Last Updated on May 15, 2020 by admin
बृहत कस्तूरी भैरव रस क्या है ? : What is Brihat Kasturi Bhairav Ras in Hindi
बृहत कस्तूरी भैरव रस टेबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। इस आयुर्वेदिक औषधि का विशेष उपयोग वात ज्वर ,कफ ज्वर और बात प्रधान सन्निपात ज्वर में किया जाता है।
घटक और उनकी मात्रा :
कस्तूरी, कर्पूर, ताम्र भस्म, धातकी पुष्प, कौंच वीज, रजत भस्म, स्वर्ण भस्म, मुक्ता पिष्टि, प्रवाल पिष्टि, लोह भस्म, पाठा, विडंग, मोथा, शुण्ठी, सुगन्ध वाला, शुद्ध हरताल, या रसमाणिक्य, आमला, अभ्रकभस्म, सभी सम भाग।
भावनार्थ : अर्कपत्र स्वरस आवश्यकतानुसार।
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- कस्तूरी : हृदय, बल्य, बृष्य, कफवात शामक, सुगन्धित, आक्षेपहर।
- कर्पूर : मेध्य, पाचन, चाक्षुष्य, हृद्य, वाजीकारक, सुगन्धित, कृमिघ्न ।
- ताम्रभस्म : याकृत पित्तोतेजक, पित्तस्रावक, लेखन, कुष्ठघ्न ।
- धाय के फूल : सन्धानीय, अतिसार, व्रण, विसर्प नाशक।
- कौच बीज : वृहण, बल्य, वाजीकर, वातनाशक, रसायन ।
- रजत भस्म : शीतल, सारक, मेध्य, वात नाड़ी बलदायक, वातनाशक।
- स्वर्ण भस्म : सर्वरोग हर, योगवाही बल्य, बृष्य, बर्ण्य रसायन।
- मुक्तापिष्टि : बल्य, बृष्य, मेध्य, हृदय, भ्रम नाशक, दाह शामक।
- प्रवाल पिष्टि : रसायन, बल्य, बृष्य, शीतल, हृदय, कासन, छर्दिनिग्रहण।
- लोह भस्म : रक्तबर्धक, बल्य, बृष्य, रसायन।
- पाठा : बल्य, ग्राही, मूत्रजनन, शोथहर, विषघ्न, कुष्टघ्न त्रिदोषशामक।
- वायविडंग : कृमिघ्न , कुष्टन, दीपक, शिरोविरेचक, आध्यमान नाशक ।
- नागरमोथा : दीपक, पाचक, लेखन, ग्राही, आम पाचक।
- सोंठ : दीपक, पाचक, ग्राही, आमपाचक।
- सुगन्ध वाला : वातनाशक, उत्तेजक, चेतना कारक, त्रिदोषघ्न, अपस्मारघ्न ।
- शुद्ध हरिताल : स्निग्ध, उष्ण, कफवात नाशक, अग्निदीपक, कुष्ठघ्न, रसायन।
- अभ्रक भस्म : सर्व रोग नाशक, बृष्य, बल्य, मेध्य, त्रिदोष शामक, मज्जाधातु बर्धक।
- आमला : शीतवीर्य, वयास्थापक, चाक्षुष्य, सर्वदोषहर, पौष्टिक, रसायन।
- अर्कपत्र : दीपक, पाचक, पितसारक, रेचक, कृमिघ्न, वातकफनाशक।
बृहत कस्तूरी भैरव रस बनाने की विधि :
सर्व प्रथम शुद्ध हरताल, या रसमाणिक्य को इतना सूक्ष्म खरल करवाएं कि वह चमक रहित (निश्चन्द्र) हो जाए अब उसमें मुक्ता एवं प्रवाल पिष्टियां एवं भस्में मिलाकर खरल करवाऐं, अत्यन्त सूक्ष्म हो जाने पर काष्टौषधियों के वस्त्र पूत चूर्ण डलवा कर खरल करवाऐं। अब औषधि को खरल से निकाल लें और कस्तूरी एवं कर्पूर डालकर अर्क पत्र स्वरस में खरल करें जब दोनों औषधियाँ अर्क पत्र में विलीन हो जाए तो अन्य सभी औषधियाँ भी मिलाकर खरल करवाएँ। और 100 मि.ग्रा. की वटिकाएँ बनवाकर छाया में सुखाकर सुरक्षित कर लें।
व्यवहार में कर्पूर और कस्तूरी को छोड़कर अन्य सभी औषधियों को अर्क-पत्र
