Last Updated on February 19, 2020 by admin
अपामार्ग क्या है ? : Apamarg in Hindi
‘अपां दोषान् मार्जयति संशोधयति इति अपामार्गः।’
अर्थात् जो दोषों का संशोधन करे उसे अपामार्ग कहते हैं। बढ़ी हुई भूख को शान्त करने, दन्त रोगों को दूर करने तथा अन्य कई रोगों का नाश करने वाली यह दिव्य औषधि पूरे भारत के सभी प्रान्तों में उत्पन्न होती है। घास के साथ अन्य पौधों की तरह, खेतों की बागड़ के पास, रास्तों के किनारों, झाड़ियों में अपामार्ग के पौधे सरलता से देखे जा सकते हैं।
अपामार्ग का पौधा वर्षा ऋतु में पैदा होता है, शीतकाल में फलता-फूलता है और ग्रीष्मकाल में इसके फल पकने के साथ पूरा पौधा सूख जाता है। इसके पत्ते अण्डाकार, एक से पांच इंच तक लम्बे और रोमयुक्त होते हैं।
इसके फल जौ के आकार के, कठोर और कांटे जैसे तीखे होते हैं जो कपड़ों से चिपक जाते हैं और हाथ में गड़ जाते हैं। इसकी पुष्पमंजरी 10-12 इंच लम्बी, आगे को झुकी हुई, कठोर और नुकीली होती है। अपामार्ग का क्षार भी बनाया जाता है जिसमें विशेषतः पोटाश पाया जाता है।
अपामार्ग पौधे के प्रकार :
यह सफ़ेद और लाल दो प्रकार का होता है । औषधीय उपयोग के लिए लाल की अपेक्षा सफ़ेद अपामार्ग अधिक उपयोगी होता है। सफ़ेद अपामार्ग के डण्ठल व पत्ते हरे व भूरे सफ़ेद रंग के होते हैं। लाल अपामार्ग के डण्ठल लाल रंग के होते हैं तथा पत्तों पर भी लाल रंग के छींटे होते हैं।
अलग-अलग भाषाओं में अपामार्ग के नाम : Name of Apamarg in Different Languages
Apamarg in –
- संस्कृत – मयूरक, खरमंजरी, मर्कटी, अपामार्ग ।
- हिन्दी – आंधीझाड़ा, चिरचिटा, चिचड़ा, लटजीरा ।
- मराठी – अधाड़ा, अधोड़ा।
- गुजराती – अघेड़ो |
- बंगला – अपांग ।
- तेलुगु – दुच्चीणिके ।
- कन्नड़ – उत्तरेन ।
- तामिल – नाजुरिवि ।
- मलयालम – कटलती।
- अरबी – चिचिरा अल्कुम ।
- फारसी – खारे वाजगून।
- इंगलिश – प्रिकली चेफ फ्लावर (Prickly chaff | Flower) ।
- लैटिन– एचिरंथस एसपेरा(Achyranthes aspera)
अपामार्ग के औषधीय गुण : Apamarg ke Gun in Hindi
- अपामार्ग दस्तावर, तीक्ष्ण तथा अग्नि प्रदीप्त करने वाला है।
- यह कड़वा, चरपरा, पाचक,रुचिकारक और वमन को नष्ट करता है ।
- अपामार्ग कफ, मेद, वात, हृदयरोग, अफारा, बवासीर, खुजली, शूल,उदररोग तथा अपची को नष्ट करने वाला है।
- यह उष्णवीर्य होता है।
अपामार्ग के उपयोग : Uses of Apamarg in Hindi
अलग-अलग हेतु से इसके जड़, बीज, पत्ते आदि अंग और पंचांग (पूरा पौधा) ही उपयोग में लाया जाता है। यह जड़ी इतनी उपयोगी है कि आयुर्वेद और अथर्ववेद में इसकी प्रशंसा करते हुए इसे दिव्य औषधि बताया गया है।
क्षुधामारं तृषामारं मगोतामनपत्यताम् ।
अपामार्ग त्वया वयं सर्व तदपमृज्यहे’ ।।
- अथर्ववेद के अनुसार इसे अत्यन्त भूख लगने (भस्मक रोग), अधिक प्यास लगने, इन्द्रियों की निर्बलता और सन्तान हीनता को दूर करने वाला बताया है।
