आमवात का आयुर्वेदिक उपचार – Amavata ka Ayurvedic Upchar in Hindi

Last Updated on December 21, 2020 by admin

आज आमवात रोग, ‘रयूमॅटिक आर्थराइटिस’ विश्व में एक भयानक समस्या बन गया है। वर्तमान प्रचलित चिकित्सा प्रणालियों में एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली को विश्व में सर्वोपरि मान्यता प्राप्त है, किंतु अभी तक वह भी अनेक शोधों, परीक्षणों के बाद भी आमवात रोग का पूर्ण रूप से शमन करने में सफलता नहीं प्राप्त कर सकी है। हालाँकि चिकित्सा विशेषज्ञ कुछ वेदनाशामक तात्कालिक औषधियाँ। देकर क्षणिक लाभ से रोगी को अनुभव करा देते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आमवात कितनी कष्टकारी व्याधि है, हालाँकि इससे जीवन को कोई खतरा नहीं है।

क्या है आमवात ? (what is Amavata in Ayurveda in Hindi)

आयुर्वेद में ‘आम’ को अपक्व आहार रस माना गया है, हम जो भी खाते-पीते हैं, उससे रसरक्तादि सप्त धातुओं का निर्माण होता है। इनमें पहली धातु रस कहलाती है। भोजन के न पकने से जो अन्न का अपक्व रस उत्पन्न होता है, वह क्रमशः संचित हो जाता है तो यह आम कहलाता है। आमाशय में आम नाना प्रकार के विकारों को उत्पन्न करता है।

आमवात रोग क्यों होता है ? (Rheumatoid Arthritis Causes in Hindi)

आमवात रोग के कुछ कारण निम्नलिखित हैं –

  1. मंदाग्निवाले लोगों को यह रोग अधिक होता है। विरूद्ध आहार जैसे- दूध और मछली या दूध के साथ मांस आदि विरोधी आहारों का एक साथ सेवन करना।
  2. भोजन के तुरंत बाद व्यायाम करना।
  3. स्निग्ध अन्न का भोजन करके व्यायाम करना आदि से वायु द्वारा प्रेरित आमरस आमाशय में अति शीघ्र पहुँच जाता है।

‘यह कहा जा सकता है कि पाचक अग्नि की मंदता के कारण आम उत्पन्न होता है। यही आमदोष कुपित वायु से प्रेरित होकर कफ के मुख्य स्थान, संधि (अस्थियों के जोड़), आमाशय, हृदय, सिर, कंठ आदि की ओर जाता है तब वहाँ पीड़ा उत्पन्न करता है। आमरस अनेक रोगों का कारण होने से अति भयंकर है।

आमवात और कफ एक साथ कुपित होकर पेट, कटि प्रदेश तथा संधियों में प्रवेश कर जाते हैं और संपूर्ण शरीर को जकड़कर जोड़ों में भयंकर दर्द पैदा कर देते हैं, जिसे आमवात कहते हैं।

आधुनिक मतानुसार आमवात आमवात रोग के कारण :

आधुनिक चिकित्सा यानी एलोपैथ चिकित्सा पद्धति में आमवात को रयूमॅटिज़म (Rheumatism) कहते हैं, जो ‘स्ट्रेप्टोकोकाय’ निष्पंदनशील जीवाणु के कारण होता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह ‘एलर्जी’ की विशेष अवस्था का एक स्वरूप है। यह रोग पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होता है। रयूमॅटिज़म रोग होने के अन्य सहायक कारणों में –

  • शीत व समशीतोष्ण वातावरण,
  • पानी में भीगना,
  • भीगे हुए कपड़े पहनना,
  • ठंडे जमीन पर सोना,
  • यकृत का ठीक से कार्य न करना,
  • नाक गला तथा टॉन्सिल के विकार,
  • आनुवंशिकता आदि हैं।

कुछ रोगियों को निम्न रोगों के बाद आमवात होते देखा गया है, जैसे गुर्दे के रोग, उपदंश, गनोरिया, पायरिया आदि। तीक्ष्ण वीर्यवाली औषधियों के अधिक सेवन से भी आमवात रोग हो सकता है।

आमवात के क्या लक्षण होते हैं ? (Symptoms of Amavata in Hindi)

