Last Updated on May 5, 2024 by admin
एलोवेरा (ग्वारपाठा / घृतकुमारी ) क्या है ?(Aloe vera in hindi)
भारत में ग्वारपाठा या घृतकुमारी हरी सब्जी के नाम से प्राचीनकाल से जाना जाने वाला कांटेदार पत्तियों वाला पौधा है, जिसमें रोग निवारण के गुण कूट-कूट कर भरे पड़े हैं। आयुर्वेद में इसे घृतकुमारी की ‘उपाधि मिली हुई है। औषधि की दुनिया में इसे संजीवनी भी कहा जाता है। इसकी 200 जातियां होती हैं, परंतु प्रथम 5 ही मानव शरीर के लिए उपयोगी हैं। देखने में यह अवश्य अजीब-सा पौधा है लेकिन इसके गुणों का कहीं कोई अंत नहीं है।
इस पौधे के पत्ते ही होते हैं जो ज़मीन से ही निकलते हैं, 3-4 फिट लम्बे और 3-4 इंच चौड़े होते हैं जिनके दोनों तरफ़ नुकीले कांटे होते हैं। ये पत्ते गहरे हरे रंग के मोटे, चिकने और गूदेदार होते हैं। जिन्हें छीलने पर घी जैसा गूदा निकलता है। इसीलिए इस वनस्पति को घृतकुमारी और घी गुवार भी कहा जाता है।
ग्वार पाठे के उपयोग से कई आयुर्वेदिक औषधियां बनाई जाती हैं जिनमें रजः प्रवर्तनी वटी, कुमार्यासव, कुमारी पाक आदि और यूनानी दवाओं में हब्ब अयारिज़, हब्ब सिब्र आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। पेटेण्ट दवाओं में ऐलोपैथिक दवा एलोज़ कम्पाउण्ड (Alos compound) का मुख्य घटक द्रव्य ग्वार पाठा ही है।
एलोवेरा (ग्वारपाठा / घृतकुमारी) के विभिन्न भाषाओं के नाम :
- संस्कृत – घृतकुमारी ।
- हिन्दी – घी गुवार, ग्वारपाठा, घृतकुमारी ।
- मराठी – कोरफड़, कोरकांड ।
- गुजराती – कुंवार पाठा ।
- बंगला – घृतकोमारी ।
- तेलगु – चिन्नकट बांदा,कलबन्द ।
- तामिल – चिरुलि, कत्तालै, चिरुकत्तारे।
- मलयालम – कुमारी ।
- कन्नड़ -लोलिसार ।
- फ़ारसी – दरख्ते सिब्र ।
- इंगलिश – एलो (Aloe),
- लैटिन – ऐलो वेरा (Aloe vera).
एलोवेरा (ग्वारपाठा / घृतकुमारी ) के औषधीय गुण :
ग्वारपाठा दस्तावर, शीतल, तिक्त, नेत्रों के लिए हितकारी, रसायन,मधुर रस युक्त, पौष्टिक, बलवीर्य वर्द्धक तथा वात, विष, गुल्म, प्लीहा व यकृत के विकार, अण्डवृद्धि, कफज ज्वर, ग्रन्थि, अग्निदाह, विस्फोट, रक्तपित्त, रक्तविकार और त्वचा रोग आदि विकारों को दूर करने में सहयोग देने वाली वनस्पति है।
एलोवेरा के उपयोग :
ग्वारपाठे के रस का उपयोग कई व्याधियों को दूर करने में गुणकारी सिद्ध हुआ है। जैसे –
मधुमेह (डायबिटीज़) का मामला ले लें । मधुमेह को नियन्त्रित करने में ग्वारपाठे का रस बहुत गुणकारी सिद्ध हुआ है। एक रोगी की रक्तशर्करा 300 से ऊपर रहती थी। उन्हें 2-2 गोली शिलाप्रमेह वटी के साथ ग्वारपाठे का रस 25-25 मि.लि. सुबह शाम सेवन कराया। इससे उनकी रक्त शर्करा तो नार्मल हुई ही साथ ही मुरझाया हुआ निस्तेज चेहरा भी खिला हुआ और तेजस्वी हो गया था। यहां घरेलू इलाज में उपयोगी एलोवेरा जूस के कुछ प्रयोग प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
एलोवेरा सेवन विधि (dosage & how to take)
सुबह शाम इसका रस 20-20 मि.लि. यानी 2-2 बड़े चम्मच भर, थोड़े पानी में मिला कर या बिना पानी मिलाए पीना चाहिए।
एलोवेरा के फायदे (Aloe vera ke fayde in Hindi)
1. कब्ज में एलोवेरा के फायदे : कब्ज को मलावरोध कहते हैं। क़ब्ज़ होने पर कई रोग पैदा होते हैं जैसे अपच से होने वाला आमज्वर, विषम ज्वर, पित्त प्रकोप, बड़ी आंत की निर्बलता, सिर दर्द, खूनी बवासीर और त्वचा रोग आदि। इस स्थिति में भोजन के बाद सुबह शाम कुमार्यासव 4-4 चम्मच आधा कप पानी में मिला कर लेने से आराम होता है। ( और पढ़े – एलोवेरा रस के फायदे )
