Last Updated on January 24, 2024 by admin
कैंसर क्या है ? Cancer in Hindi
कैंसर हृदय रोगों के पश्चात् विश्व में अधिक मौतें होने का दूसरा प्रमुख कारण है। मानव की औसत आयु बढ़ने, बढ़ते प्रदूषण, सिगरेट, तंबाकू, मदिरा के बढ़ते शौक इत्यादि कारणों से कैंसर का प्रकोप बढ़ रहा है। कैंसर अभी भी भयानक रोग माना जाता है। आधुनिक निदान-उपचार के द्वारा लगभग 50 प्रतिशत कैंसरग्रस्त रोगियों का उपचार संभव है। अमेरिका में बेहतर निदान उपचार विधि के विकास के साथ ही इनके स्वस्थ होने की संभावना भी बढ़ रही है।
कैंसर रोग का निदान होने के बाद सन् 1960-63 में जहाँ केवल 39 प्रतिशत रोगियों की ही आगामी पाँच वर्षों तक जीवित रहने की संभावना होती थी, वहीं 2000-01 तक इनकी संख्या बढ़कर 58 प्रतिशत तक हो गई थी; पर हमारा देश इस मामले में अभी भी काफी पिछड़ा हुआ है। जागरूकता के अभाव, निदान-उपचार की सुविधाओं के सर्वसुलभ न होने, गरीबी इत्यादि कारणों से देश में अकसर कैंसर निदान में देरी हो जाती है। देर से निदान होने से सफल उपचार संभव नहीं हो पाता और रोगी की मौत हो जाती है। प्रत्येक व्यक्तिको कैंसर का स्वरूप, पूर्वरूप, कारण और कैंसर की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। इस दृष्टिसे यहाँ कैंसर का संक्षिप्त विवेचन किया जा रहा है ।
1. शरीर के विभिन्न अङ्गों में कैंसर :
मस्तिष्क से ग्रीवा तक जितने भी अङ्ग हैं, उन सबमें जैसे ओष्ठ, जिह्वा, काकड़ा (टान्सिल), मुख, गला, नाक, आँख, कान, तालु, चमड़ी आदि–इन सब अङ्गों में कैंसर हो सकता है।
कैंसर के लक्षण / cancer ke lakshan in hindi
इसमें पहले निम्न चिह्न दिखते हैं –
- किसी भी प्रकारके दर्द बिना बढ़ती हुई ग्रन्थि।
- कोई भी ड्रेसिंग से हीलिंग न होवे, ऐसा अल्सर।
- लम्बे समय के बाद ग्रन्थि और अल्सर में दर्द शुरू होता है और बढ़कर ग्रीवा से मस्तिष्क तक फैलता है।
- खुराक-निगलने में तकलीफ।
- कभी-कभी पानी और अन्य प्रवाही पदार्थ भी गलेसे नीचे नहीं उतर सकता।
- आवाज बदल जाती है।
- बधिरता भी आ सकती है।
- दर्द के स्थान-नाक, मुँह आदि से खून बहता है।
- दर्द जब तक ठीक नहीं होता, तबतक सर्दी खाँसी रहती है।
2. फेफड़े में कैंसर : fefde ka cancer
सौ वर्ष पूर्व फेफड़ेका कैंसर बहुत अल्प मात्रा में था। परंतु अब यह सबसे अधिक दिखता है और अधिकतर कर के चालीस से ऊपर की स्नायु में अधिक देखने को मिलता है।
फेफड़े में कैंसर के कारण / fefde me cancer ke karan
इसके कुछ कारण इस प्रकार हैं –
- अफीम, चरस, गाँजा सेवन करने वालों को यह कैंसर तम्बाकू पीनेवाले से दस गुना अधिक हानि करता है।
- इस कैंसर का प्रमुख कारण बीड़ी, सिगरेट, चिलम आदि रूपसे तम्बाकू का सेवन माना जाता है।
- स्वयं तम्बाकू-सेवन करने वालेको तो कैंसर होता है, मगर बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू पीनेवाले के पास रहनेवाले को भी हवामें से साँस के साथ फेफड़े में पहुँचता हुआ धुआँ कैंसर उत्पन्न कर सकता है।
