Last Updated on December 1, 2019 by admin
चंद्रकला रस क्या है ? : Chandrakala Ras in Hindi
चंद्रकला रस ऐक आयुर्वेदिक दवा है यह उन लोगों के लिए बहुत लाभकारी एवं उपयोगी सिद्ध होगा जो गलत आहार – विहार के कारण अम्लपित्त (हायपरएसिडिटी), पित्त प्रकोप (एसिडिटी), रक्तस्राव होना, पित्त प्रकोप के कारण पेशाब में कमी या पेशाब रुक-रुक कर आना, उच्च रक्तचाप, जीर्ण रोग आदि रोगों से पीड़ित व्यक्ति को होने वाली व्याधियों और टीबी रोग से होने वाली खांसी और कमज़ोरी आदि व्याधियों में से किसी न किसी व्याधि से पीड़ित हों। तो लीजिए, चन्द्रकला रस का परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं ?
चंद्रकला रस के घटक द्रव्य : Chandrakala Ras Ingredients in Hindi
✦ शुद्ध पारा – 10 ग्रा
✦ ताम्र भस्म – 10 ग्रा
✦ अभ्रक भस्म – 10 ग्रा
✦ शुद्ध गन्धक – 20 ग्रा
✦ क्वाथ के द्रव्य – नागरमोथा, अनार के दाने, दूर्वा की जड़, केतकी की कलियां, सहदेवी, घृतकुमारी, पित्त पापड़ा, मरुवा और शतावर ।
✦ चूर्ण के द्रव्य – कुटकी, गिलोय सत्त्व, पित्त पापड़ा, खस, चमेली के फूल, सफ़ेद चन्दन और सारिवा ।
✦ भावना द्रव्य – द्राक्षा, दाड़िम (अनार), केला, ताड़ का फल, बेलगिरी, जामुन और आम काढ़ा बनाने के लिए।
चंद्रकला रस की निर्माण विधि :
शुरू में पारा, भस्म और गन्धक को घोंट कर कज्जली बना लें। क्वाथ के द्रव्य नागरमोथा आदि का काढ़ा बना कर इसमें अलग-अलग सबको क्रमश: 1-1 दिन घोंटें। चूर्ण के द्रव्य कुटकी आदि को कूट पीस कर उपर्युक्त औषधि के समान वज़न में यह चूर्ण ले कर मिला लें। भावना के द्रव्य द्राक्षा आदि का काढ़ा बना लें और इस काढ़े की सात भावनाएं दे कर औषधियों का गोला बना लें और सुखा लें। सूख जाए तब इस गोले को पत्तों में लपेट कर अनाज के ढेर में दबा दें। सात दिन बाद निकाल कर द्राक्षा आदि के काढ़े की एक भावना देकर 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
चंद्रकला रस की सेवन विधि : Chandrakala Ras Dosage in Hindi
दिन में दो बार 2-2 गोली गुलकन्द के साथ लें या जीरा व मिश्री के चूर्ण के साथ ले कर ऊपर से दूध पी लें।
चंद्रकला रस के उपयोग : Chandrakala Ras Uses in Hindi
☛ यह योग सब प्रकार के पित्त रोग, रक्त पित्त व रक्त प्रदर में उपयोगी है ।
☛ चंद्रकला रस जलन, पेशाब में रुकावट, पथरी, प्रमेह और अम्ल पित्त की बेहतरीन दवा है।
☛ यह रक्त की उलटी, रक्त स्राव और पित्तज ज्वर आदि में बहुत लाभ करता है।
☛ आजकल का खानपान और रहन – सहन ऐसा है कि पित्त कुपित होना आम बात हो गई है। पित्त कुपित होने पर पित्त जन्य (पित्त प्रकोप के कारण पैदा होने वाले) रोग हो जाते हैं। यह इस योग की विशेषता है कि शीतल प्रकृति का होने से यह पित्त प्रकोप को तो शान्त कर देता है पर जठराग्नि को मन्द नहीं करता।
☛ यह योग वात पित्तप्रकोप और अघोगामी एवं उर्ध्वगामी रक्तपित्त रोग में ग्रीष्म ऋतु में भी शान्ति देता है।
रोग उपचार में चंद्रकला रस के फायदे : Chandrakala Ras Benefits in Hindi
उच्च रक्त चाप में चंद्रकला रस के प्रयोग से लाभ (Chandrakala Ras Benefits in High Blood Pressure Treatment in Hindi)
इस योग में ऐसे घटक द्रव्य हैं जो रक्त वाहिनी के लिए शान्ति दायक भी हैं और स्तम्भनकारी भी। इसका मुख्य कार्य समस्त रक्त संचार और रक्तवाहिनी पर शामक और प्रसादक है अत: यह उच्च रक्त चाप के लिए अच्छा शामक सिद्ध होता है।
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खून की खराबी ठीक करे चंद्रकला रस का प्रयोग (Chandrakala Ras Benefits in Cures Blood Impurities in Hindi)
जब तीव्र सेन्द्रिय विषाक्त योग से रक्त विकृत होता है तब रोगी प्रलाप, भ्रम, ज्वर आदि के लक्षण युक्त हो जाता है । इसके लिए चन्द्र कला रस उत्तम औषधि है।
