Last Updated on August 21, 2021 by admin
क्या है अल्जाइमर रोग ? (What is Alzheimer’s Disease in Hindi)
अल्जाइमर नामक यह रोग अब वृद्धावस्था का एक आम रोग बनता जा रहा है। जैसे-जैसे दुनिया भर में वृद्ध लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती जा रही है, वैसे-वैसे अल्जाइमर से पीड़ित लोगों की संख्या भी निरंतर बढ़ती जा रही है। हमारे देश में 60 साल से अधिक उम्र के वृद्धों की संख्या 6 करोड़ के लगभग है और उनमें से कम से कम 6 प्रतिशत वृद्ध स्मृतिभंश का शिकार हैं। इन रोगियों में कम से कम 20 प्रतिशत लोग अकेले अल्जाइमर रोग से पीड़ित हैं। इस तरह हमारे देश में इस रोग से पीड़ित रोगियों की संख्या 60 लाख से अधिक हो सकती है। अल्जाइमर से पीड़ित अधिकांश लोग शहरी ही हैं।
यह एक निरंतर बढ़ने वाला रोग है जो, स्मरणशक्ति को नष्ट करने के साथ मस्तिष्क के अन्य कार्यों को भी प्रभावित करता है। इसमें मस्तिष्क की कोशिकाओं का अपक्षय (Degeneration) होता है। अमेरीका अल्जाइमर संगठन के अनुसार 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में 10 में से एक तथा 85 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में 50 प्रतिशत लोगों को यह रोग प्रभावित करता है। दुनिया में लगभग 2 करोड़ लोग अल्जाइमर से पीड़ित हैं।
कमजोर क्यों हो जाती है याददाश्त ? :
आजकल अव्यवस्थित व असमय खानपान, तनावयुक्त व भागदौड़ का जीवन तथा व्यायाम के अभाव के कारण याददाश्त का कमजोर होना एक आम समस्या है। ज्यादातर लोग अपनी भूलने की आदत से परेशान हैं।
हमारा दिमाग पूरे शरीर की जानकारियों का स्टोरहाउस है और हमारी मेमोरी के विभिन्न हिस्सों में जानकारियां इकट्ठी होती हैं। इन जानकारियों को विभिन्न हिस्सों में बांटा गया है जैसे-शार्ट टर्म मेमोरी, रिसेन्ट मेमोरी और रिमोट मेमोरी।
- शार्ट टर्म मेमोरी में हाल में घटित घटनाएं होती हैं या उन लोगों के नाम होते हैं, जिन्हें आप हाल में मिले हों।
- रिसेन्ट मेमोरी में आपने सुबह क्या खाया है जैसी जानकारियां होती हैं।
- रिमोट मेमोरी में वे जानकारियां होती हैं, जो सालों पहले हुई होती हैं जैसे- बचपन की यादें।
समय के साथ जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारा मस्तिष्क भी बदलता रहता है। बीस वर्ष की उम्र की शुरुआत में दिमाग की कोशिकाएं कम होने लगते हैं और हमारा तन भी हमारी मस्तिष्क की आवश्यकता से कम रसायन बनाने लगता है। जयु-जयु हमारी आयु बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे हमारी स्मृति पर इस बदलाव का असर पड़ने लगता है। हमारा मस्तिष्क सूचनाओं को विभिन्न प्रकार से संग्रह करता है।
हमारी शार्ट टर्म और रिमोट मेमोरी पर आयु का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन हमारी रिसेंट मेमोरी आयु से प्रभावित होती है। रोगी उन व्यक्तियों के नाम को भूल सकता हैं, जिनसे वह हाल ही में मिला हैं। रोगी शब्द जानता हैं, लेकिन वह आपके जेहन में नहीं आ रहा होता है।
