Last Updated on January 7, 2020 by admin
अमृत मंजरी वटी क्या है ? : What is Amrit Manjari Vati in Hindi
अमृत मंजरी वटी टैबलेट के रूप में एक आयुर्वेदिक औषधि है। जिसका उपयोग अजीर्ण ,अग्नि मान्द्य ,अतिसार ,ग्रहणी ,श्वास ,हृदय रोग ,सन्धि वात ,आमवात ,अवुर्द ,कर्कटावुर्द अथवा कोई भी रोग जिसमें आम के कारण रोगोत्पत्ती अथवा उपद्रव हो अमृत मंजरी वटी का उपयोग उपचार के लिए किया जाता है।
अमृत मंजरी वटी के घटक द्रव्य : Amrit Manjari Vati Ingredients in Hindi
✦ शुद्ध शिंगरफ – 10 ग्राम,
✦ शुद्ध वछनाग – 10 ग्राम,
✦ पिप्पली – 10 ग्राम,
✦ काली मिर्च – 10 ग्राम,
✦ जायवत्री – 10 ग्राम,
✦ शुद्ध टंकण – 10 ग्राम,
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- हिंगुल : कफनाशक, शोथहर, आमपाचक, वेदनाशामक।
- वछनाग : वात कफनाशक, शोथ हर, आमपाचक, वेदनाशामक।
- पिप्पली : वात कफनाशक, आमपाचक, अग्निवर्धक।
- मिर्च : कफ पित्त नाशक, अग्निवर्धक, आमपाचक।
- टंकण : वछनाग विषनाशक, लेखन, पाचक, सारक।
- जायवत्री : दीपक, पाचक, आमपाचक, सुगन्धित।
- जम्भीर स्वरस : दीपन, पाचन, आमपाचक, क्षुधावर्धक।
अमृत मंजरी वटी बनाने की विधि :
हिंगुल, वछनाग तथा टंकण शुद्ध हों तो ठीक, नहीं तो स्वयं शुद्ध कर लें, सबसे पहले हिंगुल को इतना खरल करें की उसमें चमक न रहे, फिर अत्यन्त सूक्ष्म होने तक वछनाग को खरल करें, फिर काष्टौषधियों के वस्त्रपूत चूर्ण मिलाएँ और जम्भीर स्वरस डालकर वटी बनने योग्य होने तक मर्दन करवाएँ और 100 मि.ग्रा. की वटिकाएं बनवाकर धूप में सुखा कर सुरक्षित कर लें।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
अमृत मंजरी वटी की खुराक : Dosage of Amrit Manjari Vati
एक-दो वटी भोजन के उपरान्त प्रात: सायं ।
अमृत मंजरी वटी के उपयोग : Amrit Manjari Vati Uses in Hindi
अजीर्ण (Amrit Manjari Vati Benefits to Cure indigestion in Hindi)
भोजन का न पचना अर्जीण है। स्वभाव गुरु एवं मात्रा गुरु अन्न सेवन, अध्यशन, विषमाशन एवं असात्मय भोजन के कारण अजीर्ण होती है। यह एक अल्प कालीन अवस्था होती है, रोग नहीं, औषधि सेवन से तत्काल शमन भी हो जाती है।
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अग्नि मान्द्य (Amrit Manjari Vati Benefits in Dyspepsia Treatment in Hindi)
मिथ्या आहार विहार के कारण बढ़ा हुआ कफ जब अपने शीतल, पिच्छल, गुरु स्निग्ध गुणों के कारण जठराग्नि को मन्द कर देता है तो, यह एक स्वतन्त्र रोग हो जाता है। अजीर्ण एक अल्प कालीन अवस्था होती है, परन्तु अग्निमांद्य एक चिरकारी यह अग्निमान्द्य केवल जाठराग्नि तक ही सीमित नहीं रहता अपितु अपने प्रभाव से धात्वाग्नियों को भी मन्द कर देता है। दूसरी ओर भुक्तान्न के सम्यक् पाचन न होने से ‘आम’ की उत्पत्ती होती है, जो दोषों और मलों के सम्पर्क से अनेक दुःसाध्य रोगों का कारण बनता है।