- सीमेन्ट और सीमेन्टके अन्य उद्योगों में काम करने वाले मनुष्यों को यह कैंसर हो सकता है।
- एक्स-रे किरणों से भी कैंसर होता है।
- निकल क्रोमीयम, फ्लोरोमिथाईल, ईथर, सल्फ्यूरस स्मोक (गन्धकयुक्त धुआँ), दूषित हवा, लम्बे समयसे चलता हुआ टेलीविजन और पुरानी खाँसी से भी कैंसर होता है।
- कपड़ों की मिलों में काम करते हुए लोगों के श्वसन से रूई के सूक्ष्म तन्तु फेफड़े में जाकर कैंसर उत्पन्न कर सकते हैं।
- पत्थरकी खानों में काम करनेवाले मजदूरोंको भी इसी तरहका कैंसर हो सकता है।
- किसी भी प्रकारका कचरा लगातार फेफड़े में जाकर कैंसर उत्पन्न कर सकता है।
यह कैंसर एक फेफड़े में भी और दोनों में भी एक साथ हो सकता है। कभी-कभी फेफड़ेमें प्राणवायु लेकर आनेवाली नाड़ियाँ भी इसे एक जगहसे दूसरी जगह ले जाती हैं। यह कैंसर दो फेफड़ों के बीच Pleura, Chest wall, Pericardium में भी फैल सकता है। फेफड़े के ऊपरके भाग में बढ़कर यह मेरुदण्ड मेंसे निकलती नसोंको भी दबाता है। यह छाती और गरदन के Lymph nodes में भी फैलता है। वहाँ से पसलियों की हड्डी, खोपड़ी और भुजाओं की हड्डियों में भी फैलता है। यह कैंसर Osteolytic होता है। यह फैलकर किडनी की ऊपर की ग्रन्थि में (adrenals) दिमाग में, दूसरे फेफड़े में, लीवर में, किडनी में और हार्ट के ऊपर भी पहुँच सकता है।
हृदय व फेफड़े में कैंसर के लक्षण / fefde me cancer ke lakshan
- इस कैंसर में पहले कोई ज्यादा शिकायत नहीं रहती, परंतु खाँसी चलती रहती है। एक्स-रे करानेसे मालूम होता है कि फेफड़े में कैंसर है।
- शरीरमें बल और वजन कम होता रहता है।
- लगातार खाँसी की शिकायत रहती है।
- बलगम मवाद या खून संयुक्त आता है।
- छाती में दर्द और भारीपन
- साँस लेनेमें कष्ट।
- छाती में पानी भर जाना।
- यह कैंसर बढ़कर अगर अन्न-नलीको दबाता है तो खाने-पीनेमें भी तकलीफ हो सकती है।
यह कैंसर फैलकर दिमागमें भी जा सकता है। इनके लक्षण में मस्तिष्क-दर्द, वमन, नसोंका तनाव, कमजोरी, पेरालिसिस का असर भी हो सकता है। यह हड्डियों में और लीवर तक भी पहुँच सकता है। इसमें निम्न अन्य लक्षण भी होते हैं
- Clubbing हाथ-पैर के नाखून Club जैसे दिखते हैं। कैंसर ठीक होने से ये नाखून फिर नार्मल भी हो सकते हैं।
- यह कैंसर शरीर की लम्बी हड्डियों के अग्र भागपर नयी हड्डी का सर्जन करता है, पर बहुत दर्द होता है।
- इस कैंसर से शरीर को सब प्रकार की ग्रन्थियों में भी कैंसर फैल सकता है।
- इस कैंसर से शरीर कमजोर और पीला हो जाता है।
- गरदन के ऊपर ग्रन्थियाँ हो जाती हैं। लीवर बढ़ जाता है, शरीरके जोड़ों में दर्द होता है। कभी-कभी पैथोलॉजिकल फ्रेक्चर (सहज में हड्डी का टूट जाना) होता है।
- ग्रन्थि पर स्पर्श करने से गरम लगता है।
हृदय व फेफड़े के कैंसर का आयुर्वेदिक उपचार / fefde ke cancer ka ayurvedic ilaj
