हिस्टीरिया रोग के कारण लक्षण और इलाज | Causes and Cure of Hysteria in hindi

Last Updated on October 16, 2019 by admin

हिस्टीरिया रोग क्या है ? : hysteria in hindi

हिस्टीरिया रोग जिसे आयुर्वेद में योषापरमार, गुल्म वायु या वायु गोला के नाम से भी जाना जाता है । यह स्वयं में कोई रोग नहीं है, बल्कि यह अन्य रोगों के कारण उत्पन्न होता है। इस रोग में स्त्रियों को मिरगी के समान दौरे पड़ा करते हैं। यह रोग अक्सर कम आयु की उन स्त्रियों को हुआ करता है जिन्हें गर्भाशय सम्बन्धी कोई विकार हुआ हो।

हिस्टीरिया शब्द ग्रीक भाषा के इस्टेरा (Estera) से बना है। जिसका अर्थ ‘गर्भाशय’ है। योषापस्मार शब्द का अर्थ-योषा+अपस्मार जिसका अर्थ स्त्री+मिर्गी है। आयुर्वेदचार्यो ने इस रोग का नाम “अपतन्त्रक” नामक वात रोग को माना है।
योषा शब्द स्त्री वाचक और अपस्मार मिर्गी का द्योतक है, किन्तु हिस्टीरिया और मिर्गी में लेशमात्र भी समानता नहीं है। योषा शब्द को देखकर यह भ्रम हो जाता है कि यह केवल स्त्रियों में ही होने वाला रोग है, अपितु इस रोग से पुरुष भी पीड़ित मिलते है। हाँ, इतनी बात जरुर है कि मिर्गी रोग (अपस्मार) स्त्री-पुरुषों को समान रूप से होता है किन्तु हिस्टीरिया (योषापस्मार) विशेषकर योषाओं (स्त्रियों) को ही होते देखा गया है।

यह 12 वर्ष से 50 वर्ष तक की ही आयु में विशेष रूप से होता है, युवावस्था में इस रोग के दौरे अधिक हुआ करते है। इसे अंग्रेजी में हिस्टीरिया (Hysteria) कहा जाता है। आइये जाने हिस्टीरिया रोग क्यों होता है ?

स्त्रियों में हिस्टीरिया रोग के कारण : causes of hysteria in female

☛ इस रोग में मस्तिष्क के किसी भाग में किसी भी तरह का कोई दोष नहीं रहता है।
☛ यह शोक, दुःख, मानसिक चोट, प्रेम में विरह होना, किसी के प्रेम से वंचित होने के कारण हो सकता है ।
☛ यह मासिक धर्म सम्बन्धी गड़बड़ियां, डिम्बाशय और जरायु के रोगों के कारण भी हो सकता है ।
☛ यह विलासी जीवन, अत्यधिक काम वासना, काम-वासना की अतृप्ति के कारण भी हो सकता है ।
☛ यह पुरानी कब्ज, असफलता, अजीर्ण, पेट फूलना जैसे रोगों के कारण भी हो सकता है ।
☛ यह अश्लील साहित्य पढ़ना, ब्लू फिल्म देखना, अधिक आयु होने पर भी लड़की की शादी न होना आदी कारणों से भी हो सकता है ।
☛ औपद्रविक आर्तवदर्शन (Amenorrhoea Secondary) ।
☛ कृच्छार्तव (Dysmenorrhoea) ।
☛ रजावरोध (Concealed Menstraution) ।
☛ अचरणा या विलुप्ता योनि ।
☛ मैथुन सहयता (Dysparyenia) ।
☛ भग कन्डू (Pruritis Vulva) ।
☛ प्रदर (Leucorrhoea) ।
☛ बन्द्यत्व (Sterility) आदी के कारण भी यह रोग हो सकता है ।
☛ यह काम पीड़ा, रत्याभाव, मासिक धर्म के पश्चात् सम्भोग न होना, दामपत्य प्रेमाभाव, गर्भ विकार के कारण भी हो सकता है ।
☛ यह रोग पति के दुर्बल वृद्ध होने, वैधव्य (विधवा जीवन), पति का आचरण प्रतिकूल होना होने पर भी हो सकता है ।
☛ यह सन्तति निग्रह, बलात्कार, रक्तनाश, गर्भाशय शोथ, गर्भाशय में दूषित रक्त का संचय होने के कारण भी हो सकता है ।
☛ यह बुद्धि विभ्रम, मस्तिष्क की निर्बलता के कारण भी हो सकता है ।
☛ सन्तान का न होना या मर जाना, आदि प्रधान कारण हैं।

