Last Updated on October 19, 2021 by admin
सच बात तो यह है कि हमारे यहाँ भोजन की साफ-सफाई एवं शुद्धता पर पर्याप्त ध्यान ही नहीं दिया जाता, इस कारण अनेक संक्रामक रोग होते हैं । घर में भले भोजन कुछ साफ-सफाई से बने, लेकिन प्रायः होटलों, ढाबों पर भोजन अस्वच्छ तरीके से तैयार किया जाता है। कई बार तो बासी भोजन गरम करके परोस दिया जाता है। परोसने वाले भी साफ सुथरे नहीं रहते। अत: हमें भोजन की स्वच्छता पर ध्यान देना चाहिए, ताकि रोगों से बचा जा सका।
यदि भोजन जीवाणुयुक्त है तो बहुत सी खतरनाक और जानलेवा बीमारियाँ, जैसे – हैजा, पेचिस, टॉयफाइड, यकृत शोथ इत्यादि हो सकती हैं।
1. दूध की स्वच्छता :
यदि दूध की साफ-सफाई पर ध्यान न दें तो दूध से कई तरह के गंभीर रोग उत्पन्न हो सकते हैं। उदाहरणार्थ – दूध में यक्ष्मा या टी.बी. के जीवाणु हो सकते हैं। टॉयफायड या मियादी बुखार के जीवाणु भी उसमें होते हैं। इसके अलावा गंदे बरतनों, प्रदूषित जल, मिट्टी, धूल इत्यादि के साथ मक्खियों से भी कई प्रकार के रोग-कीटाणु दूध में मिल जाते हैं। इनमें निम्न प्रकार के रोग हो सकते हैं –
- दूधारू पशुओं से – बावीन ट्यूवर कुलोसिस (यक्ष्मा), ब्रुसेलोसिस, क्यू ज्वर, गोचेचक (Cowpox), गिलटी रोग (Anthrax), किलनी द्वारा मस्तिष्क शोथ (Tick borne encephalihis)
- मानव संवाहित एवं पर्यावरण से – टायफायड, पैरा टायफायड, ज्वर, हैजा, पेचिश, विषाणुजन्य यकृतशोथ, घट सर्प (Diphtheria)।
गंदे होटलों और चाट खोमसों से आंत्रशोथ, हैजा, मियादी बुखार, यकृत शोथ (पीलिया), आँव (Amoebiasis) इत्यादि रोग हो सकते हैं।
दूध को जीवाणु रहित बनाने की सबसे सरल विधि है उबालना। हमारे यहाँ यह विधि सदियों से प्रचलित है, लेकिन दूध के उबालने से कुछ हानियाँ भी होती हैं –
- उबालने से लैक्टिक जीवाणु (Lactic Bacilli) सहित उपयोगी जैव तत्त्व मर
- जाते हैं जिनका लाभ हमें नहीं मिल पाता है।
- दूध में मौजूद विटामिन-सी और बी की अधिकांश मात्रा उबालने से नष्ट हो जाती है।
- दूध का प्रोटीन जम (स्कंधित) जाता है।
- दूध का स्वाद भी बदल जाता है।
- दूध उबालने से दूध के उपयोगी एंजाइम नष्ट हो जाते हैं।
पाश्चरीकरण –
दूध के उपयोगी पदार्थ नष्ट किए बिना रोगकारक जीवाणुओं को नष्ट करने की एक भिन्न विधि वैज्ञानिकों ने विकसित की, जिसको पाश्चरीकरण (Pusteurisation) कहते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पाश्चरीकरण की परिभाषा की है –
“दूध को केवल इतने तापक्रम और इतनी अवधि तक गरम करना, जिससे उसके पोषण मान एवं अन्य घटकों में कम-से-कम परिवर्तन हो, लेकिन उसमें मौजूद हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाएँ।”
पाश्चरीकरण के लाभ –
पाश्चरीकरण से उपयोगी लैक्टिक एसिड वैसी-लाई नष्ट नहीं होते। इसी तरह विटामिन भी कम नहीं होते। इसके अलावा दूध की प्रोटीन और दुग्ध शर्करा को भी इस विधि में कम नुकसान होता है। इस तरह पाश्चरीकरण दूध को सुरक्षित बनाने का उबालने से बेहतर तरीका है। डेयरियों द्वारा बड़े पैमाने पर इसी का उपयोग किया जाता है। पाश्चरीकरण की कई विधियाँ हैं –
- हॉल्टर या वाट विधि – इस विधि के अनुसार 30 मिनट तक 63 से 66° सेंटीग्रेट पर रखा जाता है, फिर तुरंत 50° सेंटीग्रेट से नीचे लाकर ठंडा कर दिया जाता हैं।
- कम समय के लिए उच्च तापक्रम विधि – इस प्रक्रिया में दूध को 72° सेंटीग्रेट तापक्रम पर शीघ्रता से गरम कर तुरंत 50° सेंटीग्रेट से नीचे ठंडा किया जाता है।
- अधिक उच्च तापक्रम विधि – इस तरह की पाश्चरीकरण की प्रक्रिया में दूध को 125° सेंटीग्रेट से 150° सेंटीग्रेट तक कुछ सेकेंड के लिए रखा जाता है और फिर शीघ्रता से ठंडा किया जाता है।