कुछ लक्षणों से आमवात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। जैसे –

इस रोग में बड़े जोड़ (संधियाँ), विशेषकर घुटने और टखनों के जोड़ अधिक प्रभावित होते हैं। आमवात का आक्रमण कभी अकस्मात और कभी धीरे-धीरे होता है। यह कभी एक संधि में और कभी अनेक संधियों में एक साथ शुरू होता है। आमवात रोग पीठ, कमर, जंघा, कटि प्रदेश तथा शरीर की संधियों को जकड़ता हुआ संपूर्ण शरीर में जकड़न पैदा कर सकता है।

1) रोग के आक्रमण के कुछ दिन पूर्व गले या टॉन्सिल्स में विकार उत्पन्न हो जाता है, जिसमें गले की सुर्खी और टॉन्सिल की आकार वृद्धि, उनमें कुछ दरार और पस पड़ना इत्यादि लक्षण होते हैं।

2) इस रोग में ज्वर भी एक लक्षण है जो 102 से 104 डिग्री तक हो सकता है।

3) आमवात में त्वचा, संधियों की श्लेष्मकला तथा हृदयपेशी आदि स्थानों में छोटी-छोटी गाँठे उत्पन्न होती हैं। विकृत संधियों में रक्त की अधिकता, श्लेष्मकलाओं एवं स्नायुबंधों में शोथ और कला के ऊपर जमी हुई लसिका की पतली तह होती है। संधियों का तरल पदार्थ कुछ धुंधला होकर उसमें थोड़े से श्वेत कण और फाइब्रिन के तंतु मिलते हैं परंतु पस नहीं बनता।

4) यह रोग जब तीव्र हो जाता है तब ज्वर आदि समस्त रोगों से अधिक भयंकर हो जाता है।

5) हाथ-पैर, सिर, पैर व जाँघ की संधि, कमर, घुटनों आदि के जोड़ों में, जहाँ कहीं भी आम व वात मिलकर पहुँचते हैं वहाँ पीड़ायुक्त सूजन उत्पन्न कर देते हैं और साथ ही वहाँ पर भयंकर पीड़ा होती है।

6) आमवात की अत्यंत कुपितावस्था अधिक कष्टसाध्य होती है, मंदाग्नि, लार आना, अरुचि, उत्साह का नाश, जलन, बहुमूत्र, पेट में कड़ापन, शूल, समय पर नींद न आना, जड़ता आदि लक्षण होते हैं।

7) शरीर में भारीपन आ जाता है। पेट में वायु भरना, गुड़गुड़ाहट तथा अन्य कष्टकारक अनेक उपद्रव होते है।

8) आमवात रोग एक संधि से दूसरी संधि में फैलता है, तीव्र पीड़ा होती है। रात में स्वभावतः रोगी को अधिक वेदना का अनुभव होता है।

9) आमवात बड़े जोड़ों में अधिक होता है। बाल्यावस्था में ही प्रायः इस रोग की शुरुआत हो जाती है।

आमवात रोग का हृदय पर प्रभाव :

आमवात रोग में मुख्य शारीरिक विकृति संधि और हृदय में होती है। आमवात से हृदय की पेशी, उसके बाह्यावरण और अंतःआवरण सभी में विकृति आ सकती है। अधिक विकृति अंतरावरण में होती है। इस विकृति का विशेष प्रभाव कपाटों (Valve) के किनारों पर होता है, जिससे कपाट कठोर और संकुचित हो जाते हैं और उनके किनारे आपस में अच्छी तरह मिल नहीं पाते। इससे संकोच या विस्तार (Stenosis orIncompetence) उत्पन्न होता है।

घुटनों और टखनों पर अधिक प्रभाव :

आमवात से सबसे अधिक बड़ी संधियाँ प्रभावित होती हैं। हालाँकि इस रोग का प्रभाव सभी संधियों पर पड़ता है लेकिन घुटने और टखने अधिक प्रभावित होते हैं । रोग की शुरुआत हाथ की ऊँगलियों व कलाई की संधियों तथा पैरों की संधियों से होता है, फिर यह कोहनी, घुटनों और हृदय प्रदेश की संधियों में फैल जाता है।

