Last Updated on July 4, 2021 by admin
अर्क (आसव) बनाने की विधि :
बताई गई जड़ी-बूटियों या वस्तुओं को एक बड़े बरतन या घड़े आदि में गलाकर, उसके नीचे आग जलाकर भभके के द्वारा शराब की तरह अर्क चुआ लेते हैं और ढक्कन बंद बरतन में इकट्ठा करते जाते हैं , फिर चिकित्सक के द्वारा बताई मात्रा के अनुसार सेवन करते हैं। आसव जितने ज्यादा पुराने होते हैं, उतने ही ज्यादा गुणकारी होते जाते हैं।
आयुर्वेदिक काढ़ा (क्वाथ) बनाने की विधि :
सूखी अथवा ताजा वनस्पति या फल (छाल, पत्ते, वृंत) के वजन का आठ गुना पानी लेकर आग पर पकाना चाहिए। जब एक-चौथाई भाग शेष बचे तो छानकर बताए अनुसार शहद, चीनी, खाँड, मिश्री आदि डालकर हलका गरम ही पिलाना चाहिए। लेकिन काढ़ा धीमी आँच पर बिना ढके ही पकाना चाहिए।
आयुर्वेदिक गोली बनाने की विधि :
ताजा वनस्पति को पीसकर अथवा सूखी को खूब अच्छी तरह कूट-पीसकर पानी या किसी पतली चीज की सहायता से गीला करके गोली बना लेते हैं। फिर बताई गई मात्रा के अनुसार मुँह में रखकर चूसते हैं या गटक जाते हैं। लेकिन ये केवल एक वर्ष तक ही गुणकारी रहती हैं।
आयुर्वेदिक घी (घृत) बनाने की विधि :
जिन जड़ी-बूटियों या वनस्पतियों का घी बनाना है, उनको खूब घोंट-पीसकर चटनी जैसा बना लें। अलग से एक बरतन में उन जड़ी-बूटियों का काढ़ा भी बना लें। तीनों को–चटनी, काढ़ा और घी-धीमी आँच पर पका लें। जब पानी का अंश बिलकुल जल जाए और घी ही शेष रहे, तब सावधानीपूर्वक छानकर रख लें और चिकित्सक के बताए अनुसार प्रयोग करें।
आयुर्वेदिक चाय बनाने की विधि :
दी हुई वनस्पति को एक गिलास पानी में उबालें और फिर प्रयुक्त वस्तु को उसमें अच्छी तरह मथ दें। उबलते हुए जब आधा रह जाए तो उसमें कालीमिर्च, लौंग, इलायची आदि का चूर्ण या कुचलकर डालें, तत्पश्चात् छानें। तो स्वादानुसार चीनी, खाँड़, गुड़ आदि डाल सकते हैं।
आयुर्वेदिक चूर्ण (चूरन) बनाने की विधि :
बताई गई वस्तु (छाल, बीज, गुठली) को खूब बारीक पीसकर कपड़े में छान लें। फिर साफ बरतन में भरकर रखें। बताई गई मात्रा के अनुसार लेकर ताजा पानी, दूध अथवा शहद-जो भी बताया गया हो, के साथ लेना चाहिए। लेकिन यह एक वर्ष तक ही गुणकारी रहता है।
जुलाब :
जब मल साधारणत: बाहर न आकर अंदर ही सड़ने लगता है तो मल को शरीर से बाहर करने के लिए जुलाब दिया जाता है।
आयुर्वेदिक पुल्टिस (लूपड़ी) बनाने की विधि :
फोड़े को पकाने के लिए या दर्द दूर करने के लिए बताई गई जड़ी-बूटी या वनस्पति को खूब कुचलकर उसमें मैदा, हलदी तथा चिकनाई ( घी, तेल) अच्छी तरह मिलाकर, पकाकर लेही सदृश बना लेते हैं। इसे प्रायः रात्रि में ही बाँधते हैं। बाँधते समय लोई जैसी बनाकर उसके बीच में छेद बना लेते हैं, जिससे फोड़ा आदि फूटने पर पीप-मवाद बाहर आ सके।
