Last Updated on October 10, 2020 by admin
अजीर्ण पाचन प्रणाली की गड़बड़ी से उत्पन्न प्रमुख उदर रोग है। इसे बदहजमी, अपच आदि भी कहते हैं। खाया हुआ खाना जब जीर्ण नहीं होता यानी बिना पचे रह जाता है तब अजीर्ण रोग की उत्पत्ति होती है । इस रोग में खट्टी डकार, पेट फूलना, जी मिचलाना, शरीर में भारीपन, पेटदर्द इत्यादि विकार उत्पन्न होते हैं।
अजीर्ण (अपच) अर्थात क्या ? (What is Dyspepsia in Hindi)
हमारे रोज के कार्य व्यवहार से शरीर और ऊर्जा का जो ह्रास होता है, उसकी पूर्ति के लिए ही हमें भोजन की आवश्यकता होती है। अगर शरीर को इसकी पूर्ति न की जाए तो शरीर धीरे-धीरे क्षीण होकर रोगी हो जाता है। केवल भोजन न करने से ही शरीर क्षीण या रोगी नहीं होता बल्कि बार-बार अधिक मात्रा में किया गया पौष्टिक भोजन भी न पचने पर रोगों को निर्माण करता है, इन्हीं में से एक है अजीर्ण । आज-कल लोग अजीर्ण रोग से अधिक ग्रसित होते हैं क्योंकि समय-असमय जो कुछ भी मिलता है, खाते रहते हैं।
अजीर्ण (अपच) रोग क्यों होता है ? (Dyspepsia Causes in Hindi)
- आहार ग्रहण करने में गलती करना ही अजीर्ण रोग का प्रमुख कारण है।
- देर-सबेर भोजन करना।
- जब जी में जो आए खा लेना।
- बार-बार भोजन करना।
- अधिक भोजन करना।
- बिना भूख के खाना।
- भोजन करके तुरंत काम पर लग जाना।
- भोजन के नियमों का पालन नहीं करना।
- बिना चबाए ज़ल्दी-जल्दी में भोजन करना।
इस प्रकार से किया गया भोजन ठीक से पचता नहीं और इसके परिणामस्वरूप अजीर्ण रोग होता है।
आयुर्वेद के अनुसार, कुपित वायु और पाचक अग्नि की मंदता से जब किया गया आहार अच्छी तरह से पचता नहीं है तब अजीर्ण रोग उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त ज़्यादा पानी पीने से, विषम मात्रा में भोजन करने से, मल-मूत्र को रोकने से, अधिक जागने से, प्रकृति के अनुकूल एवं हल्का भोजन भी भलीभाँति नहीं पचता, जिससे अजीर्ण हो जाता है।
अपच में भी भोजन करनेवाला, हमेशा खट्टेमीठे पदार्थों का सेवन करनेवाला, द्रव पदार्थों का प्रेमी, व्यायाम न करनेवाला एवं रस-गुण विरूद्ध आहार का सेवन करनेवाला अजीर्ण रोग का शिकार हो जाता है।
अपने मन को वश में न रखते हुए जो इंसान अधिक भोजन करता है, वह अनेक व्याधियों का मूल कारण अजीर्ण रोग से ग्रसित हो जाता है। आहार की विषमता से भी अजीर्ण होता है। यही अजीर्ण सभी रोगों का मूल है।
अजीर्ण से बचने के लिए जितनी भूख हो, उतना ही भोजन करना चाहिए। बिना जोर जबरदस्ती किए हुए भोजन को ही उचित और लाभकारी भोजन समझना चाहिए। अधिक मिर्च-मसालेवाला आहार भी । अजीर्ण का कारण बनता है।
अजीर्ण (अपच) से उत्पन्न अन्य विकार (Complications of indigestion in Hindi)
- अजीर्ण रोग होने पर जी मिचलाने तथा वमन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। वमन होने पर पहले तो खाया हुआ आहार द्रव्य और फिर श्लेष्म (कफ) द्रव निकलता है, जो खट्टा-कड़वा एवं कुछ दुर्गंधयुक्त होता है। इस अम्लीय द्रव्य से गले में (भोजन प्रणाली में) जलन सी होती है।
