Agnitundi Vati in Hindi अग्नितुण्डी वटी के फायदे उपयोग और दुष्प्रभाव

Last Updated on January 21, 2020 by admin

अग्नितुण्डी वटी क्या है ? : What is Agnitundi Vati in Hindi

अग्नितुण्डी वटी टैबलेट के रूप में एक आयुर्वेदिक औषधि है। जिसका उपयोग भूख बढ़ाने, पाचनतंत्र को ठीक करने व पेट की गैस की समस्या के उपचार के लिए किया जाता है।

अग्नितुण्डी वटी के घटक द्रव्य : Agnitundi Vati Ingredients in Hindi

  • शुद्ध पारद – 10 ग्राम,
  • शुद्ध गंधक – 10 ग्राम,
  • शुद्ध वछनाग – 10 ग्राम,
  • अजमोद – 10 ग्राम,
  • त्रिफला – 30 ग्राम,
  • सञ्जीक्षार – 10 ग्राम,
  • यवक्षार – 10 ग्राम,
  • चित्रक मूलत्वक – 10 ग्राम,
  • सैन्धानमक – 10 ग्राम,
  • सौंचरनमक – 10 ग्राम,
  • जीरक – 10 ग्राम,
  • सामुद्र लवण – 10 ग्राम,
  • विडंग – 10 ग्राम,
  • त्रिकटु – 30 ग्राम,
  • शुद्ध कुचिला – 180 ग्राम,

भावना के लिए जम्भीर निम्बू । स्वरस आवश्यकतानुसार

प्रमुख घटकों के विशेष गुण :

  1. कज्जली : जन्तुघ्न, योगवाही, रसायन, सहायक औषधियों की गुण वृद्धि एवं स्थायित्व प्रदान करने वाली।
  2. वछनाग : तीक्ष्ण, उष्ण, व्यवायी, विकाशी, विष, (शुद्ध होने पर अमृत तुल्य)।
  3. अजमोद : दीपक, पाचक, मलवायु अनुलोमक।
  4. त्रिफला : दीपक, पाचक, रेचक, रसायन।
  5. क्षारद्वय : पाचक, लेखन, अग्निबर्धक, अनुलोमक।
  6. लवणत्रय : दीपक, पाचक, अनुलोमक. रुचिकर ।
  7. चित्रक : दीपक, पाचक, अग्निबर्धक, कुष्टघ्न ।
  8. विडंग : कृमिनाशक, लेखन, अग्नि बर्धक, रसायन।
  9. सैन्धानमक : रोचन, दीपन, पाचन, अनुलोमक।
  10. सौचरनमक : दीपन, पाचन, सारक।
  11. जीरक : दीपन, पाचन, ग्राही, शूल प्रशामक।
  12. त्रिकटु : तीक्ष्ण, उष्ण, वात कफ नाशक, आमपाचक, अग्निबर्धक।
  13. कुचला : कटु, तिक्त, उष्ण, व्यवायी, विकाशी, वेदनाशामक, बल्य, हृदय,दीपक, पाचक, वात वहिनियों को वल कारक, वातनाशक, रसायन।
  14. जम्भीर स्वरस : दीपक, पाचक, अनुलोमक।

अग्नितुण्डी वटी बनाने की विधि :

पारद गंधक की निश्चन्द्र कज्जली में वछनाग डालकर खरल करवाएँ, अच्छी प्रकार मिल जाने पर क्षार द्वय एवं लवणत्रय मिला कर खरल करवाएँ तत्पश्चात् काष्टौषधियों का वस्त्र पूत चूर्ण मिलाकर खरल करवाएँ और अन्त में शुद्ध कुचिला मिलाएँ। अब जम्भीर स्वरस डालकर कर मर्दन करवाएँ इस प्रकार सात भावनाएँ देकर 100 मि.ग्रा. की वटिकाएँ कर सुरक्षित कर लें।

उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।

अग्नितुण्डी वटी की खुराक : Dosage of Agnitundi Vati

एक से दो गोली प्रातः सायं भोजनोपरान्त

अनुपान (दवा के साथ या बाद ली जानेवाली वस्तु) :

