Last Updated on June 22, 2020 by admin
कब पड़ती है बच्चेदानी या गर्भाशय निकलवाने की जरूरत :
प्रौढ़ावस्था तक पहुंचते-पहुंचते प्रायः महिलाएं गर्भाशय के कुछ विकारों से ग्रस्त हो जाती हैं जिनमें रक्तप्रदर, गर्भाशय शोथ, गर्भाशय वृद्धि, गर्भाशय भ्रंश, गर्भाशय या गर्भाशय ग्रीवा पर छाले होना, गर्भाशय में गांठ (Tumour) होना या तन्तु अंकुर (Fibroid) या सौत्रमांसाबुर्द (Fibromyoma) होना आदि विकार उल्लेखनीय हैं। इन विकारों को यदि औषधि-प्रयोग से दूर कर दिया जाए तब तो ठीक अन्यथा लम्बे समय तक यदि इनमें से कोई विकार बना ही रहे, इलाज करने पर भी ठीक होता ही न हो तो प्रायः कैंसर हो जाने का खतरा रहता है।
जब तक जांच में कैंसर का होना न पाया जाए तब तक दवाइयों के प्रयोग से बीमारी दूर करने की कोशिश जारी रखी जा सकती है लेकिन जांच में अगर कैंसर होना पाया जाए तो फिर तत्काल आपरेशन करके गर्भाशय निकाल देने के सिवा कोई चारा नहीं रहता। इस विषय में आम तौर पर स्त्री-पुरुषों को सही जानकारी नहीं होती कि ऐसे किसी विकार के होने पर क्या करना चाहिए। जहां तक ऑपरेशन करने न करने का प्रश्न है तो इसका निर्णय करना तो लेडी डॉक्टर का ही काम हो सकता है पर ऑपरेशन का नाम सुन कर प्रायः रुग्ण महिला के प्राण सूख जाते हैं और इसी डर से ज्यादातर महिलाएं रोग को छिपाए रखती हैं या मामले को टालती रहती हैं।
इस विषय में वस्तुस्थिति और हितकारी कार्यवाही क्या हो सकती है आइये जाने सुप्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं सिद्ध हस्त लेडी सर्जन डॉ. (श्रीमती) शैला त्यागी जी से –
प्रश्न – कृपया यह बताएं कि किसी महिला का गर्भाशय, ऑपरेशन करके, निकाल देना कब ज़रूरी हो जाता है ?
डॉ. (श्रीमती) शैला त्यागी – आम तौर पर यह देखने में आया है कि महिलाओं के मन में इस ऑपरेशन के नाम से ही भय उत्पन्न हो जाता है और वे किसी तरह इसे टालना पसन्द करती हैं। इसका कारण यह होता है कि प्रायः महिलाओं को इस विषय में सही-सही जानकारी नहीं होती और वे तरह-तरह की ग़लतफ़हमियों में फंसी रहती हैं लेकिन वे यह नहीं जानतीं कि कभी-कभी इसका परिणाम खतरनाक भी हो सकता है। जहां तक हो सकता है वहां तक कोशिश तो यही की जाती है कि दवाइयों का सेवन करवा कर बीमारी को दूर कर दिया जाए पर कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं जिनको दूर करने के लिए ऑपरेशन करना ही एक मात्र रास्ता रह जाता है। इन स्थितियों को जान कर यह समझा जा सकता है कि गर्भाशय का ऑपरेशन करना ज़रूरी है या नहीं।
प्रश्न – ऐसी स्थितियों पर प्रकाश डालें।
डॉ. (श्रीमती) शैला त्यागी – गर्भाशय सम्बन्धी कोई भी विकार हो तो तुरन्त लेडी डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए ताकि विकार की सही जानकारी मिल सके और वक्त रहते ही मिल सके वरना कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जो विकार थोड़े से इलाज से ठीक हो सकता था वह बढ़ी हुई स्टेज में पहुंच कर कठिन हो जाता है और कभी-कभी लाइलाज भी। अगर ऑपरेशन करना ही हुआ तो देर करके, शरीर को कमज़ोर और बीमारी को ताक़तवर करके, करने से नुकसान के सिवा लाभ कुछ नहीं होता। जिन स्थितियों में ऑपरेशन करना ज़रूरी होता है उनकी जानकारी देती हूं।
