चंदन के फायदे ,औषधीय गुण और उपयोग | Chandan Ke Fayde Hindi Me

Last Updated on April 25, 2022 by admin

चंदन का परिचय एवं स्वरूप : sandalwood in hindi

चंदन के वृक्ष सामान्य वृक्षों की तरह ही होते हैं, लेकिन चंदन के सदाबहार वृक्ष अपने अनूठे गुणों एवं उपयोग के कारण सदा आकर्षण का केंद्र रहे हैं। भारतीय समाज में चंदन का विशिष्ट स्थान है।

वैसे तो चंदन सारे भारत में पाया जाता है, लेकिन इसके वृक्षों की सबसे अधिक संख्या कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में है। नीलगिरि पर्वतमाला से लेकर उ.प्र. कर्नाटक तक इस लंबे चौड़े क्षेत्र में लाखों की संख्या में चंदन वृक्ष पाए जाते हैं। केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा में भी इसके वृक्ष जंगली अवस्था में उगे हुए मिलते हैं। अन्य राज्यों में भी इसे लगाया जा रहा है। भारत के अलावा इंडोनेशिया, मलाया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मलेशिया, चीन आदि में भी चंदन वृक्ष पाए जाते हैं।

चंदन का विविध भाषाओं में नाम :

  • अंग्रेजी – Sandal wool,
  • गुजराती – सुकेत, सुखड़;
  • बँगला – श्वेत चंदन
  • मराठी – चंदन;
  • मलयाम – चंदनम
  • संस्कृत – श्रीखंड, भद्रश्री, चंदद्युति, मलयज;
  • हिंदी – चंदन, सफेद चंदन।

चंदन के औषधीय गुण : chandan ke aushadhi gun

आयुर्वेद चिकित्सा ग्रंथों में इसे लघु, रूक्ष, तिक्त, विपाक, कटु, मधुर, शीतवीर्य, कफ-पित्तशामक, ग्राही, सौमनस्यजनक, मेध्य, रक्तशोधक, हृद्य, कफनिस्सारक, श्लेष्म-पूतिहर, मूत्रल, स्वेदल, अंगमर्द-प्रशमन, मूत्र मार्ग के लिए शोथ प्रशमन, विषघ्न तथा आमाशय, आँत एवं यकृत के लिए वल्य बताया गया है। यूनानी चिकित्सा में चंदन दस्त-अतिसार शामक, चिड़चिड़ापन एवं मानसिक रोगों में अत्यंत प्रभावकारी ओषधि है।

चंदन के उपयोग : chandan ke upyog

  • भारतीय समाज में पूजा-अर्चना तथा धार्मिक अनुष्ठानों में इसका विशेष महत्त्व है। आज भी चंदन-लेपन पर्याप्त लोकप्रिय है। सौंदर्य-प्रसाधनों में हलका सर्वाधिक उपयोग है।
  • चंदन तथा चंदन-तेल का भारतीय चिकित्सा में विशेष महत्त्व है।
  • चंदन का शरबत बनाया जाता है। चंदन की लकड़ी की नक्काशी करके अनेक सुंदर चीजें बनाई जाती हैं।
  • हिंदुओं के अंतिम संस्कार में चंदन-चिता बनाई जाती है।

चंदन के फायदे व रोगों का उपचार : chandan ke fayde in hindi

आयुर्वेदिक चिकित्सकों की सम्मति में यह मात्र पूजा-पाठ में ही काम नहीं आता है, बल्कि एक चमत्कारिक ओषधि भी है।

1. दस्त-अतिसार : chandan ke fayde dast me ज्यादा पतले दस्त हों, चाहे बच्चे हों या बूढ़े, तो चंदन को घिसकर शहद, खाँड़ या मिश्री के साथ घोल बनाकर दिन में तीन बार पिलाएँ। फायदा अवश्य होगा। ( और पढ़े –दस्त रोकने के 33 घरेलु उपाय )

2. प्रमेह व रक्तपित्त : chandan ke fayde prameha me सफेद चंदन को घिसकर शहद और खाँड़ मिला लें। अब इसे चावल के पतले माँड़ के साथ प्रातः-शाम सेवन करें। तेज मसालों एवं गरिष्ठ भोजन से बचें। इससे रक्तातिसार में भी बड़ा आराम मिलता है।