संधियों में सूजन के कारण उनमें परिवर्तन शुरू हो जाता है। जोड़ ढीले, विकृत एवं विरूप हो जाते हैं, सबसे अधिक विकृति हाथों की संधियों में होती है। हाथ की ऊँगलियाँ टेढ़ी हो जाती हैं। पैर के अंगूठों में विकार आ सकता है।

आमवात में विकृत संधियाँ कुछ फूलकर गुलाबी रंग की हो जाती हैं, जिसमें जलन होती है। इनमें इतनी तीव्र पीड़ा होती है कि जरा सा धक्का लगने पर रोगी तड़प उठता है। इस कारण रोगी बिना हिले-डुले बिस्तर पर पड़ा रहता है।

संधियों की सूजन में विविधता :

आमवात के कारण उत्पन्न संधियों के सूजन में विविधता पाई जाती है, जैसे संधि में सूजन आकर फूल जाना, अल्प सूजन, खोखली तथा ढीली सूजन आदि। पहले प्रकार की संधि सूजन अधिकांश रोगियों में पाई जाती है। इस प्रकार की संधिशोथ में कुछ कड़ापन रहता है। संधिकोष में अत्यंत दर्दयुक्त कड़ापन एवं खिंचाव की अनुभूति होती है तथा जोड़ों में अत्यंत पीड़ायुक्त हलचल होती है।

जोड़ों की पीली व ढीली सूजन में दर्द कम होता है। रोगी इन संधियों को आसानी से घुमा-फिरा सकता है। संधि से संबद्ध अवयव काफी कमज़ोर व दुर्बल होते हैं। इस प्रकार की सूजन प्रायः वृद्धावस्था में होती है।

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बिना शोथ के भी संधियों में पीड़ा होने लगती है। इस प्रकार का दर्द प्रायः बना रहता है। रोगी पीड़ा से बचने के लिए संधि से संबद्ध अंगों को किंचित मोड़कर रखने लगता है। इस प्रकार के आमवात में संधि-बंधन का तनाव बढ़ जाता है। इसके साथ ही संधि से संबद्ध मांसपेशी तथा अवयव संकुचित होकर सिकुड़ने लगते हैं। साधारण रोग की इसी अवस्था में हाथ-पैर की ऊँगलियों तथा घुटनों में टेढ़ापन आ जाता है। इस अवस्था में रोगी आक्रांत संधियों को पूरी तरह मोड़ या फैला नहीं सकता क्योंकि संधि के बंधन कड़े व छोटे हो जाते हैं एवं संधि कोष का स्नेहयुक्त तरल पदार्थ सूख जाता है। रोग की इस स्थिति में जोड़ों में खोखली या ढीली सूजन रहती है।

साध्य-असाध्य :

आमवात स्वयं मर्यादित रोग है। चिकित्सा न करने पर भी छ:-सात सप्ताह में ठीक हो जाता है। लेकिन योग्य चिकित्सा न कराने से या अपथ्य आहारविहार का सेवन करने से यह बार-बार हो सकता है। आमवात स्वयं घातक रोग नहीं है और पहली बार तो कदापि भी घातक नहीं होता है।

( और पढ़े – आमवात के घरेलू उपचार )

आयुर्वेद में आमवात का उपचार कैसे किया जाता हैं ? (Amavata Ayurvedic Treatment in Hindi)

आमवात की आयुर्वेदिक चिकित्सा विधान –

आराम चिकित्सा :

आमवात ऐसा रोग है, जिसमें रोगी चलने-फिरने में असमर्थ हो जाता है। अंगों को हिलाने-डुलाने से असहनीय पीड़ा होती है। अतः इससे बचने के लिए पूर्ण आराम करना ज़रूरी है। रोग के शुरू होने पर अगर एक सप्ताह तक बिस्तर पर आराम किया जाए तो रोग नियंत्रित होता है। रोगग्रस्त संधियों को पूर्ण विश्राम देने के लिए उन्हें प्लास्टर ऑफ पॅरिस से बनी खपचियों से बाँधकर रखना चाहिए। इस प्रकार विश्राम मिलने से अस्थियों के सिरे परस्पर नहीं जुड़ते और संधियाँ सचेष्ट बनी रहती हैं। दो-तीन सप्ताह बाद खपची दिन में खोल दें और रात को बाँध दें। इस प्रकार 3-4 महीने तक विश्राम करने से रोग के वेग को रोका जा सकता है और स्वास्थ्य को उत्तम बनाया जा सकता है। विश्राम चिकित्सा से आघात और दबाव से बचाव होता है और खपची बाँधने से अंगों की विरूपता व अन्य विकारों से बचाव होता है।

