Last Updated on September 4, 2020 by admin
आंत की सूजन यानी आंत्रशोथ का रोग दूषित/ संक्रमित पेयजल और बासी/दूषित भोजन का सेवन करने से होता पाया गया है। वर्षा ऋतु में यह रोग व्यापक रूप से फैलता है। जरा सी लापरवाही इस रोग को आमंत्रित कर बैठती है। चिकित्सा विशेषज्ञों की राय है कि आंव खून युक्त पेचिश के कारण आंत में सूजन की बीमारी होती है। अतः इसे कभी हल्के में मत लें।
आंत की सूजन (आंत्रशोथ) रोग क्या है ? (What is Ulcerative Colitis in Hindi)
aantrashoth rog kya hai –
ग्रीष्म ऋतु के बाद वर्षा की शीतल फुहारें सभी का मन मोह लेती हैं। बारिश की रिमझिम में सभी का मन भीगने को करता है। जहां वर्षा ऋतु इतनी सुहावनी होती है वहीं वर्षाऋतु में अनेक रोग फैल कर सुहावने मौसम को कष्टदायक बना देते हैं।
वर्षाऋतु में नदी, कुएं, तालाबों का जल दूषित हो जाता है। दूषित जल पीने से अतिसार, हैजा, पेचिश, वात विकार और आंत्रशोथ रोग तीव्र गति से फैलते हैं। दूषित जल के कारण वर्षा ऋतु में फोड़े-फुंसी पेट के रोग, खाज-खुजली, एक्जिमा, दाद आदि त्वचा के रोगों से बचा नहीं जा सकता है।
आंत्रशोथ यानी आंत की सूजन दूषित जल से फैलने वाला बहुत कष्टदायक रोग है। आंत्रशोथ की उत्पत्ति दूषित भोजन से भी होती है। जब बहुत दिनों तक तीखे मिर्चमसाले से बना भोजन किया जाता है। अधिक अम्लीय खाद्य पदार्थ चाइनीज व्यंजन व फास्टफूड का सेवन करने से पेट में अम्लता बढ़ जाने पर आंत में सूजन की विकृति होती है। एलोपैथी चिकित्सा में आंतशोथ को ‘कोलाइटिस’ (Colitis) कहा जाता है। यूनानी चिकित्सा में ‘सहजल् अम्आड’ और ‘परभूलअम्आड’ कहते हैं।
अधिक अम्लीय खाद्य पदार्थों के सेवन से आंत का भीतरी भाग क्षोभ की विकृति से छिल जाता है। फिर उन छिले हुए भाग में व्रण (जख्म) बन जाते हैं।
चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार बैसिलरी डिसेन्ट्री (पेचिस) के कारण आंत सूजन की विकृति होती है। क्षयरोग लंबे समय तक चलने पर उसके जीवाणु ट्यूष कर्ललस एण्टीरो कोलायटिस (Enterocolitis) की उत्पत्ति करते हैं। उस शोथ (Colitis) को ‘बृहद् आंत्र शोथ’ कहा जाता है।
आंतों की संरचना और कार्य (Intestinal Structure and Function in Hindi)
आंत को तीन भागों में विभक्त किया जाता है। छोटी आंत, बड़ी आंत और मध्य आंत । व्यक्ति की प्राकृतिक लंबाई के अनुसार छोटी आंत 5 से 5.97 मीटर लंबी होती है। विशेषज्ञों का ऐसा विचार है कि मृत व्यक्ति की आंत्र एक मीटर तक बढ़ जाती है।
छोटी आंत का अग्रभाग ग्रहणी ड्यूडीनम (Duodenum) कहलाता है। इस भाग की लंबाई 25 से. मी. होती है। ग्रहणी का कार्य आमाशय से आए आधे पचे हुए आहार को एकत्र करना है। तत्पश्चात अधपके आहार की पित्ताशय की ओर भेज देता है। आंत्रों की श्लैष्मिक कला (झिल्ली) से निकलने वाले स्राव से अधपके आहार को पचाया जाता है।