3. फोड़ा-घाव : chandan ke fayde fode funsi me चंदन के पत्तों को पीसकर लुगदी जैसी बना लें। अब इसे गाँठ-फोड़ा पर अच्छी तरह बाँध दें। इसके लगातार उपयोग से फोड़ा पककर पीप निकल जाती है। पुराने घावों पर भी बाँधे तो घाव जल्दी भर जाते हैं। ( और पढ़े – फोड़े फुंसी बालतोड़ के 40 घरेलू उपचार)

4. लू और दाह : chandan ke fayde lu me प्रचंड गरमी के मौसम में झुलसा देनेवाली गरम लू से बचने के लिए हाथपैरों एवं मस्तक पर चंदन का लेप करना चाहिए। इसके अलावा चंदन, पुदीना तथा नीबू का शरबत खाँड़ या शहद मिलाकर पिएँ। इससे शरीर की गरमी, दाह तथा बेचैनी दूर होती है। ( और पढ़े –गर्मी और लू से बचाव के 15 सबसे असरकारक देसी नुस्खे )

5. त्वचा की दुर्गंध : त्वचा की दुर्गंध मिटाने तथा त्वचा को सुकोमल बनाने के लिए चंदन का उबटन या चंदन-तेल की मालिश करनी चाहिए। स्नान करते समय पानी में चार-छह बूंद नीबू रस की मिला लें। इससे दिन भर ताजगी महसूस होगी।
( और पढ़े –पसीने की बदबू से छुटकारा पाने के 15 सरल उपाय )

6. घाव भरने-सुखाने : chandan ke fayde ghav bharne me जलने या किसी भी कारण से घाव बन गए हैं और बार-बार भर जाते हैं। तो चंदन की लकड़ी के टुकड़े बारीक पीसकर पाउडर बना लें। पहले घाव पर नारियल या सरसों का तेल लगाकर चंदन-पाउडर बुरक दें। इससे घाव जल्दी भर जाते हैं।

7. स्मरणशक्ति मजबूत : chandan ke fayde smaran shakti badhane me नित्य प्रातः स्नान कर ललाट पर चंदन का लेप किया करें, साथ ही दो छोटी इलायची और एक लौंग चबा लिया करें। इसके नित्य प्रयोग से दिमागी की गरमी दूर होगी और स्मरणशक्ति बढ़ेगी। ( और पढ़े – यादशक्ति बढ़ा कर दिमाग को तेज करते है यह 42 आयुर्वेदिक नुस्खे)

8. सूजाक रोग : सूजाक से पीड़ित रोगी को चंदन के तेल 10-12 बूंदें दिन में तीन बार दूध या किसी भी तरह सेवन करनी चाहिए। यदि दर्द और जलन ज्यादा हो तो यह मात्रा तीन-तीन घंटे बाद भी ले सकते हैं।

9. तृषा तथा पाचन : chandan ke fayde pachan me गरमी की ऋतु में जब प्यास बार-बार लगती हो, शरीर में दाह तथा गरमी से बेचैनी हो तो चंदन को घिसकर नारियल के पानी में मिलाकर पिलाना चाहिए। इसके नियमित सेवन से पाचन-संबंधी गड़बड़ी भी दूर हो जाती हैं।

10. खाज-खुजली : chandan ke fayde khaj khujli me खुजाते-खुजाते त्वचा लाल पड़ जाती है या दाने से उठ आते हैं और खुजली शांत नहीं होती, तब उस स्थान पर चंदन का तेल, यह उपलब्ध न हो तो चंदन का लेप लगाना चाहिए। इससे इन विकारों में बड़ा आराम मिलता है।
रक्त संबंधी विकारों में चंदन को घिसकर शहद और अदरक के रस के साथ प्रातः-सायं नित्य सेवन करना चाहिए। इससे रक्त शुद्ध होता है।

11. कील-मुंहासे :chandan ke fayde kil muhase me

  • चंदन को घिसकर उसमें भुनी फिटकरी, कालीमिर्च बराबर मात्रा में लेकर लेप बना लें। रात को सोने से पूर्व इसका चेहरे पर लेप करें। प्रातः गुनगुने पानी से धो लें। यह क्रिया एक-दो सप्ताह तक प्रयोग में लाएँ। इसके अलावा चंदन, हल्दी और बेसन अथवा जौ का आटा मिलाकर उसी प्रकार लेप करें और प्रात: धो लें।
  • चंदन, रसौंत तथा कपूर को घिसकर मुँहासों पर लगाने से ये मिट जाते हैं।
  • चंदन का तेल रात को मुँहासों पर लगा लिया करें, तो वे ठीक हो सकते हैं।
  • लगभग चौथाई चम्मच चंदन का बुरादा तथा इतनी ही पिसी हल्दी और थोड़ा सा पिसा जायफल–तीनों को मिलाकर मुँहासों पर लगाएँ, फिर घंटः भर बाद धो लें।