- वमन द्वारा शरीर से अधिक पानी निकल जाने से ज़्यादा प्यास लगती है।
- शरीर शिथिल व सुस्त हो जाता है।
- उसे ठंडा पसीना आता है तथा सिरदर्द भी होने लगता है।
- इन विकारों के अतिरिक्त पतला दस्त होना, भूख न लगना, पेट फूलना, पेट का भारीपन, कच्ची डकारें आना, पेट में गैस, छाती में जलन, मुँह में पानी आना, साँस में दुर्गंध, आलस्य, नींद न आना आदि अजीर्ण के सामान्य लक्षण हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा से अजीर्ण (अपच) का उपचार (Naturopathy Treatment for Dyspepsia (indigestion) in Hindi )
अजीर्ण रोग को उत्पन्न करनेवाले सभी कारणों का त्याग करना ही इसका प्राथमिक उपचार है। इसके बाद शरीर को दोषमुक्त करने के साथ-साथ पाचन संस्थान को सबल बनाने पर, अजीर्ण रोग से मुक्ति पाई जा सकती है । इसके लिए सर्वप्रथम पेट पर गर्म-ठंडा सेंक करें, फिर कुनकुने गर्म पानी में एक नींबू का रस मिलाकर एनीमा लेकर पेट साफ करें। उसके बाद ही इलाज शुरू करें। जब तक पेट अपने आप साफ न होने लगे तब तक इसी प्रकार एनीमा लेकर पेट साफ करते रहना ठीक होता है। पेट साफ करने के बाद, पेट को सबल बनाने का प्रयास करें।
कटिस्नान (Hip Bath)
पाचन संस्थान को सबल बनाने के लिए, पेट पर गर्म-ठंडा सेंक करने के साथ-साथ कटिस्नान (टब में कमर तक पानी में बैठकर नहाना) करना चाहिए अथवा पेट की लपेट का प्रयोग करना चाहिए। इससे पेट (पाचन संस्थान) की ताकत ऐसे बढ़ जाती है, जिसे अनुभव कर रोगी खुद आश्चर्यचकित हो जाता है।
यदि रोगी दिन में एक बार विधिवत कटिस्नान और रात को सोते समय पेट की लपेट का प्रयोग करे तो अजीर्ण रोग का अतिशीघ्र शमन होता है। लेकिन कटिस्नान और पेट की लपेट का प्रयोग पेट की गर्मी और उसकी शक्ति के अनुरूप ही होना चाहिए क्योंकि अजीर्ण के रोगी का शरीर प्रायः ऊपर से ठंडा रहता है। अतः पेट पर गर्म-ठंडा सेंक करके, फिर पेट की लपेट का प्रयोग दिन में दो बार एक डेढ़ घंटे तक और रात के समय पूरी रात तक करना चाहिए।
जैसे ही रोगी को यह सहन होने लगे, उस समय थोड़े समय का कटिस्नान लेकर लाभ उठाना चाहिए। फिर धीरे-धीरे कटिस्नान के समय में वृद्धि करते जाना चाहिए। लेकिन शरीर की ठंडी अवस्था में कटिस्नान लेने से कोई विशेष लाभ नहीं होता इसलिए कटिस्नान पेट की गर्म अवस्था में ही लेना चाहिए।
भापस्नान (Steam Bath)
अजीर्ण के रोगी की त्वचा में प्रायः रक्त की कमी हो जाती है। इसी कारण उसका शरीर आवश्यकता से अधिक ठंडा रहता है, जिससे शरीर से पसीना नहीं निकलता। परिणामस्वरूप शरीर के विषैले तत्त्व जो पसीना द्वारा बाहर निकलते हैं, वे शरीर में ही रह जाते हैं। इन विषैले तत्त्वों से अजीर्ण को बढ़ावा मिलता है। अतः रोगी को प्रतिदिन स्नान से पूर्व पसीना लाकर इन तत्त्वों को शरीर से बाहर निकाल देना चाहिए। इसके लिए सबसे सरल उपाय है, भापस्नान या धूपस्नान ।
रोगी को भापस्नान या कुछ देर तक धूपस्नान लेकर पसीना निकाल देना चाहिए। इससे कुछ देर बाद ठंडे जल से स्नान करें और स्नान के बाद तौलिए से शरीर को रगड़कर पोंछ दें। इससे पसीने के साथ जो मैल निकलता है, वह सब साफ हो जाता है।
