प्राकृतिक तरीकों से शरीर से टॉक्सिन्स और गंदगी को बाहर निकालने के उपाय

Last Updated on November 11, 2020 by admin

प्राचीन काल से आयुर्वेद संहिताओं में शोधन चिकित्सा का वर्णन किया है। शरीर द्वारा विषैले पदार्थों को बाहर निकालने की प्रकिया को विषहरण (detoxification) कहते हैं।

आयुर्वेद में शोधन चिकित्सा के अंतर्गत पंचकर्म चिकित्सा बताई गई है, जिसमें वमन, विरेचन, बस्ती, नस्य, रक्तमोक्षण जैसे कर्म किए जाते हैं। किंतु आज हम आहार द्वारा शरीर शुद्धि (detoxification) इस विषय पर प्रकाश डालेंगे। आहार द्वारा शरीर के अंदर से सफाई तो होती है, साथ ही उनसे मिलनेवाले पौष्टिक तत्त्व शरीर के लिए उपयोगी भी होते हैं। विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालकर शरीर को स्वस्थ बनाए रखना, यह आयुर्वेद का सिद्धांत है।

बॉडी डीटॉक्सिफिकेशन क्या है ? (What is Body Detoxification in Hindi)

डीटॉक्सिफिकेशन का अर्थ होता है शरीर व रक्त को शुद्ध करना, इससे यकृत में स्थित रक्त शुद्ध होता है और विषैले पदार्थों को भी शरीर से बाहर निकालने में मदद होती है। शरीर में गुर्दे, आँतों, फेफड़ों, लिम्फेटीक तंत्र, त्वचा इनके माध्यम से विषाक्त पदार्थ बाहर निकलता है और ये पदार्थ शरीर से बाहर नहीं निकाले गए तो उनका शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ने लगता है।

आयुर्वेद शास्त्र के दो प्रयोजन है, स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी व्यक्ति को रोगमुक्त करना।
‘स्वास्थ्यस्य स्वास्थ्य रक्षणम्’
आतुरस्य विकारप्रशमनम् च।।’

शोधन द्वारा त्वचा विकार, एलर्जी, मलबद्धता, मानसिक विकार, मासिक धर्म की समस्याएँ, अस्थि विकार इत्यादि का उपचार किया जा सकता है।

बॉडी डीटॉक्सिफिकेश किन्हें नहीं करना चाहिए ? :

बालक, वृद्ध, गर्भिणी, स्तनपान करानेवाली महिलाएँ तथा किसी बड़े रोग से ग्रसित व्यक्ति को डीटॉक्सिफिकेशन नहीं करना चाहिए।

बॉडी डीटॉक्सिफिकेशन करने से पूर्व :

शरीर को डीटॉक्सिफिकेशन करने के पूर्व उन चीज़ों को खाना बंद करें, जो शरीर में विषैले तत्त्व बनाते हैं जैसे – चाय, कॉफी, सिगरेट, शराब इत्यादि, साथ ही घर में उपयोग किए जानेवाले हाउसहोल्ड क्लीनर, व सौंदर्य उत्पादनों जैसे- क्लींज़र, शैम्पू, डियोड्रंट।

आयुर्वेद में वर्णित नित्य उपयोगी शरीर को अंदर से साफ करने वाले आहार :

उपयोगी शरीरशुद्धिकर आहार जो प्राकृतिक तरीकों से शरीर को करें अंदर से साफ –

1). हल्दी : शरीर को साफ रखें

हल्दी कटु, तिक्त रसात्मक और उष्ण है। रक्तशोधक, त्वकदोषहर, दीपन, विषघ्न, व्रणशोधक कर्म करनेवाली व यकृत रोगों में उपयोगी है। यह यकृत को डीटॉक्सिफाइ करने के लिए उत्तम द्रव्य है। व्यवहार में आँवला रस + मधु + हल्दी प्रमेह नाशक के रूप में उपयोगी है। त्वचा रोगों में हरिद्रा चूर्ण व गोमूत्र दिया जाता है। त्वचा रोगों में हरिद्राखण्ड एक प्रचलित कल्प है। साथ ही दूध में हल्दी मिलाकर पीना भी हितकर है।

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2). धनिया : शरीर से टॉक्सिन दूर करने में लाभप्रद

यह कषाय, तिक्त, कटु रस, उष्णवीर्य, अग्निदीपन, पाचन, कृमिघ्न, मूत्रल, त्रिदोषघ्न और दाहशामक कर्म करता है। धनिया की पत्तियाँ और बीज दोनों का उपयोग आहार में होता है। हरा धनिया एंटी सेप्टिक व एंटी फंगल है, इसमें लिवर को शुद्ध करनेवाले एन्ज़ाइम सामान्य रूप से बनते हैं। धनिया के बीजों से धान्यक हिम बनाया जाता है जो कि मूत्रजनन कर्म करता है। मूत्र प्रवृत्ति बढ़ाकर शरीर शुद्ध करता है व मूत्रदाह भी कम करता है।

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3). अजवाइन : शरीर से विषैले तत्व बाहर निकाले