( और पढ़े – यादशक्ति बढ़ाने के सबसे शक्तिशाली 12 प्रयोग )
अल्जाइमर रोग के कारण (Alzheimer’s Disease Causes in Hindi)
अल्जाइमर रोग क्यों होता है ? –
अल्जाइमर रोग का सही कारण ज्ञात नहीं है, लेकिन शोधकर्ताओं के अनुसार यह रोग शायद आनुवंशिक प्रभाव, जीवनशैली और पर्यावरण कारकों का परिणाम है, जो कि समय के साथ मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।
☛ विशिष्ट आनुवंशिक परिवर्तन कम से कम 5 प्रतिशत मामलों में रोग के विकास का नेतृत्व करने में मौजूद हैं। अल्जाइमर रोग के साथ अधिकांश लोगों में पारिवारिक इतिहास की स्थिति नहीं है, लेकिन अल्जाइमर रोग के विकास के जोखिम बढ़ जाते हैं. यदि आपके परिवार का कोई सदस्य इससे ग्रस्त है।
☛ मस्तिष्क में एसिटिलकोलाइन और ऐसे ही दूसरे मस्तिष्कीय रसायनों के कम बनने लग जाने से भी इस रोग की शुरुआत होते देखी जाती है।
☛ बढ़ती उम्र के साथ रक्तवाहिनियां अंदर से कठोर और संकरी होने लगती हैं, जिससे मस्तिष्कीय कोशिकाओं को जब अपनी आवश्यकता के अनुसार रक्त नहीं मिल पाता, तो इसका सीधा प्रभाव न्यूरोन्स की कार्यक्षमता पर पड़ने लगता है तथा वह भी तेजी से नष्ट होने लग जाती हैं। इससे बहुत से व्यक्तियों में अल्जाइमर जैसे लक्षण पैदा होने लग जाते हैं।
☛ इसके अलावा पार्किन्सन, ब्रेन ट्यूमर, हन्टिंगटनल डिजीज़, सबड्यूरल हीमैटोमा, हाईपोथारायडिज्म, विटामिन बी12 और फोलिक एसिड व निकोटिनिक एसिड की कमी से भी अल्जाइमर रोग हो सकता है।
सक्षप में अल्जाइमर रोग के प्रमुख कारण –
- उम्र के साथ मस्तिष्कीय कोशिकाओं का नष्ट होते जाना।
- रक्तसंचार में बाधा आना।
- रक्तचाप का बढ़ना।
- न्यूरो केमिकल्स का स्तर घटने लगना।
- पोषक तत्वों का अभाव होने लगना।
- पारिवारिक निरादर का सामना करना।
अल्जाइमर रोग के क्या लक्षण होते हैं ? (Alzheimer’s Disease Symptoms in Hindi)
शुरुआत में इसके जो लक्षण दिखाई देते हैं, वे उम्र से संबंधित या तनाव के कारण हैं, ऐसा समझा जाता है।
- अल्जाइमर के मरीजों की याददाश्त धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है।
- याददाश्त का ठीक तरीके से काम न कर पाना और भाषा का ठीक प्रकार से प्रयोग न कर पाना भी इस बीमारी के लक्षण हैं।
- बीमारी की आगे की स्थितियों में मरीज उत्तेजित रहता है।
- इसके अलावा अनिद्रा, आपत्तिजनक मौखिक बातें बोलना, काम इंद्री से जुड़ी समस्याएं होना आदि शामिल हैं।हालांकि इस बीमारी का पता लगाने के लिए मरीज के व्यावहारिक लक्षण ही काफी नहीं होते हैं।
- इसके अलावा रोगी की मांसपेशियां कड्क हो जाती हैं, चलने में तकलीफ (Gait Disturbance), रोगी हाइपर एक्टिव हो जाता है व झटके भी आते हैं।
- अल्जाइमर नामक रोग में व्यक्ति कभी-कभी अपनी याददाश्त तेजी से गंवाने लगता है। वह अपने बच्चों, पति-पत्नी, यार-दोस्तों और सगे-संबंधियों तक को भी नहीं पहचान पाता, जिनके साथ उसने अपनी जिंदगी का लंबा वक्त गुजारा हैं।
