Last Updated on August 26, 2019 by admin
विविध मूत्र-विकार एवं प्रमेहनाशक योग प्रमेह गज केसरी वटी :
आज कल जैसा वातावरण है, जिस तरह का खानपान, रहन सहन और आचार-विचार अधिकांशतः पाया जा रहा है उसके फल स्वरूप पैदा होने वाले कई विकारों में पाया जाने वाला एक विकार है मधुमेह (डायबिटीज़) जो प्रमेह रोग का ही एक रूप है। इस रोग को दूर करने में आयुर्वेदिक योग ‘प्रमेह गज केसरी वटी’ सफल सिद्ध हुआ है। रस तन्त्रसार व सिद्ध प्रयोग संग्रह’ तथा ‘आयुर्वेद सार संग्रह’ नामक सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रन्थों में इस योग की बहुत प्रशंसा की गई है। वैद्य जगत भी इस योग को गुणकारी और विश्वसनीय मानता है और नि:शंक हो कर प्रयोग करता है। प्रमेह गज केसरी वटी(Prameha Gaj Kesari Vati) मधुमेह को नियन्त्रित करने में सफल सिद्ध होने वाला निरापद योग है।
किसी भी योग का परिचय प्रस्तुत करते हुए हम योग के घटक द्रव्य (फार्मूला) एवं निर्माण विधि की जानकारी सिर्फ इस दृष्टि से प्रस्तुत करते हैं कि जिज्ञासु, गुणग्राही एवं ज्ञानपिपासु प्रबुद्ध पाठकों को योग के घटक द्रव्यों की जानकारी दे सकें बाक़ी यह भी कह देना ज़रूरी समझते हैं कि ऐसे योगों को कुशलता पूर्वक, पूरे विधि विधान के अनुसार सही ढंग से बना लेना हर किसी के वश की बात नहीं है इसलिए सबसे अच्छा और निरापद तो यही रहेगा कि किसी भी प्रतिष्ठित औषधि निर्माता संस्थान द्वारा निर्मित योग खरीद कर उपयोग में लिया जाए।
प्रमेह गज केसरी वटी योग सभी अच्छे और देश प्रसिद्ध औषधि निर्माताओं द्वारा निर्मित देश भर में सर्वत्र आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता दवाई की दुकानों पर सरलता से मिल जाता है।
प्रमेह गज केसरी वटी के घटक द्रव्य :
✦ लोह भस्म – 10 ग्राम,
✦ नाग भस्म – 10 ग्राम,
✦ बंग भस्म – 10 ग्राम,
✦ अभ्रक भस्म – 40 ग्राम,
✦ शुद्ध शिलाजीत – 50 ग्राम,
✦ गोखरू – 60 ग्राम,
प्रमेह गज केसरी वटी बनाने की विधि :
सब द्रव्यों को खरल में डाल कर नींबू का रस डाल कर खूब अच्छी तरह से घुटाई करके सब द्रव्यों को एक जान कर लें और 2-2 रत्ती की गोलियां बना कर छाया में सुखा कर शीशी में भर लें ।
(एक ग्राम में 8 रत्ती होती हैं।)
मात्रा और सेवन विधि :
1-1 गोली सुबह शाम खाली पेट पानी के साथ लेना चाहिए। गुड़मार का काढ़ा बना कर, इस काढ़े के साथ सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है। आइये जाने डायबिटीज की आयुर्वेदिक दवा प्रमेह गज केसरी वटी के के लाभों के बारे में ।
प्रमेह गज केसरी वटी के फायदे और उपयोग : Prameha Gaj Kesari Vati Benefits in Hindi
☛ इस योग को सेवन करने से प्रमेह, मधुमेह, पेशाब में रुकावट और दाह आदि व्याधियां दूर होती हैं।
☛ मधुमेह रोग में रक्त शर्करा पर नियन्त्रण होता है।
☛ इसके सेवन से अग्न्याशय (Pancreas) को बल मिलता है और अग्न्याशय सक्रिय हो कर रक्त शर्करा को नियन्त्रित करता है।
☛ नाग (सीसा) भस्म और शिलाजीत के संयोग और प्रभाव से शर्करा की वृद्धि रुकती है।
