बच्चों के सही पोषण के लिए बेहद जरूरी हैं ये बातें

Last Updated on February 17, 2022 by admin

शिशु तथा बाल पोषण के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश :

1). जिंदगी के शुरू के महीनों में आपका शिशु बड़ी तेजी से बढ़ता है। लेकिन दूसरे वर्ष में यह बढ़त थोड़ी धीमी पड़ जाती है और उसे भूख भी कम लगती है। यह भी हो सकता है कि किसी दिन उसे बहुत ज़्यादा भूख लगे और किसी दिन कम। इस अवधि के दौरान वह नकारवाद (Negativism) के दौर (15 महीने से 3 वर्ष) से भी गुजर सकता है – जब वह वही सब करना पसन्द करता है, जिसके लिए आप उसे मना करें। अगर वह अस्वस्थ है तो उसकी भूख पर और भी बुरा असर पड़ सकता है, हालाँकि अगर वह स्तनपान करता है, तो वह माँ का दूध पीने से मना नहीं करता।

2). इन सब बातों को ध्यान में रखते हए अपने बच्चे को खाने के लिए बाध्य न करें। लेकिन इसके बावजूद, दिन में कई बार उसे अलग-अलग तरह के आहार बनाकर देते रहने चाहिए। अगर वह गन्दगी फैलाता है, तो भी उसे अपने-आप खाने दीजिए। उसे चम्मच का प्रयोग करना भी सीखने दीजिए। आप बीच-बीच में उसे उसका चम्मच भरकर दे सकती हैं, या एक दूसरे चम्मच से उसे बीच-बीच में खिला सकती हैं। लेकिन उसे अपने खाने-पीने की आदतों को लेकर आत्म-निर्भर होने के लिए प्रोत्साहित करें। अगर कुछ दिनों के लिए वह पौष्टिक आहारों को देखकर मुँह बनाए तो चिन्तित न हों। बच्चों के अपने मूड होते हैं। कोई बच्चा एक खास तरह के आहार से मुँह मोड़ सकता है, लेकिन कुछ दिन बाद अपने-आप ही उसे फिर से खाना शुरू कर सकता है – बशर्ते कि उसके साथ जबरदस्ती न की जाए। स्तनपान दूसरे वर्ष में भी जारी रहना चाहिए, या तब तक जब तक आप और आपका बच्चा इससे खुश हों।

3). बच्चे को हमेशा बैठकर खाना चाहिए – पहले आपकी गोद में, और फिर अपने-आप बैठकर। उसे खाते समय घर में इधर-उधर भागने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।

4). मैं इस बात पर विश्वास नहीं करता कि बच्चे को तभी खिलाना चाहिए, जब वह अपने-आप माँगे।
कुछ बच्चे खेलने में इतने खो जाते हैं कि वे कभी भोजन की माँग नहीं करते, हालांकि भूख के कारण वे चिडचिडेपन का प्रदर्शन करने लगते हैं। बच्चों को नियमित समय पर खाने-पीने को देते रहना चाहिए। लेकिन अगर वे कम खाएँ या किसी अवसर पर बिल्कुल न खाएँ तो उन्हें बाध्य नहीं करना चाहिए।

5). मैं बच्चों को बहुत ज़्यादा दूध दिए जाने के पक्ष में नहीं हूँ। बच्चे को दिनभर में आधा किलो (500 मि.ली.) से ज़्यादा दूध न दें। आप इसका आधा या तीन-चौथाई दूध के रूप में और शेष दही, पनीर या मिल्क-पुडिंग जैसे दूध-उत्पादों के रूप में दे सकती हैं। जिन बच्चों को दूध पसंद नहीं है, उन्हें दूध से बनी चीजें खिलाई जा सकती हैं। अगर आपके बच्चे को दूध से बनी कोई भी चीज पसन्द नहीं है, तो चिन्तित न हों।

6). एक शोध से पता चला है कि विटामिन-बी का स्तर कम होता है, उनमें तर्कपूर्ण ढंग से सोचने, जटिल समस्याओं को सुलझाने और अमूर्त (abstract) विचारों का मंथन करने की कम क्षमता होती है। उनकी अल्प-कालिक (shortterm) स्मृति भी कमजोर होती है। इस अध्ययन के दौरान उन बच्चों में भी समस्याएँ पाई गई जिनमें इस विटामिन की गम्भीर कमी नहीं थी। इसके अलावा इस अध्ययन से यह भी पता चला है कि रक्त में विटामिन-बी12 की न्यूनता (deficiency) के दुष्परिणाम कई बार वर्षों बाद सामने आते हैं।