उष्णोदक अथवा रोगानुसार।

अग्नितुण्डी वटी के उपयोग और फायदे : Uses & Benefits of Agnitundi Vati in Hindi

भूख बढ़ाने में अग्नितुण्डी वटी उपयोग फायदेमंद (Agnitundi Vati Benefits in Dyspepsia Treatment in Hindi)

अग्निमान्ध, अजीर्ण, अरुचि की तरह पाचन की एक अवस्था नहीं परन्तु पाचन तन्त्र का एक चिरकारी रोग है । मिथ्याहार सेवन से दोषों में विकृति आ जाती है। विशेषतः अतिस्निग्ध, अतिशीतल, गुरु, अभिव्यान्दि, पर्यूषित (वासी) आहार के सेवन से श्लेष्मा की वृद्धि हो जाती है श्लेष्मा अपने मन्द स्थिर पिच्छल गुणों के कारण अग्नि को मन्द कर देता है।

अत: रोगी द्वारा सेवित आहार अग्नि की मन्दता के कारण सम्यक् प्रकार से नहीं पचता, तथा उससे आम की उत्पत्ती होती है। आम भी एक प्रकार का विकृत कफ ही होता है। अत: दोष विकृति से अग्नि विकृति और अग्नि विकृति से दोष विकृति का एक दुष्चक्र का निर्माण हो जाता है। फलस्वरूप, रोगी अजीर्ण, अम्लोद्गार अफारा, कोष्ठ वद्धता, क्वचिद् अतिसार, क्षुधाल्पता अरुचि, लाला स्रावाधिक्य, आलस्य, अनमनस्कता आदि पाचन तंत्र की अनेक व्याधियों से पीड़ित हो जाता है ।

पौष्टिक सुपाच्य आहार सेवन करने पर भी उसमें बल नहीं होता, शरीर हष्ट-पुष्ट होने पर उत्साह नहीं होता। अपने कार्य को अधूरा छोड़ देना, उसकी विवशता होती है। वह अतिशीघ्र थक जाता है। अपना कार्य न कर पाने के कारण, वह अपना क्रोध अपने सहयोगियों एवं घर के सदस्यों पर उतारता है। ऐसे रोगियों को ‘निदान, परिवर्जन’ के उपरान्त ‘अग्नि तुण्डी वटी’ की दो गोलियाँ प्रात: सायं भोजनो परान्त उष्णोदक से देने पर एक सप्ताह में भोजन में स्वाद आने लगता है। मल शुद्धि होने लगती है। एक एक पक्ष की तीन आवृतियाँ करवाने से रोग समूल नष्ट हो जाता है।

सहायक औषधियों में आरोग्य वर्धिनी वटी, अग्नि कुमार रस, कुमार्यासव, दशमूलारिष्ट, पुनर्नवादि मण्डूर, संजीवनी वटी, शंखवटी, चित्रकादिवटी का प्रयोग करवाना अभिष्ट होता है।

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अजीर्ण में अग्नितुंडी वटी से फायदा (Agnitundi Vati Uses in Indigestion Treatment in Hindi)

भोजन का न पचना ही अजीर्ण है। अजीर्ण के छ: भेद माने गए हैं। जिनमें मुख्य तीन ही हैं । आमाजीर्ण इसका कारण श्लेष्म की वृद्धि है, विदग्धा जीर्ण का कारण पित्त की वृद्धि एवं विष्टब्धा जीर्ण इसका कारण वात की वृद्धि होती है, इसमें कभी अन्न का पाचन हो जाता है तो कभी नहीं, अनाह, आन्त्र कूजन, मल वद्धता क्वचिद अतिसार भी या कुछ दिन मलावरोध कुछ दिन अतिसार । इस प्रकार की अजीर्ण में अग्नितुण्डी वटी की दो-दो गोलियाँ प्रात: सायं भोजन के उपरान्त उष्णोदक से देने से एक सप्ताह में रोग से मुक्ति मिल जाती है।

( और पढ़े – अरुचि दूर करने के 32 अचूक उपाय )