पुरुषों मे हिस्टीरिया रोग के कारण : causes of hysteria in males

यदि यह रोग किसी पुरुष में मिले तो उसके कारण हैं -आत्मरति, शीघ्रपतन, नंपुसकता का भय, प्रेम में निराशा के फलस्वरूप मानसिक आघात आदि।

कुछ ऐसे सम्मिलित कारण भी होते हैं जो इस रोग के रोगी स्त्री या पुरुष किसी के भी हो सकते हैं। जैसे अतृप्त कामेच्छायें, घर में कौटुम्बिक क्लेश के कारण शान्त जीवन व्यतीत करने की अतृप्त इच्छा, कामकाज की अधिकता से आराम-पसन्द व्यक्तियों में आराम प्राप्त करने की अपरिपूर्ण इच्छा या अन्य कोई भी अतृप्त इच्छा, जैसे-धन, मोटर, बंगला आदि की इच्छा तथा अश्लील साहित्य का पाठन तथा अश्लील चलचित्र देखना आदि। इस रोग की सम्प्राप्ति में कफ एवं वात सहायक हैं।

हिस्टीरिया रोग के लक्षण : symptoms of hysteria disease

⚫ यह एक विचित्र रोग है । इस का प्रधान कारण अतृप्त इच्छाएं ही हैं, इस रोग में जिस रोगी की जैसी भी भावनाएं हुआ करती हैं, वह दौरों के समय उन्हीं को प्रकट करता है।
⚫ अनपढ़ स्त्रियों की अपेक्षा पढ़ी-लिखी स्त्रियों को यह रोग अधिक हुआ करता है। जिनका मनोबल सशक्त होता है जो सहनशील होती हैं, उनको यह रोग नहीं होता है।
⚫ जो स्त्री कामोन्माद या त्रिया चरित्र में उलझी हुई होती है वह कभी हंसती है, कभी रोती है, कभी परिचित व्यक्तियों पर कलंक लगाती है, प्रायः उन्हें यह रोग होता है।
⚫ यदि रुग्णा के मन में यह विचार बैठ जाये कि अमुक भूत (स्त्री-पुरुष की छाया) उसमें प्रवेश कर गई है तो वह उसी के परिवार वालों का नाम लिया करती है, पूंछने पर कह देती है कि मैं ‘अमुक’ की माँ या बहिन हूँ। इन परिस्थितियों को लेकर ग्रामीण समाज में कभी-कभी भयंकर अशान्ति तक फैल जाया करती है। इस रोग के दौरों के पूर्व हृदय में पीड़ा होती है। दौरा पड़ने से पूर्व ही रोगिणी समझ जाती है कि अब मुझ पर रोग का आक्रमण होने वाला है, इसी कारण बहुत सी स्त्रियां आक्रमण से पहले ही सावधान होकर अपने कपड़े चुस्त-दुरुस्त कर पहन लेती हैं, ताकि दौरा पड़ने पर उसके कपड़े खुल या फट न जाये।
⚫ बेहोशी आने से पूर्व रोगिणी को कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि पेट से गले तक गोले के समान कुछ चढ़ रहा है।
⚫ दौरा पड़ने पर उसकी मुट्ठियाँ कस जाती है तथा उसका शरीर धनुष के समान टेढ़ा हो जाता है, वह हाथ पैर इधर-उधर पटका करती है, सांस में आवाज होती है । कभी वह हँसती है तो कभी वह रोती है । कभी चुपचाप पड़ी रहती है तो कभी नाराज होने लगती है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि उसके मानसिक लक्षणों में कोई स्थिरता नहीं होती है।
⚫ इस रोग से ग्रसित स्त्री एकाएक चीख मारकर जोर-जोर से रोती या हँसती है, इसके बाद वह बेहोश होकर गिर पड़ती है। बेहोशी से पूर्व अक्सर छाती और जांघों पर जोर-जोर हाथ मारकर अपने गले के गोले को निकालने का प्रसास करती है ।
