Last Updated on October 18, 2020 by admin
मानव शरीर का निर्माण पंचमहाभूत के मिलने से हुआ है। शरीर की कार्यात्मक दक्षता मूलतः ‘त्रिदोष वात, पित एवं कफ के मिलने से निर्धारित होती है। विरूद्ध आहार-विहार और प्रतिकूल जीवनशैली के कारण जब त्रिदोषों की साम्यावस्था असंतुलित होती है तब व्याधियों की उत्पति होती है।
मानव शरीर विभिन अंग-प्रत्यंगों से मिल कर बना है, इसकी तुलना हम विभिन्न कल-पुर्जोंसे बनी मशीन से कर सकते हैं। जिस तरह निरंतर कार्य करने वाले यंत्र की गति निर्वाध बनी रहती है, ठीक उसी प्रकार शरीर यदि नियमित गतिशील और परिश्रम करता रहे तो उसकी गति बनी रहती है।
जिस तरीके का जीवन आज एक सामान्य मानव व्यतीत कर रहा है, उससे शरीर शिथिल होता जा रहा है। यह शैथिल्य मानव आधुनिकता के अंधानुकरण की देन है जो उसे कुछ ऐसी व्याधियों से ग्रसित कर रहा है, जिससे उसकी संपूर्ण जीवन शैली प्रभावित हो रही है। ऐसी ही एक व्याधि का नाम है आमवात।
आमवात के लिए योग-चिकित्सा :
आमवात के लक्षण आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में वर्णित Rheumatoid Arthritis से समानता रखते हैं। रोगी में शारीरिक विकृति एवं विकलांगता इस रोग का सबसे घातक प्रभाव है। आयुर्वेद में आमवात का उल्लेख आचार्य माधव, चक्रपाणिदत्त एंव योगरत्नाकर प्रणीत ग्रंथों में मिलता है।
पुरातनकालिक ऋषि-मुनियों, वैद्यों व आचार्यो सभी ने एकमत से योग को सर्वोतम साधन माना है। वर्तमान आयुर्वेदाचार्य भी इसी मत को अपना समर्थन देते हैं। विभिन्न व्याधियों की सर्वभूत चिकित्सा में योग की महत्वपूर्ण भूमिका है। आमवात रोग में योग द्वारा चिकित्सा के बहुत उत्साहजनक परिणाम दृष्टिगोचर हुए हैं। आमवात की योग-चिकित्सा में सर्वप्रथम तीन प्रमुख बातों का उल्लेख आवश्यक है –
- योगासनों का नियमित अभ्यास।
- समुचित आहार।
- व्यक्तिगत स्वच्छता का नियमन।
आमवात के लिए लाभदायक योग आसन (Yoga Benefits for Rheumatoid Arthritis in Hindi)
1). संतुलनासन : आमवात दूर करने में फायदेमंद
विधि –
- एक पतला कंबल या चादर फर्श पर बिछाएं। उस पर सीधे खड़े हो । शरीर बिल्कुल सीधा एंव स्थिर रहे। सामने की ओर दृष्टि स्थिर करें।
- दाएं पैर पर स्थिर खड़े होकर बाएं पैर को घुटने के पास से मोड़ते हुए पीछे की ओर कमर के पास ले जाएं। बाएं पैर की अंगुलियों को दाहिने हाथ की सहायता से पकड़े। एक बार में बहुत अधिक प्रयास न करें, जितनी आसानी से पैर मोड़ सकें, उतना ही मोड़ें।
- दाएं हाथ को सीधा करें। अंगुलियों को एक साथ रखें और हाथ को धीरे-धीरे ऊपर आकाश की तरह ले जाएं। हथेली नीचे की तरफ रखें। हाथ को बिलकुल सीधा रखें।
- इस स्थिति में 6-8 सेकंड तक रहें।
- धीरे-धीरे शरीर को पूर्वावस्था में लाएं।
- यह प्रक्रिया अब बाएं पैर के साथ करें।
- इस तरह आसन का एक चक्र पूरा करें। इस आसन में श्वास की कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है।
नियमित अभ्यास – 4 चक्र ।
लाभ –
यह आसन संधियों में लचीलापन लाता है व रक्त संवहन को तेज करता है।