- यूनानी मत के अनुसार यह शीतल, रूखा, कामोद्दीपक, हर्षोत्पादक, वीर्यवर्द्धक, संकोचक, मूत्रल और धातु पुष्ट करने वाला पौधा है।
- आधुनिक शोधकर्ताओं ने इसके और भी गुण खोज निकाले हैं। कर्नल चोपड़ा के अनुसार बिच्छु, ततैया जैसे जहरीले जन्तुओं के काटने पर इस पौधे के फूल के डण्ठल और बीजों का चूर्ण लगाने से अत्यन्त लाभ होता है।
- इस पौधे का काढ़ा गुर्दे की पथरी और पूरे शरीर पर सूजन आ जाने (सर्वांग शोथ -Anasarca) में बहुत उपयोगी सिद्ध होता है।
- पुराने जमाने में, जब आपरेशन द्वारा प्रसव कराने की वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं थी तब प्रसव को आसान और पीड़ा मुक्त कराने के लिए जिन जड़ी-बूटियों के प्रयोग किये जाते थे उन्हीं में से एक अपामार्ग है।
- इण्डियन मेटेरिया मेडिका के लेखक डॉ. नाडकर्णी के मतानुसार अपामार्ग का काढ़ा उत्तम मूत्रल (Diuretic) होता है।
- गुर्दो के कारण होने वाले जलोदर (Ascites) में इसका प्रयोग लाभदायक पाया गया है। इसके पत्तो का रस उदरशूल और आंतों के विकारों में लाभकारी होता है ।
- इसके बीजों को दूध में डालकर बनाई हुई खीर मस्तक के रोगों के लिए उत्तम औषधि है।
- डॉ. देसाई के अनुसार अपामार्ग कड़वा, कसैला, तीक्ष्ण, दीपन, अम्लता (एसीडिटी) नष्ट करने वाला, रक्तवर्द्धक, पथरी को गलाने वाला, मूत्रल, मूत्र की अम्लता को नष्ट करने वाला, पसीना लाने वाला, कफनाशक और पित्तसारक आदि गुणों से युक्त पाया गया है।
- शरीर के अन्दर इसकी क्रिया बहुत शीघ्रता से होती है तथा दूसरी दवाओं के साथ इसका उपयोग करने पर यह बहुत अच्छा काम करता है।
- अपामार्ग क्षार के फायदे – अपामार्ग का क्षार बहुत गुणकारी और उपयोगी सिद्ध होता है। यह रक्त में बड़ी तेज़ी से मिल जाता है तथा रक्त के पोषक-कणों में वृद्धि करता है। यह क्षार शरीर के भिन्न-भिन्न मार्गों से बाहर निकलता है और जिन मार्गों से यह निकलता है उन मार्गों की कार्य प्रणाली को सुधार देता है। इसका अधिक भाग मूत्रमार्ग से और शेष भाग थोड़ा-थोड़ा त्वचा, फेफड़े, आमाशय और यकृत के द्वारा बाहर निकलता है । यह क्षार नवीन और जीर्ण आमवात, क्षारयुक्त सन्धिशोथ, मूत्रावरोध, पथरी, मूत्र अम्लता आदि को दूर करने वाला होता है।
- फेफड़ो और श्वास नलिकाओं पर भी अपामार्ग का उत्तम प्रभाव होता है।
- गाढ़े व जमे हुए कफ, श्वास नलिका के नवीन या जीर्ण शोथ (Acute or Chronic Bronchitis) आदि में इसका प्रयोग बहुत लाभकारी होता है। यह जमे हुए गाढ़े कफ को पतला कर बाहर निकाल देता है। पुराने कफ रोगों में अपामार्ग एक दिव्य औषधि सिद्ध होता है।
अपामार्ग का रासायनिक विश्लेषण : Apamarg Chemical Constituents
अपामार्ग की राख में 13% चूना, 4% लोहा, 30% क्षार, 7% शोराक्षार, 2% नमक, 2% गन्धक और 3% मज्जा तन्तुओं के उपयुक्त क्षार रहते हैं।
सेवन की मात्रा :