2. पेट के रोग में एलोवेरा के फायदे : कुमार्यासव में एलोवेरा होता है। ऐलोवेरा जूस सुबह शाम पीने से ऐसा ही लाभ होता है। पेट कठोर हो गया हो तो उसे नरम करने के लिए, रात को पेट पर तैल का लेप करके, ग्वारपाठे का गूदा रख कर पट्टी बांधने से सुबह तक पेट नरम हो जाता है, उदर की वेदना दूर होती है।
3. प्लीहावृद्धि में एलोवेरा के फायदे : विषम ज्वर होने से प्लीहा बढ़ जाती है जिससे मन्दाग्नि, मन्द ज्वर रहना, मलावरोध यानी क़ब्ज़ रहना, शारीरिक कमज़ोरी रहना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। इस रोग की चिकित्सा में एलोवेरा जूस का उपयोग गुणकारी सिद्ध होता है। एलोवेरा जूस 20 मि.लि. में आधा चम्मच पिसी हल्दी मिला कर सुबह शाम सेवन करने से प्लीहा वृद्धि के अलावा यकृत वृद्धि भी दूर होती है। ( और पढ़े –एलोवेरा जेल के फायदे )
4. आमवात में एलोवेरा के फायदे : जीर्ण आमवात के रोगी को एलोवेरा जूस पीने के साथ ही गेहूं के 50 ग्राम आटे को एलोवेरा जूस में गूंध कर रोटी या बाटी बना कर घी लगा कर सुबह शाम भोजन के साथ खाना चाहिए।
5. फोड़ा व घाव में एलोवेरा के फायदे : फोड़ा पकता न हो तो ग्वारपाठे का गूदा गरम कर फोड़े पर रख कर पट्टी बांधने से फोड़ा बैठ जाता है, यदि फोड़ा अधपका हो तो पक कर फूट जाता है और यदि फोड़ा पकता न हो बैठता न हो तो ग्वारपाठे के गूदे को गरम करके इसमें थोड़ी सी पिसी हल्दी और पिसा हुआ सज्जीखार मिला लेना चाहिए। घाव को सुखाने व ठीक करने के लिए सिर्फ हल्दी ही मिलाना चाहिए। ( और पढ़े –एलोवेरा के 14 चमत्कारी लाभ )
6. आग से जलने में एलोवेरा के फायदे : यदि आग से त्वचा झुलस जाए या गरम तरल पदार्थ से जल जाए तो ग्वारपाठे के पत्तों का गूदा लेकर लेप करने से जलन शान्त हो जाती है और फफोला नहीं पड़ता।
7. अम्लपित्त: ग्वारपाठे के 14 से 28 मिलीमीटर पत्तों का रस दिन में 2 बार पीने से अम्लपित्त में लाभ मिलता है तथा इसके कारण से होने वाला सिर दर्द ठीक हो जाता है।
8. प्लीहोदर (तिल्ली के कारण होने वाला पेट का दर्द): ग्वारपाठे के पत्तों के रस 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा को 1 से 3 ग्राम सरफोंका के पंचांग (जड़, पत्ता, तना, फल और फूल) के चूर्ण के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से प्लीहोदर के रोग में लाभ मिलता है।
9. स्त्री रोग: स्त्री रोग को ठीक करने के लिए ग्वारपाठे के 14-28 मिलीलीटर पत्तों के रस को आधा ग्राम भुनी हींग के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।
10. सूजन:
- ग्वारपाठा के पत्तों का रस में सफेद जीरा और हल्दी को पीसकर मिला दें, इससे लेप बन जाएगा। इस लेप को दिन में 2-3 बार सूजन पर लगाने से लाभ मिलता है।
- लगभग 10-10 ग्राम ग्वारपाठे के पत्ते और सफेद जीरा को पीसकर सूजन वाले अंग पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है।
11. फोड़े-फुंसियां:
- ग्वारपाठा का गूदा गर्म करके फोड़े-फुंसियों पर बांधे इससे या तो वह बैठ जाएगी या फिर पककर फूट जाएगी। जब फोड़े-फुन्सी फूट जाएं तो इस पर ग्वारपाठा के गूदे में हल्दी मिलाकर लगाए इसे घाव जल्दी ठीक हो जाएगा।
