Last Updated on November 24, 2019 by admin
अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम क्या है ? : Agni Pradipt Pranayam in Hindi
सूर्य भेदन प्राणायाम की भांति अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम का अभ्यास भी शीतकाल में, शीतल स्थान और शीतल जलवायु वाले वातावरण में किया जाना चाहिए। शीत और कफ प्रधान प्रकृति वाले व्यक्ति ठण्डे स्थान (प्रदेश) में ग्रीष्म ऋतु में भी प्रातः सूर्योदय होने से पहले इस विधि का अभ्यास कर सकते हैं। वर्षा काल में भी सूर्योदय से पहले या सन्ध्या के ठण्डे समय में इस विधि का अभ्यास किया जा सकता है।
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अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम में सावधानियां : Agni Pradipt Pranayama Precautions in Hindi
इस विधि का अभ्यास करते समय इस बात का खयाल रखना होगा कि इसके अभ्यास में अति न की जाए। पित्त प्रधान और उष्ण प्रकृति के व्यक्तियों को इस विधि का अभ्यास ग्रीष्म ऋतु और उष्ण प्रदेश में नहीं करना चाहिए।
अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम करने की विधि : Agni Pradipt Pranayama Steps in Hindi
1- आसन बिछा कर पदमासन लगा कर बैठ जाएं।
2- नासिका के दाहिने नथुने को बन्द करके बायें नथुने से धीरे धीरे सांस लेकर अधिक से अधिक इतना पूरक कर लें कि मूला धार से लेकर कण्ठ तक जरा सी भी गंजाइश न रहे।
3- ताकत लगा कर इतना कुम्भक करें कि चेहरा लाल हो उठे। एक बात का ख्याल रखें कि शुरू-शुरू में ज्यादा देर तक कुम्भक न करें, इसकी अवधि धीरे धीरे बढ़ाएं । ज्यादा देर तक कुम्भक करने से चक्कर आने लगते हैं मूर्छा भी आ सकती है। यदि कुम्भक करते हुए घबराहट होने लगे तो दूसरे नथुने से धीरे धीरे सांस छोड़ देना चाहिए।
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अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम से लाभ : Agni Pradipt Pranayama Benefits in Hindi
1- यह विधि इतनी सरल है कि इसका अभ्यास किशोर अवस्था से लेकर वृद्ध अवस्था तक स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं।
2- यह विधि शरीर में अग्नि का तेज बढ़ाती है जिससे शरीर में इतनी गर्मी आ जाती है कि शरीर से पसीना छूटने लगता है।
3- इस प्राणायाम को सही विधि से करने का यही प्रमाण है कि इसका अभ्यास करने वाले को शीत काल और शीतल स्थान में भी पसीना आ जाता है।
4- योगी, ऋषि, मुनि जंगलों में इसी विधि का अभ्यास करके शीत का प्रभाव दूर कर लेते थे। जिनको इस विधि का अच्छा अभ्यास हो जाता है वे नथुने को दबाये बिना भी उचित ढंग से इस प्राणायाम का अभ्यास करते हैं।
5- नासिका का एक नथुना दबा कर अभ्यास करने और दूसरे नथुने से रेचकपूरक करने से प्राणवायु धीरे धीरे आता जाता है।
6- इस विधि के अभ्यास से सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि अभ्यासी का चेहरा और नेत्र बहुत तेजस्वी हो जाते हैं। उसका पूरा शरीर कान्तिमान हो जाता है, रक्त विकार रहित रहता है और शरीर स्वस्थ और सशक्त बना रहता है।
7- युवतियां ही नहीं, प्रौढ़ स्त्रियां भी इसका अभ्यास कर अपनी देहयष्टि को सन्तुलित बनाये रख सकती हैं और युवक तथा प्रौढ़ पुरुष भी।
प्रतिदिन नियमित और निरन्तर रूप से अपने शरीर के बलाबल को ध्यान में रख कर उचित मात्रा में इस विधि का अभ्यास, इस शीतकाल में, करें और लाभ उठाएं।