ऐसे दुःसाध्य रोग केवल लाक्षणिक चिकित्सा से ठीक नहीं होते उनकी चिकित्सा में अग्निवर्धन एक अनिवार्य क्रिया होती है। दूसरी क्रिया होती है आम पाचन, अमृत मंजरी वटी यह दोनों कार्य करती है। कफनाशक होने से अग्निमांद्य के मूल, कफ दोष को भी शान्त करती है। अत: अग्निमान्द्य, आमदोष, और वात कफ दोष से उत्पन्न सभी विकारों में सफलता पूर्वक प्रयोग की जाती है। वछनाग के दो गुण, वेदना शामक और ज्वर नाशक भी इसमें विद्यमान रहते हैं अतः यह महौषधि जाठराग्नि और धात्वाग्नियों को दीप्त करती है। वेदनाओं का शमन करती है ज्वर को शान्त करती है, और आम का पाचन करती है।
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वात व्याधियाँ (Amrit Manjari Vati Uses to Cures Rheumatism in Hindi)
वात व्याधियाँ मुख्यतः दो कारणों से होती है प्रथम आहार-विहार के हीन, मिथ्या, अतियोग से और द्वितिय धातुक्षय से यह दोनों प्रकार की वातव्याधियाँ कष्टदायक तो होती है परन्तु इतनी नहीं जितनी वायु के आम के साथ सम्पृक्त होने से होती हैं। इन व्याधियों में आम वात, सन्धिवात, कटिग्रह, गृध्रसी, खंज, पगं इत्यादि अनेक वेदना पूर्ण व्याधियाँ है। जो केवल वातशामक औषधियों से ठीक नहीं होती। इन रोगों में अमृत मंजरी एक दो गोली प्रात: सायं भोजन के बाद उष्णोदक से देने से दूसरे-तीसरे दिन ही लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है। रोग मुक्ति के लिए एक पक्ष से एक मण्डल तक औषधि सेवन की आवश्यकता होती है।
सहायक औषधियों में समीर पन्नग रस, वात गजांकुशरस, महावात विध्वंसन रस, रास्नादि गुग्गुलु, त्र्योदशांग गुग्गुलु, वृहद्वात चिन्तामणि रस, कृष्ण चतुर्मुख रस इत्यादि में से किसी एक या दो औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।
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कास एवं श्वास (Amrit Manjari Vati Benefits to Cure Asthma Problem in HIndi)
दोनों वात कफज व्याधियाँ है, दोनों का मूल कारण आम है। कफ द्वारा कण्ठ के अवरोध को वायु द्वारा वेग से निकालने का प्रयास कास है, तो कफद्वारा श्वास नलिकाओं के अवरोध के कारण श्वास का कठिनाई से निकलना श्वास है। अमृत मंजरी वटी अपने वात-कफ नाशक और आम पाचक गुणों के कारण उपरोक्त दोनों अवस्थाओं में एक लाभदायक औषधि है। एक से दो गोलियाँ प्रातः सायं मधु ‘आदरक स्वरस से देने से लाभ होता है।
कास तो एक सप्ताह के भीतर ही शान्त हो जाती है। परन्तु श्वास में इसका प्रयोग छ: मास तक करवाना चाहिए। सहायक औषधियों में कासकर्तरिवटी, चन्द्रामृत रस, श्वास कुठार रस, श्वास कास चिन्तामणि रस, तालीसादिचूर्ण, समीर पन्नग रस, कणकासव इत्यादि का प्रयोग भी करवाना चाहिए।
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अमृत मंजरी वटी के फायदे : Amrit Manjari Vati Benefits in Hindi
वातकफ ज्वर (Amrit Manjari Vati Benefits to Cure Fever in Hindi)
वात कफज ज्वरों में अमृत मंजरी वटी का प्रयोग सफलता पूर्वक होता है। यह ज्वर को उतारती है। वेदनाओं का शमन करती है और कफ को पतला करके निकालती है अतः कास का भी शमन होता है। आम पाचक होने से यह ज्वर के मूल कारण का विनाश करती है।