- ग्वारपाठे का गूदा निकालकर गर्म करके उसमें 2 चुटकी हल्दी मिला लें, फिर इसकों फोड़े पर लगाकर ऊपर से पट्टी बांध दें। थोड़े ही समय में फोड़ा पककर फूट जायेगा और उसका मवाद बाहर निकल जायेगा। मवाद निकलने के बाद फोड़ा जल्दी ही ठीक हो जायेगा।
12. बवासीर:
- ग्वारपाठा के गूदे में थोड़ा पिसा हुआ गेरू मिलाकर मस्सों पर बांधने से जलन, पीड़ा, दूर होकर बवासीर के मस्सों से खून बहना बंद हो जाता है और आराम मिलता है।
- खूनी बवासीर में 50 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में 2 ग्राम पिसा हुआ गेरू मिलाकर इसकी टिकिया बना लें। इस टिकिया को रुई के फोहे पर फैलाकर बवासीर के स्थान पर लंगोटी की तरह पट्टी बांध दें। इससे मस्सों में होने वाली जलन तथा दर्द ठीक हो जाता है और मस्से सिकुड़कर दब जाते हैं। यह प्रयोग खूनी बवासीर में लाभकारी होता है।
13. हिचकी:
- 2 चम्मच ग्वारपाठा का रस आधे चम्मच सोंठ के चूर्ण के साथ सेवन करने से हिचकी में आराम मिलता है।
- 6 मिलीलीटर ग्वारपाठे के रस में 1 ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से हिचकी जल्द बंद हो जाती है।
14. मासिकधर्म ठीक प्रकार से न आना:
- ग्वारपाठा के 20 गूदे में 10 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर सेवन करें। ऐसी मात्रा दिन में दो बार 3-4 दिनों तक सेवन करने से महिलाओं का मासिकधर्म ठीक समय पर आने लगता है।
- 10 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे पर 500 मिलीग्राम पलाश का क्षार छिडककर दिन में दो बार सेवन करने से मासिकधर्म सही समय पर आने लगता है।
15. पौष्टिक, बलवर्द्धक योग: ग्वारपाठा के 2 पत्तों को चीरकर उसका सारा गूदा निकाल लें। उसमें नीम गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण मिलाकर रोजाना 1 बार सेवन करते रहने से शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है।
16. कमर दर्द:
- 20-25 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में शहद और सोंठ का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम कुछ दिन तक सेवन करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।
- 10 ग्राम ग्वारपाठे का गूदा, 50 ग्राम सोंठ, 4 लौंग, 50 ग्राम नागौरी असगंध इन सबको पीसकर चटनी बना लें। 4 ग्राम चटनी रोजाना सुबह सेवन करें। इससे कमर दर्द में आराम मिलेगा।
- 20 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे में 2 ग्राम शहद और सोंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से शीत लहर के कारण उत्पन्न कमर दर्द से राहत मिलता है।
- गेहूं के आटे में ग्वारपाठा का गूदा इतना मिलाए जितना आटे को गूंथने के लिए काफी हो, इसके बाद आटे को गूंथकर रोटी बना लें। इस रोटी का चूर्ण बनाकर इसमें चीनी और घी मिला दें और लड्डू बना लें। इस लड्डू का सेवन करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।
17. कान दर्द:
- ग्वारपाठे के रस को गर्म करके जिस कान में दर्द हो, उससे दूसरी तरफ के कान में 2-2 बूंद डालने से कानों का दर्द दूर हो जाता है।
- ग्वारपाठे के रस को गुनगुना करके कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
18. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन): 50 ग्राम ग्वारपाठे के गूदे में चीनी मिलाकर खाने से पेशाब करने में जलन और दर्द की समस्यां दूर हो जाती है।