⚫ प्रायः सिर के बालों को भी नोंचती है, कुछ स्त्रियां तो अपने कपड़ों तक को फाड़ डालती है, सिर को दीवार से टकराती हैं ।
⚫ समीप खड़े लोगों को काटने का प्रयत्न करती है, ठन्डी आहें भरती है, सांस कठिनाई से तथा अनियमितता के साथ जल्दी-जल्दी आने लगता है।
⚫ वह अन्ट-शन्ट, बेतुकी एवं कभी-कभी अश्लील बातें भी करने लगती है ।
⚫ रोगिणी को ज्ञान (Sence) बिल्कुल नहीं रहता है, मात्र वह अपनी भावनाओं के वशीभूत होकर उनका प्रदर्शन किया करती है जिसमें आत्महत्या का प्रयत्न, दूसरों को आत्महत्या का भय दिखलाना, प्रलाप करना, अपूर्ण मूर्छा आदि मानसिक लक्षण देखने को मिलते हैं।
⚫ रोगिणी का हृदय अधिक धड़कता है और अफारा हो जाता है उसका चेहरा तमतमा कर लाल हो जाता है, जबड़े बन्द हो जाते है। कुपित वात विलोम होकर वस्ति से उठकर हृदय-मस्तिष्क आदि को आक्रान्त कर कन्ठावरोध कर देता है ।
⚫ दौरे से पूर्व आँखों से पानी, सिर में चक्कर, आलस्य तथा आंखों के सामने अन्धेरा छा जाता है। कुछ देर पश्चात् नाभि के दाये या बांये भाग से एक गोला उठकर ऊपर जाकर कन्ठ में अटक जाता है, फिर दम घुटता है, आवाज नहीं निकलती और अन्त में मूर्छा आ जाती है।
⚫ इस रोग का दौरा कुछ मिनटों से लेकर कई दिनों तक रह सकता है तथा 24 घन्टे में बीसियों बार दौरे पड़ सकते हैं।
⚫ ज्ञान के तीनों मेद स्मृति, अनुभव और प्रत्यभिज्ञा लोप नहीं होते है, किन्तु रोगिणी उनसे काम नहीं ले सकती है, दौरे के समय पास खड़े वह सभी लोगों की बातें सुनती रहती है किन्तु उनका उत्तर देने में अक्षम रहती है। दौरे के पश्चात् होस आने पर वह सब कुछ बता देती है।
⚫ प्रायः थोड़े ही समय के बाद दौरा खत्म हो जाया करता है, तब स्त्री काँपने लगती है। इसके बाद एकाएक रोग के लक्षणों का जोर कम हो जाता है, कई बार दौरे पड़ जाते हैं। दौरा समाप्त होने पर स्त्री को अधिक मात्रा में मूत्र आता है, कई बार के (उल्टी) भी आ जाती है, उसके बाद स्त्री सो जाती है।
⚫ दौरा कम होने पर जब स्त्री के पेट से गोला उठकर गले की ओर आता है तो स्त्री उसे निकालने और दूर करने का प्रयत्न करती है, सांस रुकता-सा प्रतीत होता है, पेट फूल जाता है और डकारें आती हैं, कुछ देर बाद यह लक्षण दूर हो जाते हैं।.
⚫ प्रायः इस रोग का दौरा मासिक धर्म के समय के आसपास होता है।
⚫ इस रोग का दौरा समाप्त होने के बाद विभन्न अंगों में विभिन्न कष्ट हो जाते हैं। प्रायः कब्ज रहने लगती है, हाजमा खराब रहने लगता है, उत्साह और इच्छा शक्ति कम हो जाती है, स्त्री बहमी हो जाती है, सारे शरीर में दर्द का अनुभव होता है, कई-बार मूत्र रुक जाता है, कई बार हृदय अधिक धड़कने लगता है, किसी को खुश्क खाँसी या हिचकियाँ आने लगती है। इस रोग से ग्रसित स्त्रियाँ ‘मक्कार’ भी हो जाया करती हैं।