विशूची में अग्नितुंडी वटी से लाभ

अजीर्ण का परिवृद्ध (बढ़ा हुआ) रूप ही विशूची होता है, अजीर्ण में भोजन कर लेने अथवा अति स्निग्ध, अति तीक्ष्ण, अत्योष्ण, अतिशीतल, मात्रा गुरु, गुण गुरु, पर्युषित, संक्रमित भोजन कर लेने सभी तीन दोष प्रकुपित होकर उदर में घोर शूल, सूई चुभने जैसी वेदना, छर्दि (उल्टी) और अतिसार (Diarrhea) उत्पन्न कर देते हैं, यह छर्दि, अतिसार भी तीव्र प्रकार के होते हैं। जिनके कारण बलक्षय, जलाल्पता एवं मूत्र क्षय होकर मृत्यु हो जाती है।

ऐसी परिस्थिति में अग्नितुण्डी वटी दो-दो गोलियाँ प्रत्येक घण्टे में अर्द्रक स्वरस 20 मि.लि., पलाण्डु स्वरस 20 मि.लि., निम्बू स्वरस 20 मि.लि. पोदीना पत्र स्वरस 20 मि.लि. शर्करा चार चम्मच, सैन्धा लवण आधा चम्मच मिलाकर बनाए हुए पान के साथ दें और उपरोक्त पानक, एक-एक चम्मच रोगी के मुँह में डालते रहें, यदि पिपासा (पानी पीने की इच्छा) अत्युग्र हो तो बर्फ का टुकड़ा मुँह में रखकर चुसवाएँ ।

सहायक औषधियों में लशुनादि वटी, चित्रकादि वटी, अग्नि कुमार रस, कर्पूर रस, हिंगु कर्पूर वटी का प्रयोग भी करवाएँ। जलाल्पता हो जाने पर शिरः द्वारा जलापूर्ती ही एक मात्र चिकित्सा होती है।

ग्रहणी रोग में अग्नितुंडी वटी का उपयोग फायदेमंद (Benefits of Agnitundi Vati in IBS Disease in Hindi)

मन्दाग्नि अथवा अतिसार की जीर्णावस्था ग्रहणी (IBS inflammatory Bowel Syndrom) है। ग्रहणी रोग में रोगी की अग्नि अत्यन्त क्षीण हो जाती है। उसे कई बार तो पचा हुआ कई बार बिना पचे हुए अन्न गुदा द्वारा बाहर आ जाता है। रोगी कृश हो जाता है उसे बार-बार मल प्रवृत्ति विशेषतः प्रातः काल में, अरुचि, पाण्डु क्वचिद् ,कुछ दिनों के लिए मल बद्धता, एवं पुनः अतिसार, पेट में अफारा या गुड़-गुड़ शब्द के साथ मल प्रवृत्ति इत्यादि लक्षण होते हैं।

ऐसी परिस्थिति में अग्नि तुण्डी वटी’ दो-दो गोलियाँ प्रत्येक भोजन के उपरान्त उष्णोदक से देने पर शनैः-शनै: अग्नि वृद्धि होकर रोग के लक्षणों में कमी आने लगती है।

सहायक औषधियों में अग्नि कुमार रस, ग्रहणी कपाट रस, नृपति वल्लभ रस, चिंचा भल्लातक वटी शंखोदर रस प्रभृति का प्रयोग अवश्य करवाना चाहिए। उपरोक्त सभी औषधियों के साथ कुटजारिष्ट, 20 मि.ली. 10 मि.लि. जल मिलाकर प्रत्येक भोजन के उपरान्त अथवा किसी भी औषधि के अनुपान में देने से शीघ्र लाभ होता है।

पेट दर्द में अग्नितुंडी वटी से फायदा (Agnitundi Vati Benefits in Abdominal Pain in Hindi)

उदर में कई प्रकार के शूल पाए जाते हैं । अम्लपित्त जन्य आमाशय शूल, पित्ताशय के शोथ अथवा अश्मरी(पथरी) के कारण होने वाला पित्ताशय शूल, यकृत अथवा अग्नाशय में विद्रधी या पूयोत्पत्ती से होने वाले यकृत एवं क्लोम शूल, वृक्कों में अश्मरी जन्य वृक्क शूल, इनमें से किसी भी शूल में अग्नि तुण्डी वटी का उपयोग नहीं होता।

