Last Updated on December 15, 2021 by admin
इसके दाने सामान्य अजवाइन से थोड़े-से बड़े होते हैं, इसलिये इसे बड़ी अजवाइन कहते हैं।
अजमोदा के छोटे-छोटे पौधे अजवायन की भांति एक से तीन फुट ऊंचे, पत्ते बिखरे और किनारे कटे हुए होते हैं। फूल छतरीनुमा फूलक्रम में नन्हें-नन्हें श्वेत रंग के होते हैं जो पककर अन्तत: बीजों में परिवर्तित हो जाते हैं।
अजमोदा (बड़ी जवाइन) के औषधीय गुण :
यह लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, कटु, तिक्त, रसयुक्त, विपाकमें कटु और उष्ण वीर्य है।
अजमोदा के फायदे व उपयोग :
1. इसका प्रयोग वातरक्त-कृमि दूर करने, मूत्राशय के रोग और नष्टार्तव में किया जाता है।
2. श्वास, पथरी, यकृत्-प्लीहाविकार आदि में इसका उपयोग होता है।
3. कटिशूल, पार्श्वशूल, संधि वात तथा चर्मरोगों में इसका लेप करनेसे लाभ होता है।
4. वात-व्याधि में इसके चूर्ण एवं क्षीरपाक का प्रयोग किया जाता है।
5. अग्निमान्द्य, अजीर्ण, आध्यमान, उदरशूल, गुल्म, अतिसार और प्रवाहिका में इसका चूर्ण सेवन करना लाभदायक है।
6. वातरक्त आदि रक्त-विकारों में इसका प्रयोग करते हैं।
7. हिक्का श्वास और मूत्रकृच्छ में भी यह परमोपयोगी है।
8. शुक्र दौर्बल्य, कष्टार्तव एवं सूतिका-रोगों में इसका प्रयोग होता है।
9. प्रसव के बाद इसका प्रयोग करने से बल बढ़ता है, स्तन की वृद्धि होती है, गर्भाशय का संशोधन होता है तथा वायु के उपद्रव शान्त होते हैं।
10. डेढ़ से तीन मासे अजमोदाका चूर्ण , १ तोला मूली के पत्तेके रस , के साथ चार रत्ती यवक्षार मिलाकर पीने से पथरी गलकर निकल जाती है। यह प्रयोग प्रातः-सायं नियमित करना चाहिये।
11. बालकों को गुदा में कृमि हो जानेपर अजमोदा को अग्निमें डालकर धुआँ देना चाहिये।
12. यदि भोजन के बाद हिचकी आती है तो अजमोदाके दाने मुख में रखनेसे हिचकी बन्द हो जाती है।
13. यदि मूत्राशय में वायु का प्रकोप हो गया हो तो अजमोदा और नमक को स्वच्छ वस्त्र में बाँधकर इस पोटली से सेक करना चाहिये, इससे वायु नष्ट हो जाती है।
14. पतले दस्त आने पर अजमोदा, सोंठ, धाय का फूल, मोचरस समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाये। इस चूर्णको वयस्कों को ३ से ६ माशे की मात्रा में मट्ठे के अनुपान से देना चाहिये।
15. अजमोदा को पान में रखकर चूसने से सूखी खांसी में आराम मिलता है।
16. अजमोदा की जड़ की कॉफी मस्तिष्क एव वातनाड़ियों के लिए उपयोगी होता है।
17. अजमोदा को गर्म कर कपड़े में बांधकर सेक करने से बवासीर (अर्श रोग) की पीड़ा दूर होती है।
18. शीत पित्त और कुष्ठ में अजमोदा के 2-5 ग्राम चूर्ण को गुड़ के साथ मिलाकर 7 दिन तक दिन में 2-3 बार खिलाना चाहिए।
19. अजमोदा 4 ग्राम तक प्रतिदिन सुबह ठण्डे पानी के साथ बिना चबाये निगलने से जीर्ण ज्वर या बुखार और शरीर की सर्दी आदि दूर हो जाती है।
20. फोड़े-फुंसी या घाव को जल्दी पकाने के लिए इसे थोड़े गुड़ के साथ पीसकर सरसों के तेल में पकाकर बांधना चाहिए।
21. 3 ग्राम अजमोद का चूर्ण शहद के साथ सुबह और शाम चाटने से रोग मे बहुत आराम आता है।
22. अजमोदा, हरड़, कचूर तथा संचार नमक आदि को पीसकर चूर्ण बनाकर सेवन करने से बुखार समाप्त हो जाता है।
23. अजमोदा को आग पर डालकर उसका धुंआ मुंह में भरने से दांतों में लगे कीड़े खत्म होते हैं और दर्द से आराम मिलता है।
24. अजमोदा की जड़ के बारीक चूर्ण को डालकर बनी कॉफी के सेवन से वातानाड़ी (स्नायु) की कमजोरी मिट जाती है। ध्यान रहे कि इसका प्रयोग मिर्गी के रोगी और गर्भवती औरत के लिए हानिकारक है।
25. पेशाब खुलकर आने के लिए और शरीर की सूजन मिटाने के लिए अजमोदा की जड़ 1 से 4 ग्राम नियमित सुबह शाम खाने से लाभ होता है।
अजमोदा के नुकसान :
अजमोदा मिर्गी रोग को उभारता है और इसकी जड़ का सेवन फेफड़ों के लिए हानिकारक हो सकता है। इसलिए मिर्गी (अपस्मार) के रोगी को भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
अजमोदा विदाही है, अर्थात खाने के बाद छाती में जलन पैदा करता है। इसके सेवन से गर्भाशय में उत्तेजना होती है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)