर पीने से पेशाब खुलकर आता है और जलोदर रोग में लाभ मिलता है।
4. नष्टार्त्तव (मासिकधर्म बंद हो जाना): लगभग 14 से 28 मिलीलीटर ताड़ के फल की जटा का क्वाथ (काढ़ा) दिन में सुबह और शाम सेवन करने से आराम मिलता है।
5. डकार आना: ताड़ के कच्चे गूदे का पानी पीने से डकार, वमन (उल्टी) और उबकाई आना बंद हो जाती है।
6. हिचकी: ताड़ के कच्चे बीजों को दूध के साथ सेवन करने से हिचकी दूर होती है।
7. कालाजार – हल्के-हल्के बुखार के साथ प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि हो तो ताड़ के फल की जटा भस्म लगभग 3-6 ग्राम की मात्रा सुबह और शाम को रोगी को सेवन कराएं इससे उसका बुखार उतर जाएगा।
8. अन्ननली में जलन: ताड़ के फल की जटा भस्म 3 से 6 ग्राम की मात्रा सुबह और शाम सेवन करने से अम्लपित्त के कारण होने वाली अन्ननली की जलन ठीक हो जाती है।
9. यकृत का बढ़ना: ताड़ के फल की जटा भस्म 3-6 ग्राम की मात्रा सुबह-शाम सेवन करने से यकृत वृद्धि और टाइफाइड के बुखार में लाभ मिलता है।
10. उपदंश (फिरंग): ताड़ी के हरे पत्तों का रस पीने से सूजन और घाव मिट जाता है।
ताड़ के दुष्प्रभाव :
यह देर में हजम होता है।
दोषों को दूर करने वाला : गुड़ ताड़ के दोषों को दूर करता है।
अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।