7). मै दूध में स्वाद बढ़ाने वाले तत्वों को मिलाने के पक्ष में नहीं हूँ। इसी तरह, मैं खिलाड़ियों की मदद से विज्ञापित किए जाने तथाकथिक पौष्टिक पैयों या टॉनिकों के प्रयोग की सलाह भी नहीं दूंगा। ये आपके बच्चे को बहुत कम लाभ पहुंचाते हैं। उल्टे, कुछ बच्चों को इन उत्पादों से एलर्जी की शिकायत हो सकती है, तो कुछ को इनकी स्वाद की इतनी लत लग सकती है कि वे सादा दूध कभी पी ही नहीं पाते। साथ ही बच्चे सामान्य आहारों में मौजद कई अन्य पौष्टिक तत्वों से भी वंचित रह जाते हैं। अगर आपका बच्चा सुबह उठकर सबसे पहले दूध पीना चाहता है, तो उसे ज़रूर दीजिए, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। उसे नाश्ते के बाद भी दूध दिया जा सकता है। इस तरह के मामलों में, कई माताएं सुबह बच्चे के उठने के बाद उसे सबसे पहले सादा पानी देती हैं। अगर इस आदत को जारी रखा जाए तो बाद की जिंदगी में यह बहुत लाभदायक साबित होती है।

8). व्यक्ति को सुबह उठते ही कुछ तरल मिल जाता है। अगर दिन भर में पर्याप्त तरल पदार्थों का सेवन न किया जा सके, तो कम-से-कम शरीर की कुछ ज़रूरतें तो पूरी हो जाती हैं। कुछ बच्चों और बड़ों को
मल-त्याग करने में भी इससे मदद मिलती है।

9). सूखे मेवे बच्चों के लिए अच्छे हैं, लेकिन उनका संतुलित मात्रा में ही सेवन करना चाहिए – एक तो वे मंहगे हैं – दूसरे खजूर, अंजीर और किशमिश बच्चों के दांतों से चिपक जाती हैं और उन्हें नुकसान पहँचाती हैं। इसी तरह 3 वर्ष की उम्र तक गले में फँसने वाली चीजों से भी परहेज करना चाहिए। इनमें मूंगफली और अन्य गिरीदार फल, कच्ची गाजरें, पॉपकॉर्न, सख्त कैंडियाँ, बेर और अंगूर वगैरह शामिल हैं।

10). कच्चे अण्डों से संक्रमण हो सकता है, इसलिए इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

11). अपने बच्चे को खाने के लिए लालच या धमकी न दें। आप उसे भोजन के बाद, या भोजन की जगह, उसका प्रिय व्यंजन’ दे सकती हैं।

12). बच्चों के लिए दिन में 5 बार खाना जरूरी है – नाश्ता (breakfast), दोपहर का भोजन (Lunch), रात का भोजन (Dinner), और दिन में और शाम को अल्पाहार (Snacking)। सिर्फ दूध, फलों के रस और सूप से बच्चों की भूख शान्त न करें। अगर आप चाहें तो इन्हें उसके भोजन का हिस्सा बना सकती हैं।

13). पकी हुई सब्जियाँ जल्दी खराब हो जाती हैं। जहाँ तक सम्भव हो, उन्हें ताजा खाने की कोसिस करनी चाहिए। अगर उन्हें रेफ्रिजरेटर में रखा गया है, तो भी उन्हें एक-दो दिन में प्रयोग कर लेना चाहिए। आपको विदेशों में उपलब्ध रेडिमेड (तैयारशुदा) फूड्स’ की ज़रूरत नहीं है। लेकिन अगर आपको वे सुविधाजनक लगते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे की उँगली या चम्मच में लगा थूक जार में रखे पूरे व्यंजन को खराब कर सकता है।

14). 3 वर्ष से छोटे बच्चे को खाने की मेज पर बैठने के तौर-तरीके (table manners) सिखाने की कोशिश न करें। एक परिवार के रूप में टीवी देखते हुए खाना खाने से बचें। भोजन का समय परिवार के लिए बहुत महत्वपूर्ण समय होता है – एक-दूसरे के साथ का आनन्द उठाने और आपस में हँसी-खुशी भरी बातचीत करने का समय। और फिर टीवी देखते समय बच्चे उसमें इतना ज्यादा खो जाते हैं कि उन्हें अपनी भूख और ज़रूरत का ध्यान ही नहीं रहता। ज़रूरत से ज़्यादा खा लेने के कारण वे मोटापे का शिकार हो सकते हैं। इस तरह की आदतों से उनकी सामान्य गतिविधियाँ भी प्रभावित होती हैं।

15). भोजन के दौरान विवादास्पद विषयों पर बात करने से बचना चाहिए। इस तरह के विषय भोजन के तुरन्त बाद उठाए जा सकते हैं।