इस कैंसर में औषधोपचार-कुशल वैद्यको नाड़ीपरीक्षा करके सबसे पहले प्राकृतिक दोषका शमन करना चाहिये। इस रोगमें कास्टिक और रासायनिक द्रव्योंका संयोजन अनिवार्य होता है। बलगम में खून आता है तो उसे सर्वप्रथम बंद करना आवश्यक है।
- इसमें सबसे सरल उपाय है-हरी वासा पत्तीका रसपच्चीस ग्राम और बकरीका दूध २५ ग्राम मिलाकर प्रात:-सायं पिलाना चाहिये।
- जेष्ठीमधु, उदुम्बर, वरुण, कांचनार आदिके साथ रसायन औषधमें नागभस्म, अभ्रकभस्म, प्रवालपिष्टी, शृंगाभ्रक, श्रृंगभस्म, मुक्तापिष्टी, हीराभस्म और सुवर्णभस्मका संयोजन रोगी का बलाबल देखकर करना चाहिये।
- कांचनार गुग्गुल और त्रिफला गुग्गुल भी इसके साथ संयोजन करने से अच्छा परिणाम आता है।
3. ब्रेस्ट (छाती) का कैंसर (Breast Cancer) :
यह कैंसर ज्यादा करके स्त्रियों को होता है। इस कैंसर की ग्रन्थि वातप्रधान होती है तो सख्त, खींची हुई और काले रंगकी दिखती है। पित्तप्रधान-ग्रन्थिमें जलन होती है, स्पर्शसे गरम लगती है। लाल या पीले रंगकी होती है और बहुत कम समय में पक जाती है। अगर कफप्रधान ग्रन्थि होती है तो यह वेदनायुक्त, सख्त होती है और धीरे-धीरे बढ़ती है।
यह कैंसर पाश्चात्त्य देशों में ज्यादा है। यह जिन स्त्रियों के बच्चे नहीं होते उनको होने की सम्भावना ज्यादा रहती है। ४७ वर्षकी आयु के पहले जो स्त्रियाँ ओवरी और गर्भाशय निकलवा देती हैं, उनके लिये इस कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है।
ब्रेस्ट कैंसर के कारण / breast cancer ke karan
- स्थूल शरीरमें एड्रीनल ग्रन्थि बढ़ती है, वह Estragen में बदल जाती है और सीने में जाकर कैंसर कोष उत्पन्न करने का कारण बनती है।
- ज्यादा चुस्त कपड़े पहनने से वहाँ की चर्बी मृत हो (मर) जाती है। चोट लगने से भी चर्बी मृत हो जाती है। यह भविष्य में कैंसर में बदल जाती है।
- बर्थ-कन्ट्रोल करनेवाली दवाई भी कैंसर कर सकती है।
- पुरुषों में छाती में हारमोन्स असंतुलित होने से मसल्स बढ़ जाते हैं और वे बादमें कैंसरका रूप धारण कर सकते हैं।
ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण / breast cancer ke lakshan
- खून में स्टेरायड्स बढ़ जानेसे ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है। वहाँसे यह कैंसर थाईरोईड, ओवरीज, युटेरस, कोलोरेफ्टम, मेनेन्जीस और दिमाग के आवरण तक फैल सकता है। वह चमड़ी, चेस्ट पोल, पसलियों,काँख, गरदन में, छाती के बीच में फैल सकता है। खूनके द्वारा हड्डियों में, लीवर, फेफड़े और बेईज में जा सकता है। |
- इस कैंसर में छः महीने पहलेसे छाती में गाँठे निकलनी शुरू होती है। उसमें दर्द आदि कुछ नहीं होता। सूजन और सूजनवाले भाग में लाल रंग हो जाना कैंसर का चिह्न है।
- छातीमें से रक्तमिश्रित स्राव निकलनेसे कपड़े में दाग होते हैं। कभी-कभी घाव पक भी जाते हैं। बाहरकी ओर से पत्थर-जैसे सख्त होते हैं।
