Last Updated on July 27, 2024 by admin
दशमूलारिष्ट क्या है ? : What is Dashmularishta in Hindi
आयुर्वेद में दशमूल की बहुत प्रशंसा की गई है। दस प्रकार की जड़ों वाला योग होने से इसे ‘दशमूल’ कहते हैं। ये दस जड़ें इन वनस्पतियों की होती हैं बेल, गम्भारी, पाटल, अरनी, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गोखरू । इनके शास्त्रीय नाम क्रमशः इस प्रकार हैं- बिल्व, श्रीपर्णी, पाटला, अग्निमन्थ, श्योनक, शालपर्णी, पृश्रिपर्णी, वार्ताकी, कण्टकारी और गोक्षुर।
यह योग ‘दशमूलारिष्ट’ नाम से बाटल के पेकिंग में बना बनाया आयुर्वेदिक दवाओं के स्टोर्स से खरीदा जा सकता है। सूखे दशमूल काढ़े के रूप में कुटा पिसा हुआ यह योग कच्ची देशी दवाओं की दुकान से खरीदा जा सकता है। इस औषधि के घटक द्रव्य (फार्मूला) इस प्रकार हैं ।
दशमूलारिष्ट के घटक द्रव्य : Dashmularishta Ingredients in Hindi
✦ सभी दस जड़ों का मिश्रण – 2 किलो
✦ चित्रक छाल – 1 किलो
✦ पुष्कर मूल – 1 किलो
✦ लोध्र – 800 ग्राम
✦ गिलोय -800 ग्राम
✦ आंवला – 640 ग्राम
✦ जवासा – 480 ग्राम
✦ खैर की छाल या कत्था – 320 ग्राम
✦ विजयसार – 320 ग्राम
✦ गुठली रहित बड़ी हरड़ – 320 ग्राम
✦ कूठ – 80 ग्राम
✦ मजीठ – 80 ग्राम
✦ देवदारु – 80 ग्राम
✦ वायविडंग – 80 ग्राम
✦ मुलहठी – 80 ग्राम
✦ भारंगी – 80 ग्राम
✦ कबीटफल का गूदा – 80 ग्राम
✦ बहेड़ा – 80 ग्राम
✦ पुनर्नवा की जड़ – 80 ग्राम
✦ चव्य – 80 ग्राम
✦ जटामासी – 80 ग्राम
✦ फूल प्रियंगु – 80 ग्राम
✦ सारिवा – 80 ग्राम
✦ कालाजीरा – 80 ग्राम
✦ निशोथ – 80 ग्राम
✦ रेणुका बीज (सम्भालू बीज) – 80 ग्राम
✦ रास्ना – 80 ग्राम
✦ पिप्पली – 80 ग्राम
✦ सुपारी – 80 ग्राम
✦ कचूर – 80 ग्राम
✦ हल्दी – 80 ग्राम
✦ सोया (सूवा) पद्म काठ – 80 ग्राम
✦ नागकेशर – 80 ग्राम
✦ नागर मोथा – 80 ग्राम
✦ इन्द्र जौ – 80 ग्राम
✦ काकड़ासिंगी – 80 ग्राम
✦ विदारीकन्द – 80 ग्राम
✦ शतावरी – 80 ग्राम
✦ असगन्ध – 80 ग्राम
✦ वराहीकन्द – 80 ग्राम
✦ मुनक्का – ढाई किलो
✦ शहद – सवा किलो
✦ गुड़ – 30 किलो
✦ धाय के फूल – सवा किलो
✦ शीतलचीनी – 80 ग्राम
✦ सुगन्धबाला या खस – 80 ग्राम
✦ सफ़ेद चन्दन – 80 ग्राम
✦ जायफल – 80 ग्राम
✦ लौंग – 80 ग्राम
✦ दालचीनी – 80 ग्राम
✦ इलायची – 80 ग्राम
✦ तेजपात – 80 ग्राम
✦ पीपल – 80 ग्राम
✦ नागकेशर – 80 ग्राम
✦ कस्तूरी – 3 ग्राम
दशमूलारिष्ट बनाने की विधि :
दशमूल से लेकर वराहीकन्द तक की औषधियों को मात्रा के अनुसार वज़न में लेकर मोटा मोटा जौकुट करके मिला लें और जितना सबका वज़न हो उससे आठ गुने पानी में डाल कर उबालें। चौथाई जल बचे तब उतार लें। मुनक्का अलग से चौगुने अर्थात 10 लिटर पानी में डाल कर उबालें जब साढ़े सात लिटर पानी शेष बचे तब उतार लें। अब दोनों काढ़ों (औषधि और मुनक्का) को मिला कर इसमें शहद और गुड़ डाल कर मिला लें। अब धाय के फूल से लेकर नागकेशर तक की 11 दवाओं को खूब महीन पीस कर काढ़े के मिश्रण में डाल दें।