हिस्टीरिया और मिर्गी रोग का अंतर : difference between hysteria and epileptic fit

हिस्टीरिया और मिर्गी के दौरों में अन्तर जानना अत्यावश्यक है ताकि दोनों रोगों का ठीक-ठीक पहिचान हो सके । जो निम्नवत् हैं:
✦ मिर्गी (अपस्मार) प्रायः 15 वर्ष की आयु से पूर्व प्रकट होता है।हिस्टीरिया बाल्यावस्था में हो तो सकता है किन्तु युवावस्था विशेषकरः प्रारम्भिक यौवनावस्था में होता है।
✦ मिर्गी का दौरा एकाएक तुरन्त पड़ जाता है और स्वयं दूर हो जाता है, मिर्गी के रोगी के स्वयं एकाएक गिर जाने से मुख, सिर आदि पर रगड़ या चोट लग जाती है।
✦ हिस्टीरिया के रोगी का दौरा धीरे-धीरे पड़ता है तथा दौरे के समय रोगी को आभास हो जाता है कि उसे दौरा पड़ने वाला है अत: उसके शरीर को कोई हानि नहीं पहुँचती है तथा हिस्टीरिया का दौरा देर से दूर होता है।
✦हिस्टीरिया के दौरे की बेहोशी में स्त्री दूसरों की बातें सुनती रहती है। किन्तु उनका उत्तर नहीं दे सकती है, लेकिन मिर्गी में ऐसा नहीं हुआ करता है।
✦ हिस्टीरिया के दौरे में रोगी के मुख से झाग नहीं आता है, वह प्रायः दाँत पीसता रहता है, किन्तु उसकी जीभ दांतों में आकर नहीं कटती है। इसके विपरीत मिर्गी में मुख से झाग आती है और जीभ दाँतों के बीच में फंसकर कट सकती है।
✦ हिस्टीरिया में स्त्री के जबड़े और मुँह बन्द होते हैं तथा मिर्गी में जीभ बाहर निकल आती है और मुख खुला होता है।
✦ हिस्टीरिया प्रायः स्त्रियों को तथा मिर्गी पुरुषों को हुआ करता है।
✦ हिस्टीरिया के दौरे के समय मलमूत्र नहीं निकलता है। मिर्गी के दौरों में मलमूत्र कपड़ों में ही बिना पता लगे निकल जाता है।
✦ हिस्टीरिया में चेहरा लाल, आँखे बन्द, आँख के पपोटे हिलते हुए, आखों की पुतलयिाँ बिना हिले एक स्थान पर ठहरी रहती हैं, प्रकाश (चमक) से पुतलियाँ सिकुड़ जाती हैं। मिर्गी में मुख का रंग नीला, आंखें अधखुली, ढेले और पुतलियाँ फैली हुई और हिलती है तथा प्रकाश (चमक) से सिकुड़ती नहीं है।
✦ हिस्टीरिया के दौरे की गति इतनी तीव्र (वेगवती) होती है कि कभी-कभी रोगी को कई-कई मनुष्य पकड़ते हैं। मिर्गी में रोगी को जोर से पकड़ना होता है तथा उसका संचालन भी देर तक होता है।
✦ मिर्गी के दौरों (आक्षेपों) से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हिस्टीरिया में ऐसा नहीं होता है।
मिर्गी में ज्ञान के तीनों मेद लोप हो जाते हैं। हिस्टीरिया में नहीं।
✦ मिर्गी के दौरे दिन या रात में-प्रायः निश्चित समय पर पड़ते हैं। हिस्टीरिया का दौरा एकाएक किसी प्रकार का विचार आ जाने पर पड़ता है। किन्तु सोते समय नहीं पड़ता है।
✦ मिर्गी का दौरा थोड़े समय तक रहता है और स्वयं समाप्त हो जाता है। हिस्टीरिया का दौरा कई मिनटों से लेकर कई सप्ताह तक का हो सकता है, कभी स्वयं तो कभी प्रयत्न करने के फलस्वरूप ही समाप्त हुआ करता है।
✦ मिर्गी मूर्छा की दशा में होती है, रोगी दौरे में बोल नहीं सकता है। हिस्टीरिया का रोगी दौरे में-असंगत बकता है, कभी-कभी उसे होश भी आ जाता है।

हिस्टीरिया रोग का परिणाम :

प्रायः विवाह होने के कुछ वर्षो बाद जब स्त्री 1-2 बच्चों की माता बन जाती है, तब इस रोग में कमी आ जाया करती है। यदि यह रोग पैत्रिक हो या नर्वस क्रियाओं के विकार से यह रोग उत्पन्न हुआ हो तो कष्ट साध्य’ होता है, यदि डिम्ब ग्रन्थियों, आमाशय या गर्भाशय की खराबियों और दोषों से हुआ हो ‘चिकित्सा साध्य’ है।

हिस्टीरिया रोग में खान पान और सावधानियाँ :