- नीपल और चमड़ी अंदर की तरफ खिंची हुई हो जाती है। समय बीतने पर उसमें अल्सर हो जाता है।
- हाथ में बड़ा सूजन, काँख में गाँठे होकर यह कैंसर एडवान्स हो जाता है।
- रोगी का वजन दिन-दिन कम होता रहता है।
- खाँसी और कफ में खून आने की शिकायत रहती है।
- साँस फूलती है, बेचैनी होती है और हड्डियों में दर्द होता है।
ब्रेस्ट कैंसर का आयुर्वेदिक उपचार / breast cancer ka ayurvedic ilaj
- रोगी का बलाबल देखकर उसकी प्रकृति को ध्यान में रखकर दवाई का संयोजन करना चाहिये।
- इस कैंसर की शुरुआत में इन्द्रपर्णी की जड़का लेप करनेसे ग्रन्थि गल जाती है। साथ-साथ रक्तरोहित, वरुण, कांचनार, सहिजन, उदुम्बर और आपड़की जड़, रेवंची तथा निर्गुण्डीका क्वाथ साथमें कांचनार गुग्गुल देना चाहिये एवं रसायन औषधका भी प्रयोग लाभदायक है।
4. अन्न-नली का कैंसर : aahar nali ka cancer
यह कैंसर मरीजको बहुत दयनीय स्थिति में ले जाता है। शुरू में खाने-पीनेमें तकलीफ होती है, फिर तो बूंद-बूंद को उतारने के लिये रोगी तरसता है। यह अधिकतर पचास साल ऊपर के लोगों को होता है।
अन्न-नली कैंसर के कारण / aahar nali ke cancer ka karan
यह कैंसर गरम-गरम खान-पान से, मुँह-दाँत की अच्छी तरह सफाई न होनेसे और एसीडिक पदार्थ से होता है और वह फैलकर शरीर के किसी भी भाग में जा सकता है।
अन्न-नली कैंसर के लक्षण / aahar nali ke cancer ka lakshan
- इस दर्द में खायी हुई थोड़ी खुराक भी वापस आ जाती है। तब अन्न-नली के नीचे के भाग में कैंसर होता है। कफ बढ़ता है।
- आवाज बदल जाती है।
- कफ के साथ खून भी निकलता है।
- छातीमें दर्द रहता है।
- खून की उलटी भी हो सकती है।
5. जठर का कैंसर : jathar cancer
सामाजिक और आर्थिक गरीबी से यह कैंसर होता है। ‘ए’ ब्लड ग्रुपवा ले मनुष्यों में यह
ज्यादा दिखता है।
जठर कैंसर के कारण / jathar cancer ke karan
- स्टार्च, अचार, बहुत गरम, चरपरी खुराक, प्रीजर्व की हुई खुराकें, शराब और तम्बाकू इस कैंसर के कारण होते हैं।
- अपच, गैस, एसीडिटी दीर्घ समय रहनेसे, विटामिन बी १२’ कम हो जानेसे भी यह तकलीफ हो सकती है।
- अगर एसीडिटी की शिकायत ज्यादा होती है तो कैंसर ठीक होने को शक्यता बढ़ती है। मगर एसीडिटी कम होती है तो जठर ज्यादा बिगड़ा हुआ होता है।
- क्रोनिक गेस्ट्रीक अल्सर भी आगे जाकर कैंसर में बदल सकता है। जठरका कोई भी ऑपरेशन बाकी के जठर के लिये कैंसर की सम्भावना दो से छः गुना कर देता है।
जठर कैंसर के लक्षण / jathar cancer ke lakshan
- इस में रोगी की खुराक बहुत कम हो जाती है। यह अन्य किसी भी कैंसरकी तरह फैल सकता है।
- इस कैंसर से आकस्मिक दस्त और उलटी में खून आता है। जैसा खुराक खाया हुआ होता है, वैसा ही उलटी से निकल जाता है।
- दस्त में काला खून आता है। रोगी के शरीर में बहुत पीलापन आ जाता है।
6. लीवर का कैंसर : liver cancer
