Last Updated on June 25, 2024 by admin
बावची क्या है ? :
बावची एक वनस्पति का नाम है । बावची का पौधा 2-4 फुट की ऊंचाई वाला होता है जिसकी उत्पत्ति समस्त भारत में, विशेष कर राजस्थान और पंजाब में होती है। वर्षाकाल में इसमें फूल आते हैं और नवम्बर दिसम्बर में फल पकते हैं। इसके बीज और बीजों के तैल को उपयोग में लिया जाता है। इसकी फलियां पकने पर काली पड़ जाती हैं और फलियों से काले बीज निकलते हैं। इन्हें ही बाकुची बीज कहते हैं।
अलग-अलग भाषाओं में इसके नाम :
- संस्कृत- बाकुची, बावची।
- हिन्दी- बावची |
- मराठी- बावची।
- गुजराती- बावची।
- बंगला- हाकुच ।
- तैलुगु- भावचि।
- कन्नड़- बाहुचिगे।
- तामिल- कर्पोकरिशि।
- फ़ारसी- बाबकुचि ।
- लैटिन- सोरेलिया कोरिलीफोलिया (Psoralea Coryli Folia) |
- बावची का अंग्रेजी नाम सोरेलिया सीड (Psoralea seed) है ।
आयुर्वेदिक के मतानुसार बकुची (बावची) के औषधीय गुण :
- बाकुची मधुर, कड़वी, पाक में तिक्त, कटु, रसायन है।
- विष्टम्भनाशक, शीतल, रुचिकारी है।
- यह दस्तावर, रूखी, हृदय की हितकारी है।
- यह कफ रक्त पित्त, श्वास, कोढ़, प्रमेह, ज्वर को दूर करती है।
- यह कृमि को नष्ट करने वाली है।
- इसका फल पित्तकारक, केश तथा त्वचा के लिए हितकारी है।
- यह चरपरा और कुष्ठ, कफ, वात, वमन, श्वास, खांसी को दूर करती है।
- यह शोथ, आम और पाण्डु रोग का विनाशक है।
रासायनिक संघटन :
• बावची का तेल – इसमें एक उड़नशील तैल 0.05% और एक भूरा स्थिर तैल 10% पाया जाता है।
• इसके अतिरिक्त Bakuchiol नामक एक फैनोल, कुमारिन यौगिक psoralen, isopsoralen, Psorelidin, isopsoralidin 3173 Corylifolin पाये जाते हैं।
• बीजों का स्थिर तैल गाढ़ा तथा तीता होता है और रखने पर सोरेलिन जम जाता है।
बकुची (बावची) के फायदे व उपयोग :
1. बावची का उपयोग-
इस वनस्पति के बीज और बीज के तैल को उपयोग में लिया जाता है। इसका तैल सफ़ेद दागों पर लगाने से दाग़ मिटते हैं। इस तेल का उपयोग, श्वेत कुष्ठ की चिकित्सा में, प्राचीन काल से किया जाता रहा है।
महर्षि चरक ने चरक संहिता में बताया है कि चार भाग बावची के बीज और एक भाग तपकिया हरताल ले कर, गोमूत्र के साथ पीस कर सफ़ेद दाग़ पर लेप करने से थोडे समय में दाग मिट जाते हैं। लाभ न होने तक यह उपाय करते रहना चाहिए। सफ़ेद दाग़ दूर करने में गुणकारी सिद्ध होने वाले कुछ घरेलू नुस्खे प्रस्तुत हैं।
2. श्वित्रारी लेप –
बावची 200 ग्राम, तपकिया हरताल 40 ग्राम, मैनसिल, सफ़ेद चिरमी के बीज और चित्रक मूल तीनों 6-6 ग्राम-सबको मिला कर गो मूत्र में डाल कर तीन दिन खरल करके एक मोटी बत्ती बना लें। इस बत्ती को रोज़ाना, गो मूत्र के साथ घिस कर सफ़ेद दागों पर लेप करने से, कुछ दिनों में सफ़ेद दाग़ मिटने लगते हैं और त्वचा का स्वाभाविक रंग लौट आता है। लेप लगाने से पहले सफ़ेद दागों को साफ़ पानी से धो कर कपड़े से पोंछ कर साफ़ करें फिर मोटा गाढ़ा लेप लगाएं और धूप में बैठ कर लेप सुखाएं।
3. दूसरा नुस्खा –
बावची 200 ग्राम, आंवला 40 ग्राम और हरताल 20 ग्राम- तीनों मिला कर उपर्युक्त विधि से 3 दिन तक गो मूत्र में डाल कर घुटाई करके मोटी बत्ती बना लें। इस बत्ती को गोमूत्र या नींबू के रस में घिस कर, सफ़ेद दागों को साफ़ पानी से धो साफ़ करके पोंछ कर यह लेप लगाने से धीरे-धीरे सफ़ेद दाग मिट जाते हैं। यह लेप ऊपर लिखे श्वित्रारी लेप की अपेक्षा सौम्य है इसीलिए बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
यह लेप लगाने के साथ ‘श्वित्रीना वटी’ की 2-2 गोली, पानी के साथ सुबह शाम सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है। खटाई, गरम मसाला और मिर्च मसालों का सेवन बन्द रखें।
