Last Updated on January 17, 2023 by admin
चांगेरी (तिनपतिया) क्या है ? : What is Changeri (indian sorrel) in Hindi
चांगेरी और चुक्र को भावमिश्र ने पर्याय माना है। किन्तु वस्तुत: ये दोनों शाकवर्गीय भिन्न-भिन्न खट्टे द्रव्य हैं। यह नदी-नालों एवं तालाबों के किनारे जो जमीन आद्र रहती है और जहां नमी बनी रहती है वहां पर यह स्वयंजात रूप में उगी हुई मिल जाती है। इसका वास्पतिक कुल चांगेरीकुल (जेरानिआमे) है।
चांगेरी का पौधा कैसा होता है ? :
चांगेरी का प्रसरणशील छोटा पौधा होता है। इसका कांड तो धरती पर फैला हुआ रहता है किन्तु पत्रवाहक शाखाग्र भाग ऊपर को उठा हुआ रहता है।
- चांगेरी के पत्ते (पत्र) – प्रायः तीन-तीन (क्वचित् चार भी) संयुक्त, गोलाकार होते हैं।
- चांगेरी के पुष्प – छोटे छोटे पीले रंग के पुष्पदण्ड पर लगते हैं।
- चांगेरी के फल – लम्बगोल, रोमश होते हैं।
- चांगेरी के बीज – गहरे भूरे रंग के, अनेक, अंडाकार, अनुप्रस्थ धारियों से युक्त होते हैं।
चांगेरी कहां पाई या उगाया जाती है ? : Where is Changeri (indian sorrel) Found or Grown?
चांगेरी श्रीलंका एवं भारत में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है तथा हिमालय में 6,000 फुट की ऊंचाई तक यह पाई जाती है । इस पर फूल और फल लगभग वर्ष भर मिलते हैं।
चांगेरी का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Changeri (indian sorrel) in Different Languages
Changeri (indian sorrel) in–
- संस्कृत (Sanskrit) – चांगेरी, अम्लपत्रिका
- हिन्दी (Hindi) – तिनपतिया, अम्लोनी, तिपत्ती, चूकातिपाती
- गुजराती (Gujarati) – खाटी लुणी
- मराठी (Marathi) – आंबटी, भुईसर्पटी
- तामिल (Tamil) – पुलियारै
- तेलगु (Telugu) – पुलिचिन्ता
- मलयालम (Malayalam) – पुलिपारेल
- कन्नड़ (Kannada) – पुल्लमपुरचि
- अंग्रेजी (English) – इण्डियन सोरेल (Indian Sorrel)
- लैटिन (Latin) – आक्जेलिस कार्निकुलेटा (Oxalis Corniculata Linn-)
चांगेरी का रासायनिक विश्लेषण : Changeri (Indian Sorrel) Chemical Constituents
इसमें पोटाशियम तथा आक्जेलिक एसिड होता है।
चांगेरी के प्रकार :
चांगेरी की एक काण्डरहित प्रजाति (O.ACET OSELLA LINN.) होती है। इसके पत्ते अपेक्षाकृत बड़े होने से इसे बड़ी चांगेरी और पुष्प सफेदं (या हलके गुलाबी) रांग के होने से इसे श्वेत पुष्पा (या रक्तपुष्पा) चांगेरी कहते हैं। इससे मिलने वाली एक विदेशी प्रजाति (O. Latifolia) जिस पर पुष्प बैंगनी रंग के आते हैं। यह मेक्सिको का आदिवासी पौधा है जो भारत में भी होने लगा है।
चांगेरी के उपयोगी भाग : Beneficial Part of Changeri (Indian Sorrel) in Hindi
पंचांग (जड़, छाल, पत्ती, फूल ओर फल)
सेवन की मात्रा :
स्वरस-5-10 मि.लि.