☛ रोग के मूल कारणों को दूर करें। स्नायविक दुर्बलता दूर करें।
☛ नित्य हल्का-फुल्का व्यायाम या प्रातः भ्रमण करें ।
☛ पति का भरपूर प्रेम एवं रोगिणी की वासना-शान्ति परम आवश्यक है। स्त्री की ‘कामेच्छा’ की सन्तुष्टि करने हेतु यत्न करायें।
☛ दौरे में कस्तूरी को मद्य में घुटवाकर उसका फाया योनि में रखवायें।
☛ शरीर के कपडे ढीले करवा दें।
☛ माथे, आँख और मुँह पर ठन्डे जल के छींटे मारें।
☛ कलाई, टखने और हथेलियों को रगड़वारें।
☛ दो-तीन रीठे गर्म जल में धोकर उनका फेन निकालें-फेन में एक छोटा सा कपड़ा भिगोकर नाक के पास रखवा दें, सिर और गर्दन पर शीतल जल से भिगोया हुआ कपड़ा रखवा दें।
☛ कब्ज कभी न होने दें तथा नित्य “एनीमा” का प्रयोग करायें।
☛ रोगिणी को अत्यधिक शारीरिक और मानसिक श्रम से बचायें।
☛ उसे किसी भी प्रकार की मानसिक चिन्ता या सन्ताप न होने दें।
☛ सादा और शीघ्रपाची भोजन खिलायें, गरिष्ठ भोजन कदापि न दें।
☛ प्रत्येक पुरानी वस्तु या अन्य कोई बात जिससे रोगिणी के इस रोग (दु:ख कारक घटना) का सम्बन्ध हो, उसे हटा दें, उसके सामने कोई ऐसी बात न करें-जिससे उसका मन दुःखी हो या बीती हुई घटना उसे पुनः याद आ जाये। क्योंकि भावनाओं में उत्तेजना आते ही दौरा पड़ जाया करता है।
☛ स्वास्थ्य के नियमों का पालन कराते हुए रोगिणी को खूब प्रसन्न-चित्त रहने का निर्देश दें।

हिस्टीरिया रोग का इलाज : hysteria disease treatment in hindi

1-जायफल –
दौरा के समय स्त्री को नरम बिस्तर पर लिटाकर बाजुओं और जांघों को जोर से बांध दें और प्याज, हींग, लहसुन, तम्बाकू, बीड़ी का धुंआ, या राई, सरसों, हींग, गूगल, लोहबान की धूनी या चन्दन की मोटी बत्ती या साधारण धूपबत्ती का धुआं, या जायफल का कपड़छन चूर्ण, या कुलिंजन का कपड़छन चूर्ण को पोटली में बांधकर सुंघाऐं। सभी योग-मूर्च्छा नाशक हैं। गन्धक की धूनी भी
लाभप्रद है। इससे स्त्री होश में आ जाती है। यदि जबड़े बन्द हों तो दाँतों के बीच चम्मच या अन्य कोई सख्त वस्तु डाल कर उसे सावधानी से खोल दें। सोंठ, पीपल, और मिर्च का चूर्ण मसूढ़ों पर रगड़ने से भिचे हुए दाँत (जबड़ा) खुल जाता है। मूर्छा नाश हेतु-नाक में हरी नकछिकनी बूंटी को पीसकर इसके स्वरस की नस्य देना लाभप्रद है।

( और पढ़े – जायफल के अनूठे 58 फायदे व औषधीय प्रयोग)

2- गुलकन्द –
यदि गर्भकाल में हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगें तो-गुलकन्द 24 ग्राम में 1 ग्राम असली मस्तंगी पिसी हुई मिलाकर खिलायें।

( और पढ़े – गुलाब के 56 लाजवाब फायदे )

3- हींग –
निर्बसी, अगर, हींग, काफूर, जटामांसी, कुनीन, वंशलोचन, और केसर सभी समभाग खरल करके चने के बारबर गोलियाँ बनाकर 1-से 2 गोलियां दिन में 2 बार खिलाना, हिस्टीरिया नाशक उत्तम योग है।

( और पढ़े – हींग खाने के 73 सेहतमंद फायदे )

4- गुलाबजल –
नेत्रों में लाली होने पर आंखों में केवल गुलाबजल या गुलाबजल में लाल फिटकरी पिसी हुई 1 ग्रेन (0.060 ग्राम) की मात्रा में डालकर प्रयोग करायें।