मध्य आंत को शेषांत्र भी कहा जाता है। इसका आकार कुण्डली की तरह होता है। इतनी लंबी होने पर भी उदर में समा जाती है। मध्य आंत का आकार 4 से. मी. होता है। इसका रंग अधिक लाल व आकार स्थूल होता है। बड़ी आंत में पुरीष (मल) एकत्र होता है। बड़ी आंत्र मध्य आंत से मलद्वार 1.5 मीटर तक होता है। मलद्वार के पास इसका व्यास कम हो जाता है।
आंत्रशोथ रोग (आंत में सूजन) में जीवाणुओं की बहुत अहम भूमिका रहती है। जीवाणुओं के संक्रमण से आंत्रशोथ विकसित होता है। मानसिक तनाव का भी इस रोग में बहुत हाथ रहता है।
लंबे समय तक पेचिश बने रहने के कारण जीवाणुओं के संक्रमण से आंत्रशोथ हो जाता है। आंत्रशोथ की विकृति 20 से 40 वर्ष के व्यक्तियों में अधिक होती हैं। प्रौढ़ावस्था में आंत्रशोथ की विकृति बहुत कम होती है। आंत्रशोथ में मल त्याग के समय ऐंठन की विकृति देखी जाती है। प्रारंभ में रोगी को अतिसार होता है। रोगी के शरीर का भार धीरे-धीरे कम होता जाता है। कभी-कभी रक्त की कमी के लक्षण भी देखे जाते हैं। शरीर में विटामिन और प्रोटीनों का अभाव दिखाई देता है। आंत्रशोथ में नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है। रोगी को ज्वर भी हो सकता है। हाथ से दबाकर देखने पर नाभि के नीचे पीड़ा होती है। रोगी को अफारा भी हो जाता है।
आंत में सूजन (आंत्रशोथ) के कारण (Ulcerative Colitis Causes in Hindi)
aanto me sujan kyu aa jati hai –
1) दूषित आहार – अल्प मात्रा में आहार ग्रहण, व्रत-उपवास अधिक करने और खाली पेट रहने, दूषित आहार, बासी भोजन व सब्जी फ्रिज में रखा शीतल खाद्य पदार्थ खाने से आंत्र शोथ हो सकता है।
2). गरिष्ठ खाद्य पदार्थों का सेवन – आयुर्वेदानुसार गुरू एवं गरिष्ठ खाद्य पदार्थों,उड़द की दाल से बने खाद्य पदार्थ, चॉकलेट, मांस-मछली, छोले भटूरे, समोसे, पिज्जा और चाइनीज व्यंजन खाने से पेट में अम्लीय रस अधिक बनने से आंत्र की श्लैष्मिक कला (झिल्ली) में घाव बन जाते हैं ।
3). अनियमित भोजन – अनियमित भोजन करने से भी आंत्रशोथ की विकृति होती है।
4). मानसिक तनाव – इसके अलावा व्रत उपवास मानसिक तनाव, चिंता व शोक की स्थिति में पेट में आमाशयिक रसों की अधिक उत्पत्ति होती है। इन रसों के कारण आमाशय में अम्लता अधिक बढ़ जाती है।
5). नशीले पदार्थों का सेवन – स्त्रियों की अपेक्षा पुरूष आंत्र शोथ से अधिक पीड़ित होते हैं क्योंकि पुरूषों में शराब पीने व धूम्रपान की आदत भी अधिक होती है। शराब पीने से यकृत (जिगर) को हानि पहुंचती है। चाय, कॉफी और तम्बाकू का सेवन करने से अम्लता अधिक बढ़ जाती है जो आंतों को जला कर जख्म बना देती हैं।
6). रात्रि में विलम्ब से भोजन – रात्रि में विलम्ब से भोजन करने और मदिरापान करने से आंत्रशोथ की उत्पत्ति अधिक होती है। रात को भोजन करते ही सो जाने वाले भी आंत्रशोथ से अधिक पीड़ित होते हैं।