व्यायाम :

आराम चिकित्सा के बाद व्यायाम चिकित्सा प्रारंभ करनी चाहिए। विश्राम के बाद जब सूजन तथा दर्द के लक्षण समाप्त हो जाएँ तब हाथों-पाँवों को हिलाना-डुलाना भी चाहिए।

( और पढ़े – आमवात से छुटकारा दिलाएंगे ये 8 योग आसन )

विपरीत स्नान :

रोगग्रस्त संधियों को शुरू में गर्म पानी में और फिर ठंडे पानी में 2-2 मिनट रखना चाहिए। इस प्रकार दिन में केवल एक बार 20-30 मिनट तक विपरीत स्नान करना चाहिए। इससे संधियों में रक्त संचार बढ़ता है और दर्द कम होता है।

आमवात की औषधिय चिकित्सा (उपचार) :

इन साधारण उपायों के साथ किसी योग्य वैद्य से आमवात की औषधिय चिकित्सा भी करानी चाहिए। आज-कल एलोपैथिक चिकित्सा में तुरंत पीड़ानाशक और एंटीबायोटिक औषधियों का प्रयोग किया जाता है। ऐसी औषधियों से तत्काल पीड़ा तो शांत हो जाती है लेकिन रोग शांत नहीं होता, अपितु अन्य अनेक रोग पैदा हो जाते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा से तत्काल वेदना शांत होती है और रोग भी समूल नष्ट हो जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार आमवात का मुख्य कारण अपक्व आहार रस अर्थात आम है। इसलिए आम के शमन का उपाय सर्वप्रथम किया जाता है क्योंकि जब तक आम का पाचन नहीं होता तब तक रोग निवारण में सफलता नहीं मिलती। इसके लिए लंघन, स्वेदन, तिक्त पदार्थ और कटु पदार्थों का सेवन करना चाहिए। इस रोग के शमन हेतु विरेचन, स्नेहन तथा बस्तिकर्म अत्यधिक हितकर है। आमवात के रोगी को यदि प्यास अधिक लगती हो तो उसे पिप्पली, पिपरामूल, चव्य, चित्त तथा सोंठ के साथ पकाए गए पानी को पीना हितकर है।

आमवात के कुछ अन्य अनुभूत नुस्खे निम्न प्रकार हैं –

1). सूजन एवं दर्द नाशक लेप – सौंफ, वच, सोंठ, गोखरू, वरुन की छाल, पुनर्नवा, देवदारु, कचूर, गोरखमुंडी, प्रसारिणी, अरनी तथा मैनफल सभी को सममात्रा में लेकर जौकुट करके रख लें। फिर आवश्यकतानुसार इसे लेकर सिरके की कांजी में पीस लें और लेप बनाकर कुनकुना लगाने से आमवात की सूजन एवं दर्द से राहत मिलती है।

2). गोरखमुंडी – गोरखमुंडी, गोखरू, गुडुची, वरुन की छाल तथा सोंठ को सममात्रा में लेकर कपड़छान चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में लेकर कांजी के साथ सेवन करना चाहिए। आमवात रोग पर यह योग अमृत के समान काम करता है।

( और पढ़े – गोरखमुंडी के फायदे और नुकसान )

3). एरंड तेल (कैस्टर ऑयल) – आमवात जैसे अति कष्टकारी रोग को दूर करने में एरंड तेल अकेले ही सक्षम है। इसके लिए आमवात रोगी को चाहिए कि 3-4 ग्राम हरड़ चूर्ण को 10 से 15 ग्राम एरंड तेल में मिलाकर नियमित सेवन करें।
एरंड तेल 2 चम्मच (10 मि.ली.) और सोंठ चूर्ण एक चम्मच (4-5 ग्राम) एक साथ मिलाकर सुबह शाम सेवन करें।