यह लघु, कट, तिक्त रसात्मक, उष्णवीर्य है। अग्निदीपन, पाचक, कृमिघ्न, संक्रमण विरोधी है। दीपन पाचन होने के कारण अजीर्ण, मलबद्धता इत्यादि विकारों में उपयोगी है। कृमिरोग में भी उपयोगी है। इसका उपयोग दंतशूल में भी प्रयोग होता है। घरेलु उपयोग में भी अजवाइन और अजवाइन अर्क प्रचलित है।

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4). जीरा : शरीर की अंदर से सफाई करे

यह लघु, कटु रसात्मक है। पाचक, रक्तशोधक, वातानुलोमक, मूत्रावरोध को दूर करनेवाला है। अपचन, अग्निमांद्य, मूत्रदाह में उपयोगी है। बालकों में होनेवाले पचन विकारों में भी प्रयोग होता है। अग्निमांद्य व अजीर्ण में जीरा भुनकर मधु के साथ देते हैं।

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5). दालचीनी : बॉडी डिटॉक्स में उपयोगी

हम नित्य मसालों के रूप में दालचीनी का उपयोग आहार में करते हैं। यह उष्ण, वातानुलोमक, दीपन, पाचन, व्रणशोधक व व्रणरोपक है। उत्तम दीपन होने के कारण आमाशय रस की वृद्धि करके अन्न पचन करती है और वातानुलोमक भी करती है। साथ ही यह रक्त में स्थित श्वेतकणवर्धक होने के कारण शरीर में रोगप्रतिकारक शक्ति को बढाती है।

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6). सौंफ : शरीर से टॉक्सिन्स और गंदगी को बाहर निकालने में सहायक

यह लघु, मधुर, कटु, रसात्मक, शीतवीर्य है। दीपन, पाचन, वातानुलोमक, दाहशमन, मूत्रल है। इसका अर्क बच्चों के पाचन विकारों में आध्मान, शूल में देते हैं। आध्मान में इसके क्वाथ से बस्ती देने का भी वर्णन है। विरेचक, मूत्रल, मूत्रदाह को कम करता है। सौंफ का उपयोग घरों में छौंक लगाने के लिए तथा भोजनोपरांत खाने के लिए किया जाता है।

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7). मेथी : शरीर को करें अंदर से साफ

यह लघु, उष्ण, कटु रसात्मक है। अग्निदीपक, वातानुलोमक, पाचक, शोथघ्न कर्म करती है। व्यवहार में मेथी के पत्ते तथा बीज दोनों का उपयोग होता है। मेथी के पत्तों में आइरन प्रचुर मात्रा में होता है जो कि रक्त के लिए उपयोगी है। इसके बीजों से बनाए गए लड्डू प्रसूता को दिए जाते हैं, जिससे मलशुद्धि, आर्तव शुद्धि होकर भूख बढ़ती

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8). लहसुन : जहरीले तत्वों को बाहर निकालने में मददगार

यह उष्ण, दीपन, पाचन, स्वेदजनन, मूत्रल, एंटी सेप्टिक कर्म करनेवाली है। इसमें एंटी बैक्टेरियल गुण होने के कारण यह सारे टॉक्सिन पदार्थ बाहर निकालती है। इसमें पाया जानेवाला सल्फ्यूरिक तत्त्व एंटी ऑक्सिडंट का निर्माण करता है। यह राजयक्ष्मा (टी.बी.), फुफ्फुस विकार, वातरोग, उदर रोगों में उपयोगी है। हमें भोजन में लहसुन का उपयोग अवश्य करना चाहिए।

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9). अदरक : डीटॉक्सिफिकेशन में उपयोगी

लघु, उष्ण, कटु, रसात्मक होता है। दीपन,पाचन, वातानुलोमक, रक्तशोधक कर्म करती है। रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाकर पाचन तंत्र को बल देती है। अग्निमांद्य, अरुचि में भोजन के पूर्व अदरक व नमक खाते है।

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10). नींबू : शरीर के टॉक्सिन बाहर निकले

यह अम्ल रसात्मक, दीपन, पाचन, रक्तपित्त शामक, मूत्रजनन, तृष्णा निग्रहण कर्म करता है। नींबू में पाए जानेवाले विटामिन सी फ्री रेडिकल्स को खत्म करता है। गुनगुने पानी में नींबू निचोड़कर पीने से शरीर के टॉक्सिन बाहर निकल जाते हैं और इम्यून सिस्टम को भी बल मिलता है।

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11). आँवला : करे शरीर की आंतरिक सफाई

यह कषायरस, मधुररस, शीतवीर्य है। विटामिन सी तथा पेक्टिन बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है, साथ ही tennin, gallic acid इत्यादि भी होते हैं। यह अग्नि को प्रदीप्त करनेवाला, यकृत की क्रियाओं को ठीक करनेवाला, मूत्रल, रसायन (Rejuvenation) कर्म करनेवाला है। आँवले का रस विबंध मधुमेह में प्रयोग होता है। व्यवहार में च्यवनप्राशअवलेह, त्रिफला चूर्ण, आँवला कैंडी आदि प्रचलित है।