चांगेरी के औषधीय गुण : Changeri ke Gun in Hindi
- रस – अम्ल, कषाय
- गुण – लघु, रूक्ष
- वीर्य – उष्ण
- विपाक – अम्ल
- दोषकर्म – कफवात शामक एवं पित्तवर्धक।
- चांगेरी खट्टी, कषैली तथा गर्म होती है।
- यह कफ वात नाशक, पित्तवर्द्धक तथा सूजन को नष्ट करने वाली है ।
- चांगेरी दर्द दूर करने वाली ,लेखन तथा नशा दूर करने वाली है ।
- चांगेरी आवाज साफ करने वाला, यकृतोत्तेजक,रुचिकारी, ग्राही, रक्तस्तम्भन ,उत्तेजक और बुखारनाशक है।
- यह विटामिन-सी का भी अच्छा स्रोत है।
चांगेरी के उपयोग : Uses of Changeri in Hindi
- आचार्य चरक ने इसका अम्लस्कंध में उल्लेख किया है तथा इसे अतिसार, ग्रहणी , बवासीर (अर्श) में उपयोगी कहा है-”ग्रहण्यझेहिता च सा”।
- चरक, सुश्रुत ने अग्निवर्धक (चांगेरी चाग्निदीपनी) तथा भावमिश्र एवं प्रियव्रत जी ने इसके रोचन कर्म का विशेषत: बखान किया है-“चांगेरी दीपनी द्वच्या‘ (प्रि. नि.)
- द्रव्यगुणविज्ञान (भाग 2) में रोचन द्रव्यों के अन्तर्गत ही श्री शर्मा जी ने इसका वर्णन किया है।
- मौसम परिवर्तन होने पर उत्पन्न हुये ज्वर में धत्तुरा एवं अफीम के विप आदि में इसका स्वरस पान उपयोगी है।
- दाह में इसके पत्तों को पीसकर उन्हें ठंडाई की तरह पानी में घोलकर, छानकर मिश्री के साथ पिलावें साथ में पत्र स्वरस का लेप भी करें।
- व्रण शोथ, शिर : शूल, त्वचा के मस्सों पर पत्तों का लेप लाभप्रद है।
- मूत्रकृच्छ्र में वस्तिप्रदेश पर लेप करना चाहिये।
- मसूड़ों की सूजन पर पत्र स्वरस के कुल्ले किये जाते हैं।
- मदात्यय (अत्यधिक शराब पीने से उत्पन्न शारीरिक विकार) में भी इसका स्वरसपान लाभ पहुंचाता है।
चांगेरी के फायदे : Benefits of Changeri (indian sorrel) in Hindi
1. सिर दर्द: चांगेरी के रस और प्याज के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर सिर पर लेप करने से पित्तज सिरदर्द दूर हो जाता है।
2. मसूढ़ों के रोग: चांगेरी के पत्तों के रस से कुल्ले करने से मसूढ़ों के न मिटने वाले रोग भी मिट जाते हैं।
3. मुंह की दुर्गन्ध: चांगेरी के 2-3 पत्तों को मुंह में पान की तरह रखने से मुंह की दुर्गंध मिट जाती है।
4. दांतों के रोग: चांगेरी के सूखे हुए पत्तों से दांतों का मंजन करने से दांतों के रोगों में लाभ होता है।
5. संग्रहणी: संग्रहणी (पेचिश) रोग में चांगेरी के पंचांग के रस में पीपल मिलाकर उसके रस से चार गुना दही उसमें मिलाकर घी डालकर पका लेना चाहिए यह मिश्रण संग्रहणी (पेचिश) के लिए लाभकारी होता है।
6. पेट का दर्द: 40 से 60 ग्राम चांगेरी के पत्तों के काढ़े में भुनी हुई हींग और मुरब्बा मिलाकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से पेट दर्द ठीक हो जाता है।
7. आंतरिक जलन: चांगेरी के 5 से 7 पत्तों को ठण्डाई की तरह घोटकर उसमें मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से आंतरिक जलन मिट जाती है।
8. पाचनशक्ति: अग्निमान्द्य (भूख न लगना) के रोग में चांगेरी के 8-10 पत्तों की कढ़ी बनाकर देने से पाचनशक्ति (भोजन पचाने की क्रिया) ठीक होकर भूख बढ़ जाती है।
9. बवासीर:
- बवासीर के रोग में चांगेरी के पंचांग को घी में पकाकर उसकी सब्जी बनाकर दही के साथ सेवन करने से बवासीर ठीक हो जाती है।
- चांगेरी निशोथ, दन्ती, पलाश, चित्रक इन सभी की ताजी पत्तियों को बराबर मात्रा में लेकर घी में भूनकर, इस सब्जी को दही में मिलाकर शुष्क बवासीर में देना चाहिए। इससे शुष्क बवासीर दूर हो जाती है।
10. अतिसार (दस्त):
- चांगेरी के 4 से 5 ग्राम रस को दिन में 2 बार पीने से पेचिश और अतिसार (दस्त) के रोग ठीक हो जाते हैं।
- पुरानी पेचिश के रोग में चंागेरी के 4-5 पत्तों को उबालकर मट्ठे या दूध के साथ देने से बहुत लाभ मिलता है।
11. गुदाभ्रंश (कांच निकलना): चांगेरी के रस में घी को गर्म करके गुदा पर लेप करने से कांच का निकलना बंद हो जाता है।
12. रक्तस्राव: चांगेरी के पंचांग के रस की 5-10 मिलीमीटर मात्रा में दिन में 2 बार प्रयोग करने से पतली धमनियों का संकोचन होकर रक्तस्राव (खून का बहना) मिटता है।
13. जलन:
- चांगेरी के 10-15 पत्तों को पानी के साथ पीसकर पोटली बनाकर सूजन पर बांधने से सूजन की जलन मिट जाती है।
- चांगेरी के पत्तों का लेप छोटे बच्चों के फोड़े-फुन्सियों पर करने से लाभ होता है।
14. चौथिया ज्वर: चौथिया ज्वर में चांगेरी के 1 हजार पत्तों को पीसकर 16 गुने पानी में उबालना चाहिए जब यह गाढ़ा हो जाए तो इसमें इतना घी डालें कि यह रबड़ी जैसा हो जाए। इस रबड़ी को 5 से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से ज्वर (बुखार) 3 दिन में ठीक हो जाता है।
15. धतूरे का नशा: चांगेरी के ताजे पत्तों का 20-40 मिलीमीटर रस रोगी को पिलाने से धतूरे का नशा उतर जाता है।
16. बच्चों के दस्त: चांगेरी के पत्तों को निचोड़कर बने हुए रस को बच्चों को देने से बच्चों को अतिसार (दस्त) से छुटकारा मिल जाता है।
17. आंवरक्त: चांगेरी (तिनपतिया) की सब्जी रोगी को खिलाने से लाभ होता है। इसको फेंटकर 40 से 80 ग्राम का सेवन करने से आंव में खून का आना बंद हो जाता है।
18. पेट के अन्दर सूजन और जलन: चांगेरी के पत्तों को पीसकर शर्बत (ठण्डाई) के रूप में पीने से पेट की जलन शांत हो जाती है।
19. फोड़ा: फोड़ों पर चांगेरी (तिनपतिया) की सब्जी को पीसकर बांधने से उससे होने वाली जलन, दर्द और सूजन खत्म हो जाती है।
20. शरीर में सूजन : चांगेरी (तिनपतिया) की सब्जी को पीसकर सूजन वाले भाग पर बांधने से सूजन और उससे होने वाला दर्द तथा जलन दूर हो जाती है।
21. उन्माद ठीक करे चांगेरी का प्रयोग :
- चांगेरी (changeri) स्वरस, कांजी और गुड समभाग में लेकर भली भांति मथकर रोगी को पिलावें ।
- इसके पत्तों का घी में साग बनाकर उसमें अन्य मसाले न डालकर केवल नमक मिलाकर खिलावें।( और पढ़े – मानसिक रोग के कारण और इलाज )
22. अग्निमांद्य (भूख न लगना) रोग में चांगेरी का उपयोग फायदेमंद : पत्तों के साथ पोदीना, अदरख, नमक एवं कालीमिर्च मिलाकर चटनी बनाकर अथवा पत्तों की कढ़ी बनाकर खिलाने से लाभ होता है।
23. दस्त में आराम दिलाए चांगेरी का सेवन : पत्तों को छाछ में उबालकर रोगी को दिन में 2-3 बार खिलावें।