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4). हरड़ – सेंधा नमक 2 भाग, अजवाइन 2 भाग, अजमोदा 3 भाग, सोंठ 5 भाग तथा हरड़ 12 भाग लेकर कपड़छान सूक्ष्म चूर्ण बनाकर 5 से 10 ग्राम की मात्रा में दही के तोड़ , घी अथवा गर्म पानी के साथ सेवन करने से आमवात दूर हो जाता है। यह योग हृदय रोग, गुल्म, बस्ति-प्लीहा रोग, शूल आदि को दूर करने में भी प्रभावकारी है।

5). सोंठ – सोंठ और हरड़ का चूर्ण सममात्रा में मिलाकर रख लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ सेवन करने से आमवात का नाश होता है।

6). गिलोय – सोंठ, हरड़ और गिलोय के क्वाथ में गुग्गुल मिलाकर सेवन करने से आमवात का निवारण होता है।

( और पढ़े – अमृत तुल्य औषधि अमृता (गिलोय) के लाभ )

आमवात की आयुर्वेदिक दवा (Rheumatoid Arthritis Ayurvedic Medicine in Hindi)

आयुर्वेदिक चिकित्सा के अंतर्गत निम्न औषधियों का प्रयोग चिकित्सक परामर्शानुसार प्रयोग करने पर लाभदायक है।

हिंग्वादि चूर्ण, पिपल्यादि चूर्ण, अजमोदादि चूर्ण, पंचकोल चूर्ण, अमृतादि चूर्ण, रास्ना पंचक क्वाथ, दशमूल क्वाथ, महारास्नादि क्वाथ, पिपल्यादि क्वाथ, योगराज गुग्गुल, सिंहनाद गुग्गुल, त्रयोदशांग गुग्गुल, लशुनाद्य गुग्गुल, रास्नादि गुग्गुल, महावातविध्वंस रस, आमवातादि रस, वातगजांकुश रस, वृहत वातचिंतामणि रस, श्रृंगभस्म, वंग भस्म इत्यादि अनेक औषधि योगों का सफल प्रयोग आमवात में होता है।

आमवात रोग में सूखी मूली का यूष (पानी) , पंचमूल के क्वाथ अथवा सोंठ का चूर्ण डालकर कांजी (छाछ) का सेवन करना हितकर होता है।

आमवात में क्या खाना चाहिए ?

आमवात रोग में यह सब खाएं (पथ्य आहार) –

  • अनाजों में – जौ,पुराना चावल, गेहूं ।
  • दालों में – मूंग की दाल, मसूर की दाल,अरहर की दाल।
  • फल और सब्जियों में – टिण्डा, लौकी, सहजन, खीरा, परवल, तोरई, करेला, सेब, पपीता ।
  • अन्य: भोज्य पदार्थ जैसे – अदरक, हींग, काला नमक, सेंधा नमक, अजवाइन, जीरा, लहसुन, सौंफ, अरंडी तेल, गुनगुना पानी, काली मिर्च, धनिया, घी, गुनगुना पानी, मलाई रहित दूध, ताजी छाछ, पुनर्नवा, तथा गौमूत्र का सेवन करें।

आमवात में परहेज (Amavata me Parhej in Hindi)

आमवात रोग में यह सब न खाएं (अपथ्य आहार) –

  • अनाज में – मैदा, नया धान ।
  • दालों में – चना (gram), मटर (Pea), काबुली चना, काला चना,।
  • फल और सब्जियों में – सरसों का साग, आलू, भिंडी, कंदमूल, अरबी।
  • अन्य खाद्य पदार्थ – कोल्ड ड्रिंक्स, बासी भोजन, ठंडा भोजन, अशुद्ध पानी, ठंडा पानी, दही, गुड़, अधिक नमक, मछली, सूखी सब्जी, तला-भुना आहार, देर से पचने वाले खाद्य पदार्थ।
  • इन पदार्थों का सेवन सख्त मना है – अचार, जंक फ़ूड, ज्यादा तेल, ज्यादा नमक, तला-भुना मसालेदार भोजन, डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ, कोल्ड ड्रिंक्स, मैदे से बने पदार्थ, शराब, फास्टफूड, मांसहार, मांसहार सूप।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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