इस मिश्रण को मिट्टी या लकड़ी की बड़ी कोठी में भर कर मुंह पर ढक्कन लगा कर कपड़ मिट्टी से ढक्कन बन्द कर 40 दिन तक रखा रहने दें। 40 दिन बाद खोल कर छान लें और कस्तूरी पीस कर इसमें डाल दें। कस्तूरी न भी डालें तो हर्ज़ नहीं। अब इसे बोतलों में भर दें। दशमूलारिष्ट तैयार है। यह फार्मूला लगभग 35 से 40 लिटर दशमूलारिष्ट तैयार करने का है। कम मात्रा में बनाने के लिए सभी घटक द्रव्यों और जल की मात्रा को उचित अनुपात में घटा लेना चाहिए।
यह विधि हमने “भैषज्य रत्नावली” “आयुर्वेद सार संग्रह” और “रसतन्त्र सार व सिद्ध प्रयोग संग्रह” नामक तीन श्रेष्ठ और प्रामाणिक आयुर्वेदिक ग्रन्थों के आधार पर उन पाठकों के आग्रह पर प्रस्तुत की है। हमारी राय में जो चीज अच्छे औषधि निर्माताओं द्वारा बनाई हुई बाज़ार में मिल जाती हो उसे बाज़ार से खरीद कर ही प्रयोग कर लेना चाहिए। इससे समय श्रम और धन की बचत होती है और निर्माण में भूल-चूक होने की सम्भावना भी नहीं रहती।
औषधि बनाने की योग्यता, क्षमता, कुशलता, विधि विधान की जानकारी और पूर्व अनुभव के साथ-साथ नुस्खा बनाने के लिए ज़रूरी उपकरणों और पात्रों का होना आवश्यक है, जिसके अभाव में सब काता-कूता कपास हो जाता है।
दशमूलारिष्ट की खुराक : Dashmularishta Dosage in Hindi
दशमूलारिष्ट 2-2 चम्मच आधा कप पानी में घोल कर, सुबह शाम के भोजन के बाद पी लेना चाहिए।
दशमूलारिष्ट के उपयोग : Dashmularishta Uses in Hindi
- दशमूलारिष्ट बहुत सी व्याधियों को नष्ट करने वाला और प्रसूता स्त्रियों के लिए अमृत के समान गुण करने वाला श्रेष्ठ योग है।
- भैषज्य रत्नावली के अनुसार यह संग्रहणी, अरुचि व शूल रोग ठीक करता है ।
- दशमूलारिष्ट श्वास, खांसी, भगन्दर तथा वात रोग दूर करने वाला श्रेष्ठ आयुर्वेदिक योग है।
- यह क्षय, वमन, पाण्डुरोग, कामला, कुष्ठ, प्रमेह, मन्दाग्नि तथा समस्त उदर रोगों को दूर करने वाला उत्तम योग है।
- दशमूलारिष्ट शकर, पथरी, मूत्रकृच्छ तथा धातुक्षीणता आदि व्याधियों को नष्ट करता है ।
- यह दुबले व कमज़ोर मनुष्यों को पुष्टि एवं स्त्रियों के गर्भाशय सम्बन्धी दोष दूर कर उन्हें सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता प्रदान करता है।
- यह शरीर में बल, तेज और वीर्य की वृद्धि करता है।
‘आयुर्वेद सार संग्रह’ और ‘रसतन्त्रसार व सिद्ध प्रयोग संग्रह’ नामक ग्रन्थों में ‘भैषज्य रत्नावली’ का समर्थन करते हुए अनुभूत प्रयोगों के आधार पर इसके और भी उपयोग एवं लाभ बताये हैं जिनके आधार पर कुछ लाभदायक प्रयोग प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