बकुची (बावची) के अन्य घरेलू नुस्खे :
1. फोड़े फुंसी –
फोड़े फुसियां श्वित्र यानी श्वेत कुष्ठ की चिकित्सा के अलावा अन्य त्वचा रोगों जैसे कण्डू (खुजली), पामा, त्वचा की खुश्की, छोटी छोटी फुसियां, दाद आदि पर भी बावची का प्रयोग गुणकारी सिद्ध होता है। बावची को कूट कर या जल के साथ पीस कर शरीर पर उबटन की तरह पूरे शरीर पर मालिश करके स्नान करने और सुबह शाम ‘पंच निम्बादि वटी’ की 2-2 गोली पानी के साथ लेने से रोग दूर होता है।
2. बालों के कृमि –
सिर पर इसे लगा कर मालिश करके स्नान करने से जुएं, उनके अण्डे और बालों में होने वाले कृमि नष्ट हो जाते हैं जिससे बालों का झड़ना, उड़ना बन्द हो जाता है और बाल घने व लम्बे हो जाते हैं।
3. श्वेत कुष्ठ –
श्वेत कुष्ठ (ल्यूकोडरमा) बहुत पुराना हो तो रोगी को आहार में 2-3 महीने तक सिर्फ दूध दें और । सूर्य की धूप में आधा घण्टे तक धूप स्नान कराएं ताकि शरीर से खूब पसीना निकले । इस प्रयोग के साथ बावची का चूर्ण आधा चम्मच, कुनकुने गरम पानी के साथ प्रातः खाली पेट सेवन करने से पुराना श्वेत कुष्ठ भी ठीक हो जाता है।
4. त्वचा रोग –
बावची के बीज और काले तिल मिला कर एकएक चम्मच सुबह शाम ठण्डे पानी के साथ एक वर्ष तक सेवन करने से श्वेत कुष्ठ और त्वचा रोगों का समूल नाश हो जाता है।
5. उदर कृमि –
बावची का उपयोग उदर कृमि नष्ट करने में सफल सिद्ध होता है। बावची के बीजों को मोटा-मोटा (जौ कुट) कूट कर चूर्ण कर लें। दस ग्राम चूर्ण 2 कप पानी में डाल कर उबालें। जब पानी आधा कप बचे तब उतार कर छान कर ठण्डा करके सोते समय इसमें एक बड़ा चम्मच भर शक्कर घोल कर पी जाएं। दूसरे दिन रात को सोते समय स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण एक बड़ा चम्मच भर पानी के साथ ले लें। सुबह मल के साथ मरे हुए कृमि निकल जाएंगे।
सफेद दाग में लाभकारी जड़ी बकुची (बावची) के उपाय :
☛ शुद्ध बावची चूर्ण एक ग्राम, आंवले या खैर की छाल के 100ml क्वाथ के साथ सेवन करने से सफ़ेद दाग़ नष्ट हो जाते हैं।
☛ बावची, कलौंजी और धतूरे के बीज समभाग लेकर आक के पत्तों के रस में पीसकर सफेद दागों पर लगाने से लाभ होता है।
☛ बावची, इमली, सुहागा और अंजीर की जड़ की छाल समभाग लेकर जल में पीस कर सफेद दागों पर लेप करने से लाभ होता है।
☛ बावची, पवांड और गेरू समभाग लेकर कूट पीस कर अदरक के रस में खरल कर सफेद दागों पर लगा कर धूप सेकने से सफ़ेद दाग नष्ट हो जाते हैं।
☛ बावची, अजमोद, पवांड तथा कमल गट्टा समान भाग लेकर कूट पीस कर शहद मिलाकर गोलियां बना लें। एक से दो गोली सुबह-शाम अंजीर की जड़ की छाल के क्वाथ के साथ सेवन करने से सफेद दाग का रोग धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है।
☛ शुद्ध बावची 1 ग्राम तथा काले तिल 3 ग्राम ले कर 2 चम्मच शहद में मिलाकर सुबह शाम सेवन करने से भी लाभ होता है।
☛ बावची 5 ग्राम और केसर 1 ग्राम लेकर दोनों को कूट पीसकर गोमूत्र में खरल कर गोली बना लें। इस गोली को जल में घिस कर लगाने से सफ़ेद दाग में लाभ होता है।
☛ बावची के चूर्ण को अदरक के रस में घिसकर लेप करने से भी लाभ होता है।
☛ बावची का तैल 10 बूंद बताशे में डाल कर प्रतिदिन कुछ दिनों तक सेवन करने से सफेद दाग में लाभ होता है।
☛ बावची को गोमूत्र में भिगो कर रखें तथा 3-3 दिन बाद गोमूत्र बदलते रहें, इस तरह कम से कम 7 बार करने के बाद उसको छाया में सुखा कर पीस कर रखें। इसमें से 1-1 ग्राम सुबह-शाम ताज़े पानी से भोजन से एक घण्टा पहले सेवन करने से सफेद दाग में निश्चित रूप से लाभ होता है।
बकुची (बावची) के नुकसान :
- बावची को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- बावची लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।