19. बच्चों की कब्ज: छोटे बच्चों की नाभि पर साबुन के साथ ग्वारपाठे के गूदे का लेप करने से दस्त साफ होते हैं और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
20. उपदंश (फिरंग):
- उपदंश के कारण से उत्पन्न घावों पर ग्वारपाठा के गूदे का लेप लगाने से लाभ मिलता है।
- ग्वारपाठे के 5 मिलीलीटर रस में 5 ग्राम जीरे को पीसकर लेप करने से उपदंश की बीमारी दूर होती है।
21. मधुमेह: मधुमेह रोग में ग्वारपाठा का 5 ग्राम गूदा 250 से 500 मिलीलीटर गूडूची के रस के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
22. कामला (पीलिया):
- कामला (पीलिया) के रोग में ग्वारपाठा का 10-20 मिलीलीटर रस दिन में 2 से 3 बार पीने से पित्त नलिका का अवरोध दूर होकर लाभ मिलता है। इस प्रयोग से आंखों का पीलापन और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। इसके रस को रोगी की नाक में बूंद-बूंद करके डालने से नाक से निकलने वाले पीले रंग का स्राव होना बंद हो जाता है।
- लगभग 3 से 6 ग्राम ग्वारपाठा गूदे को मट्ठा के साथ सेवन करने से प्लीहावृद्धि (तिल्ली का बढ़ना), यकृतवृद्धि (जिगर का बढ़ना), आध्यमानशूल (पेट में गैस बनने के कारण दर्द), तथा अन्य पाचन संस्थान के रोगों के कारण होने वाला पीलिया रोग ठीक हो जाता है तथा ये रोग भी ठीक हो जाते हैं।
- ग्वारपाठा के पत्तों का गूदा निकाल दें और इसके बाद जो छिलका बचे उसे मटकी में भर दें तथा फिर इसमें बराबर मात्रा में नमक मिलाकर मटकी का मुंह बंद करके कंडों की आग में रख दें। जब मटकी के अन्दर का द्रव्य जलकर काला हो जाए तो उसे बारीक पीसकर शीशी में भरकर रख दें। इसमें में कुछ मात्रा में सुबह तथा शाम को सेवन करने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
23. जिगर की कमजोरी : 20 ग्राम ग्वारपाठा के पत्तों का रस तथा 10 ग्राम शहद दोनों द्रव्यों को चीनी मिट्टी के बर्तन में मुंह बंद करके 1 सप्ताह तक धूप में रखें, इसके बाद इसे छान लें। इसमें से 10-20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से यकृत विकारों (जिगर के रोगों) को दूर करने में लाभ मिलता है। इसकी अधिक मात्रा विरेचक होती है परन्तु उचित मात्रा में सेवन करने से मल एवं वात की प्रवृत्ति, ठीक होने लगती है। इसमें सेवन से यकृत (जिगर) मजबूत हो जाता है और उसकी क्रिया सामान्य हो जाती है।
24. तिल्ली: ग्वारपाठा के गूदे पर सुहागा को छिड़ककर सेवन करने से तिल्ली कट जाती है।
25. जोड़ों के (गठिया) दर्द: 10 ग्वारपाठा के गूदा का सेवन रोजाना सुबह-शाम करने से गठिया रोग दूर हो जाता है।
26. ज्वर: 10 से 20 मिलीलीटर ग्वारपाठा की जड़ का काढ़ा दिन में 3 बार पीने से ज्वर कम हो जाता है।
27. व्रण (घाव), चोट और गांठ:
- यदि घाव पका न हो तो ग्वारपाठे के गूदे में थोड़ी सज्जीक्षार तथा हरिद्रा चूर्ण मिलाकर लेप बना लें और इस लेप को घाव पर लगा दें इससे घाव पककर फूट जाएगा और यह जल्दी ही ठीक हो जाएगा।
- शरीर की किसी ग्रंथि में गांठ पड़ जाए तो वहां पर ग्वारपाठा का गूदा में लहसुन और हल्दी मिलाकर इसे हल्का गर्म करके गांठ पर लगाए इससे आराम मिलता है।
- गांठों की सूजन पर ग्वारपाठे के पत्ते को एक ओर से छीलकर तथा उस पर थोड़ा सा हरिद्रा चूर्ण छिड़ककर इसे हल्का गर्म करके गांठों की सूजन पर लगाएं इससे आराम मिलेगा।
