अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण, कारण और इलाज – Ulcerative Colitis in Hindi

Last Updated on April 8, 2024 by admin

अल्सरेटिव कोलाइटिस क्या है ? (What is Ulcerative Colitis in Hindi)

सामान्य इंसान के लिए अल्सरेटिव कोलाइटिस यह शब्द ज्यादा जाना-पहचाना नहीं है परंतु इसके लक्षण बहुतों में पाए जाते हैं। अल्सरेटिव कोलाइटिस यह बड़ी आँत की बीमारी है। यह एक प्रकार का अतिसार है, जिसमें बड़ी आँत और मलाशय में व्रण उत्पन्न हो जाते हैं। इसके परिणाम स्वरूप अतिसार के साथ खून और आँव निकलता है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस के कारण (Ulcerative Colitis ke Karan in Hindi)

अल्सरेटिव कोलाइटिस क्यों होता है ?

वैसे इस व्याधि का निश्चित कारण अथवा जीवाणु का ज्ञान नहीं हो पाया है किंतु रुग्णों के निरीक्षण से यह ज्ञात हुआ है कि –

  • जो लोग क्रोध को व्यक्त नहीं करते,
  • अत्याधिक सोच-विचार करते हैं,
  • मन पर अधिक भार रखते हैं,
  • बहुत ज्यादा चिंता करते हैं,
  • अपने काम में अत्याधिक संलग्न रहते हैं,

ऐसे लोगों के मस्तिष्क में स्थित हायपोथेलेमस (Hypatholams) उत्तेजित होकर बड़ी आँतों के निम्न भाग में जानेवाली व आँतों को गति देनेवाली नाड़ी विशेषतः विक्षुब्ध होती है, जिससे उनका वृहदआँत (बड़ी आँत) अधिक गतिशील बनी रहती है। इन विक्षोभों के कारण वृहदआँत में म्युसीनेस (Mucinase) या लायसोजाइम (Lysozyme) की उत्पत्ति भी अधिक मात्रा में होती है, जिससे मल में आँव (म्यूकस) आने लगता है । वृहदआँत में व्रण की उत्पत्ति होती है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस के लक्षण (Ulcerative Colitis ke Lakshan in Hindi)

अल्सरेटिव कोलाइटिस के संकेत और लक्षण क्या होते हैं ?

प्राय: युवावस्था में 20-40 वर्ष की आयु में यह रोग होता है । इस रोग का प्रमुख लक्षण है –

  • पतले दस्त होना ।
  • अधिक दस्त के कारण शरीर में द्रव पदार्थ कम हो जाता है और कभी-कभी सोडियम व पोटैशियम जैसे आवश्यक घटकों का संतुलन बिगड़ जाता है।
  • वृहदआँत में व्रण हो जाते हैं।
  • बुखार आना।
  • धड़कन बढ़ जाना।
  • पेट में वेदना आदि लक्षण भी पाए जाते हैं।
  • रोग यदि पुराना हो जाए तो वृहदआँत पूरी तरह विकृत हो जाती है और रुग्ण को हमेशा ही दस्त रहते हैं। रक्तस्राव होने के कारण रक्ताल्पता (Anaemia) हो जाती है।
  • शरीर का वजन कम हो जाता है व निर्बलता आती है।
  • इसके उपद्रव स्वरूप बवासीर, संधिवात, स्पॉण्डलायटिस, शीतपित्त, यकृत विकार इत्यादि रोग भी हो सकते हैं ।
  • इस रोग में बार-बार उत्तेजना के कारण अल्सरेटिव कोलाइटिस कैंसर में रूपांतरित होने की संभावना रहती है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस का निदान (Ulcerative Colitis ka Nidan in Hindi)

अल्सरेटिव कोलाइटिस का परीक्षण कैसे किया जाता है ?

इस बीमारी का निदान ‘सिग्माइडोस्कोपी’ तथा ‘कोलोनोस्कोपी’ द्वारा मरीज के आँतों के भीतर के
जख्म देखकर किया जाता है । आँतों की अत:कला (Biospy) का टुकड़ा लेकर लेबोरेटरी में जाँच की जाती है। इसके बाद रोगी को ‘बेरियम’ एनिमा देकर एक्सरे द्वारा जाँच की जाती है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस की एलोपैथिक चिकित्सा :

अल्सरेटिव कोलाइटिस का इलाज कैसे करें ?