इस प्रकार स्नान करने से सबसे अधिक लाभ रोगी को यह होता है कि उसका निराश जीवन पुनः आशाओं से भर जाता है, साथ ही रोगी के शरीर में भोजन के सभी रसों को ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि हो जाती है। शरीर में रक्त का संचार तीव्रता से होता है, जिससे रोगी शारीरिक शक्ति का अनुभव करता है।
मालिश (Massage)
मालिश और व्यायाम भी अजीर्ण रोग का अच्छा उपचार है, इससे पाचन संस्थान की शक्ति में वृद्धि होती है। जिस प्रकार मालिश सिर के रोगों में लाभदायक है, उसी प्रकार मालिश पेट आदि की शक्ति बढ़ाने में सहायक है। इसलिए रोगी को दवा के पीछे न भागकर अपने पेट की शक्ति बढ़ाने में लग जाना चाहिए। इसके लिए सुबह-शाम शौच से पहले पेट की मालिश अवश्य करनी चाहिए, इससे आँतों की शक्ति में वृद्धि होती है। खाया हुआ आहार सुगमता से पचता है और पेट अपने आप साफ होने लगता है।
व्यायाम (Exercise)
मालिश की भाँति ही पेट की शक्ति बढ़ाने में पेट के व्यायाम या आसन से भी अच्छा लाभ होता है।
अतः रोगी को प्रतिदिन अपने बलानुसार कुछ व्यायाम अवश्य करना चाहिए क्योंकि व्यायाम से भोजन पचाने की शक्ति बढ़ती है। इसके लिए उत्थानपादासन, धनुरासन, हलासन, सर्वांगासन, उड्डियानबंध आदि सर्वोत्तम योग क्रियाएँ हैं।
व्यायाम द्वारा भोजन ठीक से पचने लगता है, जिससे पुनः शरीर में नवशक्ति उत्पन्न होने लगती है। व्यायाम बहुत फायदेमंद है, फिर भी शुरुआत में इसे थोड़ा ही करना चाहिए। इसके बाद जैसे-जैसे इसका अभ्यास होता जाए, इसके समय में वृद्धि करनी चाहिए। कमज़ोर रोगी को एकाएक अधिक समय तक व्यायाम करना ठीक नहीं है।
अजीर्ण (अपच) रोग में पथ्य पालन भी ज़रूरी :
इस रोग में उपचार के साथ-साथ रोगी को पथ्य पालन पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि पथ्य का पालन नहीं करने से रोगवृद्धि हो जाती है। यदि अजीर्ण पर शीघ्र काबू पाना है तो पहले दिन मात्र नींबू पानी पीकर उपवास करना चाहिए। दिन में 3-4 बार नींबू के रस में पानी मिलाकर पीने से शरीर के अधिकांश विषैले तत्त्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं, जिससे रोग धीरे-धीरे दूर होने लगता है। नींबू के रस का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह सर्वश्रेष्ठ क्षारप्रधान आहार है। अपने इसी गुण के कारण यह आँतों में पहुँचकर वहाँ के सभी विषों को धोकर शरीर से बाहर निकाल देता है और आँतों के आरोग्य मूलक जीवों की वृद्धि के लिए योग्य स्थान निर्माण करता है। अपने इसी गुण के कारण नींबू मनुष्य के लिए अमृततुल्य आहार है।
अतः रोगी को जहाँ तक संभव हो सके, नींबू पानी से उपवास करके लाभ उठाना चाहिए। इस प्रकार के उपवास से अजीर्ण रोग में अत्यधिक लाभ होता है। इससे आँतों को भी आराम मिल जाता है, जिससे उसकी शक्ति में वृद्धि हो जाती है और रोगी को खुलकर भूख लगने लगती है इसलिए उपवास सभी प्रकार के उदर रोगों में लाभप्रद है।