- कुछ रोगियों की हालत तो इतनी खराब हो जाती है कि वे स्वयं का नाम, अपने घर का पता, शयनकक्ष, अपने बिस्तर, सुबह क्या खाया, अपने मोहल्ले तक को भूल जाते हैं। अपने शरीर की स्थिति तक की उन्हें कोई सुध-बुध नहीं रहती है।
- इससे पीड़ित लोगों की याददाश्त ही नहीं घटती, उनकी निर्णय लेने की क्षमता में भी कमी आती जाती है। वे कपड़े बदलने, बटन बंद करने, खिड़कियां-दरवाजे बंद करने तक का निर्णय स्वयं नहीं ले पाते। ऐसे रोगी गर्मियों में कई-कई कपड़े पहन लेते हैं, जबकि सर्दियों में रजाई या कम्बल तक लेना भूल जाते हैं।
- इन रोगियों को बातचीत करने में परेशानी होने लगती है।
- अपनी बात कहने के लिए उन्हें उपयुक्त शब्द नहीं मिल पाते या वह शब्दों का सही चुनाव करना ही भूलने लग जाते हैं। वे पारिवारिक सदस्यों तक को गलत नाम या शब्दों से सम्बोधित करना शुरू कर देते हैं। इतना ही नहीं, उनकी लिखावट को ठीक से पढ़ पाना मुश्किल हो पाता है। अल्जाइमर से पीड़ित रोगियों के हस्ताक्षर तक बदल जाते हैं।
अल्जाइमर के 10 से 25 प्रतिशत मरीज हैल्युसिनेशन व डिल्यूशन (भ्रम) के शिकार होते हैं। यह बीमारी बहुत से दूसरे लक्षणों से जुड़ी है जैसे-साइकोसिस, डिप्रेशन, उत्तेजना।
30 से 50 प्रतिशत मरीज़ डिल्यूशन और 40 से 50 प्रतिशत मरीज़ अवसाद के शिकार होते हैं।
जिन रुग्णों में मानसिक बीमारी जैसे विकार होते हैं, उन्हें स्मृतिभ्रंश (डिमेंशिया) का भी खतरा रहता है और ऐसे मरीज अक्सर अवसाद और कुंठा से परेशान रहते हैं। उनका व्यवहार और व्यक्तित्व परिवर्तित होता रहता है, यहां तक कि वे अपना ख्याल भी ठीक तरीके से नहीं रख पाते। स्वभाव में चिड़चिड़ापन आते जाना, बिस्तर पर घंटों पड़े रहने के बाद भी नींद न आना आदि कुछ ऐसे प्रमुख लक्षण हैं, जो अल्जाइमर रोग की शुरुआत में आमतौर पर देखे जाते हैं।
महिलाएं भी अल्जाइमर रोग की चपेट में :
अध्ययन से पता चला है कि अब पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में भी अल्जाइमर रोग तेजी से पनप रहा है। रजोनिवृत्त हो चुकी महिलाओं की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं के शरीर में तेजी से बदलाव आने लगता है। उनके शरीर में डिम्ब ग्रंथियों में पैदा होने वाले एस्ट्रोजेन नामक हार्मोन का बनना एकाएक घट जाता है। एस्ट्रोजेन के स्तर में गिरावट आने से उनकी मानसिक और चयापचय क्रियाओं के साथ ही उनके मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें अल्जाइमर सहित डिमेंशिया और अन्य रोगों की तेजी से शुरुआत होने लगती है। अध्ययनों में एस्ट्रोजेन का कुछ संबंध अल्जाइमर के साथ देखा गया है।
अल्जाइमर रोग का परीक्षण कैसे किया जाता है ? (Diagnosis of Alzheimer’s Disease in Hindi)