24. पेट दर्द में चांगेरी के सेवन से लाभ : पत्तों के क्वाथ में घी में सेकी हुई हींग तथा सेंधानमक मिलाकर खिलावें।
25. तृषा (अधिक प्यास लगना) मिटाए चांगेरी का उपयोग :
- पत्तों को घोटकर शक्कर के साथ शर्बत तैयार कर लें। इस शर्बत के सेवन से अधिक प्यास लगना,
- ज्वर, मूत्राशय का शोथ (सूजन) आदि दूर होकर यकृत् को बल मिलता है।( और पढ़े – अधिक प्यास लगने के 37 घरेलु उपचार )
26. अजीर्ण (खाना हजम न होना) में चांगेरी से फायदा : पत्तों को पीसकर पका कर गाढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाकर सेवन करावें।
27. स्वप्न प्रमेह (स्वप्न-दोष) दूर करने में चांगेरी करता है मदद : इसके पंचांग को जलाकर क्षारविधि से क्षार तैयार कर 250 मि.ग्रा. क्षार, 500 मि. ग्रा. हरिद्रा चूर्ण एवं एक ग्राम त्रिफला चूर्ण मिलाकर सेवन कराने से स्वप्नमेह के रोगी को लाभ होता है। ( और पढ़े – स्वप्नदोष के 15 अचूक आयुर्वेदिक इलाज )
28. गुदभ्रंश (prolapsus ani) में लाभकारी चांगेरी : इसके रस में घृत को सिद्ध कर गुदा पर लेप करावें तथा सेवनार्थ चांगेरी घृत को खिलावें।
चांगेरी घृत बनाने की विधि –
चांगेरी घृत के निर्माण प्रकार शास्त्रों में अनेक वर्णित हैं यहाँ पर एक विधि का वर्णन किया जाता है –
सोंठ, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, पिप्पली, गोखरू, धनियां, बेलगिरी, पाठा और अजवायन सब समभाग लेकर इनका कल्क बना लें। इस कल्क से चार गुना गाय का घी, घी से चार गुना चांगेरी स्वरस तथा स्वरस के बराबर दही एवं उतना ही पानी मिलाकर घृत सिद्ध कर लें।
ऐसे रोगी जो जीर्ण अतिसार से पीड़ित होते है। या संग्रहणी से ग्रस्त होते हैं उनके गुदभ्रंश (कांच निकलना) प्राय:हो जाया करता है उन रोगियों के लिये यह श्रेप्ट औषधि है। मात्रा-5-10 ग्राम।
गुदभ्रंश में चांगेरी घृत के साथ त्रिफला चूर्ण एवं लौह भस्म देने से अधिक लाभ होता है। इसके सेवन से अरुचि, आध्मान, अर्श, प्रवाहिका, मूत्रकृच्छ्र आदि रोगों का भी शमन होता है।
गुदभ्रंश में पंचांग का घनसत्व बना शुद्ध स्वर्ण गौरिक मिलाकर दें।
29. शीतपित्त में फायदेमंद चांगेरी का लेप : चांगेरी पत्र स्वरस में काली मिर्च का बारीक चूर्ण और गर्म किया हुआ घृत मिलाकर शरीर पर धीरे- धीरे मालिश करनी चाहिये।
30. नेत्ररोग ठीक करे चांगेरी का प्रयोग : चांगेरी के पत्तों को पीसकर नेत्रों पर बांधना चाहिये।
31.खूनी बवासीर (रक्तार्श) में फायदेमंद चांगेरी का औषधीय गुण : चांगेरी पंचांग का घनसत्व बनाकर उसमें बबूल का गोंद एवं चन्दन चूर्ण मिलाकर सेवन करावें। इसके सेवन से अन्य रक्त स्रावों में भी लाभ होता है।
32. शिरःशूल (सिरदर्द) मिटाता है चांगेरी : पंचांग को पानी में पीसकर, पकाकर उसमें प्याज का रस मिलाकर मस्तक पर तथा तालुप्रदेश पर मर्दन करें।
चांगेरी (तिनपतिया) के दुष्प्रभाव : Changeri ke Nuksan in Hindi
चांगेरी के कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं हैं फिर भी इसे आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले ।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)