इसकी सामान्य मात्रा जड़ या बीज 5 ग्राम, राख एक ग्राम और क्षार 2 से 4 रत्ती (एक चौथाई से आधा ग्राम) होती है।
इतने विवरण से यह बात तो सिद्ध होती ही है कि प्राचीन और आधुनिक सभी चिकित्सा शास्त्रों से जुड़े वैज्ञानिक और चिकित्सकों ने इस वनस्पति को अत्यन्त गुणकारी और उपयोगी औषधि माना है। आज इसके जैसी कई जड़ी बूटियों पर और अनुसंधान होने की आवश्यकता है ताकि इन वनस्पतियों में छुपे हुए प्रकृति प्रदत्त और भी गुणों का लाभ जनमानस को मिल सके। आइए अब इसके कुछ औषधीय प्रयोगों पर चर्चा करते हैं
अपामार्ग के फायदे : Benefits of Apamarg in Hindi
विष दंश में अपामार्ग के लाभ
बिच्छु के काटने के अलावा किसी जानवर जैसे पागल कुत्ते या जहरीले कीड़े जैसे ततैया आदि के काटने पर दंश के स्थान पर इसके पत्तों का ताज़ा रस लगाने से अत्यन्त लाभ होता है। देश के स्थान पर इसके पत्तों की पिसी हुई लुगदी बांध देने से अव्वल तो सूजन आती नहीं और यदि आ चुकी हो तो चली जाती है तथा काटे गये स्थान पर घाव उत्पन्न नहीं हो पाता है। यदि बिच्छु का जहर चढ़ गया हो तो इस बाहरी प्रयोग के साथसाथ आन्तरिक प्रयोग भी करना चाहिए। इसकी जड़ को महीन पीस कर दस गुने पानी में घोल लें और 2-2 चम्मच पानी तब तक पीड़ित व्यक्ति को पिलाएं जब तक पानी कड़वा न लगने लगे। पानी तभी कड़वा लगेगा जब जहर नष्ट हो जाएगा।
दंतरोग में अपामार्ग का उपयोग फायदेमंद
अपामार्ग की दातून को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है तथा इसकी दातून प्रतिदिन करने से पायरिया जैसा रोग भी ठीक हो जाता है। इसकी ताज़ी दातून करने से दांत मोती की तरह चमकने लगते हैं तथा दांतों का दर्द, दांतों का हिलना, मसूढ़ों की कमज़ोरी, दांतों में सड़न, मुंह की दुर्गन्ध आदि समस्याओं से निजात मिल जाती है।
पथरी और वृक्कशूल में लाभकारी है अपामार्ग का सेवन
गुर्दे के दर्द (वृक्कशूल) व पथरी को नष्ट करने के लिए इस पौधे की ताज़ी जड़ 5 ग्राम लेकर पानी के साथ कूट पीस कर छान कर प्रतिदिन पीने से पथरी कट-कट कर मूत्र मार्ग से निकल जाती है और वृक्क शूल दूर होता है।
खूनी बवासीर ठीक करे अपामार्ग का प्रयोग
- इसके बीजों का चूर्ण 3 ग्राम मात्रा में सुबह-शाम चावल की धोवन के साथ अथवा अपामार्ग के 6 पत्ते और 5 काली मिर्च के दाने जल के साथ पीस छान कर सुबहशाम सेवन करने से बवासीर से खून गिरना बन्द हो जाता है।
- इसकी जड़, पत्ते व बीज सुखा कर, कूट पीस कर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में समान मात्रा में मिश्री मिला लें। इस मिश्रण की 5-5 ग्राम मात्रा सुबह शाम पानी के साथ नियमित रूप से लेने से खूनी बवासीर पूरी तरह नष्ट हो जाती है।
मलेरिया से बचाव में अपामार्ग का उपयोग