स्वरस में खरल किया जाता है और अन्त में कस्तूरी और कर्पूर को रेकटीफायड स्पिरिट या ब्राण्डी में खरल करके (कर्पूर और कस्तूरी जल में घुलनशील नहीं होते परन्तु अल्कोहल में पूर्णतः घुल जाते हैं।) गोलियां बनवाकर ऊपर से मलमल के श्वेत वस्त्र से ढक कर सुखा लेते हैं।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
बृहत कस्तूरी भैरव रस की खुराक : Dosage of Brihat Kasturi Bhairav Ras
एक से दो गोली पान के रस के साथ शहद मिलाकर दें ।
बृहत कस्तूरी भैरव रस के फायदे और उपयोग : Benefits & Uses of Brihat Kasturi Bhairav Ras in Hindi
बुखार (ज्वर) में बृहत कस्तूरी भैरव रस का उपयोग फायदेमंद
बृहत कस्तूरी भैरव रस सभी प्रकार के ज्वरों में लाभ पहुंचाता है। परन्तु वत्सनाभ रहित होने के कारण यह मृत्युंजय रस की तरह तत्काल स्वेदोत्पत्ती करके ज्वर को नहीं उतारता, अत: इसका प्रयोग सामान्य ज्वरों में नहीं होता। ज्वरों की विकृत अवस्था में जब ज्वर सतत् बना रहें। तथा उपद्रव प्रकट होने लगे तब बृहत कस्तूरी भैरव रस एक गोली मधु-अदरक स्वरस में मिलाकर प्रात: दोपहर सायं देने से एक दिन में ही लाभ होने लगता है।
अतिसार में बृहत कस्तूरी भैरव रस से फायदा
अतिसार में शरीर से अपधातु के अधिक निष्कासन के कारण जब रोगी अत्यन्त क्षीण हो जाता है। उसे स्वर निकालने में भी कष्ट हो जाता है, आँखें भीतर की ओर धंस जाती है, उस समय बृहत कस्तूरी भैरव रस (brihat kasturi bhairav ras), जायफल को घिसकर तथा मधु मिलाकर उसके अनुपान से देने से तुरंत लाभप्रद होता है, अनुपान के रूप में मृत संजीवनी सुरा का प्रयोग करवा सकते हैं। जलाभाव की आपूर्ती के लिए ‘स्वरस पंचक’ एक अच्छी औषधि है, अत्यायिक अवस्था में शिरा द्वारा द्राक्षा शर्करा जल का क्षेपण आवश्यक होता है।
ग्रहणी रोग में बृहत कस्तूरी भैरव रस का उपयोग फायदेमंद
प्रात: काल पतले, श्वेत, तीन चार बार मल के वेग और दिन भर उदर में वायु भरी रहने के लक्षण हो तो बृहत् कस्तूरी भैरव रस एक गोली प्रातः, दोपहर, सायं स्वरसपंचक के साथ देने से दो तीन दिन में ही अग्निवृद्धि और आम पाचक होकर मल बन्धने लगता है।
ग्रहणी की अन्य औषधियाँ यथा पर्पटी कल्प, नृपति वल्लभ रस, चित्रकादि गुटिका, लशुनादिवटी, व्योषादि वटी, कुटज घन वटी, कुटजारिष्ट इत्यादि का सहायक औषधि के रूप में प्रयोग अवश्य करवाना चाहिए। ग्रहणी के रोगी भोजन के शौकीन होते हैं, अतः उनके पथ्य पालन पर विशेष दृष्टि रखनी चाहिए।
खाँसी में लाभकारी है बृहत कस्तूरी भैरव रस का प्रयोग
वातज कास में बृहत कस्तूरी भैरव रस का प्रयोग सफलता पूर्वक होता है एक गोली प्रात: सायं 10 मि.लि. दशमूलारिष्ट के साथ देने से कास का त्रास दायक रूप शान्त होने लगता है। बच्चों की कास में जब श्वास नलिका में कफ भरा हो बृहत् कस्तूरी भैरव रस देने से ज्वर कास दोनों में लाभ होता है। मात्रा आयु के अनुसार एवं अनुपान ऐस होना चाहिए की बच्चा सुगमता से औषध सेवन कर सके।
सहायक औषधियों में सितोपलादि चूर्ण, तालीसादि चूर्ण, हरिद्रा चूर्ण, कास नाशक शार्करों का उपयोग भी करन चाहिए।