12. झुर्रियाँ व कालापन : chandan ke fayde sundarta badhane me चंदन के पाउडर में गुलाब जल मिलाकर चेहरे तथा गरदन पर हलकी मालिश करें। सूखने के आधा घंटे बाद ताजा पानी से धो लें। इसके नित्य प्रयोग से त्वचा में कसावट आएगी, झुर्रियाँ दूर होंगी तथा गरदन पर की काली लकीरें मिट जाएँगी। इससे त्वचा भी कमनीय हो जाएगी।

13. घमोरियाँ : chandan ke fayde ghamoriya me घमोरियों से राहत पाने के लिए चंदन को जल में घिसकर घमोरियों पर लगाएँ अथवा चंदन का पाउडर छिड़क दें। घमोरियाँ शांत होकर गरमी से भी काफी राहत मिलती है।

14. होंठों की कमनीयता : hotho ko gulabi bnane me chandan ke fayde चंदन घिसकर उसमें मक्खन या मलाई मिलाकर रात को सोने से पूर्व होंठों पर लगा लिया करें। कोमलता के साथ होंठ चमकीले गुलाबी और मुलायम बन जाएँगे।

15. त्वचा का रूखापन : twacha ka rukhapan dur karne me chandan ke fayde चंदन को घिसकर उसमें गुलाब जल मिलाकर त्वचा पर लेप करें। नित्य प्रयोग से त्वचा सुकोमल और चमकदार बन जाएगी।

16. दाग-धब्बे-झाँइयाँ : chehre ke daag dhabbe hatane me chandan ke fayde उबटन में चंदन का बुरादा, हल्दी मिला लें। इसे नित्य चेहरे पर लगाया करें। इसके कुछ दिनों के प्रयोग से दाग-धब्बे मिट जाते हैं और चेहरा खिला-खिला नजर आता

18. एक्जिमा : chandan ke fayde eczema me चन्दन एक्जिमा जैसे गम्भीर रोग में भी उपयोगी है। इसके लिए चन्दन के तेल में नीबू का रस मिलाकर प्रभावित भाग पर लगाते हैं। इससे एक्जिमा ठीक हो जाता है। चन्दन के तेल में चाल मोगरा का तेल मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है।

19. मुहाँसे : चन्दन की सहायता से मुहाँसों की बड़ी कारगर औषधि तैयार की जाती है। इसके लिए चन्दन की लकड़ी का बुरादा, नीम की छाल का बुरादा, बकाइन की छाल का बुरादा, सूखा धनिया, चना मुरदार संग, सफेद काशगिरी सभी बराबर-बराबर लेकर, कूट-पीसकर कपड़छन करके महीन चूर्ण तैयार कर लेते हैं। इस चूर्ण को गाय के दूध में मिलाकर आग पर चढ़ा देते हैं और निरन्तर चलाते रहते हैं। गाढ़ा हो जाने पर इसे ठंडा करके चौड़े मुँह की बोतलों में भरकर सीलबन्द कर देते हैं। इस औषधि को रात में सोते समय मुँह धोकर पूरे चेहरे पर मलें और प्रातःकाल गुनगुने पानी से चेहरा धो लें। एक माह तक ऐसा करने से मुहाँसे समाप्त हो जाते हैं और चेहरे पर दाग भी नहीं पड़ते।

20. झाइयाँ : चन्दन की सहायता से चेहरे को आकर्षक बनाया जा सकता है। इसके लिए चन्दन, लाल चन्दन, कठ, मजीठ, लोध, प्रियंग के फूल, बरगद के अंकुर और मसूर बराबर-बराबर लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। प्रतिदिन पाँच ग्राम चूर्ण पानी में मिलाकर लेप करने से चेहरे की झाइयाँ समाप्त हो जाती हैं और चेहरा चमकने लगता है।

21. आँखों के रोग :