5- एरन्ड तेल –
कब्ज मिटाने के लिए 1 पाव गो दुग्ध में 2 चम्मच एरन्ड तेल मिलाकर रात को सोते समय पिलायें।

6- बायबिडंग –
बायबिडंग 6 ग्राम, समुद्र फेन 3 ग्राम, बिरोजा 3 ग्राम और सैन्धा नमक 3 ग्राम लें । इन सभी को कूटछान कर मलमल के साफ कपड़े में 3-3 ग्राम की 3 पोटलियाँ बनाकर योनि में-गर्भाशय मुख के दांये, बांये व सामने रखवायें। इससे गर्भाशय में जमा हुआ खून निकल जाता है। यह क्रिया निरन्तर 3 दिन करने से गर्भाशय का शोधन हो जाता है।

( और पढ़े – अरण्डी तेल के 84 अनूठे फायदे और उपयोग )

7- जटामांसी –
जटामांसी, रास्ना, पीपल के पेड़ की जटा, एरन्ड को जड़ की छाल, सोंठ, अजवायन एलुआ, 3-3 ग्राम लेकर मिट्टी के बरतन में आधा किलो जल में पकावे, 50 ग्राम रह जाने पर छानकर पिलाये। यह क्वाथ प्रत्येक प्रकार की हिस्टीरिया में लाभप्रद है। रजावरोध नाशक है। रजः की गाँठों को गलाकर बहा देता है। कम्पवात नाशक है।

( और पढ़े – जटामांसी के फायदे और उपयोग )

8- तिल –
काले तिल, 25 ग्राम, पुराना गुड़ 9 ग्राम, शुद्ध हींग 4 ग्राम। तिलों को कूटकर आधा किलो पानी में औटावें जब पानी चौथाई रह जाये तब उतार कर छान लें। इसमें गुड़ और हींग मिलाकर मासिक धर्म के पहले और दूसरे दिन दें। (तीसरे दिन भी दे सकते हैं) चौथे दिन, कदापि न दें। इस योग से गर्भाशय की शुद्धि हो जाती है।

( और पढ़े – तिल खाने के 79 जबरदस्त फायदे )

9- बच –
खुरासानी बच 10 ग्राम लेकर खूब बारीक पीस लें। फिर 3 बार किसी कपड़े से छान लें। इसे 2 से 4 ग्रेन तक शुद्ध घी, मक्खन या मलाई से चटायें। बाद में खीर खिलायें। दुग्ध का अधिक मात्रा में सेवन करायें। दिन में 3-3 घन्टे बाद 4 बार दवा खिलायें। मात्र 3-4 दिनों के ही प्रयोग से हिस्टीरिया मिटेगा।
नोट – 1 ग्रेन = 0.060 ग्राम(आधी रत्ती)

10- गिलोय –
हृदय की दुर्बलता में गिलोय एवं कालीमिर्च समभाग लेकर कूटपीसकर कपड़छन कर लें। इसे प्रतिदिन 3 ग्राम की मात्रा में गर्म जल से प्रयोग करायें।

( और पढ़े – गिलोय के फायदे और नुकसान )

11- आंवला –
सूखा आंवला तथा मिश्री 50-50 ग्राम बारीक कूटपीस व छानकर रखें। इस प्रतिदिन 6 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ कुछ दिनों निरन्तर प्रयोग करने से हृदय के सभी विकार दूर हो जाते हैं।

( और पढ़े – आंवला के गुण उपयोग फायदे )

12- लंकेश्वर रस –
गर्भाशय विकार में-प्रताप लंकेश्वर रस 125 मि.ग्रा. शहद के साथ प्रातः सायं दें तथा भोजनोपरान्त दशमूलारिष्ट सेवन करायें

13- प्रवर्तनीवटी –
कष्ट रजः में-रजः प्रवर्तनीवटी या कासीसादि वटी, काढ़ा बत्तीसा, (इस काढ़े के निमार्ता-मैसर्स रतन लाल जैन अत्तार, नुक्कड़, कूचा चेलान, खारी बाबली दिल्ली 6 हैं) या अन्य किसी भी रज प्रर्वतक काढ़ा (क्वाथ) के साथ सेवन करायें।

14- वृहत वात चिन्तामणि रस –
वृहत वात चिन्तामणि रस 250 मि.ग्रा. सुबह-शाम शहद के साथ तथा भोजन के बाद दशमूलारिष्ट और द्राक्षासव समान मात्रा में जल मिलाकर दें।