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पेशाब में रुकाव दूर करने में चंद्रकला रस फायदेमंद (Benefit of Chandrakala Ras in Urinary Retention in Hindi)
पित्त की तीव्रता, विशिष्ट सेन्द्रिय विष, विशिष्ट कीटाणु के संक्रमण (इन्फेक्शन) के प्रभाव से मूत्र मार्गदूषित होने से पेशाब में रुकावट हो तो यह योगलाभ करता है।
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पित्त वृद्धि में लाभकारी है चंद्रकला रस का सेवन (Chandrakala Ras Uses in Controlling Pitta Dosha in Hindi)
इसके अलावा मस्तिष्क, रोम छिद्र, मूत्र मार्ग और विशेष कर रक्त में पित्त व उष्णता की वृद्धि होने पर चन्द्रकला रस उत्तम औषधि है।
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नसों का मोटापन व रक्त दबाव कम करने में चंद्रकला रस करता है मदद
चक्कर आना, आंखों में जलन व दर्द, आंखें लाल होना, सिर की नसें खिचना, बेतुकी बातें बड़बड़ाना, बुखार आना, छोटे व बड़े मस्तिष्क, वात वाहिनी के केन्द्र स्थान तथा इसके आसपास के सब स्थानों की नसों में मोटापन आना और इनका दबाव पड़ना आदि कारणों से रोगी प्रलाप करता है । ऐसी स्थितियों में रक्त के दबाव को कम करने का काम यह योग बड़ी आसानी से कर देता है।
उन्माद में चंद्रकला रस का उपयोग फायदेमंद (Chandrakala Ras Uses to Cure Manic Disorder in Hindi)
कभी-कभी आंत्रिक ज्वर के प्रभाव से दिमाग़ में गर्मी पहुंच जाती है और ज्वर हो जाने पर उन्माद पैदा हो जाता है। विशेषकर दोपहर के समय अटपटी बातें करना, घबराना, आंखें लाल हो जाना, सारे शरीर से पसीना आना आदि लक्षण पैदा होते हैं। इस स्थिति को ठीक करने के लिए चन्द्रकला रस आधी रत्ती, भांगरे का रस आधा चम्मच और आम का मुरब्बा एक चम्मचइनको मिला कर सुबह शाम खाने से पित्त का शमन होता है और उन्माद की स्थिति समाप्त होती है।
नाक-मुंह से खून गिरना ठीक करे चंद्रकला रस का प्रयोग (Chandrakala Ras Benefits in Bleeding in Hindi)
सूर्य की धूप में ज्यादा देर रहने से, अग्नि के समीप देर तक काम करने, शराब या अन्य उष्ण द्रव्यों का अति सेवन करने, बहुत ज्यादा परिश्रम या व्यायाम करने से रक्त का दबाव बढ़ता है। ज्वर की गर्मी बढ़ने से सिर दर्द करने लगता है, मल सूख जाता है और कभी-कभी, किसी किसी रोगी को नाक या मुंह से खून गिरने लगता है। ऐसे लक्षणों पर मिश्री मिले दूध के साथ चन्द्रकला रस का सेवन कराना चाहिए और ऊपर से उशीरासव 2-2 चम्मच आधा कप पानी में मिला कर पिलाना चाहिए।
चंद्रकला रस के इस्तेमाल से खून की उल्टी में लाभ (Chandrakala Ras Cures Vomiting blood in Hindi)
क्षय रोग (टीबी) के रोगी को, रोग की प्रारम्भिक अवस्था में, रक्त युक्त वमन होती है। इसे रोकने के लिए चन्द्रकला रस, चांदी के वर्क में मिला कर शर्बत अनार के साथ देना चाहिए।
उर्ध्व रक्त पित्त में चंद्रकला रस का उपयोग लाभदायक
उर्ध्व रक्त पित्त होने पर नाक या मुंह से खून गिरता है। कुछ समय तक बन्द रहता है फिर से गिरने लगता है। शारीरिक दोष से उत्पन्न हुई विकृति एवं व्याधि को दूर करने में चित्रकला रस अव्यर्थ औषधि है।
मूत्रेन्द्रिय या गुदा से रक्तस्राव में फायदेमंद चंद्रकला रस का औषधीय गुण
अधो रक्तपित्त होने पर मूत्रेन्द्रिय या गुदा से रक्त गिरता है । यह दो प्रकार का रोग होता है- मूल रूप से रोग होना और दूसरा उपद्रव जन्य रोग होना। इसी तरह गुदा से रक्त स्राव होने के हेतु भी दो प्रकार के हैं। एक तो है आन्त्रव्रण या अन्दर उत्पन्न हुए रक्तार्श का होना और दूसरा है क्षोभ उत्पन्न करने वाले कारणों से अकस्मात कोई नस फट जाना। कभी-कभी अन्य किसी रोग में उपद्रव के रूप में भी रक्तस्राव होने लगता है। इस रोग की चिकित्सा करते हुए चन्द्रकला रस का उचित अनुपान के साथ प्रयोग करना उत्तम लाभदायक सिद्ध होता है।
रक्तपित्त मिटाता है चंद्रकला रस