यह रोग न्यूरोडिजनेरेटिव प्रकार का है, जिसमें रोगी की मानसिक स्थिति का परीक्षण (MSE) किया जाता है, जिससे रोग के निदान के साथ डिप्रेशन रोग से भी अंतर कर सकते हैं। इसमें रोगी का निरीक्षण (Observation) किया जाता है, जिसमें Appearance, Orientation (Recent, Past),याददाश्त व सोचने की क्षमता (Thinking Abilities) से निदान होता है। सामान्य बुद्धि का आकलन जैसे-गणना (Calculation), Judgement, Presence or absence of Hallucination or Delusions (भ्रम) देखा जाता है।
अल्जाइमर रोग निदान के तरीके निम्नलिखित हैं –
- रक्त में T3,T4,TSH, Folate, B12 Estimation
- EEG (रोग की अवस्था का पता चलना-Prognosis)
- PEG (Pneumo Encephalograhy)
- MRI, CTBrain (मस्तिष्क में प्लेक्स (plaques) व टैन्गल्स (Tangles) मिलते हैं।
- Brain Biopsy
अल्जाइमर रोग में रोगी की देखभाल :
अल्जाइमर एक लाइलाज रोग है। एक बार इस रोग के लक्षण पूरी तरह से विकसित हो जाने पर रोगी के उपचार पर कम, उसकी देखभाल पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता रहती है। ऐसा देखा जा रहा है कि इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में पर्याप्त ध्यान देना शुरू कर दिया जाए, तो कुछ हद तक रोगियों को आगे चलकर आने वाली परेशानियों से बचाए रखने में मदद मिलती है।
अल्जाइमर के रोगी की देखभाल करना भी कोईआसान काम नहीं होता है क्योंकि अन्य रोगियों से हटकर इस रोग से पीड़ित हो जाने पर व्यक्ति की देखभाल करने के लिए 24 घंटे भी कम पड़ने लगते हैं।
- इसके रोगियों के साथ हमेशा हमदर्दी के साथ पेश आना चाहिए। उनके साथ आदेशात्मक व्यवहार नहीं करना चाहिए और न ही उनके साथ व्यर्थ में उलझना या बहस करनी चाहिए। ऐसा करने पर रोगी अपने अंदर बेचैनी महसूस करता है। इस कारण उसकी परेशानी पहले से बढ़ जाती है।
- इन मरीजों के साथ सदैव संक्षिप्त, लेकिन स्पष्ट शब्दों में ही बात करनी चाहिए ताकि वह आपकी बात ठीक से समझ सकें। बात करते समय रोगी की आंखों में आंखें डालकर बात करना ठीक रहता है।
- एक बार में उसे एक काम करने के लिए कहना चाहिए।
- रोगी के साथ बात करते समय उसके हाथ को स्पर्श करना या उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरते रहने से वह अपने अंदर आत्मीयता का अनुभव करने लगता है। इससे उसे अपने को संभालने में मदद मिलती है।
- मरीज की दिनचर्या को लगातार बदलते रहना चाहिए। इससे वह बोरियत महसूस नहीं करता और फिर से नया सीखने लगता है।
- मरीज को दिमागी तौर पर व्यस्त रखने के लिए उसे शारीरिक श्रम करने के लिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।
अल्जाइमर रोग का इलाज (Alzheimer’s Disease Treatment in Hindi)
अल्जाइमर रोग का इलाज कैसे करें ? –
अल्जाइमर रोग की चिकित्सा की कोई विशिष्ट तकनीक नहीं है। कुछ दवाएं इसे नियंत्रित कर गंभीर होने से रोक सकती हैं। अल्जाइमर पीड़ितों के मस्तिष्क में एसिटाइल कोलिन का स्तर नियंत्रित रहे। जितनी जल्दी इस रोग के बारे में पता चलेगा, इसका उपचार उतना ही आसान होगा।