☛ इक्षुमेह (Glycosuria) और उदक मेह (Diabetes Insipidus) नामक प्रमेह रोग उत्पन्न करने का कारण होता है अग्न्याशय का विकृत होना। अग्न्याशय से उत्पन्न होने वाले आग्नेय रस (Insulin) के निर्माण में कमी होने का यह परिणाम होता है कि शर्करा के पाचन में कमी होने लगती है जिससे रक्त में शर्करा (Sugar) की मात्रा बढ़ने लगती है। अग्न्याशय की विकृति और रक्त में शर्करा बढ़ने के दोष को दूर करने में प्रमेह गज केसरी योग गुणकारी सिद्ध होता है।
पाठक पाठिकाओं की जानकारी के लिए प्रमेह रोग के कुछ प्रकारों (भेदों) जैसे मधुमेह, इक्षुमेह और एक मूत्र विकार मूत्रकृच्छ्र (Dysuria) के मुख्य लक्षण यहां प्रस्तुत किये जा रहे हैं
मधुमेह रोग क्या है ? –
इस रोग के रोगी हमारे देश में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में बड़ी तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इसे अंग्रेज़ी भाषा में (Diabetes Mellitus) कहते हैं। जब प्रति 100 सी.सी. रक्त में 120 मि. ग्रा. से ज्यादा शक्कर पाई जाए तब ‘डायबिटीज़ मेलीटस’ यानी मधुमेह रोग होना माना जाता है और यदि 80 मि. ग्रा. से कम पाई जाए तो उपमधुमयता (Hypoglycemia) रोग होना माना जाता है।
यदि शर्करा की मात्रा 80 से 120 मि. ग्रा. के बीच पाई जाए तो यह स्थिति स्वस्थ मानी जाती है।
बहूमूत्र रोग क्या होता है ?-
पेशाब की मात्रा सामान्य अवस्था से ज्यादा हो और बार-बार पेशाब होता हो तो इसे उदक मेह या बहूमूत्र रोग (Polyuria) होना कहते हैं। ऐलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान की भाषा में इस रोग को ‘डायबिटीज़ इंसीपीडस’ (Diabetes Insipidus) कहते हैं।
रोग के लक्षण –
मधुमेह रोग होने पर रक्त की जांच में शर्करा का बढ़ा हुआ होना पाया जाना इस रोग का प्रमुख प्रमाण होता है। जब रक्त में शर्करा की मात्रा बहुत बढ़ जाती है तब मूत्र में भी शर्करा आने लगती है। ऐसी स्थिति में पेशाब बार-बार होना, पेशाब के लिए रात को सोने के बाद उठना पड़े, मुंह सूखना, अधिक प्यास लगना(Polydipsia) भूख अधिक लगना, ज्यादा मात्रा में भोजन करना (Polyphagia), बेचैनी, सिर में भारीपन या दर्द होना, सारे शरीर में दर्द होना, खुजली होना, शरीर में थकावट व कमज़ोरी का अनुभव होना, तबीअत गिरीगिरी लगे आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
आयुर्वेद के मतानुसार मधुमेह रोग को वातजन्य प्रमेह माना गया है। इस लक्षणों वाले मधुमेह रोग को नियन्त्रित करने के लिए प्रमेह गज केसरी वटी का सेवन करने से लाभ होता है। रोग की स्थिति ज्यादा बढ़ी हुई हो तो इसके साथ, सहायक औषधि के रूप में ‘शिला प्रमेह वटी’ की 1-1 गोली का सेवन करने से रोग पर शीघ्र नियन्त्रण होता है।
इक्षुमेह क्या है ? व इसके लक्षण –
इस रोग को आयुर्वेद के अनुसार कफ जन्य प्रमेह माना गया है। इसे मेडीकल भाषा में ग्लाइकोसूरिया (Glycosuria) कहते हैं। इस रोग का लक्षण गन्ने के रस जैसा गन्दला, चिपचिपा और मीठा पेशाब होना है। प्रमेह गज केसरी वटी के सेवन से लाभ होता है।अपने लक्षणों के अनुसार रोग की पहचान करके अनुकूल औषधि का सेवन करना चाहिए।
प्रमेह गजकेसरी वटी योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक दवा की दुकान पर मिलता हैं।
(दवा को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)
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