हलीमक रोग दूर करने में बृहत कस्तूरी भैरव रस फायदेमंद
हलीमक (पांडु रोग का एक भेद) रोगी को स्नेह पूर्वक विरेचन करवाने के पश्चात् बृहत् कस्तूरी भैरव रस एक गोली प्रात: दोपहर, सायं, फलत्रिकादि क्वाथ के साथ देने से सूक्ष्म रस वाहिनियों का अवरोध दूर होकर त्वचा में निखार आने लगता है उसका रुक्षत्व दूर होकर त्वचा स्निग्ध होने लगती है। क्षुधा में वृद्धि होती है।
सहायक औषधियों में यकृदारि लोह (अतिसार होने पर मत दें) मण्डूर वज्रवटक, तारा मण्डूर, ताप्यादि लोह, नवायस चूर्ण आरोग्य वर्धिनी वटी, रोहीतिकारिष्ट इत्यादि का यथा योग्य सेवन करवाना चाहिए।
सन्निपात में बृहत कस्तूरी भैरव रस का प्रयोग लाभकारी :
ज्वरों की विकृत अवस्था ही सन्निपात होती है, विकृत होने पर सभी ज्वर त्रिदोषज (सन्निपातज) हो जाते हैं विशेष रूप से मन्थर ज्वर की उचित चिकित्सा न होने पर वह सन्निपात तें परिवर्तित हो जाता है। ऐसी अवस्था में बृहत कस्तूरी भैरव रस (brihat kasturi bhairav ras) की एक दो वटिकाएँ अदरक स्वरस मधु में मिला कर चटाने और अनुपान में दशमूल क्वाथ पिलाने से धीरे-धीरे सभी लक्षणों में सुधार होने लगता है।
सहायक औषधियों में सितोपलादि चूर्ण, संजीवनी वटी, ब्राह्मीवटी सन्निपात भैरव रस, सूचिका भरण रस इत्यादि की सहायता भी लेनी चाहिए। सन्निपात ज्वरों की चिकित्सा कोई साधारण बात नहीं है, इसमें अनेक प्रकार के उपद्रव प्रकट होते हैं, अत: चिकित्सा विशेषज्ञ सिद्धहस्त निपुण वैद्यों की देख-रेख में ही सन्निपात की चिकित्सा होनी चाहिए।
मन्थर ज्वर में बृहत कस्तूरी भैरव रस का उपयोग फायदेमंद
उपरोक्त चिकित्सा मन्थर ज्वर में शत प्रतिशत लाभदायक होती है। अतः मन्थर ज्वर की चिकित्सा में सन्निपात ज्वर की चिकित्सा ही करनी चाहिए यदि चिकित्सा ठीक से चलती रहे तो दो से तीन सप्ताह में ज्वर सरलता से उतर जाता है। किसी प्रकार के उपद्रव नहीं होते, पथ्य पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। इस रोग में लध्वान्त्र में व्रण शोथ हो जाता है। अत: किसी प्रकार का ठोस आहार रोग को बढ़ा देता है। रोगी की जीवन रक्षा के लिए पानी मिलाकर अथवा दशमूल साधित दूध, चाय ,अर्जुनक्षीर, पाक, द्राक्षाक्षीर पाक, नारियल पानी अथवा अन्य तरल पदार्थों का उपयोग करवाएँ रोगी एवं रोग की दैनिक समीक्षा करके चिकित्सा व्यवस्था करें।
प्रवाल, भस्म, हिंगुकर्पूरवटी, ब्राह्मीवटी, स्मृतिसागर रस इत्यादि का आवश्यकता पड़ने पर सहायक औषधियों के रूप में अवश्य प्रयोग करवाना चाहिए।
शीताङ्ग में बृहत कस्तूरी भैरव रस के सेवन से लाभ
सन्निपात अथवा अन्य ज्वरों में जब ज्वर सहसा उतर जाता है, तब शीत स्वेद आने लगते हैं, हृदय गति मन्द हो जाती है, यह एक अत्यन्त घातक अवस्था है। इसमें बृहत कस्तूरी भैरव रस दो गोली मृत संजीवनी सुरा के अनुपान से देने से सद्यः लाभ होता है। नाड़ी की गति बढ़कर नियमित हो जाती है, स्वेद का अवरोध हो जाता है।