अभी तक रोग की शुरुआत में या थोड़ी-बहुत याददाश्त की समस्या को दूर करने के लिए ही डोनेपजिल जैसी दवाओं का सेवन रोगियों को करवाया जाता है। इस दवा से कुछ आराम मिल पाता है।
आजकल मस्तिष्क संबंधी रोगों में जिंको बिलावा नामक एक चाइनीज जड़ी-बूटी का उपयोग भी बहुतायत से किया जा रहा है, जिसका मस्तिष्कीय कोशिकाओं पर सीधा प्रभाव होते देखा गया है।
अल्जाइमर रोग का आयुर्वेदिक उपचार (Alzheimer’s Diseas Ayurvedic Treatment in Hindi)
आयुर्वेद में अल्जाइमर रोग का उपचार क्या है ? –
आयुर्वेदानुसार अल्जाइमर रोग में रसायन चिकित्सा के बेहतर परिणाम मिलते हैं। रसायन का अर्थ है-जो वृद्धावस्था व व्याधि को दूर करे। उत्तम पोषण के माध्यम से प्रशस्त धातुओं के निर्माण के उपाय को ही रसायन कहा गया है। “लाभोपायो हि शस्तानां रसादींना रसायन” (च.चि.1)
शरीर में प्रशस्त (मजबूत) धातुओं के निर्माण के परिणामस्वरूप मनुष्य में दीर्घायु, व्याधि प्रतिरोध क्षमत्व, मेधाशक्ति, प्रभा, वर्ण, स्वर, स्मरणशक्ति आदि की प्राप्ति होती है। अतः वृद्धावस्था संबंधी विकार दूर करने में रसायन सशक्त चिकित्सा है। यह मात्र औषधि व्यवस्था न होकर
औषधि, आहार-विहार एवं आचार का एक विशिष्ट प्रयोग है, जिसका उद्देश्य शरीर में उत्तम धातु पोषण के माध्यम से दीर्घायु, व्याधि प्रतिरोध क्षमत्व एवं मेधाशक्ति को उत्पन्न कर रोगों से बचाना है।
1. रसायन चिकित्सा – अल्जाइमर रोग में मेध्य रसायन व आचार रसायन का प्रयोग किया जाता है। महर्षि चरक ने 4 वनौषधियां बताई हैं – मंडूकपर्णी, यष्टिमधु, गुडूची व शंखपुष्पी। इनमें से मंडूकपर्णी व गुडूची का रस प्रयोग करते हैं। यष्टिमधु को दुग्ध के साथ लिया जाता है व शंखपुष्पी का संपूर्ण पौधा (जड़ व फल सहित) को पीसकर प्रयोग किया जाता है।
2. हल्दी – इसके सेवन से बुढ़ापे में याददाश्त ठीक बनी रहती है और बुढ़ापा तेजी से अपना असर नहीं दिखा पाता। इस बात को आधुनिक खोजों ने भी सही सिद्ध कर दिखाया है। हल्दी में जो कुरक्युमिन नामक जैव सक्रिय रसायन रहता है, वह मस्तिष्कीय कोशिकाओं पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव डालता है।
3. अश्वगंधा – आयुर्वेद शास्त्र में अश्वगंधा को रसायन द्रव्यों में शामिल किया गया है। अश्वगंधा के जैव सक्रिय रसायनों में रोग प्रतिरोधकशक्ति को मजबूत बनाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट, शोथ-शामक, मूत्रल, एंटीबायोटिक, एंटीवायरल और एंटीफंगस जैसे अनेक गुण पाए जाते हैं। इसके सेवन से शरीर में नया खून बनने लगता है। इसका असर शरीर की अंतःस्रावी ग्रंथियों पर भी सीधे होते देखा गया है। अश्वगंधा के यह सब गुण व्यक्ति को वृद्धावस्थाजन्य रोगों से सुरक्षित रखने में मदद करते हैं।
4. केसर – 125 mg केसर को कुनकुने घी व शक्कर के साथ लेने से लाभ होता है।
5. वचा – वचा मूल का चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह-शाम गाय के घी या शहद के साथ लें।