( और पढ़े –स्वस्थ व निरोगी रहने के 16 उपाय )
2. मांस की स्वच्छता :
दूषित मांस से भी कई तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। कई बार बाजार में बिकनेवाला मांस – मछली रोग उत्पन्न करनेवाले होते हैं। अतः इस मामले में सावधानी बरतना जरूरी है। दूषित मांस से निम्नलिखित बीमारियाँ हो सकती हैं –
- कृमि रोग – कई तरह के फीता कृमियों (Tap worms) का संक्रमण मांस द्वारा होता है।
- जीवाणु द्वारा – जीवाणुओं द्वारा गिलटी रोग (Anthrax), क्षय रोग (Tuber culosis) एवं भोजन विषाक्तता।
अंडे – लंबे समय तक संग्रह करने या उनका संग्रहण ठीक से न करने से उपयोग लायक नहीं रहते।
3. फल एवं साग-भाजी की स्वच्छता :
साग-सब्जियाँ भी गंभीर संक्रमणकारी हो सकती हैं यदि उन्हें उचित तरीके से इस्तेमाल न किया जाए। मल-जल से सिंचित या प्रदूषित भूमि में पैदा सब्जियाँ यदि बगैर धुले खाई जाएँ तो ये टायफायड और कृमि इत्यादि रोग उत्पन्न करती हैं।
कच्ची खाई जानेवाली सब्जियों को पोटैशियम परमैगनेट के घोल अथवा नमक के पानी में कुछ समय डालकर, फिर पानी की तेज धार में कई बार धोना चाहिए। सलाद को काटने के पूर्व धोना चाहिए।
4. अनाजों की सफाई :
अनाजों की साफ-सफाई कर उन्हें स्वच्छ पानी से धोकर उपयोग में लाना चाहिए, क्योंकि उनमें कीटनाशक एवं मिट्टी इत्यादि की मात्रा हो सकती है। ( और पढ़े – सब्जियां कैसे धोये )
5. भोजनालयों एवं रसोईघरों की स्वच्छता :
कहा गया है सफाई ही दवाई है। हमारे पेट के भीतर जो खाद्य पदार्थ जाएँ वे साफसुथरे और स्वास्थवर्धक हों, उसके लिए रसोई घरों और भोजनालयों की उचित सफाई और देखभाल जरूरी है। इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रखें –
- रसोई या भोजनालय, नालियों या गंदे नालों के पास, अथवा खुले कचरे के ढेर के पास नहीं होने चाहिए।
- स्थान जमीन से ऊँचा और साफ-सुथरा हो।
- कमरे का क्षेत्रफल पर्याप्त (10 वर्ग मीटर) हो तथा वहाँ प्रकाश, हवा की उचित व्यवस्था हो, एग्जास्ट पंखे संभव हो तो लगवाएँ।
- धुएँ के निकलने की व्यवस्था के साथ ही वहाँ चूहे, तिलचट्टे न हो।
- खिड़कियों और दरवाजों में मक्खी / मच्छररोधक जालियाँ लगवानी चाहिए।
- रसोई के कचरे की अलग व्यवस्था हो, उसे रसोईघर में इकट्ठा न करें।
- हाथ और फल-सब्जियाँ धोने के लिए साबुन, साफ तौलिया एवं पर्याप्त जल की व्यवस्था हो।
- बरतनों को गरम पानी में डालकर धोना चाहिए, इससे कीटाणु भी मर जाते हैं।
6. भोजन का संग्रहण :
भोजन के संग्रहण का भी बहुत महत्त्व है, क्योंकि साफ-सफाई से बनाया खाना भी उचित तरीके से न रखा जाए तो विषाक्त हो सकता है, भोजन को खुला कदापि न रखें। कम समय के लिए ढककर रखा जा सकता है, लेकिन कई घंटे रखना हो तो उसे फ्रिज में रखें। कई दिनों से रखे खाद्य, जैसे – मिठाई, खोवा, मांस इत्यादि जाँच कर ही उपयोग में लाएँ।
भोजन परोसने वाला या बनाने वाला यदि स्वयं गंदा या रोगग्रस्त है तो भोजन ग्रहणकर्ता को भी टायफाइड, पेचिश, यकृतशोथ इत्यादि रोग हो सकते हैं। अत: इन रोगों से ग्रसित व्यक्ति को भोजनालयों में नियुक्त नहीं करना चाहिए। त्वचा रोग, संक्रमित घाव या कान में मवाद से पीड़ित व्यक्तियों को भी यहाँ न रखें। भोजन तैयार करने एवं परोसनेवाले लोग निम्न सावधानियाँ रखें –
- हाथ के नाखून कटे हों और खाद्य पदार्थ छूने से पूर्व हाथों को साबुन-पानी से अच्छी तरह धोए जाएँ।
- सिर ढका हो, ताकि बाल न गिरें, विशेषकर महिलाएँ सिर ढाकें।
- संभव हो तो खाना बनानेवाला एप्रिन (चोगा) पहने।
- भोजन के पास खाँसना, छींकना, उँगलियाँ मुँह में लगाना अथवा धूम्रपान करना वर्जित होना चाहिए।