अल्सरेटिव कोलाइटिस के इलाज के लिए अभी तक ऐसी कोई एलोपैथिक दवा तैयार नहीं हुई है, जिससे रोगी को स्थाई लाभ पहुँच सके । इसमें वृहदआँत के व्रणों का रोपण नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में शल्यकर्म (operation) द्वारा रोगी की बड़ी आँत को बाहर निकाल दिया जाता है तथा मल के निष्कासन के लिए पेट के साथ एक थैली लगा दी जाती है। परंतु प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली में रोगी को स्वस्थ बनाया जाता है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस में रुग्ण के रोग की अवस्था अनुसार चिकित्सक परामर्शा अनुसार औषधि लेनी चाहिए।

अल्सरेटिव कोलाइटिस का आयुर्वेदिक उपचार (Ulcerative Colitis ka Ayurvedic Treatment in Hindi)

सामान्यत: इस रोग में आयुर्वेद में बताई गई ‘पर्पटी कल्प’ का प्रयोग लाभदाई पाया गया है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के अंतर्गत निम्न औषधियों का प्रयोग चिकित्सक परामर्शानुसार प्रयोग करने पर लाभदायक है –

  1. सुवर्ण पर्पटी, रस पर्पटी या पंचामृत पर्पटी 1 से 2 रत्ती सुबह-शाम बेल के मुरब्बे के साथ लेनी चाहिए ।
  2. दस्त होने पर कुटजारिष्ट 2 चम्मच सुबह-शाम भोजन के पश्चात लेना चाहिए। मानसिक विक्षोभता अधिक होने पर शंखपुष्पी 2 चम्मच रात को सोते समय लेना चाहिए।

( और पढ़े – रोगों के अनुसार आयुर्वेदिक दवाइयों के नाम )

अल्सरेटिव कोलाइटिस का घरेलू उपचार (Ulcerative Colitis ka Gharelu ilaj in Hindi)

1. सिनुआर :

  • सिनुआर के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर तक लेने से आंतों की सूजन मिट जाती है।
  • सिनुआर, करंज, नीम और धतूरे के पत्तों को पीसकर हल्का गर्म-गर्म ऊपर से पेट पर बांधा जाये तो और अच्छा परिणाम मिलता है।

2. नागदन्ती : नागदन्ती की जड़ की छाल 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम दालचीनी के साथ लेने से जलन और दर्द दूर होता है।

3. राई : बड़ी आंत की सूजन में राई पीसकर लेप करें परन्तु एक घंटे से ज्यादा यह लेप न लगायें वरना छाले पड़ जायेंगे।

4. हुरहुर : आंत की सूजन में पीले फूलों वाली हुरहुर के सिर्फ पत्तों का  ही लेप करने से लाभ होता है।

5. पालक का साग : आंतों से सम्बन्धित रोगों में पालक का साग खाना फायदेमंद है।

6. चौलाई : चौलाई का साग लेकर पीस लें और उसे लेप करे। इससे शांति मिलेगी और सूजन दूर होगी।

7. बड़ी लोणा (लोना) : बड़ी लोणा का साग पीसकर आंत के सूजन वाले स्थान पर लेप लगायें या उसे बांधें दर्द कम होकर सूजन दूर हो जाता है।

8. चांगेरी : चांगेरी के साग को पीसकर लेप बना लें और उसे पेट के जिस हिस्से में दर्द हो वहां पर बांधने से लाभ होगा।

9. चूका साग : चूका साग सिर्फ खाने और ऊपर से लेप करने व बांधने से ही दर्द दूर कर देता है।

10. गाजर : गाजर में विटामिन बी-कॉम्पलेक्स मिलता है जो पाचन-संस्थान को शक्तिशाली बनाता है। इसके प्रयोग से कोलायटिस में लाभ मिलता है।

11. बरगद : बरगद के पेड़ के नीचे जो जटाएं लटकती हैं, उनमें अंगुली की मोटाई की जटायें एक किलो लेकर एक-एक इंच के टुकड़े काट लें। इसे पांच लीटर पानी में उबालें। उबलते हुए जब एक लीटर पानी रह जाये तब ठंडा करके छान लें और बोतल में भर लें। इसको दो चम्मच सुबह-शाम पीयें। इससे लाभ होगा।

12. पानी : खाना खाने के बाद एक गिलास गरम-गरम पानी, जितना गर्म पिया जा सके, लगातार पीते रहने से कोलाइटिस ठीक हो जाती है।

13. छाछ : शुरू में तो उपवास रखना चाहिए और सिर्फ छाछ का ही इस्तेमाल करना चाहिए।

14. नारियल का पानी : कच्चे नारियल का पानी ज्यादा से ज्यादा पीने से लाभ मिलता है।

15. सेब : सेब का स्टयू भी कोलायटिस के घावों का उपचार करने में सहायक होता है।

16. पत्तागोभी : एक गिलास छाछ में चौथाई कप पालक का रस, एक कप पत्तागोभी का रस मिलाकर रोजाना दिन में दो बार पिलाने से कोलाइटिस (वृहद अंग्त्रिक प्रदाह) ठीक हो जाती है। दो दिन उपवास रखें। तीसरे दिन एक गिलास पानी तीन चम्मच शहद, आधे नींबू का रस मिलाकर पीयें। सुबह एक कप गाजर का रस, भोजन में दही, एक कप गाजर का रस, चौथाई कप पालक का रस मिलाकर पीयें और शाम के भोजन में पपीता खायें।