आयुर्वेदिक फांट बनाने की विधि :
बताई गई जड़ी-बूटी या सब्जी, मसाले को कुचलकर गरम पानी में बारह घंटे तक भिगोना चाहिए। फिर छानकर ताजा-ताजा पीना चाहिए।
बफारा लेने की विधि :
बफारा यदि मुख-नासिका आदि के द्वारा लेना है तो बताई गई जड़ी-बूटी या वनस्पति को भगोने में पानी भरकर और ढककर खूब उबालना चाहिए। फिर सिर से कपड़ा ओढ़कर बरतन को नासिका की सीध में नीचे रखकर, धीरे-धीरे ढक्कन हटाकर साँस के साथ खींचना चाहिए और पसीना आने पर साफ कपड़े से पोंछते जाइए। यदि बफारा रोगी के पूरे शरीर को देना है तो बड़े बरतन में जड़ी-बूटी उबालकर रोगी की खाट के नीचे रखकर धीरे-धीरे ढक्कन हटाकर और आगे-पीछे खिसकाकर बफारा देना चाहिए।
आयुर्वेदिक भस्म (राख) बनाने की विधि :
बताई गई जड़ी-बूटी को किसी मिट्टी के बरतन में रखकर उस पर ढक्कन रखकर गीले आटे से उसका मुँह बंद कर देते हैं। फिर बरतन को उपलों की ढेरी के बीच रखकर जल जाने तक पकाते हैं। फिर इस भस्म को चिकित्सक के बताए अनुसार सेवन किया जाता है।
आयुर्वेदिक मलहम बनाने की विधि :
इसके लिए बताई गई जड़ी-बूटी या वनस्पति को बारीक कूट-पीसकर कपड़े में छान लेते हैं और फिर तेल, घी, चरबी, मोम अथवा बताई गई चिकनाई के साथ अच्छी तरह मिला लेते हैं। तैयार मलहम को उँगली या सलाई से प्रभावित स्थान (फोडा-फंसी) पर लगाते हैं।
मालिश की विधि :
बताई गई जड़ी-बूटी या वनस्पति या मसाले आदि के तेल को रोगग्रस्त स्थान पर हाथों में लेकर हथेली से धीरे-धीरे मालिश करनी चाहिए, जिससे तेल अंदर तक समा जाए।
आयुर्वेदिक लेप बनाने की विधि :
बताई गई जड़ी-बूटी या वनस्पति को खूब कूट-पीसकर चटनी जैसी बना लेते हैं। यदि पकाकर बनाना हो तो उतना ही पानी डालते हैं जितना जल जाने के बाद उचित रहे। फिर पीडित अंग पर लेप कर देते हैं और सूख जाने पर उसे उतारकर दूसरा लेप करते हैं।
आयुर्वेदिक शरबत बनाने की विधि :
सूखी जड़ी-बूटी या वनस्पति का यदि शरबत (सीरप) बनाना है तो पहले उसका काढ़ा बना लेते हैं, यदि ताजा जड़ी-बूटी है तो उसका स्वरस निकालकर, उसकी तीन गुनी खाँड़ मिलाकर तीन तार की चाशनी के सदृश बनने तक पकाएँ। साफ और ढक्कनदार बोतल में भरकर दो-तीन वर्ष तक रखकर प्रयोग कर सकते हैं।
स्वरस (निस्सार) बनाने की विधि :
बताई गई ताजा वनस्पति (छाल, पत्ते, बीज आदि) को खूब कुचलकर छान लेते हैं। फिर उस रस में निर्देशानुसार शहद, खाँड़, शक्कर आदि के साथ सेवन करते हैं।
आयुर्वेदिक हिम बनाने की विधि :
बताई गई वस्तु या जड़ी-बूटी आदि को उसके अनुपात के आठ गुना पानी में रात्रि को मिट्टी के बरतन में खुले में यानी ओस में रखें, सुबह खूब मसलकर छान लें।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)