2). त्रिकोणासन : रियुमेटोइड आर्थराइटिस में उपयोगी आसान
विधि –
पहला चरण –
सीधे खड़े हो जाएं। शरीर को स्थिर रखें। धीरे-धीरे सांस लेते हुए दोनों हाथों को कंधों की सतह तक ऊपर उठाएं। हाथों को एकदम स्थिर व सीधा रखें। जब दोनों हाथ कंधों के साथ एक सीधी रेखा में आ जाएं, तब तक धीरे-धीरे श्वास लेने की प्रक्रिया भी पूरी हो जानी चाहिए। इस अवस्था में 2-4 सेंकड तक रहें।
दूसरा चरण –
श्वास को धीरे-धीरे छोड़ते हुए बाएं हाथ को नीचे की ओर ले जाएं और बाएं पैर को छुए, इस समय दाएं हाथ को ऊपर आकाश की तरह ले जाएं। इस समय तक श्वास छोड़ने की प्रक्रिया पूर्ण हो जानी चाहिए।
आखों को दाएं हाथ की हथेली की ओर स्थिर करें। 2-3 सेकंड तक इस अवस्था में रहें। पैर बिलकुल सीधे होने चाहिए, घुटने से न मोडे।
तीसरा चरण –
अब धीरे-धीरे दाएं हाथ को नीचे की तरफ लाएं और अपने सामने बिलकुल सीधा रखें, इस समय आपका बाँया हाथ आपके बाएं पैर की अंगुलियों पर ही होना चाहिए । श्वास को धीरे-धीरे लेते हुए रोकें, इस अवस्था में 2-3 सेकंड रहें।
अंतिम चरण –
दाएं हाथ को धीरे-धीरे लाएं और दाएं पैर की अंगुलियों को छुएं। अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए सीधे खड़े हो जाएं। 5 सेकंड के विश्राम के पश्चात पूरी प्रक्रिया दाएं हाथ के साथ शुरू करें।
नियमित अभ्यास – 4 चक्र।
लाभ –
- त्रिकोणासन रीढ़ की हड्डी, कूल्हे की संधियों आदि सभी बड़ी संधियों को लचीला बनाता है।
- यह आसन गर्दन व कंधो के दर्द की शिकायत में भी लाभकारी है।
3). वीरासन : आमवात के दर्द से राहत दिलाएगा ये योग
विधि –
- जमीन पर आराम से बैठ जाएं। शरीर को सीधा रखें व सामने की ओर दृष्टि स्थिर रखें। सामान्य श्वास लेते रहें।
- अब बाएं पैर को घुटने पर से मोड़ते हुए एड़ी को कमर के पीछे ले जाए। अंगुलियाँ जमीन पर हों और एडी कमर को छुए। शरीर का सारा भार जमीन पर हो, न कि मुड़े हुए पैर पर होना चाहिए।
- अब दाएं पैर को भी घुटने पर से मोड़े और इसकी एड़ी को बाएं पैर पर होना चाहिए।
- अब दाएं पैर की जंघा पर रखे। बाकी मुडा पैर जमीन पर रखें।
- दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए कुहनियों पर से मोड़े और कलाइयों को सिर पर रखें। दोनों हथेलियों सटी हुई हों और अंगुलियाँ सीधी, ऊपर की ओर हो। कुहनियां और रीढ़ की हड्डी, गर्दन और सिर स्थिर और सीधे तने हुए हों।
- इस अवस्था में 6-7 सेकंड तक रहें। अब धीरे-धीरे हाथों को नीचे लाएं, दाएं पैर को हाथों से उठाकर नीचे रखें और बाएं पैर को सीधा करें।
- 5 सेकंड विश्राम करें और पुनः ये प्रक्रिया दाएं पैर से शुरू करें।
नियमित अभ्यास – 4-6 चक्र।
लाभ –
- यह आसन संधि स्थानों पर रक्त संवहन में वृद्धि करता है।
- यह जघाओं, कमर, बाहों की मांसपेशियों में कसाव लाता है व वसा के जमाव को कम करता है।
- साथ ही इस आसन का सांकेतिक लाभ भी है, जो साहस और वीरता का भाव मन में जाग्रत करता है।
4). नटराजासन : आमवात में फायदेमंद योगासन
विधि –
- शरीर को सीधा रखते हुए दोनों हाथों को किनारे रखकर सीधे खड़े हो जाएं। सामान्य श्वास लेते रहें। दृष्टि सामने स्थिर रखें।