१). गर्भाशय का खिसक जाना –
आपरेशन की एक स्थिति तब बनती है जब गर्भाशय अपने स्थान से हट कर नीचे की तरफ़ खिसक गया हो जिसे प्रोलेप्स ऑफ यूटेरस कहते हैं। अभी तक ऐसी कोई दवा खोजी नहीं जा सकी है जो खिसके हुए गर्भाशय को वापिस अपनी सही जगह पर पहुंचा दे। प्रोलेप्स ऑफ यूटेरस को गर्भाशय भ्रंश और प्रचलित बोलचाल की भाषा में शरीर बाहर निकलना कहते हैं। इस स्थिति को ठीक करने के लिए योनि-मार्ग से ऑपरेशन करके गर्भाशय निकाल दिया जाता है और ब्लेडर यानी मूत्राशय और रेक्टम यानी मलाशय के ढीलेपन को दूर करने के लिए टांके लगा दिये जाते हैं। इस ऑपरेशन को ‘वेजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी विथ पेरीनियल फ्लोर रिपेयर’ कहा जाता है।
२). गर्भाशय में गांठ हो जाना –
ऑपरेशन की दूसरी स्थिति तब बनती है जब गर्भाशय में फाइब्रोइड्स यानी गठानें उत्पन्न हो जाएं और उन्हें दवाओं से गलाया न जा सके, मिटाया न जा सके। मरीज़ को ज्यादा मात्रा में रक्तस्राव होना, जल्दी-जल्दी माहवारी होना, माहवारी अनियमित ढंग से होना, माहवारी के वक्त दर्द होना और कई-कई दिन तक रक्तस्राव होता रहना आदि उपद्रव इन फाइब्रोइड्स के ही कारण पैदा होते हैं और बने रहते हैं। इनमें से कोई एक उपद्रव भी हो सकता है या एक से ज्यादा भी हो सकते हैं। डॉक्टरी जांच से या सोनोग्राफ़ी करके इन गठानों की स्पष्ट जानकारी मिल जाती है।
इन गठानों को यदि दूर न किया जाए तो इन गठानों की संख्या बढ़ सकती है, इनका आकार बढ़ सकता है, मरीज़ को एनीमिया यानी खून की कमी हो सकती है और आगे जाकर गठान में कैंसर होने की सम्भावना बन सकती है। बाद में अगर मजबूरन ऑपरेशन करना भी पड़ा तो तब तक मरीज़ शरीर से कमज़ोर और एनीमिया से ग्रस्त हो चुकी हो सकती है जिससे उसे ब्लड देना ज़रूरी हो जाएगा। यदि समय रहते ही उचित जांच कर ली जाए और ज़रूरी होने पर ऑपरेशन कर दिया जाए तो यह मरीज के हक़ में फ़ायदेमन्द काम ही सिद्ध होगा।
३). माहवारी अनियमित व ज्यादा होना –
तीसरी स्थिति तब बनती है जब माहवारी अनियमित ढंग से होती हो और भारी मात्रा में ज्यादा दिन तक होती रहती हो और दवाइयों के सेवन से स्थिति में सुधार न होता हो । ऐसी स्थिति में यदि गर्भाशय में गठानें न हों तो D. & C. नामक छोटा ऑपरेशन करके जांच द्वारा यह पता लगाया जाता है कि कहीं कैंसर तो नहीं है। यदि ऐसा खतरा पाया जाए तो फिर ऑपरेशन करना ज़रूरी हो जाता है। मासिक धर्म अनियमित ढंग से होने की स्थिति हारमोन्स की गड़बड़ी होने पर भी बनती है यदि हारमोन्स वाली दवाइयां देने पर भी लाभ न होता हो या हारमोन्स वाली दवा सूट ही न होती हो, मरीज़ की उम्र 40-45 वर्ष से ज्यादा हो चुकी हो, मरीज़ हारमोन्स की दवा नियमित रूप से न ले पाती हो तो भी ऑपरेशन करके गर्भाशय को निकाल देना न सिर्फ़ ज़रूरी ही हो जाता है बल्कि मरीज़ के लिए सुखद और निरापद भी होता है।