  • चन्दन का उपयोग आँखों की औषधियाँ तैयार करने के लिए भी किया जाता है। आँखों से पानी आने पर अथवा जलन होने पर चन्दन एक भाग, सेंधा नमक दो भाग, हरड़ तीन भाग और पलाश के पत्तों का रस चार भाग लेकर सभी को कूट-पीसकर कपड़छन करके अंजन तैयार कर लेते हैं। इस अंजन को रात में सोते समय आँखों में लगाने से आँखों के कई रोग दूर हो जाते हैं।
  • इसी प्रकार चन्दन, त्रिफला, सुपारी और पलाश के गोंद को कूट-पीसकर कपड़छन करके बारीक चूर्ण बनाकर इसे पानी में सानकर इसकी बत्ती बनाकर आँखें आँजने से भी आँखों के विकार मिटते हैं।

चन्दन की आयुर्वेदिक दवा : chandan ke ayurvedic dawa

1. पित्त सम्बन्धी रोग :

  • चन्दन की सहायता से, पित्त के कारण होनेवाले रोगों, विशेष रूप से ज्वर के लिए एक उपयोगी औषधि तैयार की जाती है। इसके लिए 100 ग्राम चन्दन का चूर्ण लेकर 250 ग्राम गुलाब के अर्क में शाम के समय भिगो देते हैं। अगले दिन प्रातःकाल इस मिश्रण में 250 ग्राम पानी मिलाकर धीमी-धीमी आँच पर पकाते हैं। आधा पानी रह जाने पर उतारकर ठंडा कर लेते हैं और छान लेते हैं। अब इस छने हुए द्रव में 500 ग्राम मिश्री मिलाकर पुनः आग पर चढ़ाते हैं और धीमी-धीमी आँच पर पकाते हैं। गाढ़ी चाशनी जैसा हो जाने पर इसे उतार लेते हैं। अब छोटी इलायची, मुलैठी, शीतल चीनी, सत गिलोय 12-12 ग्राम तथा तवाखीर और वंशलोचन 6-6 ग्राम एवं 15 ग्राम कपूर लेकर सभी को मिलाकर कूट-पीसकर, कपड़छन करके बारीक चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को चाशनी में मिलाकर उसमें सोने अथवा चाँदी का बर्क मिला लेते हैं। इस औषधि को दिन में दो बार सेवन करने से पित्त सम्बन्धी सभी विकार दूर हो जाते हैं।
  • चन्दन की सहायता से पित्त सम्बन्धी विकारों की एक अन्य औषधि भी तैयार की जाती है। इसके लिए चन्दन का बुरादा 2.5 किलोग्राम, शक्कर 5 किलोग्राम और मुनक्का 2.5 किलोग्राम लेकर 20 लीटर पानी में गला देते हैं और आसव पात्र में रखकर मुँह बन्द कर देते हैं। एक माह में आसव तैयार हो जाता है। इसे चन्दनासव कहते हैं। यह आसव पित्त सम्बन्धी विकार दूर करने के साथ ही मूत्र सम्बन्धी अनेक विकार दूर करता है।

2. पित्त सम्बन्धी ज्वर : 25 ग्राम चन्दन का बुरादा, सियाहतरा और गावजवाँ 6-6 ग्राम और 7 उन्नावदाने लेकर कूट-पीसकर 400 ग्राम पानी में डालकर आग पर चढ़ाते हैं तथा धीमी-धीमी आँच पर पकाते हैं। तिहाई पानी रह जाने पर इसे उतारकर ठंडा करके छान लेते हैं। और इसमें 25 ग्राम शहद मिला लेते हैं। इस औषधि का दिन में एक बार सेवन करने से भी पित्त सम्बन्धी ज्वर में लाभ होता है।

3. सूजाक :