15- अश्व कन्चुकी रस –
रोगिणी के कोष्ठ शुद्धि हेतु-अश्व कन्चुकी रस शक्कर व जीरे के चूर्ण के साथ या पन्च सकार चूर्ण गर्म जल से खिलायें।

16- नारायण तेल –
रोगिणी के शरीर पर नारायण तेल की मालिश करना लाभप्रद है। ब्राह्मी धृत, या सैन्धवादि धृत का प्रयोग भी अत्यन्त हितकर है। शरीर पर महामाष या महाशतावरी तैल की मालिश कराई जा सकती है। कान व सिर में बादाम का शुद्ध तैल व्यवहार करायें।

17- मुक्तापिष्टी –
रोगिणी के हृदय व मस्तिष्क रक्षार्थ-मुक्तापिष्टी, मुक्ता भस्म, जवाहर मोहरा या हृदयार्णव रस में से 1-1 रत्ती दिन में 2-3 बार देते रहें।

18- बादाम पाक –
यदि रोगिणी कमजोर हो तो पौष्टिक भोजनों के अतिरिक्त पौष्टिक रसायन, बादाम पाक, मूसली पाक, या कूष्टमान्ड पाक का सर्दी की ऋतु में सेवन करायें।

19- ब्रह्मरसायन –
इस रोग में हिंग्वाष्टक चूर्ण एवं ब्रह्मरसायन भी अनुभूत योग है।

नोट:-इस रोग की चिकित्सा का विधान यह है कि रोगिणी को होश आ जाने के बाद वास्तविक कारणों को जानकर उसको दूर करना चाहिए। यदि मासिक बन्द या रुका हुआ हो तो हिस्टीरिया की चिकित्सा साथ मासिक लाने वाली औषधियों को प्रयोग करायें। यदि विवाह से पूर्व यह रोग हो गया है तो विवाह करवा दें । इससे कुछ अपवादों को छोड़कर यह रोग स्वयं दूर हो जाता है।

हिस्टीरिया नाशक आयुर्वेदिक दवा (योग) :

  1. नेत्र बालादि घनसत्व (गर्ग बनौषधि भन्डार) गर्म पानी से नियमित प्रयोग करने से अपस्मार तथा योषापस्मार दोनों रोगों में ही लाभ हो जाता है। यह घनसत्व, टेबलेट, तथा कैपसूलों के रूप में प्राप्य है।
  2. सरपिना टेबलेट (हिमालय) आवश्यकतानुसार 2 से 1 टिकियां दिन में 2-3 बार दें।
  3. इथिनोर लिक्विड (मेडिकल इथिक्स) 1-2 चम्मच 1 गिलास पानी के साथ दिन में 2-3 बार भोजनोपरान्त प्रयोग करायें।
  4. सिलेडीन टेबलेट (अलारसिन) 1-2 टिकिया दिन में 2-3 बार दें। रात्रि को सोते समय भी दें।
  5. हेमपुष्पा सीरप (राजवैद्य) 1-2 चम्मच दिन में 2-3 बार बराबर जल मिलाकर या दुगुना जल मिलाकर, पीने से पूर्व इसी के साथ मिली टिकिया हेमटेब (एक) ताजे जल से निगल लें। मासिकधर्म के समय प्रयोग न करायें।
  6. अशार टेबलेट (चरक) 1-1 गोली दिन में 3 बार दें। तीव्रावस्था में मात्रा बढ़ा दें।
  7. नेड टेबलेट (चरक) वयस्कों को 2-2 टिकियां दिन में 2 से 4 बार दें। बच्चों को आधी मात्रा प्रयोग करायें।
  8. उन्माद केशरी सूचीवेध (मिश्रा) चोबचीनी सूचीवेध (मिश्रा, बुन्देलखन्ड) ब्राह्मी सूचीवेध (सिद्धि, मिश्रा, बुन्देलखन्ड) मल्ल सिन्दूर सूची वेध (बुन्देलखन्ड) आदि को 1-2 मि.ली. की मात्रा में प्रयोग करें।

उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।

नोट – ऊपर बताये गए उपाय और नुस्खे आपकी जानकारी के लिए है। कोई भी उपाय और दवा प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरुर ले और उपचार का तरीका विस्तार में जाने।

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