४). गर्भाशय ग्रीवा पर छालों का होना –
चौथी स्थिति होती है सर्विक्स यानी गर्भाशय ग्रीवा पर छाले हो जाएं और ठीक होते ही न हों। ये छाले 45 वर्ष या इससे अधिक उम्र में हों, इनसे रक्त स्राव होता हो, ल्यूकोरिया यानी श्वेत प्रदर हो और योनि से बदबू आती हो, सहवास के समय रक्तस्राव होता हो, कई बार छालों का सेक हो चुका हो और फिर भी छाले ठीक न होते हों। इन सब उपद्रवों को दवा-इलाज से ठीक न किया जा सके तो ऑपरेशन करना ज़रूरी हो जाता है।
५). गर्भाशय में बार-बार सूजन जा होना –
पांचवीं स्थिति गर्भाशय पर बार-बार सूजन आने की स्थिति से बनती है। इस स्थिति में कमर और पेट के निचले हिस्से में दर्द रहना, सहवास के समय दर्द होना, सफ़ेद पानी यानी ल्यूकोरिया की शिकायत दूर न होना और माहवारी जल्दी-जल्दी होना आदि शिकायतें होती हैं। यदि वक्त रहते दवाइलाज से गर्भाशय की सूजन दूर कर ली जाए तो ऑपरेशन की ज़रूरत नहीं पड़ती।
६). अण्डाशय और डिम्बनलिकाओं में गांठों का बानना –
छठवीं स्थिति तब बनती है जब गर्भाशय के दोनों तरफ़ ओवरीज़ यानी अण्डाशय और फेलोपियन ट्यूब्स यानी डिम्बनलिकाओं में सूजन से गठानें बन जाएं। ये गठानें बढ़ जाती हैं तब दवाइयों से गलती नहीं या गर्भाशय से इस क़दर चिपक जाती हैं कि उनके साथ गर्भाशय भी निकालना अनिवार्य हो जाता है। इन तकलीफ़ों को दूर करने के लिए ऑपरेशन करना ज़रूरी हो जाता है। इस ऑपरेशन को ‘एब्डॉमनल हिस्टेरेक्टॉमी’ कहते हैं।
यहां एक बात खयाल में रखनी होती है कि अण्डाशय में गठानें होने पर ही अण्डाशय निकाले जाते हैं वरना सिर्फ़ गर्भाशय ही निकाला जाता है। अण्डाशय यदि न निकाला जाए तो शरीर में हारमोन्स की कमी नहीं हो पाती।
यह कुछ स्थितियां होती हैं जिनको यदि दवा इलाज से ठीक न किया जा सके तो फिर ऑपरेशन करना ज़रूरी हो जाता है ताकि मरीज़ को आगे कष्ट भोगने या अकाल मृत्यु का शिकार होने से बचाय जा सके।
प्रश्न – ऑपरेशन के बाद महिला का शरीर मोटापे से ग्रस्त हो जाता है, क्या यह सही है?
डॉ. (श्रीमती) शैला त्यागी – मोटापे का इस ऑपरेशन से कोई सम्बन्ध नहीं। ऑपरेशन के बाद मरीज़ निरोग और सुखी हो जाती है। ऐसे में यदि वह काम कम और आराम ज्यादा करे, खूब डट कर खाना खाए, पौष्टिक पदार्थों का सेवन करे तो मोटापा बढ़ेगा ही।
जिनके अण्डाशय निकाल देना पड़ता है उनको ऐसी गोली सेवन कराई जाती है जिससे शरीर में कोई कमी नहीं होने पाती। इस उपाय को ‘हारमोन रिप्लेसमेण्ट थ्योरी’ कहते हैं। इस सारे विवरण का सारांश यह है कि यदि लेडीडॉक्टर सारी जांच पड़ताल करके ऑपरेशन कराने की सलाह दे तो फिर विलम्ब नहीं करना चाहिए। बस, सामान्य पारिवारिक महिलाओं को इस विषय में इतना जान लेना काफ़ी रहेगा। इतनी जानकारी भी इसी उद्देश्य से दी है कि महिलाओं के मन में जो भय, आशंकाएं या ग़लतफ़हमियां उठा करती हैं वे दूर हो जाएं और वे निडर हो कर उचित कार्यवाही करें।