6. ब्राह्मी – ब्राह्मी घृत 1 चम्मच सुबह दूध के साथ या ब्राह्मी व मंडूकपर्णी 30 ml रस को सुबह खाली पेट शहद के साथ लें। ब्राह्मी का प्रभाव Neuro Humorsacetylcholine, Acetylease-Choline-stearease पर अधिक पड़ता है।
7. आमला – आमलकी को मुरब्बा, अचार, सलाद या सब्जी के रूप में प्रयोग करें।
8. ब्राह्मी – 6 ग्राम ब्राह्मी (छाया में सुखाई हुई), 6 बादाम व आधा ग्राम काली मिर्च को पानी में पीसकर शक्कर के साथ सुबह खाली पेट 2 सप्ताह लगातार लें।
9. ज्योतिषमती – ज्योतिषमती तेल की मालिश याददाश्त बढ़ाती है।
10. पंचकर्म – अल्जाइमर के रोगी को स्नेहन, स्वेदन, बृहण बस्ति, शिरोधारा-शिरोबस्ति (माषादि व माषबलादि तेल) व नस्यकर्म से लाभ मिलता है। शिरोधारा व नस्य क्रिया कम से कम 21 दिन तक की जाती है। शिरोधारा के लिए ज्योतिषमती व ब्राह्मी तेल का प्रयोग किया जाता है व नस्य हेतु बृहण नस्य जैसे – अणु तेल, पंचेन्द्रियवर्धन तेल या षड्बिंदु तेल का उपयोग करते हैं। वृद्धावस्था में नित्य तरावट मिलती है व याददाश्त अच्छी रहती है।
अल्जाइमर रोग की आयुर्वेदिक दवा (Alzheimer’s Diseas Ayurvedic Medicine in Hindi)
आयुर्वेद में मेध्यगण व जीवनीयगण की औषधियां स्मरणशक्ति के लिए बतायी गई हैं।
- स्मृतिसागर रस, ब्राह्मी वटी, सारस्वतारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट इत्यादि औषधियां चिकित्सक के परामर्श से लें।
- अल्जाइमर रोग में पंचगव्य घृत, वचादि घृत, ब्राह्मी घृत, तिक्त जीवनीय घृत का सेवन लाभकारी बताया गया है।
- सारस्वत चूर्ण में वचा व ब्राह्मी घटक द्रव्य होते हैं, अतः 1-1 चम्मच सुबह-शाम लें।
अल्जाइमर रोग में क्या खाना चाहिए ? (What to Eat During Alzheimer’s Diseas in Hindi?)
वृद्धावस्था के साथ शरीर में कई तरह के जरूरी पोषक तत्व व विटामिन की कमी से अल्जाइमर जैसे रोग होते हैं, अतः संतुलित व पोषक आहार का सेवन आवश्यक होता है।
- आहार विशेषज्ञों ने बीटा-कीरोटिन (विटामिन-ए का प्राकृतिक पूर्वरूप), विटामिन-सी, विटामिन-ई और सेलनियम जैसे कुछ पोषक तत्वों का वर्णन किया है, जो अल्जाइमर रोग को विकसित होने से रोकने में मददगार साबित होते हैं। इन पोषक तत्वों को ही आजकल एंटी ऑक्सीडेंट पदार्थ के नाम से जाना जाता है। यह एंटी ऑक्सीडेंट तत्व गाजर, हरी पत्तेदार सब्जियों, मौसंबी, संतरा, नींबू जैसे फलों और अंकुरित गेहूं आदि में पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।
- साथ ही रात को भिगोए हुए बादाम नित्य सुबह चबा-चबाकर खाने से स्मरणशक्ति उत्तम रहती है।
- मानसिक थकान व याददाश्त की कमी में रोजमेरी की चाय लाभकारी है।
- बादाम, अखरोट, अंजीर, मुनक्का 10 ग्राम मात्रा में लें।
- प्रतिदिन 1 सेब का सेवन शहद के साथ करें।
- फॉस्फोरस प्रधान फल जैसे-अंजीर, अंगूर, संतरा, खजूर याददाश्त बढ़ाने में उपयोगी हैं।
- जीरा पाउडर में शहद मिलाकर सुबह लेने से याददाश्त तेज होती है।
- पिसी हुई 5 काली मिर्च सुबह-शाम शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
