Last Updated on December 24, 2022 by admin
भारंगी क्या है ? (bharangi in hindi)
भारत के सभी प्रदेशों में भांगरी के क्षुप भारत के सभी भागों में पाये जाते हैं। हिमालय की तराई, भोपाल, कुमायुं, गढ़वाल, बंगाल तथा बिहार आदि स्थानों में यह काफी मात्रा में पाया जाता है।
भारंगी का पौधा कैसा होता है ? :
- भारंगी का पौधा – भांरगी का पेड़ 5-7 फुट ऊंचा होता है। भारंगी काफी सालों तक गुच्छो में होते हैं। इसकी कांड तथा शाखाएं कोपल होती हैं। जिन स्थानों पर दावाग्नि होती रहती हैं। केवल यही मूलस्तम्भ (मजबूत जड़) बहुत सालों तक होती हैं।
- भारंगी के फूल – इसके फूल सफेद होते हैं, इसके फूल व्यास में 1 इंच या इससे अधिक, नीलाभ हल्के गुलाबी रंग के, शाखाओं पर गुच्छे में निकलते हैं और सुगन्धित होते हैं।
- भारंगी के पत्ते – भांरगी के पत्ते 3-8 इंच तक लम्बे, डेढ़ से ढ़ाई इंच तक चौड़े लगभग अवृन्त, रेखाकार, आयतकार, अंडाकर, तीक्ष्ण, दतुंर, चिकने-चिकने कुछ-कुछ मांसल, आमने-सामने या तीन-तीन पत्तियों के प्रतिचक्र में होते हैं। इसके मुलायम पत्तों का शाक (सब्जी) बनाई जाती है।
- भारंगी के फल – इसके फल अष्ठिफल 1-3 खण्डीय, परस्पर सयुंक्त (जुड़े हुए) और मांसल होते हैं। पकने पर यह जामुनी काले रंग के हो जाते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिंदी | भांगरी |
सस्कृंत | व्राहाणयष्टिका, खरशाक, पद्मा, |
गुजराती | भांरगी |
बंगाली | बामूनहाटी |
तैलगु | गंटुवंरगी |
कुलनाम | अमतइमदंबमंम |
अंग्रेजी | ट्रंक टरबन मून, |
वैज्ञानिक | सेलेरोडेनर्म सेरराटू मून, |
भारंगी के औषधीय गुण (Bharangi ke Gun in Hindi)
- रंग : भारंगी का रंग भूरा होता है।
- स्वाद : यह खाने में कड़वी और कषैली होती है।
- स्वभाव : भांरगी की तासीर गर्म होती हैं। भांरगी के जड़ में रालीय, वसामच तथा क्षारोद आदि तत्व पाये जाते हैं।
- भांरगी रुचिकारी, अग्निदीपक (भूख को बढ़ाने वाली) है।
- भांरगी गुल्म (न पकने वाला फोड़ा) के उपचार में प्रयोग की जाने वाली प्रमुख औषधि है।
- भांरगी खून की बीमारी, श्वास (दमा), खांसी, कफ, पीनस (जुकाम) के उपचार में लाभप्रद है ।
- यह ज्वर, कृमि, व्रण (जख्म), दाह (जलन) तथा वात को नष्ट करती है।
सेवन की मात्रा :
इसे 11 ग्राम की मात्रा में सेवन करते हैं।
रोगोपचार में भारंगी के फायदे और उपयोग (Uses and Benefits of Bharangi in Hindi)
1. मस्तक (माथे) में दर्द होने पर : भांरगी की जड़ को गर्म पानी में घिसकर, कपाल पर इसका लेप करने से तथा माथे पर लगाने से दर्द कम होता है।
2. आंखों के लिए : भांरगी के पत्ते को तेल में उबालकर लगाने से आंख की पलको की सूजन मिट जाती है और आंख में मैल नहीं रहता है।
3. कान के दर्द में : भांरगी की जड़ को घिसकर 1 बूंद कान में डालने से दर्द में लाभ होता है।
4. दमा और खांसी होने पर :
- भांरगी के मूलत्वक (जड़ का चूर्ण) और सौंठ को बराबर मात्रा में लेकर बनाए 2 ग्राम चूर्ण को गर्म पानी के साथ बार-बार लेने से दमा और खांसी में आराम मिलता है।
- भांरगी की जड़ के रस औरं अदरक के रस को 2-2 ग्राम की मात्रा में मिलाकर रोगी को देने से श्वास (दमा) का वेग शांत हो जाता है।
