बच्चों में निमोनिया के लक्षण, कारण, बचाव और इलाज

बच्चों में निमोनिया : 

बच्चों के श्वसन संस्थान के रोग बहुत ही सामान्य हैं लेकिन यदि ध्यान न दिया जाए तो निमोनिया जैसे संक्रमण से बच्चे या शिशु की शीघ्र मृत्यु हो सकती है। पूरे विश्व में इस तरह के रोगों से प्रति वर्ष 39 लाख मुत्युएँ होती हैं और इनमें से 90 प्रतिशत मुत्युएँ केवल निमोनिया से होती हैं।

भारत में शिशुओं की बढ़ी हुई मृत्यु दर में निमोनिया जैसे रोगों की प्रमुख भूमिका है। यहाँ के अस्पतालों में 13 प्रतिशत शिशुओं की मृत्यु श्वसन सम्बन्धी रोगों से हो जाती है। जबकि बहुत से शिशु अस्पताल आने के पूर्व ही चल बसते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरे विश्व में 9870000 मृत्युएँ प्रतिवर्ष इस तरह की बीमारियों से होती हैं। इन आँकड़ों के अध्ययन से श्वसन रोगों की गम्भीरता प्रकट होती है। अत: छोटे बच्चों में निमोनिया जैसे रोग मृत्यु के लिए घातक बने इसके पूर्व ही उनका इलाज जरूरी हो जाता है। इसलिए आम लोगों को भी इन खतरनाक रोगों की सम्यक् जानकारी होनी जरूरी है।

रोग के कारण : 

रोग कई तरह के जीवाणुओं (Bacterias) और विषाणुओं (Virus) द्वारा फैलता है। इनमें प्रमुख हैं स्ट्रेप्टो काकस-निमोनी जो निमोनिया रोग का कारण बनता है। इसी तरह बारडेटेला परट्यूसिस कुकुरखाँसी उत्पन्न करता है। इसी तरह कार्नी बैक्टीरियम डिफ्थीरी भी है जो गलघोंटू नामक खतरनाक बीमारी का कारण बनता है। 

कई वाइरस भी श्वसन संस्थान के रोग उत्पन्न करते हैं। जैसे कि डीनो वाइरस फेफड़ों का संक्रमण और गले की सूजन उत्पन्न करता है। मीजल्स वाइरस छोटे बच्चों में शरीर में फुंसियों के साथ श्वसन सम्बन्धी तकलीफें पैदा करता है। सिन साइटियल (Syncytial) नामक रोगाणु शिशुओं और छोटे बच्चों में फेफड़ों की श्वसन नलिकाओं में सूजन और गम्भीर किस्म का निमोनिया उत्पन्न करता है। 

यदि इलाज न दिया जाए तो निमोनिया अक्सर बच्चों में जानलेवा साबित होते हैं। इन सभी रोगों में श्वसन क्रिया की दर बढ़ जाती है और श्वसन में रुकावटें उत्पन्न होती हैं। इस कारण रोगी की जान जाने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

संक्रमण को अवसर देनेवाले कारण (Factors) : 

  • संक्रमण कम उम्र के शिशुओं में अधिक होते हैं। कुपोषित एवं सामान्य से कम वजन के बच्चों या शिशुओं में भी संक्रमण (Infection) अधिक होता है। अक्सर तीन वर्ष से कम उम्र के बच्चे इन रोगों के ज्यादा शिकार बनते हैं।
  • श्वसन संस्थान के रोगों को बढ़ावा देनेवाले कुछ कारक (Risk Factor) और भी होते हैं जैसे- भीड़ भरे गन्दे स्थानों में रहना, सन्तुलित और पौष्टिक भोजन का अभाव, नवजात शिशु का वजन कम होना, प्रदूषित वातावरण के अलावा माँ यदि सिगरेट का सेवन करती है तो बच्चे को श्वसन संस्थान के संक्रमण होने की सम्भावना बढ़ जाती है । 
  • शहरी बच्चों में ये संक्रमण गाँव-देहात के बच्चों की अपेक्षा अधिक होते हैं। इसका कारण प्रदूषण होता है । और यह प्रदूषण उत्पन्न होता है पेट्रोल-डीजल के धुएँ एवं विभिन्न कारखानों की चिमनियों से निकले गन्दे धुएँ के कारण ज्यादा ठंडे स्थानों में बच्चों को रखने से भी ऐसे संक्रमणों को बढ़ावा मिलता है। 
  • नई खोजों के अनुसार वातानुकूलित (एअरकंडीशंड कक्षों में अधिक समय रहने से भी श्वसन सम्बन्धी रोगों की सम्भावना बढ़ती है। यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि विकसित राष्ट्रों में भी श्वसन सम्बन्धी रोगों पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो सका है, इस कारण वहाँ भी बच्चों में इन रोगों की दर विकासशील देशों की तुलना में थोड़ी सी कम है।

संक्रमण के प्रसार के माध्यम – खाँसने, छींकने या साँस लेने, छोड़ने के दौरान रोग के जीवाणु या विषाणु हवा में पहुँचकर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रवेश करते हैं।