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12). हरीतकी/हर्रे : हानिकारक और विषैले तत्व बाहर निकले

यह कषाय रस, लघु है। दीपन, पाचन, कर्म करनेवाली, मलशोधक, आध्मान, अरुचि में उपयोगी है। हरीतकी श्रेष्ठ, मृदू विरेचक है। इसके सेवन से मलबद्धता दूर होकर शरीर शुद्धि होती है। शरीर की सभी क्रियाएँ सुधरती हैं। आयुर्वेद में गंधर्व हरीतकी, व्याघ्री हरीतकी, अगस्त्य हरीतकी इत्यादि योग प्रचलित है।

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13). अनार : शरीर के एक-एक अंग की सफाई करे

यह शीत, कृमिघ्न, अग्निदीपक, रुचिकर, रक्तशोधक है। घरों में अनार के फलों का रस का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद में दाडीमावलेह का प्रायः उपयोग किया जाता है।

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14). मधु / शहद : विषैले तत्व पेशाब के साथ बाहर निकाले

यह शीतल, मधुर, कषाय रसात्मक, लघु अग्निदीपक, सूक्ष्म स्रोतोगामी, स्रोतोशोधक, वर्णप्रसादक, लेखन, व्रणशोधक कर्म करता है। रक्तविकार, मेदोरोग, मलबद्ध, दाह, कृमिरोगनाशक है।

15). गोघृत : बॉडी डिटॉक्स में लाभदायक

मधुर, रसात्मक, शीत, त्रिदोषनाशक है। अग्निवर्धक, वीर्यवर्धक, ओजवर्धक, रसायन, कांतिवर्धक है। नियमित गोघृत का सेवन करने से जठराग्नि प्रदीप्त होकर पचन ठीक से होता है। शरीर में रूक्षता नाश होकर स्निग्धता आती है, जिससे त्वचा की कांति बढ़ती है। नेत्रों के लिए भी गोघृत उपयोगी है।
‘क्षीरघृताभ्यासो रसायननाम्’

अर्थात दूध व घी के नियमित सेवन से वह सभी धातुओं का पोषण करके रसायन के समान काम करता है। आयुर्वेद में पुराने घृत का विशेष महत्त्व बताया गया है। पुराणघृत का अर्थ एक वर्ष या उससे अधिक दिनों तक रखकर उपयोग किया जानेवाला घृत होता है।

शरीर से विषैले तत्व बाहर निकाले के लिए 10 पेय (10 Natural Detox Drink Recipes in Hindi)

डीटॉक्सिफिकेशन के लिए उपयोगी कुछ पेय –

1).उष्णोदक : पानी को उबालकर 1/2 या 1/4 करना या केवल उबालना उष्णोदक कहलाता है। इसके सेवन करने से कफ, वात, दोषनाशक जठराग्नि को प्रदीप्त करता है। मेद कम करता है तथा मूत्राशय का भी शोधन करता है।

2). हर्बल टी : इसमें तुलसी, लौंग, दालचीनी, इलायची, सौंठ, यष्टीमधु, लेमन ग्रास इत्यादि द्रव्य होते हैं जो कि एंटी ऑक्सिडंट होते हैं। ये लिवर को रोगमुक्त करते हैं। दिन में 2-3 कप ग्रीन टी पीने से मेटाबॉलिझम रेट बढ़कर शरीर शुद्धि के साथ ही वज़न भी कम कर सकते हैं।

3). धान्यक हिम : 1 भाग खड़ा धनिया, 6 भाग जल में रातभर भिगोकर रखें और प्रातः छानकर पीएँ। यह मूत्र विकार में अत्यंत उपयोगी है।

4). दालचीनी पेय : दालचीनी को रात में भिगोकर सुबह उसमें अदरक का एक छोटा टुकड़ा डालकर, इस पानी को पीएँ। इससे मेटाबॉलिझम रेट बढ़कर शरीर शुद्धि होती है।

5). नींबू और शहद : रोज़ प्रातःकाल गुनगुने जल में नींबू रस व मधु डालकर पीएँ, इससे सभी स्रोतसो की शुद्धि होती है।

6). धनिया पेय : रात में खड़ा धनिया, काली मिर्च, जीरा, बड़ी इलायची को 1/4 गिलास पानी में भिगोकर रखें। सुबह इसे उबालकर, छानकर पीएँ।

7). त्रिफला : त्रिफला चूर्ण गर्म पानी के साथ रात में सोने से पहले लें। इससे मलबद्धता दूर होती है या त्रिफला चूर्ण मधु व घृत मिलाकर भी ले सकते हैं।

8).हल्दी, नींबू और शहद : 1 चम्मच हल्दी को 1 कप पानी में डालकर उबालें। इसे ठंढा होने दें, फिर उसमें मधु व नींबू रस डालकर पीएँ।

9). एलोवेरा : 2 चम्मच एलोवेरा जूस 1 कप पानी में मिलाकर दिन में 1-2 बार सेवन करें।

10). हल्दी वाला दूध : हल्दी का दूध बनाकर पीने से अनेक कंठरोग, कफरोग दूर होते हैं।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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