5. गलगंड रोग में : भांरगी की जड़ को चावल के पानी के साथ पीसकर लेप करने से गलगंड (घेंघा) रोग मिट जाता है।
6. क्षय (टी0बी) :
- 1 ग्राम भांरगी की जड़ के चूर्ण तथा 1 ग्राम शुंठी के चूर्ण को गर्म पानी में घोल कर रोगी को पिलाने से टी.बी के रोग में लाभ होता है।
- 1 किलो भांरगी के पंचांग को 8 लीटर पानी में पकायें जब 2 लीटर बचे तो इसे छानकर इसमें आधा लीटर सरसों के तेल में मिलाकर मालिश करने से टी.बी के रोग में लाभ होता है।
7. रक्त गुल्म (खून के फोड़े) : स्त्रियों के गर्भाशय में होने वाला रक्त गुल्म यदि बहुत बड़ा न हो तो भांरगी, पीपल, करंज की छाल और देवदारू को बराबर मात्रा में मिलाकर बनाये हुए 4 ग्राम चूर्ण को तिल के काढ़े के साथ दो बार देते रहने से रक्त गुल्म समाप्त हो जाता है।
8. पेट में जहर : 5 ग्राम भांरगी की जड़ के चूर्ण को 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर पिलाने से तथा शरीर पर इसकी मालिश करने से पेट का जहर कम हो जाता है।
9. हिचकी के रोग में :
- भांरगी की जड़ को कपडे़ में छानकर बनाये गये चूर्ण को 1-2 ग्राम इच्छानुसार दिन में 4 से 6 बार शहद के साथ चटाने से हिचकी रोग में लाभ मिलता है।
- 1 चम्मच भांरगी की जड़ का चूर्ण मिश्री में मिलाकर सुबह-दोपहर-शाम सेवन करने से हिचकी आना बंद हो जायेगी ।
10. पेट के कीड़े : 3 से 6 भांरगी के पत्तों को 400-500 मिलीलीटर पानी में उबालकर पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
11. अंडकोष का बढ़ना : भांरगी की जड़ की छाल को जौ के पानी में पीसकर गर्म करके बांधने से अंडकोष की सूजन कम हो जाती है।
12. रेचक (दस्त) : भांरगी के 5 ग्राम बीजों को पीसकर मट्ठे में उबालकर पीने से पेट के अंदर रूके मल को मुलायम करके निकालता हैं। ध्यान रहें, इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से दस्त भी लग सकते हैं। इसके सेवन से भीतर की सूजन कम होती है।
13. हरपीज विसर्प (सांप का जह़र) में : भांरगी के पत्तों तथा कोमल डालियों का रस लगाने से सांप का जहर उतर जाता है।
14. सूजन होने पर : भांरगी के बीजों के चूर्ण को घी में भूनकर खाने से सूजन में लाभ मिलता है।
15. बुखार होने पर :
- 5 ग्राम भांरगी की जड़ का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से बुखार और जुकाम दूर हो जाता है।
- मलेरिया के बुखार में भांरगी के कोमल पत्तों की सब्जी बनाकर खिलाने से बुखार मिटता है।
16. छत्तेदार फुंसी : भांरगी के पत्ते और कोमल डालियों का निचोड़ा हुआ रस घी में मिलाकर छत्तेदार फुंसियों पर लेप करने से लाभ मिलता है।
17. फोड़े होने पर : भांरगी के पत्तों की पोटली बनाकर फोड़े पर बांधने से लाभ होता है। अगर ज्यादा बढ़ा हुआ फोड़ा हो तो पककर फूट जाता है, कम पका हुआ हो ठीक हो जाता है।
18. सान्निपात ज्वर : भांरगी, रास्ना, पटोल के पत्ते, देवदारू, हल्दी, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, अडूसा, इन्द्रावारूणी, ब्राह्री, चिरायता, नीम, नेत्रबाला, कुटकी, बच, पाठा, सोनापाठा, दारूहल्दी, हरड़, बहेड़ा, आंवला और कचूर आदि को औषधियों को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पीने से सिन्नपात बुखार दूर हो जाता है। यह मिश्रण खांसी, श्वास (दमा), हिचकी, गल रोग, अफारा (गैस) और संधि की हड्डियों में दर्द को दूर करता है।