  • वैद्य उपेन्द्रनाथ ने सूजाक के लिए एक सफल प्रयोग का विवरण दिया है। इसके लिए वंशलोचन, कीकर, गोंद, सफेद कत्था और छोटी इलायची 6-6 ग्राम लेकर सभी को अलग-अलग कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बना लेते हैं। इसके बाद इन सभी को 10 ग्राम चन्दन के तेल में डालकर खरल में घोंटते हैं तथा अन्त में इसमें 720 ग्राम गुलाब का अर्क मिलाकर एक बोतल में भर लेते हैं। इस औषधि को दिन में दो बार 30-30 ग्राम लेने से सूजाक के रोगी को लाभ होता है। इसमें प्रयुक्त होनेवाली औषधियाँ गुलाब के अर्क में घुलती नहीं हैं। अतः औषधि देने के पूर्व बोतल को हमेशा अच्छी तरह हिला लेना चाहिए।
  • वैद्य धीरेन्द्र मोहन भट्ट ने सूजाक के लिए एक अन्य उपयोगी औषधि का विवरण दिया है। इसे तैयार करने के लिए चन्दन का बुरादा, रूमी मिस्तंगी, शीतल चीनी, बड़ी इलायची, दालचीनी और गोक्षुर चूर्ण सभी 100-100 ग्राम लेते हैं और सभी को कूट-पीसकर कपड़छन करके बारीक चूर्ण बना लेते हैं। इसके बाद इस चूर्ण के बराबर इसमें मिश्री मिला लेते हैं और एक चौड़े मुँहवाली बोतल में भर लेते हैं। यह औषधि प्रतिदिन 3 ग्राम से 12 ग्राम तक, सुबह-शाम ताजे पानी अथवा दूध के साथ सेवन करने पर सूजाक रोगी को निश्चित रूप से लाभ होता है।

4. प्रदर रोग : चन्दन की सहायता से सामान्य प्रदर और रक्त प्रदर की उत्तम औषधि तैयार की जाती है। इसके लिए चन्दन, लाल चन्दन, खस, मुलैठी और अश्वगन्धा सभी 50-50 ग्राम लेकर कूट-पीसकर कपड़छन करके महीन चूर्ण बना लेते हैं। यह चूर्ण सुबह-शाम 3-3 ग्राम, 12 ग्राम शहद और 12 ग्राम लाजवन्ती के रस के साथ लेने से प्रदर में लाभ होता है। इस औषधि का सेवन करते समय दही, चावल, खटाई और मिर्च का परहेज करना चाहिए।

5. हृदयरोग : चन्दन हृदयरोग और शारीरिक कमजोरी जैसे रोगों में भी उपयोगी है। इसके लिए चन्दन, वंशलोचन, धनिया, सारिवा, कंकोल, खस, केशर, सतावर का चूर्ण और गिलोयसत 12-12 ग्राम लेकर, कूट-पीसकर कपड़छन करके बारीक चूर्ण तैयार कर लेते हैं एवं इसे एक पात्र में रख देते हैं। इसके बाद बिजौरा नीबू का रस 1 किलोग्राम तथा अनार का रस और नारियल का पानी 500-500 ग्राम लेकर इसे धीमी आँच पर पकाते हैं। यह जब अवलेह जैसा गाढ़ा हो जाए तो इसे उतारकर ठंडा कर लेते हैं और पात्र में रखा चूर्ण इसमें मिलाकर घोंट लेते हैं। इस औषधि को चन्दनावलेह कहते हैं। प्रतिदिन सुबह-शाम 12 से 15 ग्राम तक चन्दनावलेह का सेवन करने से शरीर शक्तिशाली बनता है और हृदयरोग समाप्त होता है। शरीर में बहुत गर्मी होने पर अथवा बार-बार मूच्छ आने पर भी इसका सेवन किया जाता है।

6. मानसिक तनाव : मानसिक तनाव, घबराहट एवं मूत्र सम्बन्धी रोगों, विशेष रूप से सूजाक होने पर एक विशेष औषधि का उपयोग करते हैं। इसे खमीरा चन्दन अथवा चन्दन पाक कहते हैं। चन्दन पाक तैयार करने के लिए 120 ग्राम चन्दन का बुरादा लेकर इसे गुलाबजल में मिलाकर सिलबट्टे की सहायता से बहुत महीन पीस लेते हैं। अब इस चटनी जैसे मिश्रण में पुनः 500 ग्राम गुलाबजल मिलाकर ढककर रख देते हैं। अगले दिन 24 घंटे बाद इसे आग पर चढ़ाते हैं और धीमी-धीमी आँच में पकाते हैं। चाशनी जैसा गाढ़ा हो जाने पर इसे उतारकर ठंडा कर लेते हैं और बोतल में भर लेते हैं। यह चन्दन-पाक है। प्रतिदिन 12 से 24 ग्राम तक सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से शरीर बलशाली बनता है और सूजाक जैसे विकार दूर होते हैं।