फेफड़ों के संक्रमण मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं – एक ऊर्ध्व श्वसन संस्थान के रोग, इनमें साधारण सर्दी (Common Cold) तथा फेरिंजाइटिस (Pharyngitis) तथा ओटिस मीडिया (Otis Media) शामिल हैं।

दूसरे तरह के संक्रमण होते हैं – श्वसन संस्थान के निचले हिस्से के संक्रमण (Lower Respiratory Infection) ये संक्रमण अधिक गम्भीर होते हैं। इनमें निमोनिया प्रमुख है।

रोग के लक्षण : 

  • नाक बहना, खाँसी, गले में खराश, श्वास लेने में कठिनाई एवं कानों में दर्द भी हो सकता है। 
  • कुछ बच्चों में सामान्य सर्दी के लक्षणों के पश्चात् ये संक्रमण गम्भीर रूप ले सकते हैं। 
  • संक्रमण (Infection) फेफड़ों तक पहुँचकर निमोनिया उत्पन्न कर सकता है। जिसका यदि इलाज न किय जाए तो रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।
  •  हमारे जैसे विकासशील देशों के बच्चों में श्वास नलिकाओं के संक्रमण जैसे-खसरा (मीजल्स) और कुकुरखाँसी भी होते हैं। इनका कारण यह है कि कई लोग अपने बच्चों का उचित टीकाकरण नहीं करवाते हैं।

रोग की गम्भीरता को कैसे पहचानें ? : 

1. श्वसन क्रिया का निरीक्षण – एक मिनट में श्वास की संख्या को घड़ी की मदद से गिनते हैं । 

  • दो महीने के शिशु में यदि श्वसन क्रिया की दर 60 या इससे अधिक है उसे सामान्य से ज्यादा अथवा तीव्र माना जाएगा।
  • दो माह से 12 महीने के शिशु में यदि श्वसन दर 50 या इससे अधिक है तो उसे तीव्र समझा जाता है।
  • 1 वर्ष से 5 वर्ष के बच्चे में यदि श्वसन क्रिया की दर 40 या अधिक है तो उसे तीव्र मानेंगे। 

2. बच्चे की छाती यदि श्वास अन्दर लेने के दौरान भीतर खिंचती दिखे तो यह निमोनिया का लक्षण है।

3. जब बच्चा श्वास छोड़ता है तो श्वास में रुकावट के कारण व्हीज (Wheez) या सीटी की आवाज आती है।

4. देखें कि बच्चे का शरीर ज्यादा गर्म तो नहीं है अर्थात् उसे बुखार तो नहीं है।

उक्त लक्षणों वाले शिशु या बच्चे को तुरन्त चिकित्सक को दिखाकर इलाज लेना चाहिए। क्योंकि शिशुओं में विशेषकर दो माह से कम के शिशु में निमोनिया अत्यन्त खतरनाक हो सकता है।

इलाज : 

रोग के इलाज के लिए रोग प्रतिरोधक दवाएँ (Antibiotics) जैसे सल्फा मेथाक्सेजोल (100 मि.ग्रा.) और ट्राइथोप्रिम (20 मि.ग्रा.) की गोलियाँ अथवा सीरप (पीने की दवा) देते हैं। इसे स्वास्थ्य कर्मचारी की सलाह पर तुरन्त शुरू कर सकते हैं।

बच्चे में अधिक गम्भीर दशा के खतरनाक लक्षण : 

  • माँ का दूध न पी सकना अथवा अन्य द्रव न पी सकना ।
  • झटके (Convulsion) आना।
  • श्वास में रुकावट और चेहरा नीला (Cynosis) पड़ना।

ऐसे शिशु या बच्चे को तुरन्त अस्पताल में भर्ती करना चाहिए। क्योंकि उसे ऑक्सीजन की जरूरत भी होती है।

रोगों से बचाव या सुरक्षा (Prevention) : 

  1. बच्चों को स्वच्छ वातावरण में रखना जहाँ प्रदूषित हवा, धूल या धुआँ न हो ।
  2. पर्याप्त सन्तुलित आहार देना क्योंकि कुपोषण भी ऐसे रोगों की जड़ है।
  3. बच्चों को समय से डी. पी. टी. और मीजल्स (खसरा) के टीके लगवाना भी बचाव का प्रमुख जरिया है।

भारत सरकार सन् 1992-93 से श्वसन संस्थान के रोगों पर नियंत्रण के लिए एक कार्यक्रम भी चला रही है। यहाँ यह बात भी समझ लेना जरूरी है कि 1 वर्ष तक की उम्र के बच्चे को शिशु (Infant) कहते हैं और एक वर्ष के ऊपर के बच्चे (Child) को बच्चा कहा जाता है । और दो माह से कम के शिशु को छोटा शिशु (Infant ) माना जाता है। जैसा बतलाया गया है, दो माह से कम के शिशु को ट्राइम क्साल दवा न देकर बेंजिल पेनिसिलिन देते हैं।


अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।

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