- फॉस्फोरसप्रधान आहार जैसे- अंकुरित अन्न, दालें, फलों का रस व गाय का घी उपयुक्त मात्रा में सेवन करें।
अल्जाइमर रोग से बचाव (Prevention of Alzheimer’s Disease in Hindi)
अल्जाइमर रोग की रोकथाम कैसे करें ? –
शारीरिक श्रम का महत्व –
शारीरिक सक्रियता और व्यायाम का हमेशा शरीर पर व्यापक असर होते देखा गया है। शारीरिक सक्रियता के अभाव में शरीर अपनी मांसपेशियों को तेजी से गंवाना शुरू कर देता है। पैदल चलते या सैर करते समय हमारे मस्तिष्क की कोशिकाएं तेजी से सक्रिय होने लगती हैं।
अल्जाइमर रोग में व्यायाम के फायदे –
अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि भस्त्रिका प्राणायाम के अभ्यास से मस्तिष्कीय कोशिकाओं, विशेष रूप से भावना और याददाश्त को बनाए रखने वाली कोशिका पर सीधा प्रभाव पड़ता है। भस्त्रिका प्राणायाम के नियमित अभ्यास से मस्तिष्कीय कोशिकाओं तक ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचने लग जाती है तथा इससे मस्तिष्क लंबे समय तक सामान्य हालत में स्वस्थ रहकर अपने समस्त कार्य करता रहता है।
नई-नई चीजें सीखें –
कई शोधों ने यह साबित किया है कि मस्तिष्क भी मांसपेशियों के समान ही कार्य करता है। जितना ज्यादा आप इसका इस्तेमाल करेंगे, उतना ही यह शक्तिशाली होगा। मानसिक व्यायाम नई मस्तिष्क कोशिकाओं के निर्माण में मदद कर, मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त रखते हैं। नई जटिल चीजें सीखें जैसे- कोई नई भाषा, चुनौतीपूर्ण खेल शतरंज वगैरह खेलें। ब्रेन गेम सुडोकू, क्रॉस वर्ड आदि भी बेहतरीन मानसिक व्यायाम हैं।
मानसिक गतिविधियों पर ध्यान दें –
नियमित रूप से पढ़े व लिखें, इससे दिमाग सक्रिय रहेगा। आप अपने दिमाग से जितना काम लेंगे, वह उतना ही दुरुस्त रहेगा। इन बातों की ओर ध्यान दें –
- वजन न बढ़ने दें।
- धूम्रपान न करें।
- शराब का सेवन न करें या कम करें।
- ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखकर इस रोग के खतरे से बच सकते हैं।
बुढ़ापे में वृद्धजनों को प्रेम, आत्मीयता, अपनत्व और सम्मान की आशा रहती है। यदि उन्हें ऐसा आत्मसम्मान भरा वातावरण मिलता रहता है, तो वे अल्जाइमर जैसे रोग से निश्चित रूप से बचे रहते हैं। किन्तु जब वृद्धों को तिरस्कार, घृणा, तनावयुक्त वातावरण में रहकर समय व्यतीत करना पड़ता है, तो वे तेजी से अपना मानसिक संतुलन गंवाने लगते हैं। उनमें आगे चलकर अल्जाइमर हृदय रोग, पर्किंसन्स जैसे अनेक रोग पैदा होने लग जाते हैं।
अतः बुढ़ापे में वृद्धजनों के साथ उपेक्षा या तिरस्कार भरा व्यवहार न कर, उनके साथ प्रेम, अपनत्व और आत्मीयता वाला व्यवहार करना चाहिए। इससे उन्हें अपने को प्रसन्न रखकर स्वस्थ बनाए रखने में मदद मिलती है। साथ ही संतुलित व पोषक आहार, उचित देखभाल व आयुर्वेदिक औषधियों व पंचकर्म के द्वारा उन्हें स्वस्थ रखा जा सकता है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)