- चोट, मोच तथा कुचले जाने पर दर्द या सूजन हो रहा हो तो ग्वारपाठे के गूदें में अफीम तथा हल्दी का चूर्ण मिलाकर इसे सूजन तथा दर्द वाले भाग पर लगा लें इससे लाभ मिलेगा।
- औरतों के स्तन पर चोट लगने के कारण या किसी अन्य कारण से गांठ या सूजन हो गया हो तो ग्वारपाठे की जड़ का चूर्ण बनाकर उसमें थोड़ा सा हरिद्रा चूर्ण मिलाकर इसे हलक गर्म करें और गांठ या सूजन वाले भाग पर लगाकर पट्टी बांध लें इससे सूजन कम हो जाती है और दर्द भी ठीक हो जाता है। इस तरह से उपचार दिन में 2-3 बार करते रहना चाहिए।
- ग्वारपाठे की जड़ को घाव पर लगाने से हड्डी के घाव और पुराने घाव ठीक हो जाते हैं।
- ग्वारपाठे के पत्ते का टुकड़ा करके इसके एक ओर का छिल्का हटा दें और छिल्के हटे हुए भाग पर रसोत और हल्दी छिड़ककर हल्का गर्म करें फिर इसे गांठ वाले भाग पर बांध दें इससे लाभ मिलेगा।
28. पेट की गांठ:
- ग्वारपाठे के गूदे को पेट के ऊपर बांधने से पेट की गांठ बैठ जाती है। कठोर पेट मुलायम हो जाता है और आंतों में जमा हुआ मल बाहर निकल जाता है।
- 60 ग्राम ग्वारपाठे का गूदा और 60 ग्राम घी को एक साथ मिलाकर उसमें 10 ग्राम हरीतकी चूर्ण तथा 10 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर अच्छी तरह घोंट लें, फिर इसमें से 10-15 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट की गांठे बैठ जाती है। वातज गुल्म और वातजन्य रोगों की अवस्था में गुनगुने पानी के साथ प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
29. नासूर: ग्वारपाठे के गूदे को आग में पकाकर नासूर पर बांधने से नासूर या उसका फोड़ा पककर फूट जाता है और रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
30. दमा:
- ग्वारपाठा के 250 ग्राम पत्तों और 25 ग्राम सेंधानमक के चूर्ण को एक मिट्टी के बर्तन में डालकर, बर्तन को आग पर रखें जब ये पदार्थ जलकर राख बन जाएं तब इसे आग से उतार दें। इस राख को 2 ग्राम की मात्रा में 10 ग्राम मुनक्का के साथ सेवन करने से दमा (श्वास रोग) में अधिक लाभ मिलता है।
- ग्वारपाठे का 1 किलो गूदा लेकर किसी साफ कपड़े से छान लें फिर इसे किसी कलईदार बर्तन में डालकर धीमी आंच पर पकाएं, जब यह अधपका हो जाए तब इसमें 36 ग्राम लाहौरी नमक का बारीक चूर्ण मिला दें तथा स्टील के चम्मच से अच्छी तरह से घोट दें। जब सब पानी जलकर चूर्ण शेष रह जाये तो बर्तन को आग पर से उतारकर ठंडा करें और इसका बारीक चूर्ण बना लें तथा साफ बोतल में भर दें। इसमें से 250 मिलीग्राम से 480 मिलीग्राम की मात्रा को शहद के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पुरानी से पुरानी खांसी, काली खांसी और दमा ठीक हो जाता है।
31. खांसी:
- आधा चम्मच ग्वारपाठे का रस में चुटकी भर पिसी हुई सोंठ मिलाकर शहद के साथ चाटे इससे खांसी ठीक हो जाती है।
- ग्वारपाठा का गूदा और सेंधा नमक दोनों को जलाकर राख बना लें और इसमें से 12 ग्राम की मात्रा में मुनक्का के साथ सुबह-शाम सेवन करने से खांसी तथा पुरानी खांसी ठीक हो जाती है तथा कफ की समस्या भी दूर होती है।
32. आंखों के दर्द:
- सोते समय ग्वारपाठे के गूदे का रस आंखों मे डालने से आंखों का दर्द दूर होता है।