19. दमा रोग :
- लगभग 1 किलो भारंगी, 1 किलो दशमूल, 1 किलो हरड़, 1 लीटर पानी को मिलाकर हल्की आग पर पकाते हैं। जब पानी एक चौथाई रह जाए तो उसे उतार लेते हैं। उसमें 1 किलो गुड़ तथा ऊपर पकाई गई 1 किलो हरड़ मिलाकर दुबारा पकाते हैं। जब यह शीरे के समान हो जाए तो इसे उतार लेते हैं। फिर 10-10 ग्राम सोंठ, मिर्च, पीपल, दालचीनी, तेजपात इलायची और 6 ग्राम जवाक्षार को पीसकर मिला देते हैं। इसकी 20 ग्राम मात्रा तथा 1 हरड़ रोजाना सेवन करने से दमा का रोग दूर हो जाता है।
- भारंगी, छोटी पीपल, कायफल, सोंठ, पोहकर की जड़, काकड़ासिंगी सभी को बराबर की मात्रा में लेकर पीस लेते हैं। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ चाटना चाहिए। इससे दमा का रोग नष्ट हो जाता है।
20. मलेरिया का बुखार : भारंगी के पत्तों की सब्जी को बनाकर खिलाने से मलेरिया के मरीज को बुखार से छुटकारा मिलता है।
21. खांसी :
- भारंगी, सोठ और पीपल के चूर्ण में गु़ड़ मिलाकर खाने से साधारण खांसी ठीक हो जाती है।
- भांरगी का काढ़ा बनाकर पीने से खांसी, जुकाम और बुखार मिट जाता है।
- भारंगी, शटी, कर्कट, श्रंगी, पिप्पली, द्राक्षा और शुंठी को बराबर की मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को तिल के तेल में मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है।
22. बेरी-बेरी रोग : भारंगी के बीजों का चूर्ण बनाकर घी के साथ भून लें। इसका भूना हुआ चूर्ण 1.5 ग्राम से 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से बेरी-बेरी रोग में लाभ होता है। बेरी-बेरी रोग में यह मिश्रण बहुत ही लाभकारी होता है।
23. मिक्सीडीमा (स्त्रियों का होंठ, चेहरा का मोटा होना और तालु तथा जीभ की सूजन) : भारंगी के बीज का चूर्ण बनाकर घी में भूनकर डेढ़ से 3 ग्राम सुबह-शाम पीने से स्त्रियों का होंठ, चेहरा का मोटा होना और तालु तथा जीभ की सूजन में लाभ होता है।
24. नष्टार्तव (मासिक धर्म का बंद होना) : भारंगी, सोंठ, काले तिल और घी को एकसाथ पीस लेते हैं तथा इसे लगातार कुछ दिनों तक नियमित रूप से पीते हैं। इससे बंद हुआ मासिक धर्म दुबारा शुरू हो जाता है।
25. प्रदर रोग : भारंगी, सोंठ, शहद या मिश्री के साथ खाने से प्रदर रोग मिट जाता है।
26. जलोदर के लिए : भांरगी को छाछ में पकाकर रोगी को पिलाने से जलोदर (पेट मे पानी भरना) को कम कर देता है।
27. जनेऊ (हर्पिस) :
- भारंगी के जड़, पत्तों और डालियों का रस निकाल कर जनेऊ पर डालने से जनऊ से रोग उत्पन्न नहीं होता है।
- भारंगी के पत्तों का रस घी में मिलाकर जनेऊ पर लगाने से रोग ठीक हो जाता है।
28. स्तनों के दूध के रोग : भांरगी, अतिविषा की जड़, देवदारू की लकड़ी और वचाप्रकन्द को 6 से 12 ग्राम की मात्रा में लेकर 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ रोजाना सुबह और शाम पीने से स्तनों का दूध साफ होकर स्तनों में दूध का रोग ठीक हो जाता है।
भारंगी के दुष्प्रभाव (Bharangi ke Nuksan in Hindi)
यह गर्म स्वभाव के व्यक्तियों के लिए हानिकारक होती है।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)