- दाहिने पैर को घुटने से मोड़े, पैरों की अंगुलियों को दाहिने हाथ से पकड़े। बाएं पैर एवं अंगुलियों को जमीन पर एकदम स्थिर कर लें।
- अब धीरे-धीरे एक साथ बाएं हाथ को ऊपर की ओर तथा मुड़े हुए दाहिने पैर को दाहिने हाथ से पकड़े हुए पीछे की ओर ले जाएं। ये दोनों क्रियाएं एक साथ करें मगर उतना ही जितना शरीर अनुमति दे।
- बायां हाथ आकाश की ऊपर न हो, बल्कि सिर की दिशा में उर्ध्वाधर हो और आपको पूरा हाथ लंबाई में दिखाई दे।
- अब शरीर को कमर के ऊपर थोड़ा आगे की ओर झुकाएं और बाएं हाथ की अंगुलियों पर अपनी दृष्टि स्थिर करें।
- सामान्य श्वास लेते रहें।
- यदि आमवात के रोगी को आसन करने में अधिक परेशानी हो तो किसी दीवार इत्यादि का सहारा लें।
- इस स्थिति में 6-8 सेकंड तक रहने के पश्चात धीरेधीरे शरीर को पूर्वावस्था में लाएं।
- थोड़ा विश्राम कर अगला चक्र दाएं पैर से शुरू करें।
नियमित अभ्यास – 4-6 चक्र
लाभ –
- शरीर की सभी संधियों के लिए यह एक पूर्ण आसन हैं।
- यह रीढ़ की हड्डी की जड़ता एवं पीड़ा दूर करता है।
- इसके अलावा इस आसन का लाभ उदर विकारों को दूर करने में भी मिलता है।
5). गोमुखासन : रियुमेटोइड आर्थराइटिस में लाभ के लिए सर्वोत्तम आसन
आमवात के ऐसे रोगी, जिनके प्रमुख संधि स्थान यथा घुटने, कुहनियों में दर्द या जकड़न हो, वो इस आसन को उतनी ही सीमा तक करें, जितना शरीर अनुमति दे।
विधि –
- पैरों को घुटनों पर से मोड़कर जमीन पर बैठ जाएं। शरीर का भार घुटनों पर रखें। दोनों घुटनों के बीच कम से कम 5 इंच की दूरी रखें। कमर के पीछे पैरों की स्थिति इस प्रकार हो कि एडियां ऊपर की ओर एक-दुसरे से थोड़ी दूरी पर हो और अंगुलियां आमने-सामने हों। एड़ियों व अंगुलियों पर शरीर का भार केंद्रित करें।
- दोनों हथेलियों को जंघाओं पर रखें। सामान्य श्वास लेते रहें।
- दाएं हाथ को धीरे से उठाते हुए पीठ के पीछे की ओर ले जाएं और कुहनी पर से मोड़ लें।
- अब बाएं हाथ को भी मोड़ते हुए पीछे की ओर लें और कुहनी पर से मोड़ लें।
- दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में बांध लें और एक-दूसरे से विपरीत दिशा में खीचने का प्रयास करें। बाएं हाथ की कुहनी को सीधा, ऊपर की तरफ उठाएं और पीठ बिलकुल सीधी रखें।
- इस अवस्था में 6-8 सेकंड तक रहें।
- अब अंगुलियों को खोल दें और दोनों हाथों को धीरे से सामने लाकर जंघाओं पर रखें। 2-4 सेकंड विश्राम करें तथा आसन का दूसरा चक्र शुरू करें।
नियमित अभ्यास – 4 चक्र।
लाभ –
- गोमुखासन स्वयं में शरीर की सभी प्रमुख संधियों के लिए संपूर्ण आसन है।
- अंगुलियों, कुहनियों, कलाइयों, कंधो, घुटनों, रीढ़ की हड्डी, टखनों सभी संधियों के लिए लाभकारी है।
- यह संधि स्थान में पाए जाने वाले साइनोवियल द्रव्य को पुर्नस्थापित कर संधिगत पीड़ा व जड़ता को दूर करने में सहायक है।
6). सेतुबंधासन : आमवात दूर करने में लाभदायक
विधि –
- जमीन पर पीठ के बल लेट जाएं।