आन्त्र में वायु के रुक जाने से उत्पन्न आन्त्र शूल और ग्रहणी में व्रण हो जाने के कारण उत्पन्न अन्न द्रव शूल में अग्नि तुण्डी वटी का सफल उपयोग होता है ।

आन्त्र शूल में दो दो गोली उष्णोदक से देने से एक घण्टे में शूल समाप्त हो जाता है, वायु की गति अनुलोम हो जाती है। परन्तु रोग की पूर्णनिवृत्ति के लिए एक सप्ताह तक अग्नि तुण्डी का सेवन अवश्य करवाएँ ।

अन्न द्रव शूल में भोजन के एक घण्टा उपरान्त, अग्नि तुण्डी वटी, दो गोलियाँ सेवन करवाने से वात का शमन होकर वेदना शान्त होती है, सहायक औषधियों में प्रवाल पंचामृत रस, अम्लपित्तान्त लोह, अविपत्तिकर चूर्ण प्रभृति, अम्लनाशक औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।

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सर्वाङ्ग शूल (संपूर्ण अंग के दर्द) में आराम दिलाए अग्नितुंडी वटी का सेवन

शीतल वातावरण में निवास, वर्षा में भीगने पर अथवा वायु बर्धक एवं कफ बर्धक आहार के सेवन से वायु की वृद्धि सर्वाङ्ग वेदनाएँ उत्पन्न करती है। कई रोगों के पूर्व रूप तथा, संक्रामक रोगों के चय काल में भी सर्वाङ्ग वेदनाएं होती हैं ।

इन वेदनाओं में ‘अग्नितुण्डी वटी’ दो-दो गोलियाँ दिन में तीन बार उष्णोदक से देने से वात का शमन होकर वेदनाओं की शान्ति होती है। यदि उपयुक्त समय पर अग्नितुण्डी वटी का प्रयोग करवाया जाए तो सम्प्राप्ति भंग होकर चय काल में ही संक्रामक रोग समाप्त हो जाते हैं।

आमवात मिटाए अग्नितुंडी वटी का उपयोग (Agnitundi Vati Benefits in Rheumatoid in Hindi)

आमवात रोग का मूल कारण अग्निमान्द्य और उससे उत्पन्न आम ही होता है। अग्नितुण्डी वटी अपने तीक्ष्ण, उष्ण, रुक्ष, आम पाचक, मल सारक, गुणों के कारण आम का पाचन करवा कर, शोथ, शूल एवं अग्नि मान्द्य का नाश करके आमवात से मुक्ति दिलवाती है।

सहायक औषधियों में आमवातारी रस, त्र्योदशाङ्ग गुग्गुल, वात गजांकुश रस, चिंचाभल्लातक वटी, दशमूलारिष्ट इत्यादि का प्रयोग भी अवश्य करवाना चाहिए।

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निम्न रक्त चाप रोग में लाभकारी है अग्नितुंडी वटी का प्रयोग (Agnitundi Vati Uses to Cures Low blood pressure in Hindi)

आलास्य, तन्द्रा, अशक्ति, इत्यादि लक्षण मिलने पर रोगी के ब्लड प्रेशर की जाँच करने पर जब प्रेशर 100/70 या इससे कम हो तो निम्न रक्त चाप होता है ।

अग्नि तुण्डी वटी की दो गोलियाँ दिन में तीन बार गर्म दूध से देने में एक दिन में ही रक्त चाप सामान्य हो जाता है। पुनरावृत्ति रोकने के लिए दो गोली, प्रातः-सायं एक सप्ताह तक सेवन करवाएँ, अधिक विकट परिस्थिति में वृ. कस्तूरी भैरव रस एक गोली दिन में तीन बार मृत संजीवनी सुरा 20 मि.लि. के साथ देने से तत्काल लाभ मिलता है।

