Last Updated on July 23, 2019 by admin
दर्द आपका हमदर्द है :
दर्द को हम मनुष्य विपत्ति या आफ़त मानते हैं। यह हमारी भूल है।भ्रांति है। बचकानापन और अज्ञानता है। क्या हो यदि हार्ट अटैक के रोगी को दर्द ही न हो? क्या हो यदि पथरी के रोगी को भी दर्द न हो? क्या हो यदि प्रसूता को प्रसव पीड़ा नहीं हो? क्या हो यदि गाँठ वाले रोगी को कोई पीड़ा नहीं हो? क्या हो यदि ब्रेन ट्यूमर वाले को सिर दर्द न सताए? क्या हो यदि अस्थि भंग (Fracture) होने पर भी दर्द न हो? क्या हो यदि जल जाने की कोई पीड़ा न हो? क्या हो यदि घुटनों की समस्या वाले रोगी को घुटनों में कोई दर्द नहीं हो? ।
उपरोक्त प्रश्नों से आप क्या समझे? हाँ, यह स्पष्ट है कि दर्द हमारे लिए एक सूचक है, जो बताता है कि शरीर में कही कुछ गड़बड़ है या कोई बीमारी हमारे शरीर में अपना घर बना रही है, जिस पर हमें ध्यान देने की तुरंत आवश्यकता है। यदि हम इसे नज़रअंदाज़ करते हैं या फिर इसे किसी दर्दनिवारक दवा से दबाते हैं, तो हक़ीक़त में हम अपनी मुसीबतों को ही बढ़ा रहे होते हैं। आइए दर्द निवारक दवा के नुकसान को , मेरे रोगियों के सच्चे अनुभव से समझते हैं :
• मेरी एक रोगी को घुटने में दर्द था और चलने में तकलीफ़ हो रही थी। वह बेचारी इस दर्द को ही रोग समझ बैठी और दर्द की दवाई लेती रही, हर-दिन, रोज़ाना, बगैर नागा। लेकिन दो साल बाद उसके घुटने ने काम करना बंद कर दिया। वह जब मेरे पास परामर्श लेने आई तो मैंने एक्स-रे करवाया। तब पता चला कि घुटनों का जोड़ पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है। अब कोई उम्मीद भी नहीं थी, उसके पूरी तरह से ठीक होने की। यदि वह महिला दर्द को रोग न समझकर उसे एक संकेत समझती, तो शायद घुटनों के ख़राब होने का पता बहुत जल्दी लग जाता और घुटनों
को बचाया जा सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और अपने लिए मुसीबतों को बढ़ा लिया।
• एक युवक को बाएँ पैर में चुभने एवं करंट लगने जैसा दर्द होना शुरू हुआ। वह भी दर्द निवारक खाता रहा और अपने रोज़मर्रा के काम करता रहा। दर्द बढ़ रहा था उसके साथ ही दर्द निवारक की डोज़ भी। फिर क्या हुआ? दर्द से राहत मिल गई। क्यों? क्योंकि पैर सुन्न हो चुका था, सब सेंस या एहसास ख़त्म हो गए। मैंने एम.आर.आई. करवाई तो पता चला कि स्लिप डिस्क से सेंट्रल केनाल या स्पाइनल कॉर्ड बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी। अब केवल ऑपरेशन ही एक रास्ता बचा था। इस युवक ने भी दर्द को ही रोग समझ लिया और उसी का उपचार करता रहा और अपने रोग का उपचार या इलाज वक़्त रहते नहीं करवाया और अपंगता का शिकार हुआ।
• एक रोगी को दाईं पीठ और पेट के निचले हिस्से में दर्द रहता था। वह पहले बाम और तेल लगाकर इलाज करता रहा। जब दर्द नहीं गया तो उसने दर्द निवारक दवाइयाँ खाना शुरू कीं। कुछ हफ्तों तक खाने के बाद उसे सूजन और उल्टी की शिकायत होने लगी। मैंने सोनोग्राफ़ी करवाई तो पाया कि दाएँ यूरेटर (पेशाब की नली) में रुकावट है जिससे कि दाईं किडनी में पानी भर रहा था। इसे चिकित्सकीय भाषा में हाइड्रोनेफ्रोसिस कहते हैं, जिसके कारण रोगी को दर्द हो रहा था। उसने भी वही ग़लती दोहराई, जो अन्यों ने की थी – दर्द को सूचक समझने की जगह रोग समझ बैठे। अफ़सोस यह कि किडनी की समस्या को नज़रअंदाज़ करके किडनी की समस्या बढ़ाने
वाली दवाएँ लेते रहे हफ्तों तक, जिससे किडनी भी डेमेज़ हो गई।
उपरोक्त तीनों सत्य घटनाओं से स्पष्ट हो जाता है कि दर्द हमारे लिए कितना महत्त्वपूर्ण है, यह हमारे लिए जीवन रक्षक की तरह कार्य करता है। यह हमें आगाह करता है कि हम मुसीबत में है, हमें सहारे की आवश्यकता है।
यदि आप कहीं पर बैठे हैं और आपका हाथ एक गर्म वस्तु पर रख जाता है और वह आपके हाथ को जला रही होती है, और आपको इसका एहसास ही न हो, तो क्या होगा? आपका हाथ पूरा जल जाएगा और आपको पता ही नहीं चलेगा। तो क्या आप जीवन की कल्पना कर सकते हैं, दर्द के बिना? नहीं। आप जीवित नहीं रह सकते यदि आपको दर्द का अहसास न हो तो।
साँप के काट लेने पर यदि दर्द ही न हो, तो हम उसके ज़हर का उपचार कैसे करेंगे? अपेण्डिक्स के बस्ट होने से पहले यदि वह तेज़ दर्द से हमें आगाह नहीं करे तो हम उसका इलाज या सर्जरी कैसे करवा पाएँगे? | पथरी का दर्द, अल्सर का दर्द, गठानों का दर्द हमें सूचित करता है कि हम सचेत हो जाएँ और सचेत होकर अपने रोगों को दूर करने के लिए प्रयास करें।
पुन:श्च :
दर्द ईश्वर का एक वरदान है। दर्द हमारे लिए जीवनरक्षक है। यदि दर्द नहीं होगा तो हम जीवित भी नहीं रहेंगे या हमारी जीवित रहना बड़ा कठिन हो जाएगा। इसलिए हम दर्द को रोगों या बीमारियों का सूचक समझें। दर्द को ही रोग समझकर उसके इलाज में जुट जाना मूर्खता है। ऐसी ही मूर्खता महाकवि कालिदास के बारे में प्रसिद्ध है कि वे जिस डाली पर बैठे थे उसी को काट रहे थे। बाद में सत्य का ज्ञान होने पर कालिदास इतिहास के सबसे महान कवियों में शुमार हो गए। हम भी सत्य को समझें और अपने शरीर के महान रक्षक बनें, ऐसे रक्षक जैसा कि इतिहास में कभी नहीं हुआ।
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