अपामार्ग के पत्ते और काली मिर्च बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और फिर इसमें थोड़ा सा गुड़ मिलाकर 2-2 रत्ती (250 मि. ग्रा.) की गोलियां बना कर रख लें। जब मलेरिया फैल रहा हो उन दिनों में एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं हो पाता है। इन गोलियों को 2-4 दिन लेना ही पर्याप्त होता है।
यौन दुर्बलता व शारीरिक कमज़ोरी में अपामार्ग के प्रयोग से लाभ
- इसकी जड़ का महीन चूर्ण 5 ग्राम तथा 2 रत्ती बंगभस्म थोड़े से शहद में मिलाकर चाटने से यौनांग की शिथिलता और दुर्बलता दूर होती है। पूर्ण लाभ होने तक दिन में एक बार शाम को सेवन करना चाहिए।
- अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पीस लें। एक कप दूध के साथ 2 चम्मच मात्रा में इस मिश्रण का सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।
श्वास और खांसी में अपामार्ग से फायदे
- इसके सूखे पत्तों को चिलम या हुक्के में रख कर धूम्रपान करने से श्वास रोग (दमा) और खांसी में आराम होता है।
- दूसरा उपाय यह है कि पूरे पौधे को जड़ समेत उखाड़ कर सुखा लें और जलाकर भस्म कर लें। इस राख की 100 ग्राम मात्रा और सेन्धानमक, सज्जीखार, यवक्षार और नौसादर 20-20 ग्राम, पिसी हल्दी 30 ग्राम और अजवायन 100 ग्राम-सबको कूट पीस कर महीन चूर्ण कर लें। सुबह- शाम 2-2 ग्राम चूर्ण, शहद में मिलाकर लेने से कफजन्य खांसी ठीक होती है।
- इसी प्रकार अपामार्ग की जड़ का चूर्ण 5 ग्राम व 7 काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पानी के साथ सुबह-शाम फांकने से श्वास रोग चला जाता है। यह प्रयोग 7 दिन तक, सिर्फ़ गेंहू की रोटी और छिलके वाली मूंग की दाल खा कर करना चाहिए। अन्य व्यंजन, अचार, चटनी, खटाई, तले पदार्थ आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। प्रतिदिन छाती व गले पर शुद्ध घी की मालिश करना चाहिए और कभी उलटी हो जाए तो घबराना नहीं चाहिए।
पुराने घाव ठीक करने में अपामार्ग का उपयोग लाभदायक
घाव जब पुराना और दूषित अर्थात् संक्रमण युक्त हो जाता है तब वह नासूर बन जाता है। अपामार्ग के पत्तों का रस नासूर पर प्रतिदिन लगाने से कुछ ही दिनों में वह ठीक हो जाता है। जिन व्रणों यानी घावों के दूषित होने की सम्भावना हो उन पर इस प्रयोग को करने से घाव में संक्रमण नहीं होता यानी वह पकता नहीं है।
भस्मक रोग में फायदेमंद अपामार्ग का औषधीय गुण
इस रोग में भूख बहुत लगती है तथा खाया हुआ अन्न जल्दी हजम हो जाने से फिर से भूख लगने लगती है फिर भी शरीर दुबला पतला ही बना रहता है। अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 5 ग्राम मात्रा में, सुबह-शाम पानी के साथ एक सप्ताह तक लेने से यह रोग मिट जाता है।
कान दर्द व बहरापन में अपामार्ग से फायदा
इसकी ताज़ी जड़ पानी से धोकर साफ़ कर लें और कूट कर रस निकाल लें। जितना रस निकले उससे आधी मात्रा में तिल का तेल मिलाकर आग पर गर्म करें। जब सिर्फ़ तैल रह जाए तो छान कर शीशी में भर लें। इस तैल की 2-2 बूंद रोज एक बार कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है और किसी-किसी का बहरापन भी दूर हो जाता है।