अधोरक्त पित्त में मूत्रमार्ग से रक्त स्राव होने में वृक्कशोथ, वृक्क में रेत (पथरी) याशर्करा (छोटे कंकड़) का मूत्राशय में उतरना, मूत्राशय और मूत्र मार्ग में शोथ होना, बस्ति का क्षोभ और दाह होना आदि कारण होते हैं। इन कारणों में पित्त का प्रकोप होना भी कारण होता है। ऐसे रक्तपित्त की सभी अवस्थाओं में, चन्द्रकला रस का उपयोग विभिन्न अनुपानों के साथ करने से लाभ होता है।
अनुपान रोग के अनुसार प्रयोग किये जाते हैं। मूत्र पिण्ड के शोथ में अनन्तमूल जैसा शामक, सौम्य और मूत्रल अनुपान देना चाहिए। रेत या शर्करा (पथरी) निकालने के लिए तृणपंचमूल काढ़े के समान मूत्र लाने वाला दाह शामक अनुपान या गोखरू, धमासा धनिया का मूत्रल क्वाथ अनुपान देना चाहिए।
रक्त प्रदर में चंद्रकला रस के इस्तेमाल से फायदा (Chandrakala Ras Benefits to Cure Metrorrhagia in Hindi)
स्त्रियों के रक्त प्रदर में चन्द्रकला का उपयोग बहुत अच्छा रहता है। रक्त प्रदर में शूल युक्त रक्त स्राव होना और अत्यधिक मात्रा में रक्त स्राव होना- ये दो व्याधियां होती हैं। स्त्रियों के डिम्बाशय, गर्भाशय और अपत्यमार्ग में किसी कारणवश क्षोभ होने पर रक्तस्राव होने लगता है। इसे रक्त प्रदर कहते हैं । इस व्याधि के लिए चन्द्रकला रस का उपयोग आम, अशोक और कपासमूल-तीनों की छाल के काढ़े के साथ देना चाहिए अति प्रबल और प्रचुर मात्रा में रक्त स्राव होने पर ऊन की काली राख एक चम्मच, थोड़े पानी के साथ, तीन दिन तक देने से लाभ होता है।
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मसूड़ों की सूजन मिटाए चंद्रकला रस का उपयोग (Chandrakala Ras Cures Testicles Swelling in Hindi)
रक्तपित्त (Scurvy) होने पर किसी-किसी को दांतों में दर्द और मसूड़ों में शोथ व पीड़ा होती है और रक्त निकलता है। यह व्याधि बाद में पायरिया रोग बन जाती है। रक्तपित्त रोग इतना बढ़ जाता है कि त्वचा के रोम छिद्रों से भी रक्त निकलने लगता है। यह स्थिति बहुत पीड़ा दायक और प्राणघातक सिद्ध होती है। इस व्याधि में सारिवा के काढ़े के साथ चन्द्रकला रस देने से लाभ होता है।
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शरीर की जलन दूर करे चंद्रकला रस का सेवन
चन्द्रकला रस दाह को शान्त करती है इसलिए अत्यधिक दाह (जलन) होकर उन्माद जैसा वेग पैदा होता है, मूत्रमार्ग, आंख, हाथ, पैर आदि में दाह, कभी कभी नाक, मूत्र मार्ग या अन्य मार्ग से रक्त स्राव होना, मूत्र में चिकना श्लेष्म जाना, मूत्र का रंग लाल और परिमाण में कम होना आदि लक्षणों पर ब्राह्मी, अनन्तमूल, पित्त पापड़ा आदि के काढ़े के साथ चन्द्रकला रस का प्रयोग किया जाता है।
पित्तजन्य प्रमेह में चंद्रकला रस के सेवन से लाभ
पित्तजन्य प्रमेह के लिए चन्द्रकला रस उत्तम औषधि है। इन विकारों में मूत्र का रंग काला, नीला, अति पीला और मजीठ के काढ़े के रंग जैसा होता है। पूरे शरीर में जलन होती है। इसमें तीव्र प्यास, मूत्र की मात्रा में कमी लेकिन बार-बार होना, चक्कर आना, शुष्कता, अत्यन्त जलन, पंखे की हवा हमेशा अच्छी लगना, पंखा बन्द होते ही बेचैन हो जाना आदि व्याधियों में पित्त का प्रभाव रक्त और त्वचा पर हो जाता है । इन व्याधियों के लिए यह रस गुणकारी है।
इस प्रकार हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि पित्त प्रकोप (एसिडिटी) और अम्ल पित्त के दुष्प्रभाव से पैदा होने वाली व्याधियों की सफल चिकित्सा में चन्द्रकला रस बहुत गुणकारी सिद्ध होता है।
चंद्रकला रस के नुकसान : Chandrakala Ras Side Effects in Hindi
1- चंद्रकला रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
2- चंद्रकला रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
3- इस औषधि का सेवन करते समय इमली व अमचूर की खटाई, लाल मिर्च, तेज़ मिर्च मसालेदार व खट्टे पदार्थ तथा अण्डा मांस व तले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।