यह कैंसर लीवर सीरोसीस से ज्यादा करके होता है। लीवर प्राईमरी कैंसर कम होते हैं। Hepatoma और Cholangio Carcinoma यह दो प्रकारके कैंसर बड़ी उम्रवाले को होता है और बच्चोंको Hepatoblastoma नामक कैंसर होता है। ये सब प्रकारके कैंसर लीवर के दाहिने भागमें होते हैं। कई बार पूरे लीवर में छोटी-छोटी ग्रन्थियाँ भी होती हैं। एक बड़ी गाँठ भी हो सकती है। मगर Filrolamellar Carcinoma ज्यादा करके लीवर के बायें भाग में होता है, इस प्रकार की गाँठ एक किलोग्राम से ज्यादा वजन की भी होती है। इसकी भयानकता यह होती है कि यह लीवरको निकम्मा करके मरीजको मार डालती है। यह कैंसर फैल करके लीवरसे फेफड़े में तुरंत पहुँच जाता है।
लीवर में कैंसर के लक्षण / liver me cancer ke lakshan
इसकी शुरुआत में रोगीकी हलकी-सी शिकायत रहती है। यह शिकायतें अगर तुरंत समझमें न आ जायँ तो डेढ़ महीने जितने समयमें ही रोगीका जीवन समाप्त हो सकता है। इस कैंसरके लक्षण निम्न प्रकार के होते हैं ।
- रोगी का वजन ५ से १० किलोग्राम कम हो जाता है।
- पेटमें दर्द दाहिनी ओर और बीचमें ऊपरकी तरफ होता है। आकस्मिक रूपसे कभी सख्त दर्द हो जाता है। उस समय कैंसर की गाँठ फट सकती है। कभी रक्तवाहिनी को तोड़कर पूरे पेटमें खून भर देती है।
- भूख का मर जाना लीवर के कैंसर के ३३ प्रतिशत लोगों में देखने को मिलता है।
- बुखार–इस कैंसरसे शरीरमें बुखार आता है, दो या तीन हफ्ते तक अन्य दवाईसे ठीक नहीं होता, तब जानना चाहिये कि लीवर कैंसर में रसी हो गयी है। या फिर लीवर-कोष ही खत्म हो गये हैं।
- मरीज को देखते समय लीवर बढ़ा हुआ, स्पर्श में कठिन और खुरदरा दिखता है। नाखून का फ्लबींग देखने को मिलता है। इस दर्द के बढ़ने से पीलिया हो जाता है। मरीज के पेट में पानी भर जाता है।
7. पेन्क्रियास कैंसर :
यह कैंसर शरीरमें आसपास के अवयवों में फैल जाता है तथा फैलकर लीवर, हड्डियों, चमड़ी, फेफड़े और अन्य सब जगह पहुँच सकता है। यह दूसरे अवयव में फैलने के बाद ही मालूम पड़ता है।
पेन्क्रियास कैंसर के लक्षण –
- इसमें भूख मर जाती है।
- बड़ी उम्रवाले लोगों में भारी, दुर्गन्धयुक्त दस्त, खुराक में ली गयी चर्बी पाचन हुए बिना मलके साथ निकल जाती है तो जानना चाहिये कि यह सब कारण पेन्क्रियास कैंसर का है।
- बड़ी उम्र में डायबिटीज और वजनका कम होना दोनों साथ में दिखता है तो भी पेन्क्रियास कैंसर हो सकता है।
- इसमें दस्त या उलटीमें खून आनेकी शिकायत हो सकती है।
- हाथ-पैरके तलों में बहुत खुजली आती है।
- उसका लीवर और प्लीहा बढ़ जाता है। उदर और पीठमें दर्द रहता है।
कैंसर के मुख्य प्रकार : cancer ke prakar
यहाँ शरीर के विभिन्न अवयवों में देखे गये कैंसरों का उल्लेख किया जा रहा है –