प्रसव विलम्ब में अपामार्ग का उपयोग लाभप्रद
प्रसवकाल आने से पहले अपामार्ग का पौधा खोज कर, जब रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो तब अपामार्ग का पौधा किसी लकड़ी से, जड़ समेत खोद कर, लाकर घर में रख लेना चाहिए। यदि प्रसव के समय अधिक विलम्ब होता दिखाई दे तो इस पौधे की जड़ को मज़बूत डोर से बांध कर गर्भवती की कमर में बांध देना चाहिए। इससे प्रसव शीघ्र ही हो जाता है किन्तु प्रसव होते ही इस जड़ को हटा देना अत्यन्त आवश्यक होता है। इसकी जड़ को पीस कर इसका लेप, नाभि और इससे नीचे के क्षेत्र पर, करने से भी प्रसव जल्दी हो जाता है।
सिर दर्द मिटाता है अपामार्ग
इसकी जड़ के लेप को माथे पर लगाने से सिर दर्द में आराम होता है।
साइनुसाइटिस, माइग्रेन तथा मस्तक में कफ जमा होने से उत्पन्न जकड़न आदि के कारण होने वाले सिर दर्द में इसके बीजों के महीन चूर्ण को सूंघने से सिर दर्द में आराम होता है।
नेत्र रोग में अपामार्ग का उपयोग लाभदायक
- धुंधला दिखाई देना, आंखों में दर्द व लालपन रहना, आंखों से पानी बहना आदि विकारों में इसकी स्वच्छ जड़ को साफ़ तांबे के बरतन में थोड़ा सा सेन्धानमक मिले हुए दही के पानी के साथ घिसकर अंजन करने से लाभ होता है।
- अपामार्ग की जड़ को गौमूत्र में घिसकर इसका अंजन करने तथा 10 ग्राम जड़ को रात्रि के भोजन उपरान्त चबाकर खा कर सो जाने से 4-5 दिन में रतौंधी (Night Blindness) में आराम हो जाता है।
खुजली में लाभकारी अपामार्ग
अपामार्ग के पंचांग (जड़,तना, पत्ते, फूल और फल) को पानी में उबाल कर काढ़ा तैयार करें। इससे नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों में खुजली दूर हो जाती है।
उदर विकार दूर करने में अपामार्ग फायदेमंद
- यदि उदर शूल हो तो इसके पंचांग की 20 ग्राम मात्रा को 400 ml जल में उबालें। जब यह 100ml रह जाए तब इसमें आधा ग्राम नौसादर चूर्ण तथा एक ग्राम काली मिर्च चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करें।
- पंचांग का 50 ml काढ़ा भोजन से पूर्व सेवन करने से पाचन रस में वृद्धि होकर शूल कम होता है।
- भोजन के 3 घण्टे बाद पंचांग का गर्म काढ़ा 50ml मात्रा में पीने से अम्लता कम होती है और यकृत पर लाभकारी प्रभाव पड़ता है जिससे पित्ताशय की पथरी और बवासीर में लाभ होता है।
सन्धिशोथ मिटाता है अपामार्ग
इसके 10-12 पत्तों को पीसकर गरम करके विकार ग्रस्त जोड़ कर बांधने से दर्द और सूजन में लाभ होता है।
अपामार्ग के दुष्प्रभाव : Apamarg ke Nuksan in Hindi
अपामार्ग उन व्यक्तियों के लिए सुरक्षित है जो इसका सेवन चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार करते हैं।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)
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