- ग्वारपाठे के गूदे में हल्दी का चूर्ण मिलाकर गर्म करें और सहनीय अवस्था में पैरों के तलुवों में इसे लगाकर पट्टी बांध दें इससे आंखों दर्द ठीक हो जाता है।
- ग्वारपाठे का गूदा आंखों के ऊपर लगाने से आंखों की लाली मिट जाती है, गर्मी दूर होती है। वायरल कंजक्टीवाइटिस में भी इसका उपयोग लाभदायक होता है।
- ग्वारपाठे के 1 ग्राम गूदे में 375 मिलीग्राम अफीम मिलाकर पोटली बना लें और इसे पानी में भिगोकर आंखों पर रखने से और इसमें से 1-2 बूंद आंखों के अन्दर डालने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।
- ग्वारपाठे के गूदे पर हल्दी डालकर थोड़ा गर्म करके आंखों में लगाने से आंखों का दर्द चला जाता है।
33. कब्ज:
- ग्वारपाठे का गूदा 10 ग्राम में 4 पत्तियां तुलसी और थोड़ी-सी सनाय की पत्तियां पीसकर मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट का सेवन खाना खाने के बाद करने से कब्ज की शिकायत खत्म हो जाती है।
- 20 ग्राम ग्वारपाठा में थोड़ी-सी मात्रा में काला नमक मिलाकर सुबह और शाम खाली पेट खाने से कब्ज दूर होती है।
- ग्वारपाठा का रस 10 से 20 ग्राम की मात्रा में हरड़ के साथ सेवन करने से मलअवरोध की परेशानी दूर होती है जिसके फलस्वरूप कब्ज की समस्या दूर होती है।
34. नंपुसकता (नामर्दी): ग्वारपाठे का गूदा और गेहूं का आटा बराबर मात्रा में लेकर इसमें घी मिला लें फिर इसके 2 गुने की मात्रा में चीनी इसमें मिलाकर हलुआ बना लें और इसका सेवन 7 दिनों तक करने से नपुंसकता दूर होती है।
35. अग्निमान्द्यता (अपच):
- ग्वारपाठा को पीसकर रस निकाल लें और इसमें नौसादा को मिलाकर रख लें, फिर इसके इसमें से आधा-आधा चम्मच रस को खुराक के रूप में सुबह और शाम सेवन करें इससे अपच की शिकायत दूर हो जाती है।
- ग्वारपाठे का गूदा सेंधा नमक के साथ सेवन करने से आराम मिलेगा।
36. जिगर का रोग:
- 3 ग्राम ग्वारपाठे के रस में सेंधा नमक व समुंद्री नमक मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से यकृत के बीमारी ठीक हो जाती है।
- 10-20 ग्राम ग्वारपाठे का रस को सेंधा और हरिद्रा के साथ सेवन करने से यकृत के बीमारी ठीक हो जाती है तथा इससे यकृत का बढ़ना, दर्द होना, और पीलिया का होना आदि रोग भी ठीक हो जाते हैं।
- 480 मिलीलीटर ग्वारपाठे का रस में 240 मिलीग्राम हल्दी के चूर्ण और 240 मिलीग्राम सेंधा नमक का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बढ़ा हुआ यकृत ठीक हो जाता है।
- ग्वारपाठे के पत्ते का रस आधा चम्मच, हल्दी का चूर्ण एक चुटकी तथा पिसा हुआ सेंधा नमक 1 चुटकी तीनों को मिलाकर पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करें इससे यकृत रोग में लाभ मिलेगा।
37. जलोदर (पेट में पानी भर जाना): ग्वारपाठे के रस में हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीने से प्लीहा और भोजन के न पचने वाली बीमारी में लाभ मिलता है।
38. स्तनों की जलन और सूजन: ग्वारपाठे के रस में हरिद्रा के चूर्ण को मिलाकर इससे स्तनों पर लेप करें। इससे स्तनों पर होने वाली सूजन और जलन दूर हो जाती है।
39. हाथ-पैर का फटना: भोजन में ग्वारपाठे की सब्जी खाने से हाथ-पैर नहीं फटते हैं।
40. जलना:
- शरीर के जले हुए स्थान पर ग्वारपाठे का गूदा बांधने से फफोले नहीं उठते तथा तुरन्त ठंडक पहुंचती है।
- ग्वारपाठे के पत्तों के ताजे रस का लेप करने से जले हुए घाव भर जाते हैं।