सहायक औषधि की कोई आवश्यकता नहीं होती। यदि हो तो नारदीय लक्ष्मी विलास रस, संजीवनी वटी, समीर पन्नग रस, तालसिन्दूर इत्यादि में किसी एक का प्रयोग करवा सकते हैं।
ग्रहणी (Amrit Manjari Vati Beneficial to Treat Duodenum in Hindi)
ग्रहणी विशेषता कफज ग्रहणी में अमृत मंजरी का प्रयोग एक सफल औषधि के रूप में होता है। यह आम का पाचन करके मात्र दो दिन में ही मल का आमत्व, पिच्छित्व नष्ट कर देती है। मल को बाँध देती है, भूख को बढ़ाती है और जाठराग्नि को दीप्त करती है। दो गोली प्रातः सायं भोजन के उपरान्त उष्णोदक अथवा तक्र से सेवन करवाऐं, एक सप्ताह के सेवन से अग्नि दीप्त होकर ग्रहणी में लाभ होता है।
पूर्ण लाभ के लिए एक मण्डल तक प्रयोग करवाना चाहिए, सहायक औषधियों में शंखोदर रस, प्रवाल पंचामृत, विडगांद्यवटी, लशुनादिवटी, चित्रकादिवटी का प्रयोग करवाएँ।
सभी रोगों की साम अवस्थाओं में :
कहा जाता है कि सभी रोग मन्दाग्नि से होते हैं। परन्तु वास्तविकता यह है कि मन्दाग्नि से आमोत्पत्ती होती है और अधिकांश रोग ‘आम’ से उत्पन्न होते हैं । जहाँ-जहाँ आम का सम्पर्क दोष धातुओं अथवा मलों से होता है वहाँ-वहाँ रोगों की उत्पत्ती हो जाती है । आम की स्थिरता एवं पिच्छिलता स्रोतो रोध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसीलिए आम को रोगों का निवास कहते हैं रोगों का नाम भी आमय इसी कारण से है। अत: काय चिकित्सा में अग्नि को समझना, अग्नि की रक्षा करना ही काय चिकित्सा है।
अमृत मंजरी वटी एक उत्तम, दीपक, पाचक, अग्निबर्धक, आमनाशक, धात्वग्निबर्धक, वात कफनाशक, होने से सभी रोगों की साम अवस्थाओं में सफलता पूर्वक प्रयुक्त होती है, रोग चाहे ज्वर हो, अतिसार या ग्रहणी, विशचिका, श्वास, हृदय रोग, सन्धि वात, आमवात, अवुर्द, कर्कटावुर्द अथवा कोई भी रोग जिसमें आम के कारण रोगोत्पत्ती अथवा उपद्रव हो, अमृत मंजरीवटी का अवश्य प्रयोग करना चाहिए, इसका सद्य:(बिना देर किए) आम पाचक गुण, रोग वृद्धि को तुरन्त रोक देता है। और इसका उपयुक्त समय तक सेवन रोग के मूल ‘आम’ का नाश करके जाठराग्नि एवं धात्वाग्नियों को दीप्त करके रोग को निर्मूल कर देता है।
अमृत मंजरी वटी के दुष्प्रभाव और सावधानी : Amrit Manjari Vati Side Effects in Hindi
- अमृत मंजरी वटी लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- अमृम मंजरी एक प्रभावशाली औषधि है, इस में वछनाग एक विषाक्त द्रव्य है परन्तु शुद्ध हो जाने पर यह अमृत तुल्य कार्य करता है। हिंगुल भी खनिज धातु है, शुद्ध हो जाने पर यह ‘सर्वामयहर’ हो जाता है अत: निश्चिंत होकर इसका प्रयोग करें। परन्तु मात्रा का ध्यान अवश्य रखें, एक गोली से प्रारम्भ करके दो गोली तक दें, इससे अधिक कदापि नहीं, रसौषधियों एवं वछनाग युक्त औषधियों में लिए जाने वाले पूर्वोपाय भी अवश्य लेने चाहिए।
- कई रोगियों को औषधि सेवन के उपरान्त शरीर पर चीटियाँ चलने जैसी अनुभूति होती है। इस से डरने की आवश्यकता नहीं है, यदि अत्यधिक हो तो औषधि की मात्रा कम कर देनी चाहिए।