(१) ओष्ठका कैंसर, (२) नाक के पीछे के भागतालु का कैंसर, (३) काकडे का कैंसर, (४) लारोत्पादक पिण्डका कैंसर, (५) गरदन का कैंसर, (६) जीभ का कैंसर, (७) फेफड़े का कैंसर, (८) छाती का कैंसर, (९) अन्न-नली का कैंसर, (१०) स्टमक का कैंसर (११) लीवर का कैंसर, (१२) पेन्क्रियास का कैंसर, (१३) बड़े आँतका कैंसर, (१४) रेक्टम का कैंसर, (१५) गुदा का कैंसर, (१६) किडनी का कैंसर, (१७) यूरीनरी ब्लेडर कैंसर, (१८) प्रोस्टेट कैंसर, (१९) पीनाईल कैंसर, (२०) टेस्टीक्यूलर कैंसर, (२१) गर्भाशयग्रीवा का कैंसर, (२२) युटेरीन बॉडी का कैंसर, (२३) ओवरीयन कैंसर, (२४) न्यूरोलोजिक ट्यूमर्स, (२५) थाईराईड कैंसर, (२६) हड्डीका कैंसर, (२७) बच्चों को होता हुआ कैंसर-
(अ) एबीज सारफोमा, (ब) रेटीना ब्लास्टोमा, (स) नेफ्रो ब्लास्टोमा, (द) न्यूरोप्लास्टोमा, (२८) चमड़ी का कैंसर, (२९) नीवस-कैंसर, (३०) लीम्फोमा कैंसर, (३१) ब्लड कैंसर
जिस प्रकार शरीरका अपना स्वतन्त्र रूप होता है, उसी प्रकार रोगके भी अपने स्वतन्त्र रूप होते हैं। शरीर में कैंसर शरीर के रक्त, मांस, धातु से पुष्ट होकर अपना रूप बना लेता है और समग्र शरीर में जीवनीय कोषों के पास अपने कोषको लगा देता है। फिर जीवनीय कोषों को मारकर शरीर के किसी एक अङ्ग में दिखायी देता है।
वह सूजन, गाँठ, अल्सर-जैसे रूपों में होता है। शनैः-शनैः शरीरके सब मर्म-भागों में अपना स्थान जमा देता है। वह वात, पित्त और कफ को दुष्ट करके खून, मांस और धातुको बिगाड़कर फैलता जाता है। प्रथम वह चमड़ी के नीचे फैलता है, इससे निदान में देर हो जाती है।
आयुर्वेद में कैंसर का उपचार : cancer ka ayurvedic treatment
आयुर्वेद में इसके निम्न प्रकार दिखते हैं-(१) वातप्रधान, (२) पित्तप्रधान, (३) कफप्रधान, (४) त्रिदोषजन्य, (५) मेदप्रधान, (६) शिरोजन्य, (७) रुधिरजन्य, (८) मांसजन्य, (९) द्विदर (गाँठ पर-गाँठ होना)।
याद रखें कि कैंसर आनुवंशिक और चेप फैलानेवाला नहीं है। आयुर्वेद हमेशा रोगीकी चिकित्सा नाड़ी-परीक्षा के द्वारा प्रकृति देखकर दोषशमन और रोग-शमनार्थ औषध-मिश्रण परिणाम देता है। कैंसर को काबू में करने के लिये प्रत्येक अवयव को ध्यान में | रखकर औषधियों का संयोजन करना चाहिये। शरीर के प्रत्येक अवयव को ठीक करने की अनुभूत औषधियाँ
- आयुर्वेद में दी हुई हैं उन औषधियों के साथ कैंसर को ठीक करनेवाली औषधियों का संयोजन करके मरीज को देने से ठोस परिणाम मिलता है।
- जैसे दिमाग–ब्रेन का कैंसर है तो ब्राह्मी, शंखपुष्पी, जटामांसी आदि औषधियों के साथ वरुण, रक्तरोहित, भल्लातक, कस्तूरी,वज्र भस्म, सुवर्ण भस्म, मुक्तापिष्टी, अभ्रक भस्मका योग्य मात्रा में मिश्रण करके साथ में कांचनार, गुग्गुल आदि का उपयोग करना चाहिये।
- मरीज का बलाबल देखकर बलप्रद दवाई औषध संयोजित की जाय। इस प्रकार से इस रोगका उपचार किया जा सकता है।
कैंसर की आयुर्वेदिक दवा : cancer ki ayurvedic dawa
कैंसर में शीघ्र राहत देने वाली लाभदायक आयुर्वेदिक औषधियां ।
- गोझरण अर्क
- तुलसी अर्क
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।