रोगी को चेतना आ जाती है। परन्तु फिर भी औषधि का प्रत्येक घण्टे के अन्तराल से देते रहना चाहिए जब तक रोगी की स्थिति पूर्णतः न सुधर जाए सहायक औषधियों में सूचिका भरण रस, सन्निपात भैरव रस, चन्द्र शेखर रस, सिद्ध मकरध्वज अथवा चन्द्रोदय रस का भी प्रयोग करना चाहिए।
मनो रोग ठीक करे बृहत कस्तूरी भैरव रस का प्रयोग
मनो रोग विशेष रूप से जिन मनो रोगों में बार- बार वेग आते हैं, बृहत् कस्तूरी भैरव एक सफल औषधि प्रमाणित हुई है। अपस्मार, योषापस्मार एवं अवसाद में इस औषधि का प्रयोग लाभदायक होता है। अनुपान के रूप में मांस्यादि क्वाथ, दूध अथवा मधु सर्पि का प्रयोग करें। सहायक औषधियों चेतन्योदय रस, योगेन्द्र रस, बृहत्वात चिन्तामणि रस, चतुर्भुज रस इत्यादि का प्रयोग भी करवाना चाहिए।
बृहत कस्तूरी भैरव रस से निम्न रक्त चाप में लाभ
जब रक्त चाप 90/60 से कम हो, रोगी दुर्बल एवं उत्साह – हीन या तन्द्रा में हो बृहत कस्तूरी भैरव रस की दो वटिकाएँ मधु से चटाकर अनुपान के रूप में मृत सञ्जीवनी सुरा अभाव में द्राक्षारिष्ट, बलारिष्ट या अश्वगंधा रिष्ट 10 मि.लि. बिना जल मिलाए पिला देने से तुरन्त लाभ होता है, इसी प्रकार इस औषधि का सेवन दिन में तीन बार करवाना चाहिए।
रक्तचाप स्थिर हो जाने पर, सिद्ध मकर ध्वज, चन्द्रोदय, वसन्त कुसुमाकर रस, अश्वगंधादि चूर्ण, गोक्षुरादिचूर्ण, शिलाजितु, अश्वगंधारिष्ट, बलारिष्ट द्राक्षा रिष्ट इत्यादि का सेवन करवाना चाहिए। स्वस्थ हो जाने के उपरान्त भी इनको कोई रसायन औषधि यथा च्यवन प्राश, अगस्त हरीतकी, आमलकी रसायन इत्यादि का प्रयोग अवश्य करवाना चाहिए।
हृदय रोग में बृहत कस्तूरी भैरव रस से फायदा
क्रोनिक हार्ट ब्लाक में जब नाड़ी गति 40 प्रतिमिण्ट तक हो में बृहत कस्तूरी भैरव रस , अत्यन्त लाभदायक औषधि है। अनुपान के रूप में बलारिष्ट 10 मि.लि. बिना जल मिलाए देना चाहिए। इससे रोगी के हृदय को बल मिलता है, और उसकी गति सामान्य होने लगती है। जब तक नाड़ी की गति 50 प्रति मिण्ट से अधिक न हो जाए इसे छ: घण्टे के अन्तराल से देते रहना चाहिए।
सहायक औषधियों में विश्वेश्वर रस, चिन्तामणि रस, नवरत्न चिन्तामणि रस, हृदयार्णव रस, जवाहर मोहरा का प्रयोग करवाना चाहिए रोगी को पूर्ण शारीरिक और मानसिक विश्राम दिलवाना चाहिए।
बृहत कस्तूरी भैरव रस के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ : Brihat Kasturi Bhairav Ras Side Effects in Hindi
- बृहत कस्तूरी भैरव रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- बृहत कस्तूरी भैरव रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
बृहत कस्तूरी भैरव रस एक अत्यन्त सौम्य और जीवन रक्षक योग है। इसमें सन्देह नहीं कि इसका एक घटक ‘हरताल’ सोमल का योग है परन्तु उसके शोधन और अत्यन्त अल्प मात्रा में होने के कारण किसी प्रकार की कोई व्यापत्ती नहीं होती। इसे निशंक होकर अवालवृद्ध सभी को सेवन करवाया जाता है।
बृहत कस्तूरी भैरव रस का मूल्य : Brihat Kasturi Bhairav Ras Price
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