7). प्रकृति विरूद्ध आहार – प्रकृति विरूद्ध भोजन करने से अम्लता अधिक होती है जो आंत्रशोथ की उत्पत्ति में सहायता करती है।
8). पेट में कृमि – पेट में कीड़े होने से आंतों में रहकर रक्तपान करते हुए अंगों में जख्म बना देते हैं।
9). चोट – कभी-कभी पेट पर चोट लग जाने के कारण भी कोई घाव हो जाने से आंत्रशोथ की स्थिति बन सकती है।
आंत में सूजन (आंत्रशोथ) के लक्षण (Ulcerative Colitis Symptoms in Hindi)
aanto me sujan ke lakshan –
- आंत्रशोथ या आंत की सूजन होने पर रोगी के शौच करते समय मल के साथ पूय या (पीव) रक्त निकलता है।
- शौच के समय पेट में मरोड़ और ऐंठन के साथ तीव्र शूल भी हो सकता है।
- रोगी की भूख कम हो जाती है।
- उल्टी होना ।
- रोगी ज्वर से पीड़ित हो सकता है।
- आंत्रों में जलन होने से रोगी बेचैन और परेशान होता है।
- पांवों के तलवों में जलन होना ।
- थकावट व शारीरिक शक्ति भी क्षीण हो जाती है।
आंत में सूजन (आंत्रशोथ) के घरेलू उपचार (Ulcerative Colitis Ayurvedic Treatment in Hindi)
aanto me sujan ke gharelu upay –
आंत्रशोथ से सुरक्षा के लिए रोगी को मिर्च-मसाले और बाजार के तेल-मिर्च के चटपटे खाद्यों का सेवन एकदम बंद कर देना चाहिए। जल अधिक मात्रा में पीना चाहिए।
1). दूध – जल पीने से अम्लता का प्रभाव कम होता है।आंत्रशोथ विकृति में रोगी की आंत्रों में तीव्र जलन व पीड़ा होती है। ऐसे रोगी को ठण्डा दूध लेने से तुरंत जलन शांत होती है।
2). एरण्ड तेल – कोष्ठबद्धता के कारण आंत्रशोथ अधिक तीव्र होता है। आंतों में मल एकत्र होने और सड़ने से रोग अधिक उग्र होता है। दूध में एरण्ड तेल मिलाकर रात्रि के समय पीने से कोष्ठबद्धता नष्ट होती है । ईसबगोल या त्रिफला चूर्ण दूध के साथ सेवन करने से कोष्ठबद्धता नष्ट होती है।
3). नागर मोथा – नागर मोथा, कुटज की छाल, अतीस, बेलगिरी और उशीर बराबर मात्रा में लेकर, थोड़ा-सा कूट कर जल में देर तक उबाल कर क्वाथ बनाकर पीने से आंत्रों का शूल और रक्तस्राव नष्ट होता है।
4). हींग – अतीस, हींग, बच, काला नमक, त्रिकटु को कूट कर जल में मिलाकर, छानकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पिलाने से आंत्रशोथ में बहुत लाभ होता है।
5). सोंठ – चित्रक की जड़, इंद्रजव, सोंठ, कुटकी, पाठा, पीपरामूल और हरड़ को बराबर मात्रा में लेकर, कूट-पीसकर खूब बारीक चूर्ण को 3-3 ग्राम मात्रा में दिन में दो-तीन बार हल्के गर्म जल के साथ सेवन करने से आंत्र शोथ का निवारण होता है।
6). हरड़ – सहिजन छाल, नागरमोथा, देवदारू, सोंठ, हरड़, बच, अतीस सभी चीजें 10-10 ग्राम मात्रा में लेकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना कर रखें। 10 ग्राम चूर्ण का फाण्ट बना कर रोगी को दो-तीन बार पिलाने से आंत्रशोथ की विकृति नष्ट होती है। इस फाण्ट में मिश्री मिलाकर सेवन कर सकते हैं।