- घी ग्वार के पत्ते को चीरकर इसके गूदे को निकालकर त्वचा पर दिन में 2-3 बार लगाने से जलन दूर होकर ठंडक मिलती है और घाव भी जल्दी ठीक हो जाता है।
- ग्वारपाठा के छिलके को उतारकर इसे पीस लें फिर शरीर के जले हुए भाग पर लेप करें इससे जलन मिट जाती है और जख्म भी भर जाता है।
- ग्वारपाठे के गूदे के चार भाग में दो भाग शहद मिलाकर जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है।
- आग से जले हुए भाग पर ग्वारपाठे का गूदा लगाने से जलन शांत हो जाती है और फफोले भी नहीं उठते हैं।
41. जलना:
- शरीर के जले हुए स्थान पर ग्वारपाठे का गूदा बांधने से फफोले नहीं उठते तथा तुरन्त ठंडक पहुंचती है।
- ग्वारपाठे के पत्तों के ताजे रस का लेप करने से जले हुए घाव भर जाते हैं।
- घी ग्वार के पत्ते को चीरकर इसके गूदे को निकालकर त्वचा पर दिन में 2-3 बार लगाने से जलन दूर होकर ठंडक मिलती है और घाव भी जल्दी ठीक हो जाता है।
- ग्वारपाठा के छिलके को उतारकर इसे पीस लें फिर शरीर के जले हुए भाग पर लेप करें इससे जलन मिट जाती है और जख्म भी भर जाता है।
- ग्वारपाठे के गूदे के चार भाग में दो भाग शहद मिलाकर जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है।
- आग से जले हुए भाग पर ग्वारपाठे का गूदा लगाने से जलन शांत हो जाती है और फफोले भी नहीं उठते हैं।
42. सिर दर्द:
- ग्वारपाठे का रस निकालकर उसमें गेहूं का आटा मिलाकर उसकी 2 रोटी बनाकर सेंक लें। इसके बाद रोटी को हाथ से दबाकर देशी घी में डाल दें। इसे सुबह सूरज उगने से पहले इसे खाकर सो जाएं। इस प्रकार 5-7 दिनों तक लगतार इसका सेवन करने से किसी भी प्रकार का सिर दर्द हो वह ठीक हो जाता है।
- सिर में दर्द होने पर ग्वारपाठे के गूदे में थोड़ी मात्रा में दारुहरिद्रा का चूर्ण मिलाकर गर्म करें और दर्द वालें स्थान पर इसे लगाकर पट्टी कर लें इससे दर्द ठीक हो जाएगा।
43. गंजापन: लाल रंग का ग्वारपाठा (जिसमें नारंगी और कुछ लाल रंग के फूल लगते हैं) के गूदे को स्प्रिट में गलाकर सिर पर लेप करने से बाल काले हो जाते हैं तथा गंजे सिर पर बाल उगने लगते हैं।
44. कुत्ते के काटने पर: ग्वारपाठे को एक ओर से छीलकर इसके गूदे पर पिसा हुआ सेंधानमक डालें, फिर इसे कुत्ते के काटे हुए स्थान पर लगा दें। इस प्रयोग को लगातार दिन में 4 बार करने से लाभ मिलता है।
45. पेट के रोग:
- 5 चम्मच ग्वारपाठे का ताजा रस, 2 चम्मच शहद और आधे नींबू का रस मिलाकर सुबह-शाम दिन में पीने से सभी प्रकार के पेट के रोग ठीक हो जाते हैं।
- 25 ग्राम ग्वारपाठे के ताजे रस, 12 ग्राम शहद और आधे नींबू का रस मिलाकर दिन में 2 बार सुबह और शाम पीने से पेट के हर प्रकार के रोग ठीक हो जाते है।
- ग्वारपाठा के गूदे को गर्म करके सेवन करने से पेट में गैस बनने की शिकायत दूर हो जाती है।
- 6 ग्राम ग्वारपाठा का गूदा, 6 ग्राम गाय का घी, 1 ग्राम हरीतकी का चूर्ण और 1 ग्राम सेंधानमक को एक साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पेट में गैस बनने की शिकायत दूर हो जाती है।