16). बड़े बच्चों के लिए प्रयोग किए जाने वाले बर्तनों को विसंक्रमित (sterilisc) करने की ज़रूरत नहीं होती। उन्हें अच्छी तरह से धोकर साफ करना ही काफी होता है। लेकिन पानी को हमेशा उबालकर पीना चाहिए। बच्चे को स्वास्थ्य-विज्ञान (hygicnc) सिखाएँ। खाने से पहले और बाद में हाथों को हमेशा धोना चाहिए, और खाने के बाद दाँतों को ब्रश से या अच्छी तरह से कुल्ला करके साफ करना चाहिए। किचन या रसोई-घर में कांकरोच और मक्खियाँ नहीं होनी चाहिए।

17). छने हुए और बारीक पीसे आटे या मैदे (rcfined flour) की बजाय सम्पूर्ण गेहूँ के अनछने आटे (whole whcat) से बनी चपातियों, परांठों, ब्रेड और पुडिंग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हमारे शरीर को विटामिन, खनिज और रेशा (fibrc) प्रदान करने के लिए यह बहुत ज़रूरी है। इसी तरह, पॉलिश किए हुए चावलों को बजाय बिना पालिश वाले चावलों का प्रयोग करना चाहिए।

18). आलू व अन्य सब्जियों को छीलके सहित उपयोग करना चाहिए। इसी तरह जिस पानी में चावलों या सब्जियों को उबाला गया हो, उसे फेंकने की बजाय प्रयोग में ले आना चाहिए। सब्जियों को ज्यादा न पकाएँ। छोटी उम्र से ही बच्चे को कच्ची सब्जियों के स्वाद का अभ्यस्त होने दें। ज़्यादा मिर्चमसालों से बचें, हालाँकि अधिकांश बच्चे परिवार द्वारा सीमित मात्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले मिर्च-मसालों को पसंद करते हैं।

19). जहाँ तक सम्भव हो, चॉकलेट, मीठी गोलियों, ठण्डे पेयों, शर्बतों, स्वाद और खुशबू बढ़ाने वाले
पदार्थों, और चाय-कॉफी वगैरह से परहेज करें। स्कूल के अधिकारी से मिलकर सभी बच्चों के माता पिता के नाम यह सन्देश भिजवाने का प्रयास करें कि वे अपने बच्चे के जन्म दिन पर कक्षा में बाँटने के लिए गोलियाँ-टॉफियाँ न भेजें।

20). जिन बच्चों का आहार उपरोक्त सिधान्तों पर आधारित है, उन्हें आमतौर से अतिरिक्त विटामिनों, कैल्शियम या आयरन की ज़रूरत नहीं पड़ती। लेकिन मैंने देखा है कि 9 महीने की उम्र के बाद कुछ बच्चों को इनकी ज़रूरत पड़ सकती है। यह फैसला अपने डॉक्टर पर ही छोड़ दें।

21). प्रतिदिन के मुख्य भोजन (नाश्ता, लंच और डिनर) और उनके बीच के अल्पाहारों का मेन्यू अलग हो सकता है। अगर सुविधा हो तो एक समय में दो व्यंजन भी दिए जा सकते हैं। लेकिन अगर बच्चा एक चीज ज़्यादा और दूसरी चीज़ कम खाना चाहता है, तो उसे सब कुछ खत्म करने के लिए बाध्य न करें। बच्चों को प्रोटीन से भरपूर आहार – दालें, अनाज, मूंगफली, मटर, फलियाँ वगैरह – पर्याप्त मात्रा में दिए जाने चाहिए। अंकरित चने, मूंग और फलियाँ भरपूर पौष्टिक होते हैं। हरी, लाल, सन्तरी और पीली सभी तरह की सब्जियाँ – पकाई हुईं या कच्ची – बहुत जरूरी हैं। सस्ते मिलने वाले मौसमी फल भी खूब खाने चाहिए। बहुत से लोगों को इस बात का अहसास नहीं है कि अमरूद कई महँगे फलों से ज़्यादा पौष्टिक होता है।

22). बच्चे के भोजन में चीनी, गुड़ या नमक की ज़्यादा मात्रा नहीं होनी चाहिए। मीठे की ज़्यादा आदत दाँतों के रोगों को बढ़ावा देने के साथ-साथ मोटापे का भी कारण बन सकती है। छोटी उम्र ज़्यादा नमक खाने वाले बच्चे बड़े होने के बाद भी इस आदत को जारी रख सकते हैं, जो हमारी हृदय-प्रणाली के लिए अच्छी नहीं है। मेरी सलाह है कि खाने की मेज पर नमकदानी को न रखा जाए। अगर नमक सचमुच कम हो तो उसे रसोई-घर से लाया जा सकता है।

23). बच्चे को भूखे पेट स्कूल न भेजें। यरूश्लम में किए गए एक अध्ययन में 11 से 13 वर्ष की उम्र के बच्चों की ज्ञान-प्रणाली (Cognitivc functioning) की परीक्षा ली गई। परीक्षा से 30 मिनट पहले नाश्ता करने वाले बच्चों का परिणाम एक से दो घण्टे पहले नाश्ता करने वाले बच्चों से कहीं ज्यादा अच्छा था।

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