7). इंद्रजौ – बेलगिरी, खस, नागरमोथा, अतीस, इंद्रजौ को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लें । दोपहर को भोजन में पहले 5 ग्राम चूर्ण जल के साथ सेवन करने से आंत्र शोथ में लाभ होता है।
8). जीरा – 1 से 3 रत्ती पंचामृत पर्पटी भुने हुए जीरे के चूर्ण और मधु मिलाकर सेवन करने से उदर पीड़ा में बहुत लाभ होता है। 40 दिन तक सेवन करें। (1 रत्ती = 0.1215 ग्राम)
9). अनार – अनार के वृक्ष की ताजी छाल और कुटज छाल को थोड़ा-सा कूटकर, जल में देर तक उबाल कर काढ़ा बनाएं। काढ़े को छानकर उसमें मधु मिलाकर सेवन करने से आंत्रशोथ की जलन नष्ट होती है।
आंत में सूजन (आंत्रशोथ) आयुर्वेदिक चिकित्सा (Ulcerative Colitis Ayurvedic Treatment in Hindi)
aanto me sujan ayurvedik dawa –
आमातिसार और रक्तातिसार होने पर इन्हें रोकने के लिए आयुर्वेदिक औषधियां देनी चाहिए। आयुर्वेदिक चिकित्सा के अंतर्गत निम्न औषधियों का प्रयोग चिकित्सक परामर्शानुसार प्रयोग करने पर लाभदायक है।
1). गंगाधर चूर्ण – गंगाधर चूर्ण 1 से 3 ग्राम सुबह-शाम मधु के साथ सेवन करने से आंत्रशोथ में बहुत लाभ होता है। इस चूर्ण का आंतों पर बहुत गुणकारी प्रभाव होता है।
2). कुटजघन वटी – कुटजघन वटी की 2 से 4 गोली दिन में तीन-चार बार शीतल जल से सेवन करने पर आंत्रशोथ में लाभ होता है।
3). शंखवटी – शंखवटी भी आंत्रशोथ में बहुत लाभ पहुंचाती है। 1 या 2 गोली दिन में दो-तीन बार हल्के गर्म जल सेवन करने पर आंत्रशोथ में शूल और बेचैनी को नष्ट करती हैं।
4). सूतशेखर रस – सूतशेखर रस 1-1 गोली खरल में पीसकर मधु के साथ सेवन करने से आंत्रशोथ में बहुत लाभ होता है। आंत्रों की श्लैष्मिक कला में शोथ को नष्ट करता है। शूल और वमन विकृति भी नष्ट होती है। अनार के रस के साथ भी सेवन कर सकते हैं।
5). बोलबद्ध रस – बोलबद्ध रस 2 से 4 रत्ती की मात्रा में मिश्री मिले हुए मधु के साथ सेवन करने से आंतो से मल के साथ निकलने वाला रक्त बंद होता है। (1 रत्ती = 0.1215 ग्राम)
आंत की सूजन (आंत्रशोथ) में आहार, परहेज और सावधानियाँ
aanto ki sujan me kya khaye –
- आंत्रशोथ की विकृति में रोगी को अनार का रस, पपीता, और बेलगिरी फल खाने से बहुत लाभ होता है।
- अनार का शर्बत और बेलगिरी का शर्बत दिन में दो बार पीने से आंत्रशूल नष्ट होता है।
- गाजर का रस भी आंत्रशोथ में बहुत लाभ पहुंचाता है।
- आंत्रशोथ के रोगी को एक साथ अधिक भोजन नहीं करना चाहिए।थोड़ा-थोड़ा भोजन कई बार करना चाहिए।
- भोजन के साथ दिन में दो बार तक्र (छाछ) या दही का सेवन अवश्य करना चाहिए।
- दोपहर के भोजन में खिचड़ी, दलिया ले सकते हैं।
- टिण्डा, घी या तोरई, परवल की सब्जी, मूंग व मसूर की धुली हुई दाल का सेवन करना चाहिए।
- सब्जियों को मिर्च व घी से छोंकना नहीं चाहिए।
- सुबह के नाश्ते में रोगी साबूदाना व मूंग की दाल-चावल व खिचड़ी ले सकते हैं।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)