- पैरों को घुटनों पर से मोड़कर एड़ियों को कमर के पास ले जाएं। दोनों पैरों के घुटनों एवं एडियों में परस्पर 2-3 इंच की दूरी रखें। हथेलियों को जमीन पर रखें। सामान्य श्वास लेते रहें।
- धीरे-धीरे कमर-पीठ को ऊपर उठाएं। कंधे एवं पैर फर्श पर टिके रहें।
- कमर व पीठ को हथेलियों का सहारा देकर ऊपर स्थिर करें। अब धीरे-धीरे सरलता से जितना ऊपर उठा सकें, हाथों के सहारे कमर को उठाएं।
- 6-8 सेकंड तक इस अवस्था में रहने के बाद धीरे-धीरे शरीर को नीचे लाएं।
- हाथों व पैरों को सीधा करें। 2-3 सेकंड आराम करें व अगला चक्र शुरू करें।
नियमित अभ्यास – 4-5 चक्र।
लाभ –
- सेतुबंधासन का मुख्य प्रभाव रीढ़ की हड्डी एंव कूल्हे की संधि पर होता है।
- साथ ही कंधो, बांहो व कलाइयों पर भी यह अनुकूल प्रभाव देता है।
- उदर विकारों के लिए यह उत्तम आसन है।
7). वृक्षासन : आमवात के लिए सरल योग
वृक्षासन करते समय अगर आमवात के रोगी को परेशानी हो तो किसी दीवार या टेबल का सहारा ले लें एवं यथासामर्थ्य ही प्रयास करें।
विधि –
- सीधे खड़े हो जाएं। अपनी आंख को सामने स्थिर करें। सामान्य श्वास लें।
- बाएं पैर पर खड़े होते हुए दाएं पैर की जंघा पर टिकाएं।ज्यादा दबाव न डालें। एडी व टखना का हिस्सा जंघा पर टिका रहे ।
- अब दोनों हाथों को दोनों किनारों से उठाते हुए सिर से ऊपर की ओर ले जाएं।
- दोनों हथेलियों को आपस में सटाकर रखें और कलाइयों को सिर पर टिका दें।
- मुड़ी हुई कुहनियों को सीधा एंव तना हुआ रखें। पूरे शरीर को स्थिर व सीधा रखें।
- हाथों को नीचे लें और दाएं पैर को हाथों से पकड़ कर थोड़ा ऊपर करते हुए नीचे ले जाएं।
- थोड़ा विश्राम करें।
- आसन का दूसरा चक्र दाएं पैर से शुरू करें।
नियमित अभ्यास – 4-6 चक्र।
लाभ –
- शरीर की सभी संधियों के लिए उत्तम व्यायाम है।
- मांसपेशियों को सुडौलता प्रदान करता है।
- सामान्य दिनचर्या में भी लाभप्रद है।
8). सिद्धासन : आमवात दर्द के लिए सबसे अच्छा व्यायाम
विधि –
- जमीन पर सामान्य अवस्था में बैठ जाएं।
- दोनों पैरों को सामने सीधा कर लें। शरीर का ऊपरी हिस्सा बिलकुल सीधा रखें। सामान्य श्वास लें।
- बाएं पैर को घुटनों पर से मोड़ते हुए जघा प्रदेश के भीतरी भाग की ओर लाएं।
- अब दाएं पैर को भी घुटनों से मोड़ते हुए बाएं पैर के ऊपर रखें। दोनों एडिया परस्पर एक-दूसरे के ऊपर एवं सामने हों। शरीर का ऊपरी हिस्सा सीधा एवं स्थिर रखें।
- दोनों हाथों को सीधा करें और हथेलियों को सामने की ओर घुटनों के पास लाएं, अंगुठे एवं तर्जनी की सहायता से वृन्त बनाकर ध्यान मुद्रा में बैठें, इस अवस्था में सामान्य श्वास लेते हुए 1 मिनट तक रहें।
- हाथों को ढीला छोड़े व पैरों को हाथों की सहायता से अलग करें।
- 4-5 सेकंड के विश्राम के पश्चात अगला चक्र करें।
नियमित अभ्यास – सिद्धासन में अधिकतम 3 मिनट तक बैठें।
आसन के 2 चक्र एक दिन में पर्याप्त हैं।
लाभ –
- शरीर के निचले हिस्सों की संधियों के लिए सिद्धासन उत्तम आसन है।
- सिद्धासन मन की शांति के लिए भी उपयुक्त है।
- संपूर्ण शरीर की संधियों की जड़ता को दूर करने एवं रक्त संवहन को तेज करने में सिद्धासन अति लाभप्रद है।