लेकिन अजीर्ण के पुराने रोग में एक-दो दिन का उपवास करने के बाद अभ्यास हो जाने पर ही रोगी को लंबा उपवास करना चाहिए। इस प्रकार के लंबे उपवास के बाद रोगी को स्वाभाविक भूख लगने लगे तो समझना चाहिए कि उसका शरीर रोगमुक्त हो गया है। फिर उसे आहार को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। इसके लिए पहले दिन रोगी को थोड़ा सा मट्ठा या फल का रस पीकर रहना चाहिए। फिर धीरे-धीरे इसमें वृद्धि करनी चाहिए। इसे एकाएक अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए।
ध्यान रहे, अजीर्ण रोगी का मुख्य भोजन दही और मट्ठा है। इसे अधिक मात्रा में ग्रहण करने से पेट में
रक्षाकारी जीवाणु बढ़ते हैं और हानिकारक जीवाणुओं का नाश होता है। अजीर्ण रोग में हरी साग-सब्ज़ी का सूप भी उपयोगी आहार है। अजीर्ण रोगी का आहार सदैव अम्लयुक्त और उत्तेजक न होकर क्षारयुक्त और सुपाच्य होना चाहिए। रोगी को अपने आहार में ऐसा संतुलन रखना चाहिए, जिससे उसके रक्त में क्षार और अम्ल के अनुपात में अंतर न पड़े, साथ ही उसे विटामिन्स व खनिज लवणों की भी कमी न होने पाए। वह जो भी भोजन करे, खूब चबा-चबाकर करे । आवश्यकता से अधिक भोजन कभी न करे। इस प्रकार पथ्य का पालन करते हुए रोगी अजीर्ण से मुक्त हो जाता है।
अजीर्ण (अपच) रोग की आयुर्वेदिक दवा (Dyspepsia Ayurvedic Medicine in Hindi)
यूँ तो अजीर्ण होने पर उसकी तुरंत ही चिकित्सा व्यर्थ है क्योंकि औषधि सेवन से ऊपरी तौर पर अजीर्ण तो ठीक हो जाता है, लेकिन विकार शरीर के अंदर रह जाते हैं। इसलिए अजीर्ण होने पर निर्दिष्ट नियमों का पालन करते हुए दवाई की जाए तो जल्दी आराम होता है। यहाँ पर अजीर्ण रोगशामक कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ दी जा रही हैं।
1). अग्नितुण्डी वटी : जब भोजन नियत समय से पहले या बाद में किया गया हो और अजीर्ण होने की आशंका हो तो अग्नितुण्डी वटी का प्रयोग अति हितकारी होता है। इसकी 1 से 2 गोली तक जल के साथ सेवन करना चाहिए। यह पाचक अग्नि को तीव्र कर आहार का पाचन करती है।
2). चित्रकादि गुटिका : चित्रकादि वटी की 1-1 गोली दिन में तीन बार सेवन करने से आम दोष का पाक होता है तथा अग्नि प्रदीप्त होती है, जिससे अजीर्ण का शमन होता है।
3). लवण भास्कर चूर्ण : लवण भास्कर चूर्ण अपच व अजीर्ण में अत्यंत लाभकारी चूर्ण है। प्रतिदिन भोजन के बाद यदि इसका सेवन किया जाए तो अजीर्ण होने की संभावना नहीं रहती तथा पाचक अग्नि तेज होती है। इसे 2 से 5 ग्राम तक सेवन किया जा सकता है। छाछ में मिलाकर इसका सेवन सर्वोत्तम है।
4) हिंग्वाष्टक चूर्ण : हिंग्वाष्टक चूर्ण 2 से 3 ग्राम की मात्रा में भोजन के समय पहले ग्रास में घी में मिलाकर खाएँ। इससे वायु प्रधान अजीर्ण का शमन होता है। पेट में गैस, कच्ची डकारें आना, भूख न लगना आदि विकार ठीक हो जाते हैं।
5) अग्निवर्द्धक वटी : इसे भोजन के बाद 2-3 गोली का सेवन करें। यह अपच-अजीर्ण की उत्तम औषधि है।
6) लहसुन वटी (रसोनादि वटी) : 1 से 2 गोली भोजन के बाद लेने से अजीर्ण, अपच, उदर वायु तथा पेटदर्द का शमन होता है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)