सहायक औषधियों में, पूर्ण चन्द्रोदय रस, सिद्ध मकर ध्वज वटी, वसन्त कुसुमाकर रस द्राक्षारिष्ट, बलारिष्ट, अश्वगन्धारिष्ट, गोक्षुरादि चूर्ण, अश्वगंधादि चूर्ण इत्यादि का प्रयोग करवाना चाहिए।

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अपेंडिसाइटिस मिटाता है अग्नितुंडी वटी ( Agnitundi Vati Beneficial to Treat Appendicitis in Hindi)

ज्वर ,छर्दि(उल्टी), उदर(पेट) के दाईं ओर नाभी के पास शूल इत्यादि लक्षणों में रोगी की परीक्षा पर यदि उपान्त्र शोथ का निश्चय हो तो, तत्काल अग्नितुण्डी वटी दो-दो गोलियाँ छः छः घण्टे के अन्तराल से दशमूल क्वाथ के साथ देने से दो दिन में ज्वर, वेदना, छर्दि शान्त हो जाते हैं, शल्य क्रिया की आवश्यकता नहीं पड़ती।

सहायक औषधियों में रस पर्पटी, आरोग्य वर्धिनी वटी, दशाङ्ग लेप, सुरदारु लेप, यवादि लेप का प्रयोग भी अवश्य करना चाहिए।

श्वास रोग में अग्नितुंडी वटी का उपयोग फायदेमंद (Agnitundi Vati Uses to Cure Asthma Disease in Hindi)

तमक श्वास (ब्राँकियल अस्थमा) वात कफ प्रधान रोग है, परन्तु मूलत: यह आमाशयोत्थ व्याधि है, आमाशय कफ का स्थान है, जठराग्नि का भी। अतः श्वास की चिकित्सा में जठराग्नि की चिकित्सा महत्त्वपूर्ण होती है । श्वास के आक्रमण काल में अग्नितुण्डी का प्रयोग नहीं होता ।

आक्रमण के उपरान्त एक या दो दिन के स्नेह पानोपरान्त स्नेहों में कटु तैल अपने तीक्ष्ण उष्ण गुण, के कारण श्वास रोगियों के लिए अधिक उपयुक्त रहता है। विरेचन करवा कर अग्नि तुण्डी वटी दो गोलियाँ प्रातः सायं भोजन से पूर्व उष्णोदक से देते रहने पर आमोत्पत्ती रुक कर वात एवं कफ का शमन हो जाता है, अतः श्वास के आक्रमण का अन्तराल लम्बा होता जाता है, और रोगी यदि पथ्य पूर्वक लम्बे समय तक औषधि सेवन करें तो रोग से मुक्त हो जाता है।

सहायक औषधियों में समीर पन्नग रस, तालसिन्दूर ,मल्ल सिन्दूर, सोमयोग, आक्रमण के समय एवं
चित्रक हरीतकी, भाङ्गी गुड़, कण्टकार्यावलेह, च्यवण प्राश, अगस्त हरीतकी इत्यादि शमन काल में प्रयोग करवाने चाहिए।

गुदाभ्रंश रोग में अग्नितुंडी वटी से लाभ (Agnitundi Vati Uses to Cures Prolapsus Ani in Hindi)

प्रवाहिका, जीर्ण ग्रहणी, जीर्ण मलावरोध, यकृत विकृति के रोगियों में अति कुंथन के कारण, आन्त्र का कुछ भाग गुदद्वार से बाहर निकल कर लटकने लगता है। रोगी को अपने हाथ के तलवे से दबा कर उसे अन्दर करना पड़ता है। ऐसे रोगियों को ‘अग्नितुण्डी वटी’ दो गोलियाँ प्रातः सायं भोजनोत्तर देने से कुछ ही दिनों में मलवद्धता दूर हो जाती है। जिस से न तो कुन्थन की आवश्यकता पड़ती है और न ही गुदाभ्रंश होता है, वात नाड़ी बल्य होने के कारण इसके प्रयोग से आन्त्र भी सवल हो जाती है, अत: वह अपने स्थान पर दृढ़ता पूर्वक स्थित हो जाती है।