घरेलू उपचार में निम्न अन्य उपाय किए जा सकते हैं –

  1. सेमल के फूलों के क्वाथ से बना घृत दें। ( और पढ़े – सेमल के औषधीय गुण और फायदे )
  2. रोज 1-2 केले खाने चाहिए, जिससे बीमारी के लक्षण कम होकर रोग दूर होता है। ( और पढ़े – केला में हैं अनेक बेहरतरीन गुण )
  3. नारियल का पानी व मठ्ठा पीना फायदेमंद होता है। ( और पढ़े – नारियल पानी के 38 लाजवाब फायदे )
  4. उबला हुआ सेब रोज खाना चाहिए, जिससे आँतों के व्रण शीघ्रता से भरते हैं, साथ ही इसमें लोहतत्त्व व फास्फोरस ज्यादा रहता है, जो कि पोषक तत्व हैं।
  5. शतावरी, कुटज, दुर्वा, कमल व सारिवा का समभाग चूर्ण करके 1 ग्राम सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करने से लाभ मिलता है।
  6. इलायची, सौंफ, जीरा, काली मिर्च, सेंधा नमक, गुलाब पुष्प को समान मात्रा में चूर्ण बनाकर वह चूर्ण 5-5 ग्राम छाँछ के साथ लीजिए।

( और पढ़े – जानिए कैसी हो आयुर्वेद के अनुसार हमारी दिनचर्या )

प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा अल्सरेटिव कोलाइटिस का इलाज :

  1. पेट पर बर्फ की ठंडी बोतल अथवा मिट्टी की ठंडी पट्टी लगाएँ, ठंडे पानी का एनिमा देकर पेट को साफ कर लेना चाहिए।
  2. दिन में दो बार ठंडा हिपबाथ (कटिस्नान) दस मिनट के लिए लेना लाभप्रद होगा, यदि सर्दी का मौसम हो तो कटिस्नान करते वक्त पैरों को गरम पानी में रखना चाहिए।
  3. अधिक दस्त लगते हों तो बिस्तर पर आराम करना चाहिए।
  4. दिन में दो बार शवासन का अभ्यास करना चाहिए।

अल्सरेटिव कोलाइटिस में रोगी का आहार :

अल्सरेटिव कोलाइटिस में क्या खाना चाहिए ?

अल्सरेटिव कोलाइटिस के रोगी को इन पदार्थों का सेवन करना चाहिए –

  • शारीरिक व मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिए पौष्टिक आहार, जो मृदु रेशों से युक्त, सुपाच्य, प्रोटीन तथा विटामिन्स युक्त लेना चाहिए।
  • रोगी को उबला चावल, दही, मूंग की पतली दाल लेना चाहिए।
  • परवल, लौकी, टिंडा, उबले हुए आलू का सेवन रोग में फायदेमंद है ।
  • फलों के रस आदि नरम भोजन ही लेना लाभप्रद सिद्ध होता है।

अल्सरेटिव कोलाइटिस में परहेज़ :

अल्सरेटिव कोलाइटिस में क्या नही खाना चाहिए ?

अल्सरेटिव कोलाइटिस में यह सब न खाएं –

  • रोगी को छिलकों या रेशोंवाला भोजन,
  • बीजोंवाली सब्जियाँ,
  • मिर्च-मसाले,
  • खटाई,
  • तले हुए पदार्थ,
  • मधुर रसयुक्त आहार,
  • गर्म चाय-कॉफी,
  • अधिक मात्रा में दूध,
  • सूखे मेवे,
  • तंबाकू,
  • अति शीतल पेय आदि नहीं देना चाहिए ।
  • गर्म, गरिष्ठ चिकने पदार्थ, दूध आदि खाद्य पदार्थों से परहेज करें।

अल्सरेटिव कोलाइटिस के रुग्णों में पिच्छा बस्ति के बेहतर परिणाम मिलते हैं । यह पिच्छा बस्ति रुग्ण की प्रकृति व अवस्था अनुसार 8 से 21 दिन के कोर्स में हॉस्पिटल में दी जाती है । पिच्छा बस्ति एक प्रकार का मेडिकेटेड एनिमा है, जिसमें कुछ विशेष प्रकार की जड़ी बूटियाँ दूध में पकाकर धीरे-धीरे विशेष तरीके से दी जाती हैं।

इस तरह चिकित्सक के मार्गदर्शन में औषधी योजना, आहार-विहार, पिच्छा बस्ति व नैचरोपैथी क्रियाएँ करने से अल्सरेटिव कोलाइटिस के रुग्णों को काफी लाभ मिलता है।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

Leave a Comment

Share to...