दशमूलारिष्ट के फायदे : Dashmularishta Benefits in Hindi
1. प्रसूता स्त्रियों के लिए दशमूलारिष्ट का उपयोग फायदेमंद
प्रसूता स्त्रियों के लिए यह योग बहुत ही हितकारी है और प्रसव के बाद इसका सेवन करने से प्रसूता ज्वर, खांसी, अग्निमांद्य, कमज़ोरी आदि व्याधियों से बची रहती है, प्रसूति-रोगों से रक्षा होती है, रक्तस्राव के कारण आई निर्बलता दूर होती है और स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। प्रसव के दिन से ही सुबह शाम 2-2 चम्मच दवा, उबाल कर ठण्डा किये हुए आधा कप पानी में घोल कर 40 दिन तक सेवन करने से प्रसूता सभी व्याधियों से बची रह सकती है और प्रसव से पूर्व से भी अच्छी शारीरिक स्थिति प्राप्त कर सकती है। प्रसूता स्त्री को प्रसव काल से ही इसका सेवन शुरू कर देना चाहिए और कम से कम 40 दिन तक अवश्य लेना चाहिए।
2. गर्भाशय की कमजोरी में दशमूलारिष्ट के प्रयोग से लाभ
यह स्त्रियों के गर्भाशय की कमज़ोरी और अशुद्धि को दूर कर गर्भाशय को पुष्ट, बलवान
और शुद्ध करता है साथ ही शरीर को भी पोषण प्रदान कर पुष्ट व शक्तिशाली बनाता है लिहाज़ा जिन महिलाओं का गर्भाशय, गर्भ धारण करने में असमर्थ हो, गर्भाशय की शिथिलता, निर्बलता, शोथ या अन्य विकृति के कारण बार-बार गर्भ स्राव या गर्भपात हो जाता हो, गर्भाधान ही न होता हो, यदि गर्भकाल पूरा हो भी जाए तो सन्तान रोगी, दुबली-पतली व कमज़ोर हो तो ऐसी सभी व्याधियों को नष्ट करने के लिए दशमूलारिष्ट का प्रयोग अत्युत्तम और निस्सन्देह गुणकारी है।
3. सूतिका ज्वर से रक्षा करे दशमूलारिष्ट का प्रयोग
प्रसव के बाद नवप्रसूता की कोख में उठने वाले ‘मक्कल शूल’ के लिए दशमूल बहुत ही लाभदायक है। यह योग इतना गुणकारी और उपयोगी है कि प्रसूता स्त्री की, ‘सूतिका ज्वर’ जैसे भयंकर रोग से शर्तिया रक्षा करता है। सूतिका ज्वर यदि ठीक न हो तो प्रसूता स्त्री के शरीर और स्वास्थ्य के लिए तपेदिक के समान नाशक और घातक सिद्ध होता है। यह ज्वर अति भयंकर होता है और आसानी से पीछा नहीं छोड़ता। इस ज्वर में शरीर का टेम्परेचर 103 से 105 डिग्री तक चला जाता है जिससे प्रसूता स्त्री भयंकर प्यास, व्याकुलता, सिर दर्द, बेहोशी आदि से त्रस्त हो जाती है। हालात बिगड़ जाएं तो सन्निपात के लक्षण प्रकट हो जाते हैं जिसमें अण्टशण्ट बोलना, दांत किटकिटाना, उछल कूद करना आदि शामिल है। दशमूलारिष्ट इन सब व्याधियों से रक्षा करता है।
4. दूध की कमी में लाभकारी है दशमूलारिष्ट का सेवन
प्रसूता को दूध कम उतरता हो तो 10 ग्राम शतावरी को जौकुट (मोटा – मोटा) कूट कर पाव भर पानी में उबालें। जब एक चौथाई पानी बचे तब उतार कर छान लें और ठण्डा कर लें। इसमें एक बड़ा चम्मच भर दशमूलारिष्ट डाल लें। इसे 2-3 सप्ताह इसी विधि से सुबह-शाम या भोजन के बाद पीने से प्रसूता के स्तनों में खूब दूध आने लगता है।