- ग्वारपाठा के पत्तों के दोनों ओर के जो कांटे लगे होते हैं उसे अच्छी प्रकार साफ कर लें, फिर उसके छोटे-छोटे टुकड़े काटकर एक बर्तन में डाल दें और इसमें आधा किलो नमक डालकर मुंह बंद कर दें। इसके बाद इसे 2-3 दिन तक धूप में रखें, बीच-बीच में इसे हिलाते रहें। तीन दिन बाद इसमें 100 ग्राम हल्दी, 60 ग्राम भुनी हींग, 300 ग्राम अजवायन, 100 ग्राम शूंठी, 60 ग्राम कालीमिर्च, 100 ग्राम धनिया, 100 गाम सफेद जीरा, 50 ग्राम लालमिर्च, 60 ग्राम पीपल, 50 ग्राम लौंग, 50 ग्राम अकरकरा, 100 ग्राम कालाजीरा, 50 ग्राम बड़ी इलायची, 50 ग्राम दालचीनी, 50 ग्राम सुहागा,300 ग्राम राई को बारीक पीसकर डाल दें। रोगी के शरीर की ताकत के अनुसार इसमें से 3 ग्राम से 6 ग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से पेट के वात-कफ संबन्धी सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
- ग्वारपाठा के 10-20 जड़ों को कुचलकर उबालकर छान लें फिर इस पर भूनी हुई हींग छिड़ककर सेवन करें इससे पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
- 10 ग्राम ग्वारपाठा के गूदे का ताजा रस में 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से पेट के रोगों में लाभ मिलता है।
- ग्वारपाठा के गूदे से पेट पर लेप करें इससे आंतों में जमा मल गुदा से निकल जाएगा और पेट के अन्दर की गांठे गल जाएंगी जिसके फलस्वरूप पेट में कब्ज बनने की समस्या दूर हो जाएगी तथा पेट में दर्द होना भी बंद हो जाएगा।
- ग्वारपाठे की जड़ और थोड़ी-हींग को भूनकर पीस लें और इसे पानी में मिलाकर पीने से पेट का दर्द समाप्त हो जाता है।
46. विभिन्न रोगों में एलोवेरा के फायदे – एलोवेरा रस कई रोगों को दूर करने और शारीरिक निर्बलता को दूर करने का गुण रखता है।
- कामला इसे पीलिया भी कहते हैं जिसमें आंखों में पीलापन, क़ब्ज़, पित्त प्रकोप आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
- गुल्म- उदर में आंत में कहीं गुल्म यानी गांठ हो।
- बवासीरपाचन शक्ति कमज़ोर होना यानी मन्दाग्नि, मलावरोध होना, सिर में भारीपन या दर्द होना, खूनी बवासीर में मल के साथ खून आना, दर्द होना, नींद न आना, बेचैनी बनी रहना आदि।
- अम्लपित्त- इसे हायपर एसीडिटी भी कहते हैं, गले, छाती व पेट में जलन होना, जी मचलाना, मुंह का स्वाद कड़वा रहना, मुंह में छाले, मल विसर्जन के समय जलन होना, उलटी जैसा जी होना आदि।
- पेशाब में रुकावट- पेशाब में रुकावट, गन्दलापन, खुल कर पेशाब न होना।
- रक्त विकार- दाद खाजखुजली एक्जीमा, शीत पित्ती, वात रक्त, फोड़े फुसी होना आदि।
- जीर्ण आमवात- खाया हुआ आहार पूरी तरह न पचना, चिकना आंवयुक्त मिल निकलना, वात प्रकोप होना, अंगुलियों में सूजन, जोड़ों में दर्द व सूजन आदि। इन सातों व्याधियों को दूर करने के लिए एलोवेरा जूस सुबह शाम पूरा लाभ न होने तक पीना चाहिए। बहुत ही कारगर उपाय है।
इस प्रकार इतनी गुणकारी उपयोग विधियां यह सिद्ध करती हैं कि ग्वारपाठा अनेक रोगों का नाश करने वाली और पुष्टिदायक वनस्पति है। यह देश भर में सर्वत्र पैदा होती है। इसका आवश्यकता के अनुसार उपयोग कर लाभ उठाना चाहिए और महंगे दवा-इलाज जांच आदि के खर्चे से बचना चाहिए ।
एलोवेरा के नुकसान हिंदी में (Aloe vera ke nuksan in Hindi)
- ऐलोवेरा के अधिक मात्रा में सेवन करने से दस्त लग सकते हैं।
- गर्भवती महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिये ।
- यदि रक्तस्राव हो रहा हो तो इस अवस्था में इसका सेवन हानिकारक हो सकता है।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)