सहायक औषधियों में कमलपत्र चूर्ण ,इसबगोल की भूसी ,चाँगेरी घृत तथा संबंधित रोग की औषधियों का प्रयोग भी करवाना चाहिए।

बहुमूत्र रोग में लाभकारी है अग्नितुंडी वटी का प्रयोग (Agnitundi Vati Benefits to Cure Excessive urination Problem in HIndi)

बहुमूत्र बालकों और वृद्धों में अधिकांशत: पाया जाता है। नव युवकों में बहू मूत्रता क्वचिद् ही मिलती है, बालकों के शय्या मूत्र में प्रायशः अग्नि तुण्डी वटी का प्रयोग नहीं होता आठ से चौदह वर्ष के बालकों में अग्नितुण्डी वटी का आधी मात्रा में प्रयोग होता है। इसके सेवन से एक सप्ताह में बालक विस्तर भिगोना बन्द कर देते हैं। अधिक समय तक प्रयोग अभिष्ट हो तो एक सप्ताह के अन्तर के उपरान्त पुनः प्रयोग करवा सकते हैं ।

बृद्धों के बहू मूत्र के तीन मुख्य कारण होते हैं।

1.पौरुषग्रंथि वृद्धि, 2. मधुमेह और 3. तीसरा कारण होता है मानसिक भय,। ‘काम शोका भयात् वायु’ के अनुसार में इसका मूल कारण होता है वायु की वृद्धि। मधुमेह में भी वात वृद्धि धातुक्षय के कारण होती है।

अतः प्रथम प्रकार में अग्नितुण्डी वटी का प्रयोग नहीं होता परन्तु दूसरे और तीसरे प्रकार में इस औषधि का प्रयोग बड़ी सफलता से होता है। दो गोलियाँ प्रातः, सायं हरिद्रा आमलकी के क्वाथ से सेवन करवाने आशातीत लाभ मिलता है।

सहायक औषधियों में वसन्त कुसुमाकर रस, शिलाजित्वादि वटी, न्यग्रोधादि क्वाथ, चन्द्र प्रभावटी, आरोग्य वर्धिनी वटी, वहुमूत्रान्तक रस, वृहद् वंगेश्वर रस का प्रयोग करवाना चाहिये।

अग्नितुण्डी वटी के दुष्प्रभाव और सावधानी : Agnitundi Vati Side Effects in Hindi

  1. अग्नितुण्डी वटी लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  2. अग्नितुण्डी वटी में सर्वाधिक मात्रा, ‘कुचला’ की है, इसमें कोई संदेह नहीं कि, कुचला, परमवात नाशक, वेदना शामक, वात वहिनियों के लिए बल्य, और रसायन है, परन्तु कुचला विष भी है, इसे सदैव ध्यान में रखना चाहिए इसका विष शरीर में एकत्रित होता रहता है, और शरीर में जब इसकी मात्रा सामान्य से अधिक हो जाती है, तो इसके विषाक्त लक्षण प्रकट होने लगते हैं। अतः इसका सतत् प्रयोग कभी नहीं करवाना चाहिए, दो सप्ताह के उपरान्त एक सप्ताह का अन्तराल अवश्य दें देना चाहिए।
  3. कज्जली के मिश्रण के कारण यह एक रसौषधि है। अतः रसौषधियों के प्रयोग काल में वर्णित पूर्वोपायों का पालन भी अवश्य करना चाहिए।
  4. उच्चरक्त चाप के रोगियों का रक्तचाप इसके सेवन से बढ जाता है। अत: उच्च रक्त चाप के रोगियों और 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को इसका सेवन नहीं करवाना चाहिए।

अग्नितुण्डी वटी का मूल्य : Agnitundi Vati Price

  • Baidyanath Agnitundi Vati – 80 tab – Rs 84
  • Dhootapapeshwar Agnitundi Vati – 25 tab – Rs 52
  • Unjha Agnitundi Vati – 40 tab – Rs 70
  • Dhanvantari Agnitundi Vati – 60 Tab – Rs 258

कहां से खरीदें :

अमेज़न (Amazon)

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