5. खांसी का दौरा में दशमूलारिष्ट के इस्तेमाल से फायदा
खांसी का खब दौरा पड़ता हो, खांसते खांसते तबीअत बेहाल हो जाती हो, पीठ व पेट में, खांसने से, दर्द होने लगता हो, कफ निकल जाने पर आराम मालूम देता हो तो दशमूलारिष्ट एक बड़े चम्मच भर मात्रा में बराबर भाग जल में मिलाकर 3-3 घण्टे से पिलाना चाहिए। इससे कफ आसानी से निकल जाता है और खांसी का दौरा समाप्त हो जाता है। वातजन्य खांसी में इसके सेवन से शर्तिया आराम होता है। सूखी खांसी चलना और मुश्किल से कफ निकलना वातजन्य खांसी की खास पहचान है। तैल खटाई और ठण्डी चीज़ों का सेवन बन्द रखना चाहिए। सन्निपात के ज्वर में भी इसी विधि से यह प्रयोग करना चाहिए।
6. भगन्दर और घाव में दशमूलारिष्ट का उपयोग लाभदायक
भगन्दर रोग में गुदा में घाव हो जाते हैं जिनसे पस बहता रहता है और छिद्रों से मल भी निकलने लगता है। आपरेशन कराने पर भी जब यह रोग ठीक नहीं होता तब दशमूलारिष्ट के सतत सेवन से इसमें लाभ होता है। घाव सूख जाते हैं और रोग से मुक्ति मिल जाती है।
7. वात व्याधि एवं अस्थि क्षय में दशमूलारिष्ट के इस्तेमाल से लाभ
- वात प्रकोप से होने वाले रोग जैसे जोड़ों में, कमर और पीठ में दर्द होना, कमज़ोरी मालूम देना, पूरे शरीर में हड़फूटन और हलका सा बुखार जैसा लगना, हड्डी कमज़ोर होना, चलने फिरने से थकावट और पैरों में दर्द होना आदि व्याधियों के लिए दशमूलारिष्ट का प्रयोग लाभदायक है।
- भोजन के बाद दोनों समय दशमूलारिष्ट 4-4 चम्मच की मात्रा में पानी मिलाकर लेने से वात रोग में लाभ होता है ।
- वात रोग में योगराज गुग्गुलु की 3-3 गोली गर्म पानी से प्रातः सांय व दशमूलारिष्ट 4-4 चम्मच पानी मिलाकर भोजन के बाद दोनों समय लें।
8. सूजन ठीक करे दशमूलारिष्ट का प्रयोग
शरीर के किसी भाग में सूजन (शोथ) होने पर दशमूलारिष्ट का सेवन परम हितकारी है। यह गर्भाशय के शोथ को दूर करने की श्रेष्ठ औषधि है।
9. शरीर के रोम कूपों खोलता है दशमूलारिष्ट
दशमूलारिष्ट के 4-4 चम्मच पानी मिलाकर और अरोग्य वर्द्धनी वटी की 2-2 गोलियां पानी से
भोजन के बाद दोनों समय लें।
दशमूलारिष्ट के नुकसान : Dashmularishta Side Effects in Hindi
- दशमूलारिष्ट लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- जिस स्त्री या पुरुष का पित्त कुपित हो, मुंह में छाले हों, गरम-गरम पानी जैसे पतले दस्त लग रहे हों, प्यास और जलन का अनुभव होता हो उसको दशमूलारिष्ट का सेवन नहीं करना चाहिए।
- इस दवा को अधिक मात्रा में लेने से सीने व पेट में जलन, अधिक प्यास लगना व जलन के साथ दस्त लगना जैसी परेशानियाँ हो सकती है ।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।