7. वमन : चन्दन के साथ कुछ अन्य जड़ी-बूटियाँ मिलाकर एक कल्क तैयार किया जाता है जो पित्त विकार के कारण होनेवाली सभी प्रकार की उल्टियों में लाभकारी होता है। इसके लिए चन्दन, खस, जटामासी, अंगूर, सुगन्धबाला और गेहूँ को कूट-पीसकर चटनी जैसा कल्क तैयार कर लेते हैं। इस कल्क का सुबह-शाम ताजे पानी के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के वमन में लाभ होता है। चन्दन, खस, सुगन्धबाला, सोंठ और अडूसा का कल्क भी चावल की धोवन और शहद के साथ लेने से वमन में लाभ होता है।

8. मूत्र सम्बन्धी रोग : हैजा, अनिद्रा एवं मूत्र सम्बन्धी अनेक रोगों के लिए चन्दन के साथ कुछ अन्य जड़ी-बूटियाँ मिलाकर एक औषधि तैयार की जाती है। इसे चन्दनादि हिम कहते हैं। इसके लिए चन्दन का बुरादा, गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ, सेवती गुलाब, काहू, कुलफा, खस, धनिया, कासनी, नीलोफर, सौंफ, छोटी इलायची के दाने, खीरे के बीज, ककड़ी के बीज और काली मिर्च सभी 10-10 ग्राम लेकर मोटा-मोटा कूट लेते हैं। इसे प्रतिदिन 6 ग्राम से 25 ग्राम तक मिट्टी के नए बर्तन में 250 ग्राम पानी में शाम को भिगो देते हैं और सवेरे सिल पर चटनी की तरह पीस लेते हैं। इसके बाद इसे पानी में घोलकर 25 ग्राम मिश्री के साथ पी लेते हैं। यह चन्दनादि हिम अनेक रोगों में लाभकारी होता है।

9. सूजाक रोग : पुरुषों में सूजाक और स्त्रियों में प्रदर रोग के लिए चंदनादि वटी तैयार की जाती है। इसके लिए छोटी इलायची के बीज और वंशलोचन 12-12 ग्राम लेकर कूट-पीसकर कपड़छन करके बारीक चूर्ण कर लेते हैं। इसके बाद इसे चन्दन के तेल में सानकर छोटी सुपारी के आकार की गोलियाँ बना लेते हैं। इन गोलियों को दिन में दो बार 50 ग्राम पानी में घोलकर 6 ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करने से एक सप्ताह के भीतर सूजाक और प्रदर के रोगियों को लाभ होता है।

10. प्रजनन सम्बन्धी रोग : स्त्रियों और पुरुषों के विभिन्न प्रकार के प्रजनन सम्बन्धी दोषों एवं कुछ अन्य रोगों के लिए चन्दनासव तैयार किया जाता है। इसे तैयार करने के लिए सफेद चन्दन, लाल चन्दन, साल काष्ठ, देवदारू, दारूहल्दी, शीतल चीनी, चित्रकमूल की छाल, आमल, निशीथ, अगर, शतावर, पाषाण भेद, कृष्ण सारिवा, अडूसे की जड़ की छाल, कटेरी की जड़, बबूल की छाल और बरूआ की छाल 36-36 ग्राम लेकर कूट-पीसकर महीन कर लें। इसके बाद अलग से 1 किलोग्राम मुनक्का और 750 ग्राम धाय के फूल भी पीस लें। अब 27 किलोग्राम पानी में 5 किलोग्राम शक्कर और अन्य सभी चीजें डालकर अमृतबान में भरकर उसका मुँह अच्छी तरह बन्द करके अँधेरे और शुष्क स्थान पर रख दें। 45 दिन बाद इसे छानकर बोतलों में भर लें। यही चन्दनासव है। इसका सेवन करने से विभिन्न प्रकार के प्रमेह, मूत्ररोग आदि दूर हो जाते हैं।

चन्दन की सहायता से अनेक आयुर्वेदिक कम्पनियों ने अनेक पेटेन्ट औषधियाँ तैयार की हैं। सिद्धि फार्मास्यूटिकल्स का ‘चन्दन’ इंजेक्शन, त्रिमूर्ति फार्मेसी की ‘सारिको टैबलेट’, हमदर्द का ‘माजूम संदल’, ऊँझा आयुर्वेदिक फार्मेसी का ‘चन्दनबीटा कल्प’ आदि इसी प्रकार की औषधियाँ हैं।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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